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Friday, 17 May, 2024
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‘नीलकंठ की तरह जहर पियो, शिकायत मत करो’, कर्नाटक जैसे हालात से बचने के लिए MP के नेताओं को BJP की सलाह

मध्यप्रदेश में आसन्न चुनावों से पहले भाजपा के 14 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने पुराने नेताओं को सलाह दी है कि पार्टी की जीत के लिए अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को ‘त्याग’ दें. हालांकि, ऐसा नहीं लगता कि सभी नेता इससे सहमत हैं.

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नई दिल्ली: हिंदू पौराणिक गाथाओं में माना जाता है कि भगवान शिव ने दुनिया को बचाने के लिए खुद जहर पी लिया था. इस वजह से उनका गला नीला पड़ गया, और उन्हें नीलकंठ कहा जाने लगा. अब, भाजपा नवंबर के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल करने के लिए मध्य प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं को ‘नीलकंठ की तरह बनने’ और ‘निस्वार्थ भाव से’ बागडोर युवा पीढ़ी को थमाने की सलाह दे रही है.

हालांकि, दिप्रिंट को मिली जानकारी बताती है कि हर कोई राजनीतिक तौर पर हाशिये पर जाने का ये सांकेतिक जहर पीने को तैयार नहीं है.

पिछले हफ्ते, राज्य और केंद्र स्तर के 14 भाजपा नेताओं के एक प्रतिनिधिमंडल ने पार्टी दिग्गजों की शिकायतें दूर करने और उन्हें पार्टी हित में कार्य करने के लिए मनाने के उद्देश्य से पूरे मध्यप्रदेश का दौरा किया. हालांकि, राज्य चुनाव में अभी छह महीने बाकी हैं लेकिन भाजपा टिकट वितरण प्रक्रिया के दौरान किसी संभावित बगावत को रोकने की कोशिश में जुटी है. ताकि हिमाचल प्रदेश (जहां पार्टी हार गई) और कर्नाटक, जहां 10 मई को मतदान होना है, में मची उथल-पुथल जैसी स्थितियों से बचा जा सके.

मध्यप्रदेश भाजपा के कोर ग्रुप, जिसमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान शामिल हैं, ने मंगलवार को एक बैठक की और प्रतिनिधिमंडल को अपने मिशन के दौरान से मिले फीडबैक पर चर्चा की.

बहरहाल, मध्यप्रदेश में अभी से संकट के संकेत मिल रहे हैं.

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पिछले महीने, तीन बार के भाजपा विधायक देशराज सिंह यादव के बेटे यादवेंद्र सिंह यादव ने कांग्रेस का दामन थाम लिया. स्थानीय मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, कांग्रेस यादवेंद्र को ग्वालियर के मुंगावली निर्वाचन क्षेत्र से मैदान में उतारने पर विचार कर रही है, जहां फिलहाल भाजपा के ब्रजेंद्र सिंह यादव विधायक हैं, जो कांग्रेस से ही भाजपा में गए थे और ज्योतिरादित्य सिंधिया के विश्वस्त हैं.

भाजपा को एक और झटका देते हुए खरगोन के पूर्व सांसद माखन सिंह सोलंकी भी कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं और बताया जाता कि उनके दल बदलने में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की अहम भूमिका रही है. कांग्रेस में उनका स्वागत करते हुए दिग्विजय ने यह भी कहा था क भाजपा ने चुनावी जीत के बावजूद कभी सोलंकी का उचित सम्मान नहीं किया.

कांग्रेस की तरफ से भाजपा नेताओं को ‘अपने पाले में खींचे जाने’ से विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी की चिंता और बढ़ गई है, क्योंकि टिकट न मिलने पर और भी नेता पार्टी छोड़ सकते हैं.

इस पूरे घटनाक्रम के बीच, केंद्रीय मंत्रियों नरेंद्र सिंह तोमर और फग्गन सिंह कुलस्ते, भाजपा संसदीय बोर्ड के सदस्य सत्यनारायण जटिया और राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय आदि की मौजूदगी वाले प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों को दो से चार जिलों का दौरा करने और पार्टी के वरिष्ठ स्थानीय नेताओं से मिलने का जिम्मा सौंपा गया ताकि वे उनका मिजाज भांप लें, और उन्हें बगावत पर न उतरने के लिए मना सकें.

उनकी तमाम अपील के बावजूद, कई पूर्व विधायकों ने वरिष्ठ नेताओं को पूरा सम्मान न मिलने की स्थिति में चुनाव नतीजे प्रभावित होने की आशंका जताई है.

