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Wednesday, 20 November, 2024
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पासवान के लिए युद्ध का मैदान बनी हाजीपुर लोकसभा सीट, राम विलास की विरासत पर चाचा भतीजे में खिंची तलवारें

चाचा और भतीजा दोनों 2024 में हाजीपुर से चुनाव लड़ने पर आमादा हैं. बीजेपी 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले उन्हें एक साथ लाने की कोशिश कर रही है, खासकर जबसे जेडीयू एनडीए से बाहर हो गई है.

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पटना: चाचा-भतीजे की लड़ाई जो करीब तीन साल से कम होने का नाम नहीं ले रही है. लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) के संस्थापक राम विलास पासवान की विरासत पर दावा करने को लेकर पहले पशुपति कुमार पारस और चिराग पासवान के बीच तलवारें एकबार फिर खिंचती दिखाई दे रही है. अब हाजीपुर से चुनाव लड़ने का “अधिकार” को लेकर एलजेपी के दोनों गुटों के नेताओं के बीच नया युद्ध शुरू होने वाला है.

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अध्यक्ष जे.पी.नड्डा द्वारा दिल्ली में एनडीए सहयोगियों की बैठक में चिराग पासवान को आमंत्रित करने से अंदरूनी तनाव बढ़ गया है. पारस और चिराग दोनों 2024 में हाजीपुर संसदीय क्षेत्र –चिराग के दिवंगत पिता राम विलास पासवान के गढ़ से चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं.

रविवार को पशुपति पारस ने दिप्रिंट से कहा, “चिराग पासवान कौन हैं? मैं हाजीपुर का मौजूदा सांसद हूं और दोबारा इस सीट से चुनाव लड़ूंगा और जीतूंगा.’ इस पर कोई समझौता नहीं हो सकता,” उन्होंने कहा कि उन्हें भाजपा अध्यक्ष से बैठक में शामिल होने का निमंत्रण मिला है.

2019 में, पशुपति पारस हाजीपुर से जीते थे जबकि चिराग जमुई से विजेता बने थे.

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि वह बीजेपी के सहयोगी हैं, चिराग पासवान के नहीं. उन्होंने आरोप लगाया, ”चिराग ने 2020 के बाद अभी तक राष्ट्रीय जनता दल की आलोचना नहीं की है.” उन्होंने कहा कि जमुई के लोगों ने 2014 और 2019 में दो बार चिराग को चुना है. ”वह हाजीपुर क्यों जाना चाहते हैं?”

अपनी ओर से, चिराग पासवान भी हाजीपुर की सीट नहीं छोड़ना चाहते हैं, उनका कहना है कि उनके पिता चाहते थे कि वह वहां से चुनाव लड़ें.

एलजेपी (रामविलास) के प्रवक्ता अशरफ अंसारी ने दिप्रिंट को बताया,“हाजीपुर उनके पिता की कर्मभूमि है. कोई पुत्र अपने पिता की कर्मभूमि को कैसे छोड़ सकता है? हिंदू परंपरा के अनुसार विरासत बेटे को मिलती है.”

उन्होंने याद दिलाया कि जब 2019 में राम विलास पासवान जीवित थे, तब पारस हाजीपुर से चुनाव लड़ना ही नहीं चाहते थे. अशरफ ने जोर देकर कहा कि चिराग हाजीपुर से चुनाव लड़ेंगे, उन्होंने कहा, “जब से उन्होंने पार्टी को विभाजित किया है, पारसजी शायद ही कभी हाजीपुर आए हों और उनके विश्वासघात के खिलाफ हाजीपुर के लोगों में बहुत नाराजगी है. लेकिन हमारा गठबंधन भाजपा के साथ है.”

चिराग पासवान अब मजबूत स्थिति में दिख रहे हैं क्योंकि भाजपा प्रमुख जे.पी.नड्डा ने सोमवार शाम घोषणा की कि एलजेपी (रामविलास) नेता ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में शामिल होने का फैसला किया है.


