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Monday, 4 November, 2024
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PK को अपना वारिस बनाना चाहते थे नीतीश, महिला बिल पर शरद यादव को दी थी चेतावनी – बिहार CM के अनजाने किस्से

नीतीश के ये सभी किस्से उनके कॉलेज के दोस्त और राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के उपाध्यक्ष उदय कांत मिश्रा द्वारा लिखी गई 'नीतीश कुमार: अंतरंग दोस्तों की नज़र से' में हैं.

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नई दिल्ली:  बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की रुचि प्रशांत किशोर को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी बनाने की थी, लेकिन किशोर की नजर उपमुख्यमंत्री पद पर थी और वह बहुत ‘जल्दी’ में थे. जाति सर्वेक्षण कराने का उनका निर्णय पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर से प्रभावित था और पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह द्वारा समर्थित था, जबकि महिला आरक्षण के लिए उनका समर्थन लोहिया के राजनीतिक विचार से प्रभावित था.

फिल्मों के शौकीन नीतीश ने राजेंद्र कुमार-साधना अभिनीत फिल्म ‘मेरे मेहबूब’ तीन बार देखी, लेकिन उनकी पसंदीदा फिल्म राज कपूर अभिनीत ‘तीसरी कसम’ है.

ये सभी किस्से उनके कॉलेज मित्र और बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (बीएसडीएमए) के उपाध्यक्ष उदय कांत मिश्रा द्वारा हिंदी में लिखी गई पुस्तक – ‘नीतीश कुमार: अंतरंग दोस्तों की नज़र से’ – में लिखे गए हैं.

पटना में आयोजित इस कार्यक्रम में नीतीश के समकालीन और राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने एक समारोह में पुस्तक का विमोचन किया था जिसमें बिहार के मुख्यमंत्री के कॉलेज के मित्र अरुण सिन्हा, नरेंद्र सिंह और कौशल किशोर मिश्रा भी शामिल हुए थे.


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समाजवादियों से प्रभावित

किताब में कहा गया है कि नीतीश के कई कल्याणकारी कार्यक्रम समाजवादी प्रतीक माने जाने वाले राम मनोहर लोहिया और कर्पूरी ठाकुर से प्रभावित थे.

“कर्पूरी ठाकुर की अधूरी इच्छाओं में से एक जाति जनगणना थी. इसकी जानकारी नीतीश कुमार को थी. 1990 में जब नीतीश कुमार पहली बार मंत्री बने, तो उन्हें सर्कुलर रोड पर चाणक्यपुरी, तीन मूर्ति के पास एक घर आवंटित किया गया था. इस सड़क पर तीन-चार कोठियां थीं, लेकिन उन्हें पड़ोसियों के बारे में पता नहीं था.

लेखक लिखते हैं,“एक दिन, उनके एक कर्मचारी ने उन्हें सूचित किया कि एक पड़ोसी उनसे मिलना चाहते हैं. नीतीश ने कहा, ‘बिहार में कोई भी अपने पड़ोसी से मिलने की इजाजत नहीं लेता. किसी औपचारिक अनुरोध की कोई आवश्यकता नहीं है. वह जब भी मिलना चाहें, आ सकते हैं”,

नीतीश ने 4 नंबर कोठी में रहने वाले के बारे में पूछताछ की तो उन्हें बताया गया कि वह कोई और नहीं बल्कि पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह हैं. जल्द ही, वह सिंह के आवास पर गए और बातचीत करने के लिए बैठ गए.

लेखक ने नीतीश के बारे में लिखा है कि, “ज़ैल सिंह ने मुझे सुझाव दिया कि मैं राष्ट्रव्यापी जाति जनगणना के लिए संसद पर दबाव डालूं. मैंने लोहिया के अलावा इस ज्वलंत मुद्दे पर इतनी साफगोई वाला दृष्टिकोण कभी नहीं सुना था. इसके तुरंत बाद मैंने संसद में चर्चा और पत्र लिखकर जाति जनगणना की मांग करने के लिए दबाव बनाने का काम शुरू कर दिया. जाति जनगणना पर ज्ञानी जैल सिंह के विचार सुनने के बाद मुझे प्रोत्साहन मिला, जिससे इस मुद्दे को संबोधित करने के लिए मेरे विचार और मजबूत हो गए. ”

1982 में राष्ट्रपति भवन में प्रवेश करने से पहले, ज़ैल सिंह 1972 से 1977 तक पंजाब के मुख्यमंत्री थे. कांग्रेस के दिग्गज भारत के सातवें राष्ट्रपति रामगढ़िया पिछड़े समुदाय से थे.

