गुरुग्राम: इस सप्ताह हरियाणा के मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता मनोहर लाल खट्टर ने न केवल पलवल जिले में लड़कियों के लिए एक वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय का नाम भारतीय स्वतंत्रता सेनानी झलकारी बाई की जयंती के अवसर पर उनके नाम पर रखा, बल्कि कोली जाति के सदस्यों के लिए एक सामुदायिक केंद्र के निर्माण की भी घोषणा की. साथ ही उन्होंने वहां झलकारी बाई की मूर्ति की स्थापना की भी बात कही.
सरकार द्वारा जारी एक बयान के अनुसार, स्वतंत्रता सेनानी कोली समुदाय से ताल्लुक रखती थीं.
बाई के नाम पर स्कूल का नामकरण और 3 करोड़ रुपये के सामुदायिक केंद्र के निर्माण की घोषणा, खट्टर सरकार की ‘संत महापुरुष सम्मान एवं विचार प्रसार योजना’ के तहत इतिहास के नायकों का जश्न मनाने के उद्देश्य से किए गए कार्यक्रमों की श्रृंखला में सबसे नया है.
यह कार्यक्रम फरवरी 2021 में शुरू किया गया था. इतिहास के नायकों को उनकी जयंती या पुण्यतिथि पर याद करने के लिए इसकी घोषणा की गई थी. राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि यह अगले साल के लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों से पहले सत्तारूढ़ बीजेपी के लिए एक संभावित जाति आउटरीच योजना में भी बदल गया है.
हरियाणा के एक राजनीतिक पर्यवेक्षक ने कहा कि जिस तरह से विभिन्न जातियों और उप-जातियों के राष्ट्रीय नायकों की जयंती का कार्यक्रम खट्टर सरकार द्वारा आयोजित किए जा रहे हैं, इससे किसी को संदेह नहीं है कि सरकार अगले साल होने वाले संसदीय और विधानसभा चुनावों से पहले लोगों को लुभाने की कोशिश कर रही है.
अत्री ने कहा, “हालांकि यह योजना दो साल पहले शुरू की गई थी, लेकिन पिछले एक साल में सरकार द्वारा आयोजित कार्यक्रमों की संख्या से पता चलता है कि यह चुनाव से पहले एक आउटरीच प्रयास की तरह है.”
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में खट्टर ने लिखा, “साहसी, निडर और देशभक्त वीरांगना झलकारी बाई जी का जीवन हम सभी को प्रेरणा देता है और आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरणा देता रहेगा. हम सभी को उनके नाम को आगे बढ़ाने के लिए मिलकर काम करना होगा.”
हरियाणा सरकार में मीडिया सचिव प्रवीण अत्रे के अनुसार, ‘संत महापुरुष सम्मान एवं विचार प्रसार योजना’ ने लोगों के बीच सांप्रदायिक सद्भाव और शांति का संदेश देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, और इसे जातिगत राजनीति के चश्मे से देखना “गलत” होगा.
अत्रे ने कहा कि सरकार ने योजना के कार्यान्वयन के लिए 10 करोड़ रुपये भी आवंटित किए थे.
हालांकि, राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि महापुरुष योजना के माध्यम से खट्टर सरकार की जातीय पहुंच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस बयान के विपरीत है कि उनके लिए एकमात्र जाति मायने रखती है और वह गरीबी है.
पीएम ने विधानसभा चुनाव से पहले छत्तीसगढ़ के दुर्ग में एक रैली को संबोधित करते हुए यह बयान दिया था.
कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर महाबीर जगलान ने कहा, “यह आश्चर्य की बात है कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जाति के अस्तित्व को स्वीकार करने से इनकार कर रहे हैं तो हरियाणा में उनकी पार्टी की सरकार ‘मैसेज फैलाने’ के उद्देश्य में एक असाधारण योजना ‘संत महापुरुष विचार सम्मान प्रसार योजना’ के माध्यम से जाति प्रतीक बना रही है और उसका जश्न मना रही है.”
जगलान ने आगे आरोप लगाया: “यह (कार्यक्रम) हरियाणा में कट्टर हिंदुत्व के फ्लॉप होने का परिणाम है, जिसे मेवात में हालिया सांप्रदायिक झड़पों के माध्यम से लागू करने के लिए डिज़ाइन किया गया था. सामान्य तौर पर लोग और विशेष रूप से किसान वर्ग, नूंह हिंसा के माध्यम से समाज के सांप्रदायिकीकरण के खिलाफ चट्टान की तरह खड़े थे. बीजेपी ने राज्य में अपनी सरकार के माध्यम से इस बार नरम हिंदुत्व के रूप में अपने विभाजनकारी एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए प्लान B विकसित की है. ऐसा लगता है कि यह अपने नायकों के अतीत के गौरव का हवाला देकर विभिन्न जातियों में पैठ बनाने की योजना बना रहा है.”
