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Thursday, 25 April, 2024
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‘साफ-सुथरे’ और धन बल से मुक्त नागालैंड चुनाव कराने में जुटे चर्च, ग्राम सभाएं और उम्मीदवार

स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनावों का मुद्दा लंबे समय से नागालैंड में चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करता रहा है, जहां प्रमुख चिंता यानी नागा मुद्दे का समाधान पिछले तीन दशकों से लंबित है.

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कोहिमा/दीमापुर: कोई भी व्यक्ति या समूह अगर दीमापुर के घासपानी विधानसभा क्षेत्र—जो इसी नाम के गांव पर है—में (राजनीतिक) उम्मीदवारों से मिलता है, उसे ऐसा किसी प्राधिकार या व्यक्तिगत लाभ के बिना करना होगा. यह फरमान 22 फरवरी को 7 माइल ग्राम परिषद की तरफ से नागालैंड पोस्ट में प्रकाशित एक सार्वजनिक नोटिस में जारी किया गया है.

अगले दिन, कियोटो ग्राम परिषद और जिले के कियोटो घामी बैपटिस्ट चर्च ने भी एक निर्देश जारी किया जिसमें कहा गया था कि ‘गांव का कोई भी मतदाता किसी भी उम्मीदवार से नकद, सामग्री या अन्य किसी तरह का लाभ नहीं लेगा.’

चुनावी राज्य नागालैंड में अखबारों में आए दिन ऐसे कई नोटिस प्रकाशित हो रहे हैं, इसमें कुछ में ग्राम परिषदें किसी उम्मीदवार के प्रति अपनी निष्ठा की घोषणा करती हैं.

7 माइल ग्राम परिषद और एनपीएफ द्वारा समाचार पत्र में एक नोटिस

राज्य में 27 फरवरी को मतदान होना है. मतगणना दो मार्च को होगी.

स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनावों का मुद्दा, मतदाताओं को लुभाने के लिए धन बल और अन्य प्रलोभनों का इस्तेमाल इस पूर्वोत्तर राज्य में लंबे समय से चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करता रहा है, जहां प्रमुख चुनावी मसला यानी नागा राजनीतिक मुद्दे का समाधान पिछले तीन दशकों से लंबित है.

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हालांकि, इस चुनावी मौसम में कई संगठन, कुछ उम्मीदवार और कुछ ग्राम परिषदें सूरत को बदलने की हरसंभव कोशिश कर रही हैं, और चुनाव को ‘साफ-सुथरा’ बनाने के अभियान का नेतृत्व बैपटिस्ट चर्च ने संभाल रखा है. यह एक ऐसी पहल है जो इस बार चुनावों के लिए शुरू हुई है. लेकिन, चर्च प्रशासन के मुताबिक, संडे स्कूल करिकुला में स्वच्छ चुनाव पर चैप्टर शामिल करके इस अभियान को जारी रखने की योजना है.


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‘आशा की किरण’

दीमापुर-3 में, जी.बी. कहुतो चिशी बतौर निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव मैदान में किस्मत आजमा रहे हैं. निर्वाचन क्षेत्र में एक महिला उम्मीदवार हैं हेकहनी जाखुलो, जो नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं और असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा और कई अन्य दिग्गजों ने उनके लिए प्रचार किया है.

फिर भी, चिशी की मामूली सभाओं में भारी भीड़ देखी जा रही है और उनके बयानों पर भीड़ उसी तरह जोरदारी से प्रतिक्रिया देती है जैसी आम तौर पर रॉक म्यूजिक प्रोग्राम में होती है.

चिशी ने गुरुवार को चुमुकेडिमा के मैंडेविले गार्डन में एक सभा को संबोधित करते हुए हेलीकॉप्टरों से उम्मीदवारों और पैसों को लाने ले जाने के इंतजामों के संदर्भ में कहा, ‘मैं आपको वोट देने के बदले पैसे नहीं दूंगा. यदि मैं ऐसा करता हूं, तो वास्तव में जो धन आपके लिए संचित था वह समाप्त हो जाएगा और फिर मैं कोई वास्तविक कार्य नहीं कर पाऊंगा. यदि मैं आपको वोट करने के लिए पैसा नहीं देता हूं तभी मैं चुने जाने पर उसका इस्तेमाल आपके कल्याण के लिए कर पाऊंगा.’

