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Thursday, 19 December, 2024
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हरियाणा में नई विधानसभा से चंडीगढ़ को लेकर फिर विवाद गहराया, लेकिन कारण सिर्फ मोदी सरकार नहीं

केंद्र सरकार की तरफ से चंडीगढ़ में नया विधानसभा भवन बनाने के लिए हरियाणा को जमीन देने की घोषणा के बाद मुख्यमंत्री भगवंत मान ने पंजाब के लिए भी इसी तरह का अनुरोध किया है, लेकिन विपक्ष का कहना है कि इससे शहर पर पंजाब का दावा कमजोर होता है.

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चंडीगढ़: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की तरफ से 9 जुलाई को यह घोषणा किए जाने के बाद कि हरियाणा को एक अतिरिक्त विधानसभा भवन बनाने के लिए चंडीगढ़ में जमीन दी जाएगी, हरियाणा और पंजाब की साझा राजधानी चंडीगढ़ पर दोनों राज्यों की दावेदारी के पुराने मुद्दे पर एक बार फिर राजनीति गर्मा गई है.

यही नहीं, इस बार इस मुद्दे ने पंजाब की नई आम आदमी पार्टी (आप) सरकार को भी मुश्किल में डाल दिया है, क्योंकि विपक्षी दलों ने आरोप लगाया है कि मुख्यमंत्री भगवंत मान चंडीगढ़ पर राज्य के दावे को ‘कमजोर’ कर रहे हैं.

अभी, दोनों राज्य चंडीगढ़ शहर स्थित प्रतिष्ठित कैपिटल कॉम्प्लेक्स में एक साझा इमारत साझा करते हैं, जिसमें उनके दोनों विधानसभा हॉल हैं. इमारत एक हेरिटेज साइट है. दोनों राज्य अपने सचिवालय के लिए एक साझा भवन साझा करते हैं, और एक हाई कोर्ट भी है.

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने केंद्र के कदम का स्वागत करते हुए कहा कि चंडीगढ़ स्थित मौजूदा विधानसभा भवन में हरियाणा के विधायकों के लिए पर्याप्त जगह नहीं है—जिनकी संख्या एक नई परिसीमन प्रक्रिया के तहत अगले सात वर्षों में 90 से बढ़कर 126 हो सकती है. हरियाणा विधानसभा अध्यक्ष ज्ञान चंद गुप्ता ने कहा कि अतिरिक्त भवन के निर्माण का मतलब यह नहीं है कि हरियाणा मौजूदा परिसर में हिस्सेदारी का अपना दावा छोड़ देगा.

घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया जताते हुए मान ने केंद्र सरकार से पंजाब के लिए भी चंडीगढ़ में एक अलग विधानसभा के लिए जमीन उपलब्ध कराने का आग्रह किया है. उन्होंने कहा, ‘मैं केंद्र सरकार से अपील करता हूं कि हरियाणा की तर्ज पर पंजाब को भी अपनी विधानसभा बनाने के लिए चंडीगढ़ में जमीन आवंटित की जाए…लंबे समय से मांग की जा रही है कि पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट को भी अलग किया जाए. इसके लिए भी कृपया केंद्र सरकार चंडीगढ़ में जमीन मुहैया कराए.’

और इसी बात को लेकर पंजाब में राजनीतिक लड़ाई शुरू हो गई है.


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मान निशाने पर आए

इस मामले में पंजाब के विपक्षी दलों ने न केवल केंद्र सरकार और हरियाणा की भाजपा नीत सरकार को घेरा है, बल्कि मुख्यमंत्री मान को भी निशाना बना रहे हैं.

पंजाब कांग्रेस के प्रमुख अमरिंदर सिंह राजा वारिंग ने रविवार को कहा, ‘सभी हितधारकों, खासकर पंजाब सरकार के साथ विचार-विमर्श किए बिना एक अलग विधानसभा बनाने के लिए हरियाणा को जमीन देकर चंडीगढ़ पर पंजाब की भावनाएं भड़काने का प्रयास किया जा रहा है. इस प्रक्रिया को रोकना और आगे की कार्रवाई के लिए हमें इसमें शामिल करना महत्वपूर्ण है.’