31 जुलाई को, विश्व हिंदू परिषद और मातृ शक्ति दुर्गा वाहिनी द्वारा आयोजित एक धार्मिक जुलूस पर कथित तौर पर मेव मुस्लिम समुदाय के सैकड़ों युवाओं ने हमला किया, जिसके कारण झड़पें हुईं, जिसमें छह लोगों की मौत हो गई और 70 से अधिक लोग घायल हो गए. साथ ही कई करोड़ की संपत्ति का भी नुकसान हुआ. हिंसा गुरुग्राम सहित हरियाणा के आसपास के कई जिलों में फैल गई, जहां एक मस्जिद में आग लगा दी गई और एक नायब इमाम की हत्या भी कर दी गई. अशांति के मूल में यह अफवाह थी कि गौरक्षक मोनू मानेसर भी इस यात्रा में शामिल होगा.
जबकि हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज ने कहा था कि यह घटना राज्य में शांति भंग करने के लिए रची गई थी, नूह पुलिस के एक कथित वीडियो के बाद खट्टर सरकार की खूब आलोचना हुई थी, जिसमें दावा किया गया था कि उसने सांप्रदायिक तनाव के बीच कुछ इनपुट शेयर किए थे.
इस बीच, महापुरुष अभियान ने विपक्षी खेमे की भी भौंहें चढ़ा दी हैं, जिन्होंने इसे “अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए एक इवेंट मैनेजमेंट” बताया है.
दिप्रिंट द्वारा गुरुवार को संपर्क करने पर हुडा ने दावा किया, “यह एक ऐसी सरकार है जिन्होंने कुछ भी काम नहीं किया. जो हरियाणा पहले प्रति व्यक्ति निवेश और प्रति व्यक्ति आय में नंबर वन हुआ करता था, वह अब बेरोजगारी और महंगाई में टॉप पर है. सरकार अपनी विफलताओं से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए ऐसे आयोजन करती रहती है.”
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‘महापुरुषों’ की जयंती मनाने वालों के लिए अनुदान
पिछले कुछ महीनों में खट्टर सरकार ने ऐतिहासिक शख्सियतों – ज्यादातर हिंदू राजाओं या योद्धाओं – की जयंती मनाने के लिए लगभग एक दर्जन कार्यक्रम आयोजित किए हैं.
खट्टर का एक्स अकाउंट इन आयोजनों में उनकी भागीदारी वाली तस्वीरों और पोस्ट से भरा हुआ है.
27 फरवरी, 2021 को, खट्टर ने एक वीडियो पोस्ट कर घोषणा की कि ‘संत महापुरुष सम्मान एवं विचार प्रसार योजना’ के तहत महापुरुषों की जयंती मनाने वालों को 50,000 रुपये से 1 लाख रुपये का अनुदान मिलेगा.
हालांकि, योजना के बारे में उनके पोस्ट के स्कैन से पता चलता है कि उन्होंने पिछले 12 महीनों में लगभग आठ ऐसे आयोजन पोस्ट किए हैं, लेकिन इसकी शुरुआत और दिसंबर 2022 के बीच ‘महापुरुष’ योजना से संबंधित केवल दो कार्यक्रमों का उल्लेख है.
पिछले साल मई में, खट्टर करनाल में महर्षि कश्यप जयंती समारोह में मुख्य अतिथि थे. महर्षि कश्यप को ब्राह्मणों के बीच कश्यप गोत्र के अतीत के प्रतीक के रूप में प्रतिष्ठित किया जाता है.
पिछले साल 20 दिसंबर को, खट्टर ने हिसार में महाराज शूर सैनी जयंती समारोह में अपने भाषण का एक वीडियो पोस्ट किया था. सैनी को हरियाणा के ओबीसी समूह सैनी समुदाय का प्रतीक माना जाता है.
हरियाणा सीएम का एक्स अकाउंट पर ऐसे कई अन्य आयोजनों की पोस्ट भरा-पड़ा है.
