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Sunday, 22 December, 2024
होमराजनीतिबंगाल में BJP की हार के बाद से, अमित शाह के करीबी नेता विजयवर्गीय, MP में 'जन्मदिन और भजन' में व्यस्त

बंगाल में BJP की हार के बाद से, अमित शाह के करीबी नेता विजयवर्गीय, MP में ‘जन्मदिन और भजन’ में व्यस्त

भाजपा के 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव हारने के बाद से, इसके 'शक्तिशाली' पूर्व राज्य प्रभारी, विजयवर्गीय मानो वनवास में चले गए है, मगर पार्टी जानती है कि वह किसी भी आपात स्थिति में उपयोगी साबित हो सकते हैं.

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नई दिल्ली: भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के लिए अपने गृह राज्य मध्य प्रदेश में पिछले कुछ दिन काफी व्यस्त रहे. हरदा जिले में भजनों पर थाप देने, इंदौर में भारत-ऑस्ट्रेलिया ब्लाइंड टी20 विश्व कप मैच के बाद क्रिकेट खिलाड़ियों को बधाई देने से लेकर दमोह में एक दिग्गज नेता के जन्मदिन समारोह में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के साथ जाने तक, वे काफी सक्रिय रहे हैं.

लेकिन विजयवर्गीय का यह वर्तमान ‘व्यस्त’ कार्यक्रम उन दिनों से बिलकुल ही अलहदा है जब वे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के करीबी माने जाने वाले व्यक्ति के रूप में भाजपा के संगठनात्मक ढांचे में शामिल सबसे शक्तिशाली नेताओं में से एक थे.

पश्चिम बंगाल, जहां विजयवर्गीय पार्टी के प्रभारी थे, में पिछले साल भाजपा की हुई पराजय के बाद से उन्हें किसी भी महत्वपूर्ण दायित्व से वंचित रखा गया है.

हालांकि, 66 वर्षीय विजयवर्गीय ने पिछले सप्ताह दिल्ली में आयोजित भाजपा पदाधिकारियों की उस बैठक में भाग लिया था जहां प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी भी मौजूद थे, मगर अब वे पार्टी की राजनीतिक गतिविधियों में प्रमुख रूप से शामिल नहीं हैं.

बैठक में शामिल सभी नौ महासचिवों में से केवल वे ही ऐसे नेता थे जिन्हें किसी भी राज्य का प्रभारी नियुक्त नहीं किया गया है.

इस बारे में पूछे जाने पर विजयवर्गीय ने दिप्रिंट को बताया कि उनके पास पहले से काफी सारा काम है. उन्होंने कहा, ‘मैं एमपी (मध्य प्रदेश) में बहुत सक्रिय हूं. मैंने हाल के स्थानीय निकाय चुनावों में प्रचार किया और अब अगले साल होने वाले राज्य विधानसभा चुनावों और साल 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए कार्यकर्ताओं को प्रेरित कर रहा हूं.’

उन्होंने कहा, ‘मैं भाजपा का कार्यकर्ता हूं. पार्टी मुझे जो भी काम सौंपती है, मैं उसे पूरा करने की कोशिश करता हूं. अब यह उस पर निर्भर है कि वह मेरी भूमिका और उपयोगिता तय करें.’

एक तरफ जहां विजयवर्गीय को बंगाल में भाजपा की पैठ गहरी बनाने में मदद करने का श्रेय दिया जाता है, वहीं साल 2021 के विधानसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की प्रचंड जीत ने उनके खिलाफ लगने वाले आरोपों का बांध तोड़ दिया था. इनमें उनकी प्रचार रणनीति और उम्मीदवारों के चयन से लेकर पार्टी नेताओं को दरकिनार कर उन्हें तृणमूल के पाले में जाने के लिए बाध्य करने के आरोप तक शामिल हैं.

राज्य के भाजपा नेता और त्रिपुरा एवं मेघालय के पूर्व राज्यपाल तथागत रॉय ने विजयवर्गीय को उस ‘झुण्ड’ का नेता भी कह डाला जिसने ‘राज्य को अपूरणीय क्षति पहुंचाई है.’

हालांकि, भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने आंतरिक रूप से विजयवर्गीय का बचाव करना जारी रखा, मगर पार्टी सूत्रों का कहना है कि उन्होंने उन्हें पश्चिम बंगाल से दूरी बनाए रखने के लिए कहा गया है. इस साल कुछ समय पहले, भाजपा ने उन्हें राज्य के लिए दो नए सह-प्रभारियों – अगस्त में नियुक्त सुनील बंसल, जिन्हें उत्तर प्रदेश में पार्टी की मदद करने के लिए पर्याप्त श्रेय मिला है, और फिर अक्टूबर में मंगल पांडे – के साथ बदल दिया है.

