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Thursday, 19 December, 2024
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‘एक राष्ट्र एक DNA’; मुस्लिमों में पैठ बढ़ाने की तैयारी में BJP, मुजफ्फरनगर में करेगी ‘स्नेह सम्मेलन’

भाजपा ने 2024 के चुनावों से पहले मुसलमानों को लुभाने की रणनीति तैयार की है. इसके तहत भारतीयों के एक ही डीएनए पर जोर देते हुए ‘स्नेह सम्मेलन’ भी आयोजित किए जाएंगे, जिसकी शुरुआत अगले महीने यूपी के मुजफ्फरनगर से होगी.

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नई दिल्ली: पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में भयावह सांप्रदायिक दंगों के करीब एक दशक बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) एक देश एक डीएनए के नाम से ‘स्नेह सम्मेलन’ की मेजबानी करके क्षेत्र में हिंदू-मुस्लिम विभाजन को पाटने की उम्मीद कर रही है. भाजपा ने 2024 के लोकसभा चुनाव से पूर्व मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में 12 ऐसे कार्यक्रमों के आयोजन की योजना बनाई है, जिसकी शुरुआत अगले महीने मुजफ्फरनगर से की जाएगी.

यूपी भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष कुंवर बासित अली ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम मुस्लिम बहुल इलाके में इस तरह की पहली बैठक की मेजबानी कर रहे हैं ताकि हमारा संदेश पूरी जोरदारी और स्पष्ट तरीके से पहुंचे.’

उन्होंने आगे कहा, ‘मुजफ्फरनगर को इसलिए भी चुना गया क्योंकि यह चौधरी चरण सिंह की भूमि है, जिन्होंने जाट-मुस्लिम एकता के विचार के साथ प्रयोग किया. हालांकि, बाद में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने उनकी रणनीति को हाईजैक कर लिया. पार्टी उन मुस्लिमों के बीच एकता की भावना बढ़ाना चाहती है जो भाजपा को अपना दुश्मन मानते हैं और पार्टी की कोशिश विपक्षी दलों की तरफ से खींची गई विभाजन की रेखाओं को मिटाने की भी है.’

राज्य के भाजपा नेताओं का कहना है कि इन लक्ष्यों के अलावा, चुनावी अंकगणित भी एक बड़ा फैक्टर है.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक भाजपा नेता ने कहा, ‘भाजपा को पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में सपा-रालोद (समाजवादी पार्टी-राष्ट्रीय लोकदल) गठबंधन की तरफ से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा. उन्हें रालोद के जाट जनाधार और सपा के मुस्लिम आधार से काफी मदद मिली. भाजपा को अब सपा-रालोद की एकता को तोड़ना है और मुस्लिम मतदाताओं को पार्टी की ओर आकृष्ट करना है.’

यद्यपि 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने पश्चिमी यूपी की सभी 14 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी, लेकिन 2019 में उसे यहां पर झटका लगा जब सपा-बसपा गठबंधन ने छह सीटों पर जीत हासिल की. बसपा ने नगीना, अमरोहा, बिजनौर और सहारनपुर सीटों पर जीत हासिल की और सपा को मुरादाबाद और संभल में जीत मिली.

इसी तरह, 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने जहां पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 24 जिलों की 126 सीटों में से 100 पर जीत हासिल की थी. वहीं 2022 के चुनावों में यह संख्या घटकर 85 रह गई. रालोद—जिसका नेतृत्व अब चौधरी चरण सिंह के पोते जयंत चौधरी के हाथों में है—ने ही अकेले आठ सीटों पर जीत दर्ज की.

मुस्लिम आउटरीच बढ़ाने के भाजपा के प्रयासों में स्नेह सम्मेलनों के आयोजन के अलावा अल्पसंख्यक समुदायों के बीच मोदी मित्रों की पहचान करना और निर्वाचन क्षेत्रों के साथ-साथ जी-20 प्रतिनिधियों के लिए सूफी म्यूजिक कार्यक्रमों का आयोजन करना शामिल है.

यूपी के एक मुस्लिम भाजपा नेता ने कहा, ‘आम तौर पर बहुत कम मुसलमान भाजपा को वोट देते हैं, लेकिन रामपुर चुनाव से पता चलता है कि समुदाय का एक वर्ग पार्टी के समर्थन में आगे आया है. निरंतर आउटरीच प्रोग्राम के जरिये हम मुस्लिमों को कम से कम किसी अन्य पार्टी के पक्ष में एकजुट होने से रोक सकते हैं और उनके बीच अपने वोटों की हिस्सेदारी बढ़ा सकते हैं.’

