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Monday, 23 December, 2024
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बिहार चुनाव में भाजपा-जदयू लालू की गब्बर वाली छवि और जंगल राज को फिर से बना रही मुद्दा लेकिन ये शायद ही काम आए

जदयू के नेताओं ने भी दबी जुबान से इस राय का समर्थन किया और कहा कि मतदाताओं को लालू के 15 साल के शासन को लेकर आगाह करना इस बार चुनाव जीतने के लिए पर्याप्त नहीं है.

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पटना: 2010 के बिहार विधानसभा चुनावों के दौरान भाजपा और जदयू के नेताओं ने लालू प्रसाद यादव के शासनकाल के ‘काले दिनों’ को आधार बनाकर प्रचार किया था.

लालू ने उस समय अपने एक चुनावी भाषण में कहा भी था, ‘एनडीए के नेता मतदाताओं को ऐसे डराने की कोशिश कर रहे हैं, जैसे मैं कोई गब्बर सिंह (शोले फिल्म में दिवंगत अमजद खान का निभाया खलनायक का अमर किरदार) हूं’.

एनडीए के ‘काले दिनों वाले जुमले’ ने उस समय राजनीतिक स्तर पर फायदा पहुंचाया क्योंकि गठबंधन ने चुनावों में सफलता हासिल की और उसे 243 विधानसभा सीटों में से 206 पर जीत मिली.

दस साल बाद एनडीए पूर्व में आजमाई जा चुकी रणनीति ही अपना रहा है और चुनाव की ओर बढ़ रहे बिहार को लालू के नेतृत्व वाले 15 सालों के ‘काले दिन’ याद दिला रहा है जिस तरह वह इस बार ’15 साल बनाम 15 साल’ (लालू के 15 साल बनाम नीतीश के 15 साल) को प्रमुख चुनावी मुद्दा बना रहा है.

जदयू नेताओं ने बताया कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पिछले दो महीनों से पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ वीडियो कांफ्रेंस के दौरान उन्हें लोगों को ‘पुराने काले दिन’ याद दिलाने को कह रहे हैं, जब बिहार में 1990 से 2005 तक लालू सत्तासीन थे.

उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने दिप्रिंट को बताया, ‘राजद हमारा राजनीतिक प्रतिद्वंदी है और हमारे लिए स्वाभाविक है कि हम उनकी साख लोगों को याद दिलाएं जबकि वे सत्ता में आते ही विकास करने के लंबे-चौड़े वादे कर रहे हैं. हमारे पास बताने के लिए सड़कें, बिजली, इंजीनियरिंग कॉलेज, नए मेडिकल कॉलेज और बहुत-सी चीजें हैं. कई लोगों के लिए नदारद सड़कों, स्कूलों, अस्पतालों और सरकारी संरक्षण वाले अपराधों की यादें धुंधली पड़ गई है. हम लोगों को सिर्फ वह याद दिला रहे हैं.’

उन्होंने कहा कि एनडीए अपने चुनाव अभियान के दौरान लोगों को कांग्रेस के शासनकाल के बारे में भी याद दिलाएगा.

जदयू के मंत्री नीरज कुमार ने दिप्रिंट से कहा, ‘तेजस्वी यादव खुद को लालूवादी कहते हैं. वह किस बात के लिए लोगों से माफी मांग रहे थे? उन्हें क्यों शर्मिंदगी महसूस हो रही थी? उनके माता-पिता ने अपने शासन के दौरान क्या किया था? तेजस्वी सिर्फ लालू-राबड़ी शासन का विस्तार भर हैं और लालू की तरह खुद भी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं.’ साथ ही इस बात पर जोर दिया कि उनकी पार्टी विकास के नाम पर वोट मांगेगी, खासकर नीतीश द्वारा 2015 में निर्धारित सात सूत्री एजेंडे पर.

कुमार पिछले महीने तेजस्वी द्वारा 15 सालों के लालू-राबड़ी शासन के दौरान हुई गलतियों के लिए माफी मांगे जाने का हवाला दे रहे थे.

तेजस्वी ने 5 जुलाई को राजद के 24वें स्थापना दिवस समारोह के दौरान पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा था, ‘अगर उन 15 वर्षों में, हालांकि मैं सरकार में नहीं था, हमारी तरफ से कोई गलती हुई थी तो हम उसे स्वीकारने को तैयार हैं, कृपया हमें क्षमा करें. केवल रीढ़ की हड्डी वाला कोई व्यक्ति ही अपनी गलती के लिए माफी मांग सकता है. जनता हमें 15 साल तक विपक्ष में बैठाकर सजा दे चुकी है.’

एनडीए नेताओं के एक वर्ग का हालांकि कहना है कि ‘काले दिनों’ के जुमले को कुछ ज्यादा ही उछाल दिया गया है.


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‘मतदाताओं को लालू के दिनों की याद दिलाना जीत के लिए पर्याप्त नहीं’

भाजपा विधायक संजय पासवान का कहना है कि लोगों को लालू शासन की याद दिलाना इस बार राजनीतिक तौर पर कारगर नहीं रहेगा.

उन्होंने आगे कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि लोगों को लालू (शासन) की याद दिलाने से राजनीतिक फायदा मिलेगा. यह चुनाव नई पीढ़ी के बदलाव वाला है. लोग नए चेहरों की तलाश कर रहे हैं.’

जदयू के नेताओं ने भी दबी जुबान से इस राय का समर्थन किया और कहा कि मतदाताओं को लालू के 15 साल के शासन को लेकर आगाह करना इस बार चुनाव जीतने के लिए पर्याप्त नहीं है.