इस बीच, बिहार के मुख्यमंत्री की राय है कि 90 वर्षों में बड़े पैमाने पर जनसांख्यिकीय परिवर्तन हुए हैं और यदि जाति जनगणना होती है, तो आरक्षण में भी बदलाव होंगे.

बिहार विधानसभा ने 2019 और 2020 में प्रस्ताव पारित किया, यह नीतीश के अधीन था, जिसमें केंद्र से जाति के आधार पर 2021 की जनगणना कराने का अनुरोध किया गया. अगस्त 2021 में, उन्होंने एक प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया जिसने जाति जनगणना के लिए दबाव डालने के लिए प्रधान मंत्री से मुलाकात की. इसके बाद बिहार ने इस साल जनवरी में जाति-आधारित सर्वेक्षण शुरू किया, लेकिन मई में पटना उच्च न्यायालय ने इस पर अंतरिम रोक लगा दी.

मनमौजी लालू

लेखक ने लालू, उनके सार्वजनिक जीवन और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि नीतीश के साथ चार दशक पुराने संबंधों को अपनी किताब में जमकर जगह दी है, जब दोनों की मुलाकात पटना विश्वविद्यालय में हुई थी.

मिश्रा लिखते हैं, ‘1991 में, लोकसभा चुनावों में पटना सबसे ज्यादा नजर रखी जाने वाली सीट बन गई. लालू मुख्यमंत्री थे. (आई.के.) गुजराल ने जनता दल के उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन दाखिल किया, जबकि यशवंत सिन्हा चंद्र शेखर की जनता दल सेक्युलर से उम्मीदवार थे. सी.पी. ठाकुर कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे. शैलेन्द्र नाथ श्रीवास्तव बीजेपी से मौजूदा सांसद थे. गुजराल की जीत सुनिश्चित करना लालू के लिए प्रतिष्ठा की बात बन गई. इस सीट को जीतने के लिए लालू ने हर हथकंडा अपनाया.”

इसमें लिखा गया है, “पटना में कायस्थ मतदाताओं की एक बड़ी संख्या है. दो कायस्थ उम्मीदवार थे – सिन्हा और श्रीवास्तव. ठाकुर एक प्रसिद्ध चिकित्सक थे. गुजराल को हल्का उम्मीदवार माना जा रहा था. …यह लालू ही थे जिन्होंने कठिन परिस्थितियों में रास्ते खोजे. उन्होंने यह दावा करते हुए वोट मांगे कि गुजराल गुर्जर समुदाय से हैं और पंजाब में यादव को गुर्जर कहा जाता है.”

किताब में कहा गया है, चुनाव में गड़बड़ी की शिकायतों के बाद मुख्य चुनाव आयुक्त टी.एन. शेषन ने पटना में चुनाव का विरोध किया लेकिन इस खबर को दैनिक समाचार पत्रों में प्रमुखता नहीं मिली क्योंकि यह राजीव गांधी की हत्या के बाद आई थी.

जब शरद यादव को झेलना पड़ा नीतीश का गुस्सा

जीवनी में मौजूद नीतीश के अन्य पहलुओं में महिलाओं से संबंधित मुद्दों का समर्थन करने का उनका उत्साह भी शामिल है.