हालांकि, दिप्रिंट से बात करने वाले भाजपा सूत्रों ने कहा कि अभी यह मान लेना एक गलती होगी कि विजयवर्गीय को हमेशा के लिए प्रमुख भूमिका से बाहर कर दिया गया था. उनका कहना है कि उन्हें अभी भी एक राष्ट्रीय महासचिव बनाये रखे जाने के पीछे कोई कारण जरूर है.

केंद्रीय स्तर के एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा, ‘विजयवर्गीय के पास भले ही अब उतना काम न हो, लेकिन वह अब भी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव हैं क्योंकि पार्टी जानती है कि वह किसी भी आपात स्थिति में काम आ सकते हैं. लोकसभा चुनाव आ रहे हैं और उन्हें किसी भी राज्य में इस्तेमाल किया जा सकता है.’


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‘वह अपने समय का इंतजार कर रहे हैं’

पहली नजर में ऐसा लगता है कि विजयवर्गीय पर से भाजपा आलाकमान का भरोसा अंततः डगमगा सा गया है. मई 2021 में आये बंगाल चुनाव के परिणाम के बाद, पार्टी ने उन्हें इस साल अगस्त के अंत तक राज्य प्रभारी के रूप में बनाये रखा, लेकिन उन्होंने इस पूरे समय के दौरान राज्य का कोई दौरा नहीं किया.

अंततः जब उन्हें बंगाल प्रभारी के पद से हटा दिया गया, तो उनके सुविख्यात संगठनात्मक कौशल के बावजूद, पार्टी ने उन्हें किसी अन्य राज्य का कार्यभार भी नहीं सौंपा.

केंद्रीय स्तर के एक दूसरे भाजपा नेता ने कहा, ‘अमित शाह विजयवर्गीय को काफी पसंद करते हैं, लेकिन बंगाल इकाई द्वारा उनके सम्बन्ध में पैसों और पार्टी कैडर के कुप्रबंधन की शिकायत किये जाने के बाद, प्रधानमंत्री की निगाहों में उनकी स्थिति कमजोर हो गई है और इसी वजह से उन्हें किसी भी अन्य राज्य में प्रतिनियुक्त नहीं किया गया है.’

उन्होंने कहा, ‘पार्टी बिहार, राजस्थान और कर्नाटक जैसे राज्यों में एक अनुभवी प्रभारी का इस्तेमाल कर सकती थी, लेकिन उन्हें इंतजार कराया गया. यह भरोसे की कमी दर्शाता है.’

हालांकि, भाजपा के कुछ अन्य सूत्रों का कहना है कि विजयवर्गीय के संगठनात्मक कौशल में कोई कमी नहीं आई है और वह मध्य प्रदेश की राजनीति में एक प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं.

एमपी भाजपा के उपाध्यक्ष जीतू जिराती ने दिप्रिंट को बताया कि विजयवर्गीय विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी कार्यकर्ताओं को लामबंद करने के लिए अक्सर राज्य भर में यात्रा करते हैं. जिराती ने कहा, ‘वह राज्य की पार्टी गतिविधियों में बहुत सक्रिय हैं.’

इसके अलावा, जैसा कि पहले केंद्रीय स्तर के भाजपा नेता ने कहा, वह अभी भी राष्ट्रीय महासचिव हैं और उन्हें किसी भी समय सेवा में लगाया जा सकता है.

उसी नेता ने कहा कि यह भी नहीं भुलाया जा सकता कि विजयवर्गीय ने साल 2020 में एमपी की अल्पकालिक कांग्रेस सरकार को गिराने में अहम भूमिका निभाई थी. तब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया और इसी पार्टी के 22 विधायकों ने पार्टी के सत्ता में आने के 15 महीने बाद ही पार्टी से इस्तीफा दे दिया था और भाजपा में शामिल हो गए थे.

भाजपा नेता ने बताया कि उस साल मार्च में जब राजनीतिक संकट सामने आया, तो विजयवर्गीय गुड़गांव के एक होटल में कांग्रेस के विद्रोहियों को भगाने के ‘समूचे ऑपरेशन के पीछे’ शामिल मुख्य लोगों में से एक थे. इसके बाद भाजपा ने कमलनाथ सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया और उसी महीने शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्रित्व के तहत सत्ता में आई.

एमपी भाजपा के एक नेता ने कहा कि सीएम पद को लेकर विजयवर्गीय की खुद की महत्वाकांक्षाएं हैं.