पंजाब को भी अलग विधानसभा के लिए जमीन देने के अनुरोध वाले मान के बयान पर वारिंग ने सवाल उठाया, ‘पंजाब को एक और विधानसभा भवन बनाने की आवश्यकता क्यों है?’

पार्टी में उनके सहयोगी प्रताप सिंह बाजवा, जो पंजाब में कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) के नेता भी हैं, ने रविवार को एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा, ‘चंडीगढ़ पंजाब का एक अविभाज्य हिस्सा है. बेहतर होगा हरियाणा केंद्र शासित प्रदेश की सीमा के बाहर नई विधानसभा बनाए.’

पंजाब और हरियाणा दोनों राज्यों की राजधानी चंडीगढ़ तकनीकी तौर पर केंद्र की तरफ से नियुक्त प्रशासक द्वारा शासित एक केंद्र शासित प्रदेश है. अभी पंजाब के राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित चंडीगढ़ के प्रशासक हैं. केंद्रशासित राज्य के पास अपने मौजूदा स्वरूप में अपनी खुद की पुलिस और स्वास्थ्य एवं शिक्षा जैसे विभागों के साथ अपना एक सचिवालय है.

मान की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए बाजवा ने कहा, ‘इससे चंडीगढ़ पर पंजाब की दावेदारी कमजोर होगी. किसी को यह नहीं भूलना चाहिए कि (फ्रांसीसी वास्तुकार) ली. कॉर्बूसियर द्वारा निर्मित यूनेस्को की विश्व धरोहर इमारतें (द कैपिटल कॉम्प्लेक्स में) पंजाब की हैं.

शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने भी रविवार को मान पर निशाना साधते हुए कहा, ‘मैं स्तब्ध हूं कि कोई व्यक्ति जो खुद को पंजाब का मुख्यमंत्री कहता है, अपनी राजधानी चंडीगढ़ पर पंजाब के व्यापक रूप से स्वीकृत और अविभाजित अधिकार को छोड़ने की बात कैसे कर सकता है. पूरा शहर पंजाब का है और पंजाब के मुख्यमंत्री विधानसभा भवन के लिए हमारी अपनी जमीन पर थोड़ी सी जगह की मांग रहे हैं. हरियाणा को जमीन आवंटित किए जाने पर पंजाब के मुख्यमंत्री हरियाणा की भाषा कैसे बोल सकते हैं?’

इसके बाद बादल ने केंद्र को घेरा. उन्होंने कहा, ‘केंद्र हरियाणा को चंडीगढ़ में एक इंच भी भूमि आवंटित करने का कोई अधिकार नहीं रखता है क्योंकि यह शहर पूरी तरह, विशेष तौर पर और अनिवार्य रूप से पंजाब से संबंधित है, और केंद्रशासित प्रदेश के रूप में इसकी स्थिति पंजाब को ट्रांसफर किए जाने तक एक अस्थायी व्यवस्था है.’

आप नेता चेतन सिंह जौरामाजरा, जो पंजाब के नए स्वास्थ्य मंत्री भी हैं, ने रविवार को पत्रकारों से बातचीत में कहा कि यदि हरियाणा अलग विधानसभा बनाना चाहता है, तो उसे अपने राज्य में ऐसा करना चाहिए, चंडीगढ़ में नहीं. जौरामाजरा ने मान की टिप्पणियों को लेकर विवाद पर सवाल का कोई जवाब नहीं दिया.

