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Sunday, 22 December, 2024
होमराजनीतिलालजी और वाजपेयी ने अपने रिश्तों में नहीं चढ़ने दिया राजनीतिक रंग, टंडन हर बड़े काम में लेते थे अटल बिहारी से आशीर्वाद

लालजी और वाजपेयी ने अपने रिश्तों में नहीं चढ़ने दिया राजनीतिक रंग, टंडन हर बड़े काम में लेते थे अटल बिहारी से आशीर्वाद

लालजी कोई भी बड़ा काम अटल बिहारी के आशीर्वाद से ही शुरू किया करते थे. यहां तक की जब वे चुनाव लड़ने जा रहे थे तो कहा था कि मैं अटल जी की खड़ाऊं साथ लाया हूं. अपने राजनीतिक जीवन में उन्होंने पार्षद से लेकर मंत्री,सांसद और राज्यपाल तक का सफर तय किया.

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नई दिल्ली: मध्य प्रदेश के राज्यपाल रहे लालजी टंडन का 21 जुलाई की सुबह लखनऊ के मेंदाता अस्पताल में निधन हो गया. 85 वर्षीय टंडन लखनऊ में अपने समर्थकों और लोगों के बाबूजी के नाम से जाने जाते रहे. आज जब लालजी टंडन के बेटे गोपाल जी ने ट्वीट कर उनके निधन की खबर दी तो लिखा, ‘बाबूजी नहीं रहे.

लालजी टंडन 12 वर्ष की उम्र में ही आरएसएस में शामिल हो गए थे और 1960 में उन्होंने सक्रिय राजनीति में कदम रख दिया था. इसी दौरान उनकी मुलाकात पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से हुई, जैसे जैसे समय बीतता गया लालजी टंडन और वाजपेयी का रिश्ता गहरा और अटूट होता गया जो आखिरी दम तक कायम रहा.

लालजी टंडन खुद कहते थे अटलजी ने राजनीति में उनके साथी, भाई और पिता तीनों की भूमिका अदा की है. करीब 60 के दशक में राजनीति में आए लालजी ने 5 दशक तक अटल जी का साथ निभाया. यही वजह है अटल जी के बाद उनकी राजनीतिक विरासत को लखनऊ में टंडन ने ही संभाला था. वे 2009 के लोकसभा चुनाव में लखनऊ सीट से सांसद चुने गए थे.

अटल की खड़ाऊं और लखनऊ लोकसभा चुनाव में जीत 

लालजी टंडन पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के साथ अपने पारिवारिक संबंध कई बार मंचों से साझा कर चुके है.वे कहते थे कि राजनीति में वह आज जो कुछ भी है उसका पूरा श्रेय वाजपेयी को ही जाता है.अटल जी ने राजनीति में उनके साथी, भाई और पिता तीनों की भूमिका को निभाया है.

वाजपेयी के राजनीति से संन्यास लेने के बाद लालजी टंडन लखनऊ से भाजपा के प्रत्याशी बने. 2009 में पार्टी से टिकट मिलने के बाद लालजी टंडन पहले पूर्व पीएम वाजपेयी से मिलने गए. इसके बाद चुनाव प्रचार में जुट गए.उस वक्त उन्होंने जनता के बीच यही प्रचार किया कि वह अटल जी की खड़ाऊं लेकर आए है. इस चुनाव में टंडन की बड़ी जीत हुई और वह पहली दफा चुनकर लोकसभा पहुंचे थे.


यह भी पढ़ें: एमपी के राज्यपाल रहे लालजी टंडन का निधन, पीएम बोले- भाजपा को यूपी में मजबूत बनाने में अहम भूमिका निभाई


राजनाथ से लखनऊ सीट पर लड़ने पर थी अनबन

लालजी कोई भी बड़ा काम अटलजी के आशीर्वाद से ही शुरू किया करते थे. अटल जी और लाल जी टंडन की मित्रता पर कभी राजनीतिक रंग नहीं चढ़ा. अटल जी के साथ उनके संबंध हमेशा एक जैसे ही रहे. वाजपेयी, लालजी और लखनऊ का रिश्ता अटूट था जो उनके दिल में लखनऊ बसता था.दोनो का लखनऊ प्रेम उनके बीच सेतु का काम करता था.