सभा में मौजूद लोगों ने इस पर जोरदारी से तालिया बजाकर उनका स्वागत किया.

चुनावी प्रक्रिया के निराश हो चुके मतदाताओं समेत तमाम लोगों के लिए चिशी आशा की एक किरण बनकर उभरे हैं.

कोहिमा सिटी चर्च में सहायक पादरी और दो बच्चों की मां निनी निफुली ने अपने जीवन में कभी भी मतदान नहीं किया है. वह कहती हैं, ‘मुझे राजनीति की परवाह नहीं है, यह भ्रष्टाचार से भरा है. मेरा नाम मेरे गांव की वोटर लिस्ट में है लेकिन मैं वहां कभी नहीं जाती. लेकिन मैं हर उस शब्द को बहुत ध्यान से सुन रही हूं जो चिशी कह रहे हैं. अगर वह मेरे निर्वाचन क्षेत्र में होते, तो मैं उन्हें जरूर वोट देती.’

इसी चर्च की तरफ से पिछले हफ्ते मतदाताओं से ‘किसी प्रलोभन या धमकी के प्रभाव में आए बिना’ तार्किक रूप से अपनी पसंद के उम्मीदवार के पक्ष में मतदान करने का आह्वान किया गया था.

मैंडेविले गार्डन में चिशी को सुनने वालों एक युवा गृहिणी लिली चिशी भी शामिल थीं, जिन्होंने कहा, ‘मैं सिर्फ उन्हें सुनने आई थी क्योंकि मैंने उनके बारे में अपने दोस्त से सुना था. यहां राजनीति बहुत भ्रष्ट है. अन्य उम्मीदवार पहले ही घर-घर जाने लगे हैं, और पैसे की पेशकश कर रहे हैं—कुछ व्यक्तिगत वोटों के लिए तो कुछ पूरे परिवार के लिए. एक वोट की कीमत 4,000 रुपये से 6,000 रुपये के बीच होती है.’

सुमी नागा जनजाति से ताल्लुक रखने वाले चिशी अपनी प्रचार सामग्री में अपनी पहचान का इस्तेमाल करते हैं.

यह पूछे जाने पर कि क्या वह आदिवासी कार्ड खेल रहे हैं, चिशी ने दिप्रिंट से कहा, ‘बिल्कुल नहीं, आपने गलत समझा है. दरअसल, यह सुमियों को शर्मिंदा करने के लिए है. वे मेरे सबसे बड़े विरोधी हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि वे लालची हैं. मैं उन्हें आइना दिखाने की कोशिश कर रहा हूं. मैं सात साल से अधिक समय से एक कार्यकर्ता हूं और लोग जानते हैं कि मुझमें काम करने की काबिलियत है.’

‘बड़े पैमाने पर धनबल का इस्तेमाल और हिंसा घातक…’

नागालैंड में चुनावी भ्रष्टाचार की बात किसी से छिपी नहीं है, इसके बारे में एकेडमिक पेपर भी लिखे जा चुके हैं.

मोकोकचुंग जिले के फजल अली कॉलेज में राजनीति विज्ञान विभाग में सहायक प्रोफेसर फोओबेनथुंग ने 1964 में राज्य में पहले विधानसभा चुनावों से लेकर मौजूदा चुनावों तक की प्रक्रिया को लेकर 2018 में एक पेपर में लिखा था, ‘…इनमें अधिकांश चुनाव बड़े पैमाने पर धनबल के इस्तेमाल, हिंसा, धमकी और फर्जी मतदान से प्रभावित रहे थे.

