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Saturday, 4 May, 2024
होमदेशफिर से अलग धर्म की मांग उठाएगी लिंगायत महासभा, राजनीतिक दल आमंत्रित नहीं होंगे

फिर से अलग धर्म की मांग उठाएगी लिंगायत महासभा, राजनीतिक दल आमंत्रित नहीं होंगे

2018 में कर्नाटक की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने लिंगायतों को अलग धर्म का दर्जा दिया गया था, लेकिन इस फैसले को भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने रद्द कर दिया था.

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बेंगलुरु: लिंगायतों का एक प्रमुख पंथ एक बार फिर से अपने समुदाय के लिए एक अलग धर्म के रूप में दर्जा देने की मांग उठाने की तैयारी कर रहा है. लगभग 5 साल पहले पूर्ववर्ती कांग्रेस के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने उनकी इस मांग को प्रस्तावित किया था. लेकिन उस समय भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने उनके इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया था. यह समुदाय कर्नाटक की आबादी का एक बड़ा हिस्सा है.

जगतिका लिंगायत महासभा अलग धर्म का दर्जा पाने के लिए समर्थन जुटाने में लगा है, लेकिन अपने अभियान को किसी भी राजनीतिक भागीदारी से मुक्त रखना चाहता है.

यह कदम विधानसभा चुनाव से ठीक पहले आया है.

एक पूर्व सिविल सेवक और जगतिका लिंगायत महासभा के प्रमुख महासचिव जामदार एस.एम. ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम किसी भी राजनीतिक दल या नेता को अपने साथ शामिल नहीं कर रहे हैं और न ही हम मौजूदा सरकार को कोई ज्ञापन दे रहे हैं, जिसके पास अभी एक महीने से अधिक का समय है.’

लिंगायत महासभा के छह सदस्यों ने करीब दो साल पहले कर्नाटक हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी, जहां फिलहाल मामले की सुनवाई चल रही है.

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लिंगायत में वीरशैव भी शामिल हैं. मान्यता ये है कि वीरशैव और लिंगायत एक ही लोग होते हैं. लेकिन लिंगायत ऐसा नहीं मानते हैं. कर्नाटक की कुल आबादी का 17 प्रतिशत हिस्सा लिंगायत है. राज्य के अब तक के 23 मुख्यमंत्रियों में से 10 इसी समुदाय से हैं.

हालांकि, अलग धर्म का दर्जा दिए जाने का मुद्दा काफी गरमा रहा है, लेकिन समुदाय के बीच फैले मतभेद इस विवाद को और बढ़ा रहे हैं.

मसलन, वीरशैव अलग धर्म में शामिल होना चाहते हैं,जबकि जगतिका लिंगायत महासभा इसका विरोध कर रहा है.

जामदार ने कहा, ऐसा इसलिए है क्योंकि लिंगायत 12वीं सदी के समाज सुधारक बसवन्ना के दर्शन का पालन करते हैं और वीरशैव खुद को हिंदू मानते हैं.

उधर पंचमसालियों जैसे कुछ उप-संप्रदायों की तरफ से आरक्षण संबंधी मांगें भी जोर-शोर से उठाई जा रही हैं.

न्यायमूर्ति नागमोहन दास की अध्यक्षता वाली एक विशेषज्ञ समिति द्वारा दायर रिपोर्ट के आधार पर कर्नाटक राज्य अल्पसंख्यक आयोग ने लिंगायत और वीरशैव लिंगायतों को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा देने पर विचार करने की सिफारिश का थी. इस सिफारिश के बाद ही पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने अल्पसंख्यक टैग देने का फैसला किया था.

हालांकि कई राजनीतिक पर्यवेक्षकों और नेताओं का कहना है कि यह पार्टी का यह फैसला 2018 में कांग्रेस के सत्ता से बाहर होने के सबसे बड़े कारणों में से एक था. तब विपक्ष में भाजपा ने इसे ‘चुनावी नौटंकी’ बताते हुए समुदाय को भावनात्मक मुद्दों पर विभाजित करने की ‘चाल’ के रूप में पेश किया था.

कांग्रेस की अगुवाई वाली सरकार द्वारा 2018 में उठाए गए इस कदम के पीछे जामदार को दिमाग माना जाता था. उन्हें राज्य के तत्कालीन राज्य मंत्री एम.बी. पाटिल का भी समर्थन मिला हुआ था.


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केंद्र सरकार की दलीलों को आड़े हाथों लिया

लिंगायत बसवन्ना के अनुयायी हैं, जिन्होंने चातुर्वर्ण या हिंदू धर्म की चार जाति व्यवस्था के तहत जाति और अन्य ‘बुराइयों’ के आधार पर भेदभाव को रोकने का बीड़ा उठाया हुआ है.