पिछले दिसंबर में, भाजपा उम्मीदवार ने विधानसभा उपचुनाव में एक मुस्लिम बहुल निर्वाचन क्षेत्र और सपा नेता आजम खान के गढ़ रामपुर में 34,000 से अधिक मतों से जीत दर्ज की. हेट स्पीच में सजा के बाद आजम खान के सदस्यता के अयोग्यता होने कारण इस सीट पर उपचुनाव की जरूरत पड़ी थी.

पश्चिमी यूपी में जाट-मुस्लिम ‘भाईचारा’

पहला स्नेह सम्मेलन मुजफ्फरनगर में आयोजित करना एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा लगता है. यह जिला यूपी की गन्ना बेल्ट में आता है और यहां मुस्लिम और जाट किसानों की एक महत्वपूर्ण आबादी बसती है.

अब तक, इस क्षेत्र में भाजपा के चुनावी जुमले अक्सर 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों की याद दिलाते रहे हैं और ध्रुवीकरण का कारण बनते रहे हैं. लेकिन सपा और रालोद की स्थिति मजबूत होने के बाद अब इस बार भाजपा अपनी पैठ बढ़ाने के लिए नई रणनीति आजमाती नजर आ रही है.

अली ने कहा, ‘पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सदियों से जाट, राजपूत, गुर्जर और त्यागी समुदाय सहित हिंदू और मुसलमान एक साथ रहते आए हैं. तो, अब भी जाति और समुदाय के आधार पर विभाजन क्यों है? हमारा डीएनए एक ही है, और हमें योगी आदित्यनाथ, राजनाथ सिंह और संजीव बाल्यान जैसे नेताओं को उनकी जाति या समुदाय की परवाह किए बिना स्वीकार करना चाहिए.’

उनके मुताबिक, मुजफ्फरनगर में 80,000 मुस्लिम राजपूत और एक लाख मुस्लिम जाट हैं. उन्होंने यह दावा भी किया कि निकटवर्ती सहारनपुर और शामली जिलों में क्रमशः 1.8 लाख मुस्लिम राजपूत और एक लाख मुस्लिम गुर्जर हैं.

उन्होंने आगे कहा, ‘सरकार सभी धर्मों को समान मानती है, और जब हमारे देश के प्रधानमंत्री कहते हैं कि मुस्लिम हमारे भाई हैं और आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) इस पर जोर देता है कि हमारा डीएनए एक है, तो समुदायों के बीच विभाजन खत्म होना चाहिए.’

मुजफ्फरनगर स्नेह सम्मेलन में आमंत्रित नेताओं में केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष चौधरी भूपेंद्र सिंह और मुजफ्फरनगर के सांसद व राज्य मंत्री संजीव बाल्यान शामिल हैं. आयोजन की तैयारियों में शामिल एक भाजपा नेता ने कहा कि कार्यक्रम में प्रमुख मुस्लिम नेताओं के भी शामिल होने की उम्मीद है.


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सूफी नाइट्स और ‘मोदी मित्रों’ की सेल्फी

जनवरी में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पार्टी नेताओं से मुसलमानों के बीच पैठ बढ़ाने के लिए ‘सूफी नाइट्स’ आयोजित करने को कहा था. इस पर भी अब अमल करने की तैयारी चल रही है.

भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा न केवल सूफी सम्मेलनों की योजना बना रहा है, बल्कि विभिन्न जगहों पर जी-20 प्रतिनिधियों के लिए म्यूजिकल नाइट्स की मेजबानी की भी तैयारी कर रहा है.

15 मार्च को पार्टी के अल्पसंख्यक नेता सूफी आउटरीच के लिए एक संगठनात्मक ढांचा तैयार करने के उद्देश्य से दिल्ली में बैठक करेंगे.

भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी ने दिप्रिंट को बताया, ‘बैठक में हम सूफी सम्मेलनों, सूफी नाइट्स और नुक्कड़ बैठकों के आयोजन पर चर्चा करेंगे. हम देश भर में इन आयोजनों के लिए प्रभारियों की भर्ती भी करेंगे और सूफी लीडर्स को भी शामिल करेंगे.’

सूफीवाद इस्लाम की एक ऐसी धारा है जिसका उद्देश्य भक्ति गीतों और अन्य आध्यात्मिक प्रथाओं के जरिये ईश्वर के साथ सीधे जुड़ने की कोशिश करना है.