उन्होंने कहा, ‘वह अपने समय की प्रतीक्षा कर रहे हैं. अगर शिवराज सिंह चौहान को बदला जाता है, तो उनके लिए सीएम पद के दावेदार बनने के अवसर वाली खिड़की खुल सकती है. यही वजह है कि कभी विजयवर्गीय के विरोधी रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया अब उनके प्रति सौहार्दपूर्ण हो गए हैं.‘

उन्होंने कहा, ‘विजयवर्गीय, राज्य के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा के बजाय चुनाव से पहले मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश किये जाने हेतु एक बेहतर पसंद हैं. प्रदेश की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले इंदौर में जितना बाहुबल और पकड़ विजयवर्गीय के पास है, उतना किसी अन्य नेता के पास नहीं है.’

आलाकमान की नजरों में चढ़ना और फिर वहां से उतरना

एक कट्टर आरएसएस कार्यकर्ता, इंदौर के पूर्व महापौर, और छह बार के विधायक रहे विजयवर्गीय ने अक्सर अपने बयानों से विवादों को जन्म दिया है, चाहे वह शाहरुख खान की दाऊद इब्राहिम से तुलना करने को लेकर दिया गया बयान हो, या यह दावा करना उनके घर पर निर्माण कार्य कर रहे श्रमिक बांग्लादेशी लगते हैं क्योंकि वे सूखा चिड़वा खा रहे थे.

हालांकि, वह अपनी कुशल संचालन शैली के लिए भी जाने जाते हैं. साल 2014 में, जब विजयवर्गीय एमपी कैबिनेट में मंत्री थे, तभी अमित शाह ने उन्हें दिल्ली बुलाया और उसके तुरंत बाद उन्हें उस वर्ष होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए हरियाणा का प्रभारी नियुक्त किया. इस चुनाव में भाजपा ने जबरदस्त जीत हासिल की और राज्य में पहली बार अपने बलबूते पर सरकार बनाई.

उस समय की विजयवर्गीय की उपलब्धियों में से एक विवादास्पद लेकिन प्रभावशाली धार्मिक संप्रदाय ‘डेरा सच्चा सौदा’ को भाजपा का समर्थन करने के लिए राजी करना था, जिससे पार्टी को कुछ सीटें जीतने में मदद मिली.

विजयवर्गीय के प्रदर्शन से प्रभावित होकर, शाह ने उन्हें ‘प्रोजेक्ट पश्चिम बंगाल’ का काम सौंपा और उन्हें साल 2015 में इस राज्य के प्रभारी के रूप में नियुक्त किया. यह एक अच्छी पसंद प्रतीत हुई क्योंकि साल 2019 के लोकसभा चुनावों में, पार्टी ने राज्य की 42 में से 18 सीटों पर जीत हासिल की, जिसका वोट-शेयर 10 प्रतिशत से बढ़कर 40 प्रतिशत हो गया.

मगर, साल 2021 के राज्य चुनाव एक निराशाजनक कवायद साबित हुए, हालांकि पार्टी ने इस राज्य की 294 विधानसभा सीटों में से 77 सीटें जीतीं, जो 2016 में मिली तीन सीटों की तुलना में अभी भी काफी बेहतर स्थिति थी.

फिर भी, विजयवर्गीय के खिलाफ राज्य भाजपा इकाई में मची सुगबुगाहट की अनदेखी करना पार्टी आलाकमान के लिए कठिन था. असंतोष पैदा करने वाले कारकों में से एक था तृणमूल के दलबदलुओं को दिया जाने वाला अपेक्षाकृत अधिक महत्व और फिर बाद में उनमें से कई का विजयी पार्टी में वापस लौट जाना. तृणमूल में जाने वाले प्रमुख चेहरों में विधायक मुकुल रॉय (जो पहले भी उसी पार्टी में थे) और पूर्व केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो शामिल थे.

तथागत रॉय और दिलीप घोष से लेकर अरविंद मेनन और शिव मेनन तक, कई सारे भाजपा नेताओं ने राज्य इकाई के अव्यवस्थित होने का सारा का सारा आरोप विजयवर्गीय पर मढ़ा. इसके बाद भाजपा ने राज्य में एक संगठनात्मक फेरबदल किया, जिसमें पिछले साल सितंबर में दिलीप घोष की जगह सुकांत मजूमदार को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाना शामिल था.

हालांकि, विजयवर्गीय को हटाने का काम धीरे-धीरे चरणबद्ध रूप से किया गया. वह कमोबेश मतगणना वाले दिन के बाद से ही राज्य से गायब हो गए थे, लेकिन फिर भी उन्हें इस साल अगस्त तक राज्य प्रभारी बनाये रखा गया, जिसके बाद हाईकमान द्वारा उनका पूरी तरह से पुनर्वास किया जाना अभी बाकी है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)

(अनुवाद: रामलाल खन्ना | संपादन: अलमिना खातून)

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