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Saturday, 20 April, 2024
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महाराष्ट्र में अकेले चुनाव लड़ना चाहते हैं कांग्रेस के नाना पटोले, लेकिन उनकी योजना का समर्थन नहीं करते आंकड़े

मंगलवार को पटोले ने दिल्ली में पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाक़ात की जिसके बाद उनके रवैये में थोड़ा नर्मी दिखाई दी लेकिन उन्होंने जोर देकर कहा कि पार्टी आगामी निकाय चुनाव अकेले दम पर लड़ेगी.

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मुंबई : महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले लगातार घोषणाएं करते जा रहे हैं कि उनकी पार्टी भविष्य में अकेले दम पर चुनाव लड़ना चाहेगी जिससे सत्तारूढ़ महा विकास अघाड़ी (एमवीए) में अकसर टकराव की स्थिति पैदा हो जाती है- एक गठबंधन जिसमें शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) भी शामिल हैं.

लेकिन लोकसभा और राज्य असेंबली तथा महाराष्ट्र के पांच नगर निकायों के चुनाव नतीजों से पता चलता है कि जिस सूबे में पार्टी का जन्म हुआ, और जहां अधिकतर समय वो सत्ता में रही वहीं उसका प्रदर्शन लगातार ढीला पड़ता जा रहा है.

महाराष्ट्र में लोकसभा और विधान सभा चुनावों में कांग्रेस का वोट शेयर 2004 से – जब कांग्रेस की अगुवाई वाला संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) राज्य में लगातार दूसरी बात सत्ता में आया- 2019 के बीच लगातार नीचे आया है. मुम्बई पुणे नाशिक और ठाणे में 2002 से 2017 के बीच हुए नगर निकाय चुनावों में भी पार्टी का यही हाल रहा है.

पांचवें शहर नागपुर में कांग्रेस कुछ हद तक अपना वोट शेयर बढ़ाने में कामयाब रही है हालांकि स्थानीय नगर निगम में उसके पार्षदों की संख्या में कमी आई है.

सभी पांच शहरों में 2022 के शुरू में नगर निकाय चुनाव होने हैं.

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2002 से कांग्रेस ने इनमें से बहुत से चुनाव अकेले दम पर लड़े हैं. मसलन मुम्बई में कांग्रेस ने 2002, 2007 और 2017 के चुनाव अकेले लड़े हैं. राज्य स्तर पर भी उसने 2014 के विधानसभा चुनाव अकेले लड़े थे.

पार्टी के प्रदर्शन के बारे में पूछे जाने पर महाराष्ट्र कांग्रेस प्रवक्ता सचिन सावंत ने शहरों में पार्टी के गिरते वोट शेयर के पीछे ‘मोदी लहर’ को कारण बताया लेकिन उनका कहना था कि वो कोई रुझान नहीं था.

‘शहरी क्षेत्रों में हमारा वोट शेयर बहुत तेज़ी से गिरा है विशेषकर 2014 के बाद क्योंकि मोदी लहर की वजह से शहरी मध्यम वर्ग बड़ी संख्या में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के समर्थन में चला गया. लेकिन ये पूरे देश के विपक्ष के साथ हुआ है और हमें लगता है कि ये कोई आम रुझान नहीं बल्कि एक असामान्यता है’.

‘कांग्रेस का निकाय चुनाव अकेले लड़ने का इरादा’

पटोले ने लगातार ऐसे बयान दिए हैं कि उनकी पार्टी आगामी चुनाव जिनमें 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव शामिल हैं अकेले लड़ेगी.

उनकी ‘अकेले लड़ने’ की टिप्पणी और इन आरोपों ने कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (शिवसेना) और उप-मुख्यमंत्री अजित पवार (एनसीपी) उनपर नज़र रखे हुए हैं एमवीए के सभी तीनों घटकों में नाराजगी पैदा कर दी है.

मंगलवार को पटोले ने दिल्ली में पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाक़ात की जिसके बाद उनके रवैये में थोड़ा नर्मी दिखाई दी लेकिन उन्होंने जोर देकर कहा कि पार्टी आगामी निकाय चुनाव अकेले दम पर लड़ेगी.

पटोले ने पत्रकारों से कहा, ‘इसमें कोई शक नहीं कि एमवीए सरकार पांच साल पूरे करेगी.असैम्बली और लोकसभा चुनाव अभी तीन साल दूर हैं. इन चुनावों के बारे में आलाकमान निर्णय करेगा. अभी इसपर चर्चा करने का कोई मतलब नहीं है, लेकिन कांग्रेस महाराष्ट्र में स्थानीय निकायों के आगामी चुनाव अकेले लड़ेगी’.

मुम्बई कांग्रेस अध्यक्ष भाई जगताप और बृहन्मुम्बई नगर निगम (बीएमसी) में पार्टी के नेता प्रतिपक्ष रवि राजा ने भी कहा है कि पार्टी मुम्बई निकाय चुनाव अकेले दम पर लड़ेगी.

दिप्रिंट से बात करते हुए सावंत ने कहा की पार्टी ने ‘अभी तक अधिकतर स्थानीय निकाय चुनाव अकेले लड़े हैं भले ही राज्य-स्तर पर हम एनसीपी के साथ गठबंधन में रहे हों’.

