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Saturday, 4 May, 2024
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अमित शाह बोले: BJP ने केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों को उन्हीं के अनुरोध पर विधानसभा चुनाव में उतारा है

शाह ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि यदि कोई नेता केंद्र से राज्य क्षेत्र में जाना चाहता है, तो उनके 'अनुरोध पर विचार करना पार्टी का दायित्व है.' साथ ही उन्होंने कहा कि चौहान, राजे के भाग्य का फैसला बाद में होगा.

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नई दिल्ली: गृहमंत्री और पार्टी के मुख्य रणनीतिकार अमित शाह ने कहा है कि बीजेपी नेकेंद्रीय मंत्रियों और सांसदों को उनके अनुरोध पर आगामी विधानसभा चुनाव में मैदान में उतारा है.

टाइम्स ऑफ इंडिया के साथ एक इंटरव्यू में उन्होंने टिप्पणी की: “हमने कई लोगों को राज्य की राजनीति से केंद्र की राजनीति में जाते देखा है. उसी प्रकार यदि पार्टी के किसी वरिष्ठ नेता को लगता है कि उनका केंद्रीय राजनीति से मन भर गया है और वह अपने राज्य में जाना चाहते हैं, तो यह पार्टी पर निर्भर है कि वह योग्यता के आधार पर उनके अनुरोध पर विचार करे.”

सितंबर में बीजेपी ने तीन केंद्रीय मंत्रियों नरेंद्र सिंह तोमर, प्रह्लाद सिंह पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते और चार सांसदों, राकेश सिंह, गणेश सिंह, रीति पाठक और उदय प्रताप सिंह को मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी के उम्मीदवार के रूप में नामित किया. पार्टी ने राजस्थान में सात और छत्तीसगढ़ में चार अन्य सांसदों को भी मैदान में उतारा है.

वरिष्ठ मंत्रियों ने निजी तौर पर दिप्रिंट से विधानसभा चुनाव लड़ने में अपनी अनिच्छा के बारे में बात की है. मध्य प्रदेश में उम्मीदवारों की सूची घोषित होने के तुरंत बाद उनमें से एक ने कहा, “मैंने कभी विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा और अगले साल के लोकसभा चुनाव की तैयारी कर रहा था.”

इससे पहले बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने मध्य प्रदेश में उम्मीदवार बनाए जाने के बाद कहा था कि वह ‘आश्चर्यचकित’ हैं लेकिन पार्टी के ‘आदेश’ को स्वीकार करेंगे.

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26 सितंबर को पार्टी की एक बैठक को संबोधित करते हुए शाह के विश्वासपात्र विजयवर्गीय, जिन्हें इंदौर-1 से मैदान में उतारा गया है, ने कहा, “एक मानसिकता होती है ना लड़ने का, अपने को तो जाना है, भाषण देना और निकल जाना है. अब हम बड़े नेता हो गए है, अब हाथ जोड़ने काहा जाएंगे…हमने तो ये सोचा था.”

इससे पहले दिप्रिंट से बात करते हुए विजयवर्गीय ने कहा था, “पार्टी द्वारा लिए गए फैसले पर सवाल नहीं उठाया जा सकता. चाहे आपको लगे कि वे सही हैं या गलत. पार्टी जो भी निर्णय लेती है वह सही है, इसलिए यदि पार्टी ने एक परिवार में दो टिकट नहीं देने का फैसला किया है, तो यह सही है. वह शायद अपने बेटे आकाश विजयवर्गीय का जिक्र कर रहे थे, जिन्हें इंदौर-3 से पार्टी टिकट देने से इनकार कर दिया गया था.”

इस बीच, शाह ने इस बात से भी दृढ़ता से इनकार किया कि “सामूहिक नेतृत्व राजस्थान में पार्टी की संभावनाओं में बाधा डाल रहा है”.

मध्य प्रदेश में भी पार्टी बिना सीएम चेहरे के चुनाव लड़ रही है. हालांकि, वर्तमान सीएम शिवराज सिंह चौहान ने बार-बार कहा है कि उनका “काम पार्टी की जीत सुनिश्चित करना है और सीएम का चयन करना पार्टी का काम है”.

पिछले महीने दिप्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में सीएम चेहरा पेश न करने की पार्टी की रणनीति के बारे में बताते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने कहा था, “हमारा प्राथमिक लक्ष्य चुनाव जीतना है. हम जीत हासिल करने की अपनी रणनीति से अच्छी तरह वाकिफ हैं. जैसे क्रिकेट मैच में, जहां तीसरे नंबर के खिलाड़ी के साथ ओपनिंग बल्लेबाज को बदलना रणनीति का एक हिस्सा होता है, (हमारे लिए) मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार खुला रहता है.”

उन्होंने कहा, “संसदीय बोर्ड यह तय करेगा कि मुख्यमंत्री के रूप में कौन काम करेगा. यह एक पार्टी की रणनीति है. कुछ मामलों में आपको एक नेता के बजाय सामूहिक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है.”


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‘नहीं बदलूंगा स्टाइल’

इस साल की शुरुआत में कर्नाटक में पार्टी की विफलता को स्वीकार करते हुए शाह ने कहा, “कर्नाटक में बीजेपी की कहानी काम नहीं आई. लेकिन एक झटका हमारी कार्यशैली को नहीं बदल सकता. हम एक हार के कारण अपनी रणनीति को बेकार नहीं करते.”

उन्होंने कहा: “बीजेपी चुनाव हारने के लिए जानी जाती थी. जब हम 2018 में कर्नाटक, मध्य प्रदेश, मिजोरम, छत्तीसगढ़ और राजस्थान हार गए तब मैं राष्ट्रीय अध्यक्ष था. क्या हमने असफलता के कारण अपनी शैली को त्याग दिया. निर्णय आपके पास मौजूद विकल्पों से आकार लेते हैं, यदि आपके पास विकल्प नहीं हैं तो आपकी गुंजाइश कम हो जाती है.”

समान नागरिक संहिता

समान नागरिक संहिता (UCC) पर अमित शाह ने दोहराया कि “आस्था आधारित कानून भेदभाव और तुष्टिकरण का प्रतीक है”.

उन्होंने कहा, “संविधान द्वारा शासित लोकतंत्र में विभिन्न धार्मिक समुदायों के लिए आस्था-आधारित कानूनों का क्या तर्क हो सकता है?”

इस दावे का खंडन करते हुए कि UCC एक विशेष समुदाय को लक्षित करने के लिए बीजेपी की राजनीति का एक हिस्सा है, उन्होंने कहा: “कानून की एकरूपता संविधान निर्माताओं के दृष्टिकोण का एक हिस्सा थी. UCC संविधान के अनुच्छेद 44 में निदेशक सिद्धांतों के तहत निर्धारित जनादेश का एक हिस्सा है. सुप्रीम कोर्ट ने इसे पूरा करने में हुई देरी पर खेद जताया है.”

गृह मंत्री ने कहा, “दुर्भाग्य से, कांग्रेस ने वोटों के लालच के कारण संस्थापकों द्वारा हमें सौंपे गए कार्य के साथ-साथ अदालत के उपदेशों को भी नजरअंदाज कर दिया.”

(संपादन : ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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