भक्ति आंदोलन से प्रेरित बासवन्ना ने ब्राह्मण रीति-रिवाजों और मंदिर पूजा को खारिज करते हुए, एक ऐसे समाज की परिकल्पना की जो जातिविहीन, भेदभाव से मुक्त हो और जहां पुरुषों और महिलाओं को एक समान माना जाता हो.

जामदार के मुताबिक केंद्र सरकार ने तीन मुख्य आधारों पर लिंगायतों को अल्पसंख्यक धर्म का दर्जा देने का विरोध किया था.

उन्होंने कहा, सबसे पहले, मैसूर राज्य की 1871 की जनगणना थी.

जामदार ने बताया कि सरकार का यह दावा झूठा है कि जनगणना में लिंगायतों को हिंदू धर्म का एक संप्रदाय माना गया था. उनके अनुसार, जनगणना में उनका एक अलग धर्म के रूप में उल्लेख किया गया है.

उन्होंने कहा, ‘वे (सरकार) मैसूर राज्य की 1871 की जनगणना के दस्तावेजों को खोल कर देख सकते हैं, जहां तीन अलग-अलग पन्नों में उन्होंने स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है कि लिंगायत कोई जाति नहीं है बल्कि एक अलग धर्म है.’

उन्होंने कहा, दूसरा,  सरकार ने कहा था कि अगर मूल समुदाय को अल्पसंख्यक धर्म का दर्जा दिया जाता है तो लिंगायतों के भीतर अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के मिलने वाले सभी लाभ खत्म हो जाएंगे. उन्होंने इसे भी झूठा बताया.

उन्होंने कहा, ‘बौद्धों और सिख धर्म में आने वाले हाशिए के समुदायों को वर्गीकरण के बावजूद सभी विशेषाधिकार दिए गए हैं.’

और तीसरा, उन्होंने कहा कि एक निजी निकाय (वीरशैव महासभा) ने सिर्फ लिंगायतों के लिए अलग धर्म का दर्जा दिए जाने का विरोध किया था. दरअसल वे चाहते थे कि इसमें वीरशैव शामिल हों, जिन्हें समुदाय के 99 उप-संप्रदायों में से एक माना जाता है.

जामदार ने कहा कि अनुभवी कांग्रेस नेता शमनूर शिवशंकरप्पा की अध्यक्षता वाली अखिल भारतीय वीरशैव महासभा, वीरशैवों और लिंगायतों के लिए अल्पसंख्यक धर्म का दर्जा पाने के लिए संघर्ष कर रही है. वह सिर्फ लिंगायतों को मान्यता देने वाले किसी भी कदम का विरोध करती है.

वीरशैव महासभा की सचिव एच.एम. रेणुका प्रसन्ना ने दिप्रिंट को बताया कि ‘हमारा मानना है कि वीरशैव और लिंगायत एक हैं और अल्पसंख्यक धर्म के लिए हमारी लड़ाई आजादी से पहले से है.’

उन्होंने कहा, ‘अदालत आस्था के मामलों पर फैसला नहीं कर सकती है. सिर्फ संसद ही संशोधन के जरिए यह दर्जा दे सकती है.’

उन्होंने कहा कि भाजपा ‘हिंदुत्व’ के बारे में है और अल्पसंख्यक धर्म का दर्जा देने की परवाह नहीं करती है, लेकिन अगर आगामी चुनावों में कर्नाटक में गैर-भाजपा सरकार सत्ता में आती है तो वीरशैव महासभा आगे बढ़ेगी.


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यह सब की राजनीति

2008 के चुनावों के बाद से लिंगायत मजबूती से भाजपा के साथ खड़े रहे हैं, खासकर बीएस येदियुरप्पा के साथ.

लेकिन समुदाय हाल के दिनों में अपने फैसले से डगमगाता नजर आया है, क्योंकि बोम्मई समूह के भीतर बढ़ते गुस्से को शांत नहीं कर पाए हैं. खासकर पंचमसालियों की नाराजगी को दूर करने में वह असफल रहे हैं, जिनकी आरक्षण संबंधी मांगें अब तक पूरी नहीं हुई हैं.

पंचमसाली आंदोलन का नेतृत्व कर रहे कुडाल संगम मठ के प्रमुख संत जया मृत्युंजय स्वामी ने समुदाय को 2ए श्रेणी का दर्जा नहीं दिए जाने पर भाजपा के खिलाफ अभियान चलाने की धमकी दी है. इस कैटेगरी में सूचीबद्ध समूहों के लिए 15 प्रतिशत कोटा दिया जाता है।

बसनगौड़ा पाटिल (यतनाल) जैसे प्रमुख भाजपा विधायकों के नेतृत्व वाले पंचमसालियों ने 2021 हनागल विधानसभा उपचुनावों में अपने गृह जिले हावेरी में बोम्मई की हार के पीछे एक बड़ी ताकत होने का दावा किया है क्योंकि वह समुदाय को 2ए श्रेणी में लाने में विफल रहे थे.