उन्होंने आगे कहा, ‘स्थानीय निकाय चुनाव पार्टी कार्यकर्त्ताओं के लिए पार्टी को मज़बूत करने का अवसर लेकर आते हैं. सैद्धांतिक रूप से हम आगामी चुनाव अकेले लड़ेंगे लेकिन कांग्रेस की प्रथा रही है कि कोई भी निर्णय लेने से पहले आलाकमान शहर के स्थानीय नेतृत्व की सलाह लेता है. इसी प्रथा को जारी रखा जाएगा’.

निकाय चुनावों में हल्का प्रदर्शन

2022 के शुरू में महाराष्ट्र के दस नगर निगमों में चुनाव होने हैं. इनमें आर्थिक और राजनीतिक रूप से राज्य के पांच महत्वपूर्ण शहर हैं मुम्बई पुणे नागपुर नाशिक और ठाणे.

महाराष्ट्र राज्य चुनाव आयोग (एसईसी) के आंकड़ों के अनुसार मुम्बई में 2017 के पिछले निगम चुनावों में कांग्रेस का वोट शेयर गिरकर 15.94 प्रतिशत पर आ गया जो 2002 में 26.48 प्रतिशत था.

क्रेडिट : दिप्रिंट

फिलहाल 227 सदस्यीय नगर निकाय में कांग्रेस के केवल 31 पार्षद हैं जबकि 2012 में ये संख्या 52 थी 2007 में 71 थी और 2002 में 61 थी.

पुणे में एसईसी डेटा से पता चलता है कि पिछले कुछ सालों में कांग्रेस का यही हाल हुआ है. 2017 के चुनावों में पार्टी को 8.63 प्रतिशत वोट मिले थे जबकि 2002 में ये वोट शेयर 31.09 प्रतिशत था. 2017 में पुणे नगर महापालिका में कुल 162 सदस्यों में कांग्रेस पार्षदों की संख्या 9 रह गई जबकि 2002 में ये संख्या 146 में से 61 थी.

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नासिक में 2017 में कांग्रेस का वोट शेयर गिरकर 4.73 प्रतिशत पर आ गया जो 2002 में 19.97 प्रतिशत था. वर्तमान में 122 सदस्यों की इकाई में उसके पास छह सीटें हैं जबकि इसकी अपेक्षा 2002 में 108 सीटें थीं.

मुम्बई के सेटेलाइट शहर ठाणे में 2017 में कांग्रेस का वोट शेयर 6.24 प्रतिशत था जो 2002 में 23.3 प्रतिशत हुआ करता था. 131 सदस्यों की नगर इकाई में पार्टी के पास अब केवल तीन पार्षद हैं जबकि 2002 में ये संख्या 116 में से 13 थी. ठाणे में 2007 और 2012 निकाय चुनावों में पार्टी की सीटों की संख्या में कुछ बढ़ोतरी हुई और ये क्रमश: 18 और 18 हो गई लेकिन इसके वोट शेयर में कमी देखी गई.

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लेकिन विदर्भ के नागपुर में जहां कांग्रेस विरोधी बीजेपी की टक्कर में अपनी जगह बनाने की कोशिश में है वहां पार्टी के वोट शेयर में थोड़ी बढ़ोतरी देखी गई जो 2002 में 27.74 प्रतिशत की अपेक्षा 2017 में 28.16 प्रतिशत हो गया. फिर भी 2017 में नागपुर नगर निगम के कुल 151 पार्षदों में कांग्रेसी सदस्यों की संख्या घटकर 29 पर आ गई जो 2012 में 145 में से 41 थी.

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लोकसभा तथा असेंबली चुनावों में भी कांग्रेस के वोट शेयर में लगातार गिरावट आई है. जहां 2004 लोकसभा चुनावों में इसका वोट शेयर 21.06 प्रतिशत और उस साल के विधान सभा चुनावों में 23.77 प्रतिशत था वहीं 2019 में ये संख्या घटकर क्रमश:16.4 प्रतिशत और 15.87 प्रतिशत रह गई.

अधिकारिक रूप से कांग्रेस नेता बीजेपी के बढ़ते पदचिन्हों को महाराष्ट्र में अपने घटते वोट शेयर का कारण बताते हैं लेकिन अंदरूनी कलह और राज्य-स्तर पर तथा कुछ शहरों में भी अपने नेतृत्व के साथ तालमेल के अभाव ने भी पार्टी को काफी हानि पहुंचाई है.

कांग्रेस की मुम्बई इकाई के अंदर के आपसी मतभेद 2017 के निकाय चुनावों के बाद खुलकर सामने आए जब पार्टी को अभी तक की अपनी सबसे खराब हार का सामना करना पड़ा. तत्कालीन मुम्बई कांग्रेस अध्यक्ष संजय निरुपम ने हार की जिम्मेदारी स्वीकार करते हुए अपना पद छोड़ने की पेशकश की लेकिन कुछ सिलसिलेवार ट्वीट्स में उन्होंने ‘प्रचार को नुकसान पहुंचाने के लिए कुछ पार्टी नेताओं द्वारा ज़बर्दस्त नकारात्मकता फैलाए जाने’ को जिम्मेदार ठहराया.

एक वरिष्ठ प्रदेश कांग्रेस पदाधिकारी ने कहा, ‘आज भी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पटोले और विधान सभा में कांग्रेस के नेता बालासाहेब थोराट के बीच कोई सामंजस्य नहीं है. इसके नतीजे में राज्य में पार्टी के पास कोई व्यापक रणनीति नहीं है’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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