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हाजीपुर का महत्व

बिहार के वैशाली जिले में स्थित हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित है. हाजीपुर और राम विलास पासवान एक-दूसरे के पर्याय थे, क्योंकि दिवंगत नेता ने 1977 से 2014 तक आठ बार जीत हासिल की थी. वह 2009 में राम सुंदर दास से हार गए थे और अपने खराब स्वास्थ्य के कारण 2019 में चुनावी दौड़ से बाहर हो गए थे.

नौ बार के लोकसभा सांसद का हाजीपुर के लोगों के साथ एक विशेष बंधन था, जिससे हाजीपुर औद्योगिक क्षेत्र में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्युटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (एनआईपीईआर) सहित परियोजनाएं लाने के अलावा यह पूर्व मध्य रेलवे का जोनल मुख्यालय बनवाने में अहम भूमिका निभाई.

हाजीपुर से राजद प्रमुख लालू प्रसाद भी उन्हें हरा नहीं पाये. पिछले साल उनकी प्रतिमा के अनावरण में भारी भीड़ उमड़ी थी. हाजीपुर पासवान परिवार के लिए सिर्फ एक और सीट नहीं है. यह उनकी विरासत है – जिसके लिए चिराग और पासवान लड़ रहे हैं.

भाजपा को चाचा-भतीजे के बीच शांति स्थापित करने में काफी पसीने छूट रहे हैं. केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय ने 9 जुलाई को पटना में और फिर दो दिन बाद दिल्ली में चिराग से मुलाकात की. बीजेपी अध्यक्ष नड्डा ने जमुई सांसद से की बातचीत. शनिवार शाम को केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने चिराग से लंबी बातचीत की.

एलजेपी (रामविलास) के एक सूत्र ने कहा, “हमारी मांग है कि भाजपा हमें दी जाने वाली संख्या और सीटें बताए. वह बीजेपी की ओर से साफ नहीं किया गया है. हालांकि, बातचीत सही दिशा में आगे बढ़ती दिख रही है. ”

शुरुआत में बीजेपी चाहती थी कि चाचा-भतीजे दोनों का विलय हो जाए. लेकिन उस प्रस्ताव को दोनों गुटों ने खारिज कर दिया. अब भाजपा एक ‘सौहार्दपूर्ण’ समाधान खोज रही है ताकि वह दोनों गुटों को अपने खेमे में रख सके.

2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान, एनडीए सीट बंटवारे में भाजपा और जदयू को 17-17 सीटें मिलीं. बिहार की बाकी छह सीटें एलजेपी के खाते में गईं. लेकिन इस बार, नीतीश कुमार की जेडीयू एनडीए खेमे में नहीं है.

पार्टी सूत्रों के मुताबिक, चिराग अब अपनी सीटों की हिस्सेदारी बढ़ाना चाहते हैं क्योंकि जेडीयू अब एनडीए में नहीं है.

राज्य भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “अगर हमें पारस और चिराग के बीच चयन करना है, तो बाद वाले को प्राथमिकता मिलेगी. चिराग भीड़ खींचने वाले व्यक्ति हैं और निस्संदेह उन्हें दिवंगत राम विलास पासवान की राजनीतिक विरासत में मिली है.”

भाजपा नेता ने स्वीकार किया कि 2021 में एलजेपी के विभाजन को समर्थन देना एक “गलती” थी.

भाजपा ने पहले भी बिहार की इस पार्टी में हुए विभाजन की साजिश रचने में अपनी भूमिका से इनकार किया था और  कहा था कि यह एक “आंतरिक मामला” था. एलजेपी के छह लोकसभा सांसदों में से पांच ने चिराग को छोड़ दिया और जून, 2021 में पशुपति पारस से हाथ मिला लिया था. पारस को उसी साल जुलाई में केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया गया.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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