2014 के लोकसभा चुनाव में जब भाजपा ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया इसके बाद से ही मोदी के लखनऊ और वाराणसी से लोकसभा चुनाव को लेकर लड़ने को चर्चा तेज हो गई. दोनों सीटों को लेकर पार्टी के भीतर खींचतान की खबरें सामने आने लगी. इसी बीच तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह की ग़ाज़ियाबाद सीट छोड़कर लखनऊ से लड़ने की बात सामने आई तो लालजी ने लखनऊ सीट छोड़ने पर नाराज़गी ज़ाहिर की.

टंडन ने कहा था, ‘उन्होंने नरेंद्र मोदी के लिए सीट छोड़ने की बात ख़ुद स्वीकार की थी और राजनाथ सिंह के लखनऊ से लड़ने को लेकर तो कोई बात ही नहीं हुई है.’

जब लखनऊ सीट को लेकर बवाल बढ़ा तो लालजी ने सफाई देते हुए कहा था, ‘ राजनाथ सिंह मेरी पार्टी के अध्यक्ष हैं क्यों उनका नाम घसीटा जा रहा है. मेरे उनसे व्यक्तिगत संबंध हैं. हम अपने मन की बात एक दूसरे से कह सकते हैं. जब कोई बात मेरे सामने ऐसी आई ही नहीं कि कोई यहां से दावा पेश कर रहा है, जब पार्टी ने अभी तक इस बारे में कोई निर्णय ही नहीं किया तो बेवजह एक मुद्दा खड़ा किया जा रहा है. उसका कोई अर्थ नहीं है.’

टंडन का कहना था की, ‘मोदी के लिए मैंने स्वयं कहा कि अगर वह लड़ेंगे तो मुझे ख़ुशी होगी और उनके लखनऊ से चुनाव लड़ने से उन्हें कोई आपत्ति नहीं है. मेरा सारा राजनीतिक जीवन लखनऊ में बीता, यहीं मेरा जन्म हुआ, यहीं मेरा अंत होगा.’

बाद में बीजेपी केंद्रीय चुनाव समिति ने राजनाथ सिंह के नाम पर मुहर लगा दी. 2014 लोकसभा चुनाव में राजनाथ अटलजी का भेंट किया हुआ अंगवस्त्र पहनकर नामांकन दाख़िल कराने पहुंचे थे. इस सीट से राजनाथ ने जीत हासिल की.

इसके बाद से ही लालजी टंडन लखनऊ और उत्तर प्रदेश की राजनीति से कटते चले गए. 2018 में उन्हें बिहार का राज्यपाल बनाया गया था.

पार्षद से राज्यपाल तक का सफर

अपने राजनीतिक जीवन में उन्होंने पार्षद से लेकर मंत्री,सांसद और राज्यपाल तक का सफर तय किया.1970 के दौर में इंदिरा गांधी की सरकार के खिलाफ जयप्रकाश नारायण के राष्ट्रव्यापी आंदोलन में हिस्सा भी लिया. वे दो बार 1978 से 1984 तक और 1990 से 1996 तक उत्तर प्रदेश की विधानपरिषद् के सदस्य भी रहे है.

1991 से 1992 की उत्तरप्रदेश सरकार में वे मंत्री भी रहे. 1996 से 2009 तक तीन बार चुनाव जीतकर विधानसभा भी पहुंचे. 1997 में नगर विकास मंत्री भी रहे. इसके अलाावा यूपी विधानसभा में विपक्ष के नेता का दायित्व भी संभाल चुके है. 2009 में लखनऊ लोकसभा सीट से वे संसद पहुंचे. 2018 में बिहार के राज्यपाल बने और 2019 में वे मध्यप्रदेश के राज्यपाल बने.