लेखक याद करते हैं, “जब महिला आरक्षण विधेयक पेश किया गया था, तो मुलायम और लालू आरक्षण के खिलाफ थे, जबकि (जद (यू) अध्यक्ष) शरद यादव भी विधेयक के खिलाफ अपने विचार व्यक्त कर रहे थे. जब मैं 6 मार्च (1996 में) को नीतीश कुमार से मिला, तो वह शरद यादव से बात कर रहे थे. नीतीश ने शरद से कहा, ‘महिलाओं के बारे में अपना नजरिया बदलें. महिलाएं कोई वस्तु नहीं हैं. महिलाएं कई मायनों में पुरुषों से कहीं बेहतर हैं. उन्हें केवल एक अवसर की आवश्यकता है. यह इतिहास लिखने और लोहिया के सपने को पूरा करने का समय है. मैं इस मुद्दे पर बेकार की बहस में नहीं पड़ूंगा.’ हमारी पार्टी इस बिल का समर्थन करेगी’. फिर उन्होंने फोन रख दिया. न तो उनका लहजा सख्त था, न ही उन्होंने कठोर भाषा का इस्तेमाल किया – लेकिन संदेश स्पष्ट था. ”

मिश्रा लिखते हैं, 13 सितंबर 1996 को नीतीश ने अपने भाषण में उल्लेख किया कि उनकी पार्टी महिलाओं को अधिकार देने के लिए “किसी भी बलिदान के लिए तैयार” है और कहा कि पिछड़े वर्गों के अधिकारों का भी ध्यान रखा जाना चाहिए.

बिहार के ड्राई स्टेट बनाने की यात्रा पर, पुस्तक में उल्लेख किया गया है: “नीतीश के शराबबंदी आदेश का बीज उनके शुरुआती वर्षों में महिलाओं की स्थिति को देखने के बाद रखा गया था. एक बार जनता दरबार के दौरान कुछ महिलाएं नीतीश से मिलीं और उन्हें अपना दुख बताया क्योंकि उनके पति शराब पीकर उन्हें पीटते थे. यहां तक कि उनके पिछले अनुभव ने भी उनके संकल्प को और मजबूत बना दिया जब नीतीश के जीजा शराब पीते थे और उन्हें उनकी बात माननी पड़ती थी. इन चीजों ने नीतीश को राज्य में शराबबंदी लागू करने के लिए प्रेरित किया.

‘पीके में देखा अपना बचपन’

नीतीश के साथ प्रशांत किशोर की दोस्ती 2015 में बिहार की राजनीति में चर्चा का विषय बनी हुई थी और उनके संबंध तब और भी प्रगाढ़ हो गए जब किशोर चुनाव विश्लेषक के रूप में जद (यू) में शामिल हो गए, इसके उपाध्यक्ष बने और बिहार के मुख्यमंत्री के सलाहकार बनाए गए.

यह पुस्तक इस सौहार्द के कम-जाने जाने वाले विवरणों की जानकारी देती है जो बाद में फरवरी, 2020 में पीके के जेडी (यू) से बाहर निकलने के साथ एक कड़वे नोट पर समाप्त हो गई.

इसमें उल्लेख किया गया है, “प्रशांत किशोर, जिन्होंने 2015 के विधानसभा चुनाव में जदयू के अभियान को संभाला था, पटना आने के तुरंत बाद नीतीश के साथ उनके घर में रहे.” इसमें कहा गया है कि वह सीएम के पुराने दोस्त कौशल किशोर मिश्रा के करीबी बन गए.

इसमें कहा गया है, “प्रशांत ने 2015 में 10,000 स्थानों पर हर घर दस्तक अभियान शुरू किया. यहां तक कि नीतीश कुमार ने लोगों तक पहुंचने के लिए पटना में 20 घरों का दौरा किया. ये प्रशांत किशोर द्वारा शुरू किया गया प्रचार का नया तरीका था. चुनावी फैसले के बाद नीतीश शासन में सप्त क्रांति लागू करने को उत्सुक थे. नीतीश, कौशल, किशोर ने शासन के नये कार्यक्रम को शुरू करने के लिए मंथन किया था. नीतीश ने सात निश्चय का नाम चुना, क्योंकि यह नाम 7, सर्कुलर रोड – उनके निवास – सात लोगों द्वारा रखा गया था.”