पंजाब में आप के मुख्य प्रवक्ता मलविंदर सिंह कांग ने सोमवार को दिप्रिंट को बताया, ‘राजनीतिक विरोधी मुख्यमंत्री के बयान को जानबूझकर गलत समझ रहे हैं. उन्होंने मौजूदा विधानसभा छोड़ने के बारे में कभी कुछ नहीं कहा है. आप का दृढ़ विश्वास है कि चंडीगढ़ पर पंजाब का पूरा दावा है. विधानसभा और सचिवालय में साझा स्थान और दोनों राज्यों के लिए एक आम अदालत हरियाणा के लिए अस्थायी प्रावधान थे. अगर वे एक नई विधानसभा चाहते हैं, तो उन्हें इसे अपने राज्य में स्थापित करना चाहिए.’

पहली बार नहीं उठा विवाद

चंडीगढ़ पर दोनों राज्यों के दावे का मुद्दा इस साल दूसरी बार फिर से उठा है.

हरियाणा सरकार ने 5 अप्रैल को विशेष विधानसभा सत्र के दौरान चंडीगढ़ पर पंजाब के दावे का विरोध करते हुए एक प्रस्ताव पेश किया था.

हरियाणा विधानसभा में प्रस्ताव पेश किए जाने पर विपक्ष के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा ने कहा था, ‘चंडीगढ़ हरियाणा का था, है और रहेगा और किसी को भी राज्य के हितों को नुकसान पहुंचाने की अनुमति नहीं दी जाएगी. और वे राज्य के हितों की रक्षा के लिए कोई भी बलिदान देने को तैयार हैं, जिसमें पदयात्रा या कल्याणकारी कोई अन्य कदम शामिल हैं.’ सीएम खट्टर ने भी दोहराया था कि हरियाणा पंजाब को ‘चंडीगढ़ को छीनने’ की अनुमति नहीं देगा.

कुछ दिन पहले, 1 अप्रैल को पंजाब विधानसभा ने केंद्र से चंडीगढ़ को तुरंत इस राज्य को ट्रांसफर करने का आग्रह करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसके पहले गृह मंत्री अमित शाह ने घोषणा की थी कि केंद्रीय सेवा नियम केंद्र शासित प्रदेश के कर्मचारियों पर भी लागू होंगे.

पंजाब का प्रस्ताव सदन में सर्वसम्मति से पारित किया गया था. इसके मुताबिक, चंडीगढ़ को पंजाब की राजधानी बनाया गया था और ‘पिछले सभी उदाहरण देखें तो जब भी किसी राज्य का विभाजन हुआ है, तो राजधानी मूल राज्य के पास रहती है.’

अप्रैल 2022 के घटनाक्रम को छोड़कर, ऐसे प्रस्ताव पूर्व में सात बार पारित हो चुके हैं, इसमें ज्यादातर शिरोमणि अकाली दल के नेतृत्व वाली सरकारों के दौरान हुए. पिछले कुछ वर्षों में, चंडीगढ़ प्रशासन में घटती हिस्सेदारी और वहां अधिक से अधिक केंद्रीय अधिकारियों की पोस्टिंग को लेकर पंजाब का आक्रोश बढ़ता जा रहा है.

पंजाब और हरियाणा पहले भी मौजूदा विधानसभा में अधिक जगह की मांग को लेकर भिड़ चुके हैं.

चंडीगढ़ स्थित एक वरिष्ठ नौकरशाह ने कहा, पिछले दो दशकों में दोनों राज्य अपने सचिवालय भवनों को अलग करने और दो अलग हाई कोर्ट बनाने पर विचार कर रहे हैं.

अधिकारी ने कहा, ‘लेकिन विचार-विमर्श का कोई नतीजा नहीं निकल रहा क्योंकि हरियाणा नए कार्यालय चंडीगढ़ में बनाने को तरजीह देता है, और पंजाब इसका विरोध करता है. पंजाब हरियाणा को चंडीगढ़ में कोई नया कार्यालय स्थापित नहीं करने देगा. कुछ साल पहले, हरियाणा ने करना में एक अलग हाई कोर्ट का प्रस्ताव दिया था. लेकिन इसे चंडीगढ़ स्थित मौजूदा हाई कोर्ट में पहले से ही अभ्यास कर रहे वकीलों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा. यह विचार किसी काम नहीं आया.’