उन्होंने लिखा था, ‘नागालैंड में चुनाव किसी त्योहार से कम नहीं हैं. मतदाता चुनावी दावतों में लिप्त होने, नशीले पदार्थों का सेवन करने और अपना वोट बेचकर पैसा कमाने के लिए इनका इंतजार करते हैं. यह कुछ वंशों और गांवों की तरफ से डराने-धमकाने के लिए भी जाने जाते हैं…’

नागालैंड बैपटिस्ट चर्च काउंसिल की तरफ से शुरू किए गए ‘स्वच्छ चुनाव अभियान’ के संयोजक विलो नलियो ने कहा कि समस्या जटिल है. काउंसिल के अभियान से इसके 24 एसोसिएशन भी जुड़े हैं.

विलो ने कहा, ‘आपको यह समझना होगा कि हर व्यक्ति के अपने विवेक से मतदान करने का पश्चिमी विचार नागालैंड की व्यवस्था से अलग है, जहां परिवार का मुखिया या गांव के बुजुर्ग अक्सर पूरे परिवार या गांव के लिए फैसला करते हैं कि किसे वोट देना है.’

उन्होंने कहा कि उदाहरण के तौर पर सेमा (या सुमी) और कोन्याक के बीच ‘अंग’ या राजा बहुत शक्तिशाली होता है और ऐसे निर्णय अक्सर वही लेता है. नागालैंड में 17 मान्यता प्राप्त जनजातियों में चेकेसांग, कोन्याक और सुमी शामिल हैं.

विलो ने कहा, ‘2018 में चुनावों के बाद एक विश्लेषण से पता चला कि अधिकांश महिलाओं और युवाओं की जगह प्रॉक्सी वोटर ने मतदान किया था. इसलिए हमने न केवल चर्चों और ग्राम सभाओं तक पहुंचना शुरू किया, बल्कि महिलाओं और युवा संगठनों तक भी पहुंचना शुरू किया… हम इसे संडे स्कूल करिकुलम में शामिल करने की योजना बना रहे हैं और उसमें भी जो प्राथमिक स्कूलों में छात्रों पढ़ाया जाता है.’

विलो ने कहा कि चर्च ने इस संबंध में चेकेसंग पीपुल्स ऑर्गनाइजेशन और वेस्टर्न सुमी एसोसिएशन के साथ हाथ मिलाया है. उन्होंने कहा कि चेकेसंग मदर्स एसोसिएशन फेक गांव में मतदान के दिन से पहले शराब या अन्य प्रलोभनों के साथ आने वाली कारों की जांच का जिम्मा संभाल रहा है.

दुविधा भी कम नहीं

दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से स्नातक जोएल नागा सुरक्षित सीट सेमिन्यु में कुछ ही समय पहल गठित राइजिंग पीपुल्स पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं.

पार्टी की प्रस्तावना के मुताबिक, राजनीतिक प्रक्रिया में सुधार करने और अधिक पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से 2021 में आरपीपी का गठन किया गया था.

नागा एकमात्र ऐसे उम्मीदवार हैं जिन्हें पार्टी ने मैदान में उतारा है और अब तक उनके प्रचार अभियान पर अच्छी प्रतिक्रिया मिली है. बहरहाल, राजनीतिक प्रक्रिया में पैसे इतना उलझा हुआ मुद्दा है कि पार्टी अब एक अजीब दुविधा का सामना कर रही है.

पार्टी के एक सदस्य ने दिप्रिंट से कहा, ‘देखिए, प्रतिक्रिया अच्छी है लेकिन हमें दुविधा है. वोट के बदले नोट का चलन इतने लंबे समय से चल आ रहा है कि जब हम बाहर जाते हैं तो पता नहीं चलता कि क्या करें. हमने अपने सभी संसाधन जुटाकर एक उम्मीदवार को मैदान में उतारा. हम यह साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि साफ-सुथरी राजनीति संभव है, अगर धन बल का इस्तेमाल करके जीतने में कामयाब होते हैं तो हमारी बात का कोई मतलब नहीं रह जाएगा. यदि हम ऐसा नहीं करते हैं, तो हमारा उम्मीदवार हार जाएगा. लोग दो-तीन वोटों के लिए भी एक लाख रुपये तक मांग रहे हैं.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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