‘जहर पी लिया लेकिन कोई शिकायत नहीं की’

वरिष्ठ नेताओं की शिकायतें सुनने और रणनीतिक स्तर पर पहले ही जरूरी कदम उठाने के उद्देश्य से भाजपा की 14-सदस्यीय समिति ने 8 से 16 अप्रैल तक मध्यप्रदेश के विभिन्न जिलों में यात्रा की, और इसी सोमवार को भाजपा के राष्ट्रीय संयुक्त महासचिव (संगठन) और मध्यप्रदेश के क्षेत्रीय प्रभारी शिव प्रकाश को अपना फीडबैक भी दे दिया.

मंगलवार को मध्यप्रदेश भाजपा के कोर ग्रुप ने इन प्रतिनिधि के निष्कर्षों पर विचार-विमर्श किया.

प्रतिनिधिमंडल में शामिल रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री और उज्जैन से सात बार के पूर्व सांसद सत्यनारायण जटिया ने दिप्रिंट को बताया, ‘यात्रा का मुख्य उद्देश्य पूर्व विधायकों और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से मिलना, उनकी चिंताओं को समझना, उन्हें पार्टी के दृष्टिकोण से अवगत कराना और उन्हें मध्यप्रदेश में भाजपा की वापसी सुनिश्चित करने के लिए हरसंभव कदम उठाने का संदेश देना था.’

जटिया ने मंदसौर और रतलाम जिलों का दौरा किया और बताया जाता है कि अपनी यात्रा के दौरान उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि 2019 से भाजपा की नीति युवा पीढ़ी को आगे लाने और उम्र और अनुभव के अलावा ‘जीतने की क्षमता’ को टिकट देने का एक महत्वपूर्ण मानदंड बनाने की रही है.

पार्टी सूत्रों ने दावा किया कि जटिया ने नेताओं से सहयोग करने को कहा और साथ ही आगाह किया कि अन्यथा ‘कांग्रेस की तरह निरर्थक’ बन जाने का जोखिम है.

वहीं, नरेंद्र सिंह तोमर ने इंदौर और भोपाल में वरिष्ठ नेताओं को संबोधित करते हुए कथित तौर पर उन्हें नीलकंठ की तरह बनने की सलाह दी, जिन्होंने ‘जहर पिया लेकिन कभी शिकायत नहीं की.’

बताया जाता है कि उन्होंने इस बात पर जोर दिया था कि हर कार्यकर्ता को सत्ता का हिस्सा नहीं बनाया जा सकता है और पार्टी को ऐसे नेताओं की जरूरत है जो पार्टी की भलाई के लिए नीलकंठ के समान बलिदान करने को तैयार हों.


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‘हाशिये’ पर रहने से आहत, नौकरशाही से भी नाराज

भाजपा प्रतिनिधिमंडल के सदस्य के तौर पर दो जिलों का दौरा करने वाले एक पूर्व मंत्री ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि पूर्व विधायकों से उन्हें सबसे अधिक शिकायत यही मिली कि वरिष्ठ नेताओं को ‘हाशिये’ पर डाल दिया गया है और ‘सरकार चलाने वाली नौकरशाही’ को लेकर भी उनमें खासी नाराजगी दिखी.

खरगोन के एक पूर्व भाजपा विधायक ने राज्य के पूर्व भाजपा अध्यक्ष और प्रतिनिधिमंडल के सदस्य प्रभात झा के साथ बैठक के बारे में बताते हुए कुछ इसी तरह के संकेत दिए. उन्होंने बताया कि इस बैठक में खरगोन, खंडवा और बुरहानपुर जिले के करीब 35 नेता शामिल थे.

पूर्व विधायक ने कहा, ‘2019 में युवा नेताओं को आगे बढ़ाए जाने के बाद से तीन-चार दशकों तक पार्टी के लिए काम करने वाले वरिष्ठ नेताओं को नजरअंदाज किया जा रहा है और उन्हें बिना किसी पद के छोड़ दिया गया है. अगर हमारी अपनी ही सरकार वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को एक बोझ मानती है, तो वरिष्ठ नेताओं को पार्टी के लिए काम क्यों करना चाहिए?’

पूर्व विधायक ने दावा किया कि कई नेता नौकरशाही से भी खासे नाराज हैं.