नाम न छापने की शर्त पर जदयू के एक मंत्री ने कहा, ‘बुनियादी स्तर पर लंबी अवधि के लॉकडाउन के कारण बेरोज़गारी और प्रवासी श्रमिकों की वापसी जैसे मुद्दों की एक लंबी फेहरिस्त है. बाढ़ तो लालू शासनकाल में आती थी लेकिन इसने कभी राजनीति को बहुत प्रभावित नहीं किया.’


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जदयू ‘अतीत में जी रहा’

राजद जाहिर तौर पर लालू की गब्बर सिंह वाली छवि बनाने को लेकर एनडीए से खासा नाराज़ है.

तेजस्वी ने 3 अगस्त को एक दिवसीय विधानसभा सत्र के दौरान कोविड-19 और बाढ़ से निपटने को लेकर नीतीश सरकार पर हमला बोलते हुए कहा था, ‘आप (एनडीए) अतीत में जी रहे हैं. मैं वर्तमान और भविष्य में जी रहा हूं.’

राजद विधायक समीर महासेठ ने दिप्रिंट को बताया कि लालू के शासनकाल के बारे में जुमलेबाजी करने के बजाये नीतीश कुमार को अपने समय के विकास कार्यों के बारे में बात करनी चाहिए.

उन्होंने आगे कहा, ‘हर चीज की एक मैन्यूफैक्चरिंग और एक्सपायरी डेट होती है. 2005 में लालू जी का कार्यकाल खत्म हो चुका है, इस साल नीतीश जी का कार्यकाल समाप्त हो जाएगा. उन्हें बताना चाहिए कि उन्होंने युवाओं को रोज़गार मुहैया कराने या मजदूरों को राज्य से बाहर जाने से रोकने के लिए क्या किया है.’

उन्होंने कहा, ‘2010 में लोगों को नीतीश में उम्मीदें नज़र आईं. लेकिन उसके बाद उन्होंने भाजपा और लालूजी के बीच उनका फ्लिप-फ्लॉप भी देखा. वास्तविकता तो यही है कि उन्होंने 2015 का चुनाव लालूजी के साथ जीता था.’


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नीतीश का फ्लिप-फ्लॉप

1994 में लालू से अलग रास्ता अपनाने के बाद नीतीश ने लगातार लालू और राबड़ी देवी के कुशासन के खिलाफ अभियान चलाया. लेकिन 2005 में लालू को हराने के लिए सही सामाजिक और राजनीतिक संयोजन बैठाने तक उन्हें एक दशक का समय लग गया.

लेकिन जब सत्ता में थे तब भी नीतीश लालू को ‘बड़ा भाई’ कहते थे और लालू उन्हें ‘छोटा भाई’ कहते थे.

2015 में जब उन्होंने दोबारा लालू से हाथ मिलाया तो भाजपा ने नीतीश को याद दिलाया था कि वह लालू-राबड़ी शासन को हमेशा ‘जंगल राज’ बताते रहे हैं.

हालांकि, नीतीश ने इस पर पलटकर जवाब देते हुए कहा था कि उन्होंने कभी भी ‘जंगल राज’ शब्द इस्तेमाल नहीं किया और इसके बजाए वह राक्षस राज कहते थे.

जदयू के एक नेता ने कहा, ‘यह शुरू से ही एक बेमेल गठबंधन था. लेकिन लालू के साथ हाथ मिलाने के कारण उनपर उनके हमले का कोई औचित्य नहीं रह गया था.’


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‘नीतीश के पास शासन के नाम पर दिखाने को कुछ नहीं’

राजनीतिक विशेषज्ञों ने कहा कि एनडीए बिहार के लोगों को लालू शासन के ‘काले पुराने दिन’ याद दिलाकर कोई खास राजनीतिक फायदा नहीं उठा पाएगा.

प्रोफेसर डी.एन. दिवाकर जो ए.एन. सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज के पूर्व निदेशक हैं, ने कहा, ‘नीतीश के पास इस बार अपने शासन के संदर्भ में बताने के लिए कुछ नहीं है. उनका कृषि संबंधी रोड मैप ध्वस्त हो चुका है और किसान समुदाय बुरे हालात में है. कोविड की स्थिति, व्यापक स्तर पर भ्रष्टाचार और कई अन्य मुद्दों से निपटने को लेकर उनका रूखा व्यवहार ही सामने आया है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘दूसरी ओर तेजस्वी यादव हैं, जो जातिगत समीकरणों को दरकिनार कर और समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चलने का वादा कर युवा पीढ़ी को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं. 35 फीसदी मतदाता युवा पीढ़ी के ही हैं. ऐसी स्थिति में सत्ताधारी दल जातिगत समीकरणों और जुमलों का सहारा ले रहे हैं.’

बिहार में एक वाणिज्य और औद्योगिक संगठन के अध्यक्ष सत्यजीत सिंह ने कहा, ‘राजद से पहले कांग्रेस का शासन था. इससे पहले, अंग्रेज थे जिन्होंने मुगलों के हाथ से सत्ता छीनी थी. मैं जो बात कहना चाह रहा हूं वह ये है कि एक शासन की दूसरे के साथ तुलना नहीं की जा सकती. 15 साल का समय बहुत लंबा होता है और मुझे लगता है कि लोग पूरे 15 साल के नीतीश कुमार के काम की समीक्षा करेंगे.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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