स्कूल बंक, गोमती और लव लेटर

एक अखबार को दिए साक्षात्कार में लालजी टंडन ने कहा था कि क्रिकेट प्रेमी है. बचपन से ही क्रिकेट का उन्हें शौक रहा है. कई बार स्कूल बंक कर गोमती नदी में तैरने पहुंच जाते थे. इस पर उन्हें स्कूल और घर पर डांट भी पड़ती थी. उन्होंने यह भी कहा था कि उन्हें कबूतर उड़ाने का शौक है.कई बार कबूतरों की रेस और लड़ाई भी करवाते थे.

इसी दौरान उन्होंने यह कहा था कि कबूतर से वे लव लेटर भी भेजते थे. लेकिन उन्होंने इसका खुलासा नहीं किया था कि लव लेटर किसके थे और कबूतर किसे देकर आते थे.

जब बसपा प्रमुख मायावती के बने राखी भाई 

भाजपा नेता लालजी टंडन ने उत्तरप्रदेश में भाजपा को स्थापित करने में अहम रोल रहा है. वहीं उन्होंने प्रदेश की सियासत में कई तरह के प्रयोग भी किए.

90 के दौर में बहुजन समाज पार्टी और भारतीय जनता पार्टी की गठबंधन सरकार बनाने में उनका अहम रोल था. उन्होंने बसपा प्रमुख मायावती को बहन माना और मायावती ने उन्हें राखी भी बांधी. इस दौरान राखी बांधने की तस्वीर चर्चा का विषय भी बनी थी.

2004 में जब साड़ी कांड से हुई परेशानी

2004 में लोकसभा चुनाव के पूर्व पीएम वाजपेयी अपनी परंपरागत सीट लखनऊ से चुनाव लड़ रहे थे. चुनावों के दौरान ही अपने जन्मदिन के मौके पर टंडन ने गरीब महिलाओं को सांड़िया बांटने का कार्यक्रम भी रखा. इस कार्यक्रम में मची भगदड़ में कई महिलाएं और एक बच्चों की मौत हो गई थी. इस घटना को लेकर विपक्ष ने वाजपेयी को भी निशाना बनाया था. वहीं लालजी पर आचार संहिता के उल्लंघन के आरोप भी लगे. विपक्ष की मांग के बाद टंडन पर मुकदमा भी दर्ज हुआ.

इस दौरान चुनाव आयोग ने भाजपा से भी स्पष्टीकरण मांगते हुए यह तक कहा था ‘क्यों न पार्टी की मान्यता ही रद्द कर दी जाए.’ साड़ी कांड पर बवाल मचने के बाद भाजपा ने इसे लालजी का निजी कार्यक्रम बताया था. बाद में यह मामला ठंडे बस्ते में चले गया. वहीं कांड में टंडन को क्लीनचिट भी मिल गई.

2007 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान विवादित सीडी बांटने के मामले में चुनाव आयोग ने उनके ख़िलाफ़ एफ़आईआर भी दर्ज की थी.

‘अनकहा लखनऊ’ किताब पर हुआ विवाद

लालजी टंडन ने अपनी किताब ‘अनकहा लखनऊ‘ पर में अपने पार्षद लेकर मंत्री और अपने सांसद बनने का सियासी सफर के बारे में लिखा है. इसमें उन्होंने लखनऊ की संस्कृति को लेकर लिखा है कि इसे जबरन ‘नवाबी तहज़ीब का शहर’ बनाने की कोशिश की गई. किताब में उन्होंने लक्ष्मण के टीले के बारे में लिखा है कि यहां पहले कई गुफाएं थी. जिस पर मुस्लिम शासकों ने मस्जिद बनवा दी

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