उन्होंने आरोप लगाया, ‘नौकरशाह सरकार चला रहे हैं. यही नहीं वे वरिष्ठ नेताओं की सलाह सुनने तक को तैयार नहीं हैं.’

हालांकि, खरगोन के एक अन्य पूर्व विधायक ने कहा कि उन्होंने झा को सलाह दी थी कि युवा चेहरों को मौका दिया जाना चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘जो नेता पहले ही चार या पांच बार जीत चुके हैं उन्हें टिकट नहीं दिया जाना चाहिए. उन निर्वाचन क्षेत्रों में नए उम्मीदवार उतारे जाने चाहिए जो 30 सालों से किसी वरिष्ठ नेता का गढ़ रहे हैं.’

यह पूछे जाने पर कि झा के साथ बैठक कैसी रही, खरगोन जिला भाजपा अध्यक्ष राजेंद्र राठौर ने दावा किया कि पदाधिकारियों में कोई असंतोष नहीं था, लेकिन साथ ही ऐसे संकेत भी दिए कि इस तरह की कवायद अपरिहार्य थी.

राठौर ने कहा, पूर्व विधायकों और वरिष्ठ नेताओं ने प्रभात झा के साथ वन-टू-वन मीटिंग में कई तरह के सुझाव दिए. सरकार के काम को लेकर कोई नकारात्मकता तो नहीं दिखी, लेकिन यह भी सच है कि चाहे पार्टी हो या सरकार हर कार्यकर्ता को तो संतुष्ट नहीं कर सकती है. पार्टी में पीढ़ीगत बदलाव होना चाहिए. हम निश्चित तौर पर विधानसभा चुनाव जीतेंगे.’

असंतोष के सुर

मध्यप्रदेश में बगावत रोकने की कवायद में जुटे प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा रहे भाजपा के एक अन्य नेता ने दिप्रिंट को बताया कि टीम का पूरा मिशन दो उद्देश्यों पर केंद्रित था.

उन्होंने कहा, ‘पहला, पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को युवा उम्मीदवारों के लिए रास्ता बनाने और किसी तरह का हंगामा न करने के लिए राजी करना. और दूसरा उन नेताओं को साथ जोड़ना जो पार्टी और सरकार से असंतुष्ट हैं और दल बदलने तक के लिए तैयार हैं.’

उनके मुताबिक, उम्मीद है कि दिलों को जोड़ने की यह कवायद नाराजगी दूर करने में मदद करेगी और नेताओं को सहयोग के लिए प्रेरित करेगी.

उन्होंने कहा, ‘कई बार, एक साधारण यात्रा और वरिष्ठ नेताओं की चिंताओं पर गौर करना कई समस्याओं का समाधान हो सकता है. कभी-कभी चुनाव के समय कार्यकर्ताओं के अहम को संतुष्ट करना चमत्कारिक नतीजे दिखा सकता है.’

उन्होंने कहा, ‘कई जगहों पर हम पूर्व विधायकों के घर गए, उनके परिवार के सदस्यों के साथ लंच किया और पारिवारिक समारोहों में भी शामिल हुए. इससे वरिष्ठ नेताओं के बीच एक सकारात्मक भाव उपजेगा और उनकी नाराजगी कम होगी.’

हालांकि, असंतोष के सुर अभी भी पूरी तरह थमते नजर नहीं आ रहे हैं.

माना जा रहा है कि भाजपा की तरफ से टिकट न मिलने की स्थिति में कई पार्टी नेता दूसरे विकल्प तलाशने को तैयार बैठे हैं. इनमें राज्य के पूर्व वित्त मंत्री जयंत मलैया और उनके बेटे सिद्धार्थ, पूर्व विधायक और राज्य मंत्री दीपक जोशी और पूर्व वन मंत्री डॉक्टर गौरी शंकर शेजवार के बेटे मुदित शेजवार शामिल हैं.

देवास से तीन बार विधायक रहे जोशी ने अपने रुख के बारे में पूछे जाने पर दिप्रिंट से कहा कर्नाटक चुनाव के बाद उन्हें एक ‘बड़ा राजनीतिक निर्णय’ लेना पड़ सकता है.

उन्होंने कहा, ‘अगर पार्टी आने वाले कुछ हफ्तों में मुझे राज्य में कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी नहीं सौंप पाती है, तो मैं कर्नाटक चुनाव खत्म होने के बाद बड़ा राजनीतिक फैसला लूंगा.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(अनुवाद: रावी द्विवेदी / संपादन: आशा शाह )


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