अतीत पर एक नजर

चंडीगढ़ शहर भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के विजन का नतीजा है, जो इसे ‘बाकी दुनिया के लिए एक आदर्श शहर’ के तौर पर स्थापित करना चाहते थे. ली कॉर्बूसियर के डिजाइन के आधार पर बसाए गए इस शहर का निर्माण 1950 के दशक की शुरुआत में शुरू हुआ था, और इसका अधिकांश हिस्सा 1960 के दशक की शुरुआत में पूरा हुआ.

भारत के विभाजन के दौरान, पंजाब प्रांत को दो भागों में विभाजित किया गया—पश्चिमी पंजाब (पाकिस्तान में) और पूर्वी पंजाब (भारत में). 1950 में पूर्वी पंजाब का नाम बदलकर पंजाब स्टेट कर दिया गया और भारत सरकार ने चंडीगढ़ को इसकी राजधानी बनाया. चंडीगढ़ प्रशासन की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक, शहर की कल्पना न केवल पूर्वी पंजाब की राजधानी के रूप में की गई थी, बल्कि उन हजारों शरणार्थियों को फिर से बसाने के लिए भी की गई थी, जिन्हें पश्चिमी पंजाब से उखाड़ फेंका गया था.

1966 में अविभाजित पंजाब को भाषाई अंतर के आधार पर फिर पंजाबी भाषी पंजाब और हिंदी भाषी हरियाणा में विभाजित किया गया, जबकि कुछ क्षेत्र नए पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में भी चले गए थे. पंजाब और हरियाणा दोनों ने अपनी राजधानी के तौर पर चंडीगढ़ पर दावा जताया. उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने विवाद को सुलझाने के लिए चंडीगढ़ को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया, लेकिन संकेत दिया कि यह केवल अस्थायी समाधान था और बाद में इसे पंजाब में ट्रांसफर कर दिया जाएगा.

1976 में केंद्र ने चंडीगढ़ का संयुक्त दर्जा बढ़ा दिया, क्योंकि पंजाब और हरियाणा अपने-अपने दावे से पीछे हटने को तैयार नहीं थे.

1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और अकाली दल प्रमुख हरचंद सिंह लोंगोवाल के बीच हस्ताक्षरित समझौते के मुताबिक, चंडीगढ़ को 1986 में पंजाब को सौंपा जाना था, जबकि अबोहर और फाजिल्का सहित कुछ हिंदी भाषी शहर हरियाणा को दिए जाने थे. राज्य को अपनी राजधानी बनाने के लिए 10 करोड़ रुपये की राशि भी दी जानी थी. हालांकि, समझौता कभी अंतिम रूप से पुष्ट नहीं हो पाया क्योंकि सिख आतंकवादियों ने लोंगोवाल की हत्या कर दी थी.

चंडीगढ़ पर विवाद दशकों से जारी है, आंशिक रूप से उग्रवाद के कारण जो 1990 के दशक के मध्य तक पंजाब में फैल गया था और क्योंकि राज्य अपने हिंदी भाषी क्षेत्रों के साथ हिस्सेदारी को तैयार नहीं था. हरियाणा ने हमेशा चंडीगढ़ के सिर्फ पंजाब के साथ जुड़ाव पर आपत्ति जताई है क्योंकि राज्य के राजनेताओं का दावा है कि यह अंबाला जिले का हिस्सा है और हरियाणा का एक अविभाज्य हिस्सा है.

हिमाचल प्रदेश ने भी 2011 में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के आधार पर राजधानी के एक हिस्से का दावा जताया था. आदेश के मुताबिक, पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के आधार पर हिमाचल प्रदेश चंडीगढ़ की 7.19 प्रतिशत भूमि प्राप्त करने का हकदार था.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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