लेखक याद करते हैं, “2015 में परिणाम के बाद, लालू ने 80 सीटें जीतीं, जबकि जद (यू) ने 71 सीटें जीतीं. राजद की नजर विभागों के एक बड़े हिस्से पर थी. अपनी पिछली गलतियों का एहसास होने के बाद नीतीश ने लालू से निपटने के लिए प्रशांत का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. यहां तक कि लालू भी प्रशांत को पसंद करते थे और उन्हें मनाने के लिए पूरी तैयारी के साथ मिलते थे.”

“जैसा कि उनका स्वभाव है, नीतीश मुखर नहीं थे, लेकिन वह प्रशांत को उनकी जानकारी के बिना उचित सम्मान देने की कोशिश कर रहे थे. महागठबंधन में प्रशांत को कैबिनेट मंत्री का पद देने पर सहमति बनी, लेकिन उनकी उम्मीदें बड़ी थीं. राजद का लक्ष्य डिप्टी सीएम पद था. प्रशांत भी जद (यू) से इसी तरह के पद का लक्ष्य मांग रहे थे. नीतीश प्रशांत की क्षमता से अच्छी तरह वाकिफ थे, लेकिन उनकी राय अलग-अलग राज्यों में पार्टी के विस्तार के लिए प्रशांत का इस्तेमाल करने की थी.

“वह चाहते थे कि प्रशांत झारखंड से संगठन का निर्माण शुरू करें, लेकिन पीके को कोई दिलचस्पी नहीं थी. नीतीश की दिलचस्पी प्रशांत को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी बनाने में थी. प्रशांत में उन्हें कभी-कभी अपना अतीत दिखता था. वह प्रशांत को हर समारोह में ले जाने लगे. प्रशांत हर कार्यक्रम में नीतीश के साथ बैठते थे जिससे कई वरिष्ठ नेता नाराज थे. यहां तक कि वह प्रशांत को अपने पिता की बरसी पर अपने पैतृक कल्याण बिगहा गांव भी ले गए थे… लेकिन प्रशांत जिद पर अड़े रहे थे और उन्हें पार्टी के विस्तार कार्य में कोई दिलचस्पी नहीं थी. बाद में वे दोनों अलग हो गए,” जीवनी से पता चलता है.


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बेनी प्रसाद वर्मा ने नीतीश से आरसीपी की सिफारिश की

आरसीपी सिंह के एक और प्रेम और घृणा वाले रिश्ते का भी किताब में उल्लेख मिलता है, जिसमें इस बात का विस्तृत विवरण दिया गया है कि कैसे नीतीश की मुलाकात समाजवादी पार्टी के नेता वर्मा के सौजन्य से पूर्व नौकरशाह से नेता बने आरसीपी सिंह से हुई थी.

किताब में लिखा गया है, “जब नीतीश रेलवे (मंत्रालय) में दिल्ली आए, तो यह बेनी प्रसाद वर्मा थे – जो यूपी के सबसे वरिष्ठ कुर्मी नेताओं में से एक थे – जिन्होंने नीतीश को आरसीपी की सिफारिश की थी. जल्द ही, वह (आरसीपी) नीतीश के करीबी सहयोगियों में से एक बन गए. वह मुख्य सचिव के रूप में कार्यरत थे और उन्हें उनका सुदर्शन चक्र माना जाता था, लेकिन 2009 के लोकसभा चुनाव से पहले, आरसीपी ने नालंदा से चुनाव लड़ने की इच्छा व्यक्त की. ”

इसमें कहा गया है कि नीतीश चिंतित थे क्योंकि उन्हें लगा कि सिंह की जीत सुनिश्चित करने के लिए उन्हें नालंदा में प्रचार करने के लिए अधिक समय देना होगा.

किताब में लिखा है,“…यहां तक कि आरसीपी की पत्नी गिरिजा देवी भी चुनावी टिकट के लिए (नीतीश पर) बहुत दबाव डाल रही थीं. आख़िरकार यह निर्णय लिया गया कि नीतीश उन्हें राज्यसभा भेजेंगे और 8 जुलाई 2010 को आरसीपी ने राज्यसभा सांसद के रूप में शपथ ली. नीतीश ने उन्हें 2016 में दूसरे कार्यकाल के लिए भेजा. नीतीश इतने आश्वस्त थे कि उन्होंने उन्हें जेडीयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया लेकिन आरसीपी ने उन्हें निराश किया. उन्होंने खुद को पार्टी के अध्यक्ष के रूप में कैबिनेट पद के लिए नामांकित किया.”

