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Thursday, 25 April, 2024
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‘अहम विभागों की समितियों को कमजोर किया गया’ – संसदीय समितियों के पुनर्गठन से कांग्रेस और TMC नाराज

कांग्रेस के पास एक समिति की अध्यक्षता बरकरार है, जबकि टीएमसी को किसी भी समिति की अध्यक्षता नहीं मिली है. भाजपा और सहयोगी दलों के पास अब गृह विभाग, रक्षा, विदेश विभाग और वित्त सहित छह प्रमुख समितियां हैं.

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कोलकाता: मंगलवार को किए गए संसद की स्थायी समितियों के पुनर्गठन में विपक्षी दलों कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को प्रमुख पैनलों की अध्यक्षता से हटा दिया गया है. वहीं सत्तारूढ़ भाजपा और उसके सहयोगियों को छह अहम समितियों- गृह मामले, सूचना प्रौद्योगिकी, रक्षा, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण, विदेश मामले और वित्त विभाग की अध्यक्षता मिली है.

हालांकि प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के पास विज्ञान और प्रौद्योगिकी, पर्यावरण और वन समिति की अध्यक्षता बरकरार है. लेकिन दूसरी सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी टीएमसी को किसी भी समिति की अध्यक्षता नहीं मिली है.

तृणमूल के पास पहले खाद्य और उपभोक्ता मामलों की अहम समिति थी. इसका अध्यक्ष अब बीजेपी सांसद लॉकेट चटर्जी को बनाया गया है.

कांग्रेस सांसद अभिषेक मनु सिंघवी की जगह भाजपा सांसद बृज लाल को गृह विभाग की समिति का नया अध्यक्ष बनाया गया है. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले शिवसेना खेमे के सांसद प्रतापराव जाधव, कांग्रेस सांसद शशि थरूर की जगह आईटी पैनल के नए अध्यक्ष होंगे.

इस पुनर्गठन की विपक्ष ने तीखी आलोचना की है.

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दिप्रिंट से बात करते हुए लोकसभा में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि सरकार स्थायी समितियों में उठाए जा रहे मुद्दों से असहज थी. प्रमुख पदों से विरोध को खत्म करने के लिए यह पुनर्गठन उनकी आवाज दबाने के लिए किया गया है.

उन्होंने कहा, ‘हालांकि ऐसा कोई नियम नहीं है कि विपक्षी नेताओं को पैनल के शीर्ष पर होना चाहिए. यह हमारे संसदीय मानदंडों में एक अच्छी तरह से स्थापित परंपरा है. सत्रों के दौरान आवंटित काफी नहीं होता है, इसलिए स्थायी समितियां मिनी संसद की तरह काम करती हैं. इनमें सभी नीतियों की जांच के लिए विपक्षी सदस्य शामिल होते हैं. अब विपक्ष को जानबूझ कर बाहर कर दिया गया है. मैंने संसदीय कार्य मंत्री (वी. मुरलीधरन) को इस बारे में लिखा है.’

कांग्रेस नेता जयराम रमेश को विज्ञान और प्रौद्योगिकी, पर्यावरण और वन समिति का फिर से अध्यक्ष नियुक्त किया गया है. टीएमसी के डेरेक ओ ब्रायन होम पैनल में कांग्रेस के दिग्विजय सिंह के साथ होंगे. वहीं जनता दल (सेक्युलर) के नेता एच.डी. देवेगौड़ा को जल संसाधन समिति में जगह दी गई है.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी भाजपा के जुआल ओराम की अध्यक्षता वाले डिफेंस समिति का हिस्सा होंगे, जबकि कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद पी. चिदंबरम और मनमोहन सिंह वित्त समिति में होंगे, जिसका अध्यक्ष भाजपा के जयंत सिन्हा को नियुक्त किया गया है. बीजेपी के पी पी चौधरी विदेश मामलों की समिति में शीर्ष स्थान पर हैं.

कांग्रेस के अध्यक्ष पद के चुनावों में सबसे आगे चल रहे मल्लिकार्जुन खड़गे को 22 समितियों में से किसी भी एक के लिए नहीं चुना गया है.