इस साल फरवरी में, खट्टर ने अनुसूचित जातियों के बीच रविदासिया समुदाय के प्रतीक गुरु रविदास की जयंती मनाने के लिए उनकी अध्यक्षता में गुरुग्राम में आयोजित एक कार्यक्रम के बारे में पोस्ट किया था.
23 अप्रैल को, खट्टर ने काशी के स्वामी रामानंद के शिष्य, 15वीं सदी के कवि धन्ना भगत की जयंती समारोह की तस्वीरें पोस्ट कीं. धन्ना भगत राजस्थान के जाट थे.
इस साल 7 अक्टूबर को, खट्टर ने नई दिल्ली में सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य, जिन्हें हेमू के नाम से भी जाना जाता है, के राज्याभिषेक की सालगिरह के अवसर पर एक समारोह की अध्यक्षता की. हेमू को भार्गव ब्राह्मण समाज का प्रतीक माना जाता है.
खट्टर सरकार ने परशुराम (ब्राह्मण), संत कबीर दास (अनुसूचित जातियों के बीच धनक समुदाय), गुरु गोरखनाथ (नाथ समुदाय), ज्योतिबा फुले (माली/अनुसूचित जाति), उधम सिंह (कम्बोज), महाराजा अजमीढ़ (सुनार) और डॉ. बी.आर.अम्बेडकर (दलित) की जयंती मनाने के लिए भी कार्यक्रम आयोजित किए हैं.
सभी ऐतिहासिक शख्सियतों की जातियां वैसी ही हैं जैसा सरकार ने दावा किया है.
जगलान के अनुसार, हेमू, धन्ना भगत, झलकारी बाई और परशुराम जैसे प्रतीकों का जश्न बीजेपी की शॉफ्ट हिंदुत्व की योजना में फिट बैठता है. प्रोफेसर कहते हैं, “लेकिन लगभग हर मामले में अंतर्निहित विरोधाभास हैं. वे मुगलों के खिलाफ लड़ने के लिए हेमू का महिमामंडन करते हैं, लेकिन इस तथ्य को छिपाते हैं कि उन्होंने अफगान मुस्लिम शासक आदिल शाह सूरी की ओर से लड़ाई लड़ी थी.”
जगलान ने कहा: “धन्ना भगत एक संत थे जो एक ईश्वर की उपस्थिति में विश्वास करते थे, जो हिंदुत्व के सिद्धांतों के विपरीत है. पौराणिक स्रोतों के अनुसार भगवान विष्णु के अवतार, परशुराम लगातार उन क्षत्रियों के साथ युद्ध में रहते थे जो ऊंची जाति के हिंदू हैं, न कि मुस्लिम.”
राजनीतिक पर्यवेक्षक पवन कुमार बंसल के अनुसार, खट्टर सरकार की योजना कुछ और नहीं बल्कि हरियाणा में बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा अपनाई जा रही ध्यान भटकाने वाली रणनीति है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि लोग बेरोजगारी, मुद्रास्फीति और कानून व्यवस्था के वास्तविक मुद्दों के बारे में बात न करें.
बंसल कहते हैं, “इतिहास के लोगों की जयंती मनाना सरकार का काम नहीं है. लेकिन खट्टर सरकार अपनी ‘संत महापुरुष सम्मान एवं विचार प्रसार योजना’ के तहत लोगों को ऐसे मुद्दों पर व्यस्त रखने के लिए ऐसा कर रही है ताकि वे उन वास्तविक मुद्दों के बारे में सवाल न पूछें जिनका वे सामना कर रहे हैं.”
जबकि राजनीतिक पर्यवेक्षक ने कहा कि इस तरह की रणनीति सभी दलों द्वारा अपनाई जाती है. उन्होंने खट्टर सरकार पर दूसरों की तुलना में लोगों को अधिक रोजगार देने की बात कही.
इस सप्ताह झलकारी बाई के सम्मान में आयोजित कार्यक्रम में बोलते हुए, खट्टर ने स्वतंत्रता सेनानी की प्रशंसा करते हुए याद किया कि कैसे उन्होंने “खुद को झांसी की रानी लक्ष्मी बाई के रूप में प्रस्तुत किया और रानी की जान बचाने के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया”.
अत्री के अनुसार, “झलकारी बाई की महानता और बहादुरी का उत्तर भारत में अनुसूचित जाति समुदाय के जीवन पर गहरा सकारात्मक प्रभाव पड़ा है, क्योंकि वह प्रेरणा के प्रतीक के रूप में उभरी थीं”.
(संपादन: ऋषभ राज)
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