इसमें कहा गया है कि इस बात का संदेह बढ़ रहा था कि वह भाजपा के लिए काम कर रहे थे और अंततः उन्हें राज्यसभा का टिकट नहीं दिया गया.

सिंह ने अगस्त 2022 में पार्टी से इस्तीफा दे दिया और अगले साल मई में भाजपा में शामिल हो गए. सत्तारूढ़ दल में शामिल होते समय, एक समय नीतीश के विश्वासपात्र ने बिहार के मुख्यमंत्री को ‘पल्टी मार’ कहा था.

लेखक याद करते हुए लिखते हैं, ”कोई भी मंत्री अपने सचिव की निजी जिंदगी में इतनी दिलचस्पी नहीं लेता. 2003 में एक बार आरसीपी दिल्ली रेलवे अस्पताल में भर्ती हुए. नीतीश इतने बेचैन थे कि कई रातें उन्हें देखने अस्पताल भी गए. यहां तक कि वह उनकी हालत देखने के लिए एक रात वहीं रुके भी थे. नीतीश उस समय वाजपेयी सरकार में रेल मंत्री थे.”

फिल्मों और अखबार पढ़ने का शौक़ीन

बीएसडीएमए के उपाध्यक्ष याद करते हैं,“फिल्में देखने का हमारा शौक कॉलेज में शुरू हुआ. मैंने ‘मेरे मेहबूब’ 11 बार देखी है, नीतीश ने कम से कम 3 बार. हमने राज कपूर अभिनीत फिल्म ‘अंदाज़’ देखी है, लेकिन नीतीश को राज कपूर की ‘तीसरी कसम’ सबसे ज्यादा पसंद आई.”

मुख्यमंत्री की फिल्मों के प्रति रुचि के बारे में बताते हुए, मिश्रा ने 2009 और 2010 की दो घटनाओं का उल्लेख किया. “2 मार्च 2009 को, चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनावों की तारीखों की घोषणा की. आदर्श आचार संहिता लागू हो गई. नीतीश ने फिल्म (स्लमडॉग मिलियनेयर) के बारे में सुना था. चूंकि कोड लागू था, इसलिए वह निजी काम के लिए आधिकारिक कार का उपयोग नहीं कर पा रहे थे. इसलिए उन्होंने रिक्शा ले लिया. फिल्म देखने के बाद उन्होंने अपने दोस्तों को फोन करके फिल्म देखने के लिए कहा.

अगले साल जनवरी में, वह अपने दोस्तों के साथ आमिर खान की फिल्म 3 इडियट्स देखने गए, लेखक बताते हैं. “3 इडियट्स देखने के बाद, उन्होंने सिनेमा हॉल के बाहर मौजूद पत्रकारों को कौशल (किशोर मिश्रा), अरुण (सिन्हा) और खुद को थ्री इडियट्स के रूप में पेश किया.”

नीतीश की अखबार पढ़ने की आदत के बारे में बताते हुए मिश्रा बताते हैं, ”नीतीश का अखबार पढ़ने का शौक खास है. अगर कोई उनसे पहले अखबार छू ले तो उनका मूड खराब हो जाता है. उन्हें पूरा का पूरा पेपर का बंडल नया चाहिए जिसे किसी ने न खोला हो. वह पूरा अखबार पढ़ते हैं, अपने बारे में पढ़ने में उनकी रूचि सबसे कम है. वह केवल शिकायतें खोजते हैं, या फिर वह पढ़ते हैं जहां उन्हें शासन में खामियां दिखती हैं.”

किताब में कहा गया है कि इसके बाद वह अखबारों में पढ़ी गई शिकायतों के संबंध में अधिकारियों को टेलीफोन कॉल करते हैं.

जीवनी में कुछ और भी तथ्य सामने आए हैं जिससे पता चला है कि नीतीश को बाहर का खाना पसंद नहीं है और आलू के बने व्यंजन उन्हें खूब पसंद हैं.

(अनुवाद: पूजा मेहरोत्रा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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