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण समिति की अध्यक्षता पहले समाजवादी पार्टी के रामगोपाल यादव के पास थी. इसे अब भाजपा की भुवनेश्वर कलिता को सौंप दिया गया है.


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‘राजनीति से प्रेरित’

कांग्रेस के पास 245 सदस्यीय राज्यसभा में 31 सांसद हैं. और 543 सदस्यीय लोकसभा में 53 सांसद हैं. यह संख्या पार्टी को प्रमुख विपक्षी दल बनाती है. और टीएमसी उच्च सदन में अपने 13 सांसदों के साथ और निचले सदन में 23 सांसदों के साथ दूसरा सबसे बड़ा विपक्षी दल है.

कांग्रेस के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि उन्हें रसायन और उर्वरक समिति की पेशकश की गई है, लेकिन आईटी और गृह मामलों के दो प्रमुख समितियों से हटाने के बाद अभी तक उनके एक भी सांसद को अध्यक्ष पद के लिए नहीं चुना है.

चौधरी ने कहा, ‘सबसे अहम समितियों को कमजोर कर दिया गया है.’

टीएमसी के राज्यसभा सांसद सुखेंदु शेखर रे ने दिप्रिंट को बताया, ‘यह बिल्कुल अभूतपूर्व है और यह उच्च पदों पर बैठे लोगों की मनमानी को दर्शाता है, जिन्होंने जानबूझकर टीएमसी को किसी भी स्थायी समिति का नेतृत्व करने से वंचित किया है. यह भी राजनीति से प्रेरित है.’

टीएमसी के सूत्रों ने कहा, इस कदम के खिलाफ किसी भी तरह के विरोध करने का निर्णय पार्टी की ओर से लिया जाएगा. इस समय इसका खुलासा नहीं किया जा सकता है.

घोषणा के तुरंत बाद राज्यसभा में टीएमसी संसदीय नेता डेरेक ओ’ब्रायन ने अपनी निराशा व्यक्त करने के लिए ट्विटर का सहारा लिया. उन्होंने लिखा- ‘तीसरी सबसे बड़ी पार्टी AITC और दूसरी सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी को एक भी समिति की अध्यक्षता नहीं मिली है. साथ ही सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी को दो महत्वपूर्ण संसदीय समितियों की अध्यक्षता से हटा दिया गया है. यह न्यू इंडिया की कड़वी सच्चाई है.’

बाद में दिप्रिंट से बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘संसद को मेसर्स (नरेंद्र) मोदी और (अमित) शाह अलग-अलग तरीकों से कमजोर कर रहे हैं. यह तो बस एक ही उदाहरण है. ऐसे अनगिनत मामले और भी हैं.’

एक अन्य टीएमसी सांसद सुष्मिता देव ने कहा कि ऐसा कर एक गलत मिसाल कायम की जा रही है. उन्होंने ट्विटर पर लिखा- ‘स्थायी समितियां सरकारी नीतियों की निगरानी करती हैं और विभिन्न हितधारकों की आवाज के तौर पर काम करती हैं. विपक्षी दल न सिर्फ सदस्यों के रूप में बल्कि अध्यक्ष के रूप में भी सक्रिय भूमिका निभाने के लिए हैं.’

खाद्य और उपभोक्ता समिति के प्रभारी भाजपा सांसद लॉकेट चटर्जी ने कहा कि पुनर्गठन की आलोचना करने से पहले टीएमसी को अपनी ओर देखने की जरूरत है.

उन्होंने कहा, ‘बंगाल विधानसभा (राज्य विधानसभा) में टीएमसी ने विपक्ष का गला घोंट दिया है. भाजपा को लोक लेखा समितियों के अध्यक्ष पद से वंचित कर दिया गया था. फेरबदल के खिलाफ बोलना टीएमसी को शोभा नहीं देता. उसे अपने गिरेबान में झांकने की जरूरत है, खासकर स्कूल सेवा भर्ती घोटाले के बाद. प्रोटोकॉल का पालन करते हुए समिति का पुनर्गठन किया गया और योग्य सांसदों को अध्यक्ष पद दिया गया है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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