मौजूदा समय में वोक्कालिगा 3ए श्रेणी के अंतर्गत आते हैं, जिनमें रेड्डी और नायडू जैसे अन्य समुदाय शामिल हैं. इनके पास वर्तमान में 4 फीसदी आरक्षण है. समुदाय ने मांग की थी कि इसे बढ़ाकर 12 फीसदी किया जाए.

इसी तरह, वीरशैव लिंगायत और पंचमसाली और कई अन्य जाति समुदायों, मसलन मराठा और आर्य, को 3बी के तहत लगभग 5 प्रतिशत आरक्षण मिलता है, जिसमें कम से कम 2-3 प्रतिशत की वृद्धि होने की संभावना है.

इस साल जनवरी में, बोम्मई सरकार ने ओबीसी सूची में पूरी ‘3’ श्रेणी को हटाने का फैसला किया और लिंगायत और वोक्कालिगा को रिझाने के लिए दो नई श्रेणियां – 2सी और 2डी बनाई. इन नई श्रेणियों के तहत कोटा आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के 10 प्रतिशत कोटा के अतिरिक्त आरक्षण से निकाला जाना था.

कैबिनेट ने 16 जनवरी को दो नई श्रेणियों को मंजूरी दी थी. उस समय कर्नाटक के कानून और संसदीय मामलों के मंत्री जे.सी. मधुस्वामी ने कहा था कि ‘2A और 2B के साथ कोई दखल नहीं होगा. ईडब्ल्यूएस (आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग) के तहत बचाए गए प्रतिशत को इन दो समुदायों के लिए आरक्षण बढ़ाने के लिए वितरित किया जाएगा.’

हालांकि, पंचमसालियों ने नए वर्गीकरण को खारिज कर दिया था.

कांग्रेस के लिंगायत चेहरे पाटिल ने दिप्रिंट से बात करते हुए कहा कि अल्पसंख्यक धर्म का दर्जा समुदाय को बेहतर आरक्षण देगा और पंचमसालिस जैसे उप-संप्रदायों की मांगों से बचाएगा, जो दावा कर रहे हैं कि वे सिर्फ अपने लिए बेहतर शिक्षा और रोजगार के अवसर तलाश रहे हैं न कि पूरे लिंगायत समुदाय के लिए.

एमबी पाटिल के मुताबिक समुदाय 2018 के फैसले की वजह समझ चुका है.

कांग्रेसी नेता ने कहा, ‘एक सवाल था कि क्या हम सभी उप-समुदायों (उप-संप्रदायों) को न्याय देना चाहते हैं. देखिये अब पंचमसाली आरक्षण का क्या हुआ है. यह उप-संप्रदाय जैनियों और सिखों को दिए जाने वाले आरक्षण की तरह मांग कर रहा है. पूरे लिंगायत धर्म को अल्पसंख्यक का दर्जा और मेडिकल व इंजीनियरिंग सीटों पर आरक्षण दिया जाना चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘हमारे पास केपीएससी और यूपीएससी दोनों में प्रतिनिधित्व (आरक्षण) है. यह (अल्पसंख्यक धर्म का दर्जा देने का इरादा) उस समय गलत समझा गया था. क्योंकि यह चुनाव के बहुत करीब था … भाजपा, आरएसएस और अन्य लोगों ने इसका इस्तेमाल हमारे खिलाफ किया.’

कांग्रेस बीएस येदियुरप्पा को लेकर भाजपा के दुर्व्यवहार को उजागर करके लिंगायतों को लुभाने की पुरजोर कोशिश कर रही है. येदियुरप्पा एक प्रमुख सामुदायिक नेता है, जिन्हें पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के साथ तनावपूर्ण संबंधों की अटकलों के बीच 2021 में सीएम के रूप में बदल दिया गया था.

पाटिल ने कहा, ‘येदियुरप्पा को हटाने के बाद हमारे पास अब बहुत अच्छा मौका है. येदियुरप्पा कद्दावर नेता थे, लेकिन उनके बाद एक खालीपन है. मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई भी लिंगायत हैं, लेकिन येदियुरप्पा के कद से मेल नहीं खाते.’

इसलिए, इस बार जहां कहीं भी लिंगायतों के जीतने की संभावना है, वहां सही ढंग से टिकटों को बंटवारा करके हम समुदाय का विश्वास हासिल कर सकते हैं और अधिक सीटें प्राप्त कर सकते हैं.’

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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