सिद्दीकी के मुताबिक, भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा ने 65 निर्वाचन क्षेत्रों में ‘मोदी मित्र कार्यक्रम’ के लिए प्रभारियों की पहचान पहले ही कर ली है.

सिद्दीकी ने बताया, ‘मोदी मित्र कार्यक्रम में, हम अल्पसंख्यक समुदायों के उन लोगों का चयन करेंगे जिन्हें सरकारी कल्याणकारी कार्यक्रमों के साथ-साथ पीएम मोदी का समर्थन करने वालों से लाभ मिला है. हम विभिन्न लोकसभा क्षेत्रों (अल्पसंख्यक बहुल आबादी वाले) में ऐसे लाभार्थियों की पहचान कर रहे हैं और हम उनके लिए अपनी सेल्फी (सोशल मीडिया पर) पोस्ट करने का एक कार्यक्रम शुरू करेंगे.’

अब तक, भाजपा ने 10 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 65 लोकसभा क्षेत्रों की पहचान की है जहां धार्मिक अल्पसंख्यकों की आबादी 30 प्रतिशत से अधिक है.

इसके लिए चिह्नित सीटों में 13-13 सीटें यूपी और पश्चिम बंगाल की हैं. इसके अलावा केरल और असम में छह-छह, जम्मू में पांच, बिहार में चार, मध्य प्रदेश से तीन, तेलंगाना और हरियाणा से दो-दो और महाराष्ट्र और लक्षद्वीप की एक-एक सीट चिह्नित की गई है.

यूपी के निर्वाचन क्षेत्रों में बिजनौर, अमरोहा, कैराना, नगीना, संभल, मुजफ्फरनगर और रामपुर आदि शामिल हैं.

भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा से जुड़े सूत्रों ने कहा कि इनमें से प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से 5,000 अल्पसंख्यक लाभार्थियों या मोदी समर्थकों को अपनी सेल्फी पोस्ट करने के लिए चुना जाएगा और उन्हें मई में दिल्ली में प्रस्तावित एक रैली में हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा, जिसको पीएम संबोधित करेंगे.

‘सिर्फ भाषण देना ही पर्याप्त नहीं होगा’

मुस्लिमों के बीच पैठ बढ़ाने के लिए इस तरह के आउटरीच प्रोग्राम पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में मोदी की तरफ से भाजपा नेताओं से कहने के बाद उठाए जा रहे हैं कि उन्हें बोहरा, पसमांदा मुस्लिम (दलित वर्ग) और समुदाय के अन्य लोगों के साथ जुड़ना चाहिए और इसके बदले में वोटों की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए.

पिछले महीने ही मुंबई में दाऊदी बोहरा समुदाय के एक कार्यक्रम में मोदी ने कहा था कि वह एक प्रधानमंत्री नहीं बल्कि “परिवार के एक सदस्य’ की हैसियत से वहां आए हैं और उन्होंने पिछले कुछ सालों में बढ़े ‘विश्वास के अभूतपूर्व माहौल’ की सराहना भी की थी.

मोदी की ही बातों को आगे बढ़ाते हुए भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के राष्ट्रीय महासचिव साबिर अली ने दिप्रिंट से कहा कि पार्टी के प्रति मुस्लिमों में उत्साह बढ़ाने के लिए सिर्फ भाषण देना ही काफी नहीं होगा.’

उन्होंने कहा, ‘शिक्षा के लिहाज से पिछड़ना समुदाय में अलगाव की भावना को बढ़ाता रहा है. भाजपा के प्रति उनका बैर-भाव खत्म करने के लिए सिर्फ भाषण देना ही काफी नहीं होगा. हमें इन समुदायों के दरवाजे तक पहुंचकर खुली बाहों के साथ उन्हें अपनाना चाहिए और उन्हें बातचीत में शामिल करना चाहिए.’

उन्होंने आगे कहा, ‘पिछले नौ सालों में मोदी सरकार की तरफ से की गई प्रगति के साथ-साथ अटल बिहारी वाजपेयी सरकार (1998 और 2004 के बीच) की उपलब्धियों से जुड़ा डेटा सामने रखकर हम राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के शासनकाल और अन्य सरकारों के कामकाज की तुलना के जरिये यह बता सकते हैं कि कैसे क्षेत्रीय दल या कांग्रेस इन समुदायों की भलाई के नाम पर सिर्फ जुबानी जमाखर्च करते रहे हैं. इस तरह का डेटा अंतर पाटने और अल्पसंख्यकों के बीच विश्वास की भावना बढ़ाने में मददगार हो सकता है.’

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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