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Sunday, 3 November, 2024
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जाति सर्वे के बाद BJP को एक और झटका? क्यों नीतीश एक बार फिर से ‘विशेष राज्य’ की मांग पर जोर दे रहे हैं

बीते दिनों बिहार की राजधानी पटना में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए नीतीश ने दोबारा विशेष राज्य के दर्जे की मांग दोहराई. नीतीश ने कहा कि वह इसके लिए राज्यव्यापी आंदोलन भी शुरू करेंगे. 

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नई दिल्ली: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक बार फिर विशेष राज्य के दर्जे की मांग जोर कर दी है. बीते दिनों पटना में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सीएम ने कहा, “राज्य के विकास के लिए विशेष राज्य का दर्जा जरूरी है. इसके लिए राज्य में जगह-जगह अभियान चलाया जाएगा और विशेष राज्य के दर्जे की मांग की जाएगी.”

उन्होंने कहा कि हम इसके लिए राज्यव्यापी आंदोलन भी करेंगे.

सभा को संबोधित करते हुए नीतीश कुमार ने कहा, “जो लोग इस मांग का समर्थन नहीं करते हैं, उन्हें राज्य के विकास में दिलचस्पी नहीं है. अगर बिहार के विशेष राज्य के दर्जे की मांग पूरी हो जाती है, तो हम ढाई साल के भीतर सभी लोगों को सभी प्रकार का लाभ देने में सक्षम हो जाएंगे. इसलिए बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग तुरंत पूरी होनी चाहिए.”

नीतीश के बयान के बाद बिहार की विपक्षी पार्टी बीजेपी उनपर हमलावर है. बिहार विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा ने कहा, “जनादेश का अपहरण करने वालों को पहले राज्य विधानसभा को भंग करना चाहिए और उसके बाद विशेष राज्य के दर्जा की मांग करनी चाहिए. मुख्यमंत्री के लिए विशेष राज्य का दर्जा अब एक जुमला बन गया है. बिहार को आजादी के पहले और श्रीकृष्ण सिंह के कार्यकाल में विशेष राज्य का दर्जा था. उस समय राज्य का संरचनात्मक विकास भी हुआ, लेकिन आज स्थिति काफी बदल चुकी है.”

विजय सिन्हा ने कहा, “जब सत्ता में NDA गठबंधन के साथ में थे तब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं चाहिए था. जब विपक्ष में आ गये तो हो हल्ला मचाये हुए हैं. पांच साल तक क्यों नहीं विशेष राज्य का दर्जा मांगे? इनको लूट की छूट चाहिए. चाचा-भतीजे की मंशा साफ नहीं है. केंद्र का खजाना लूटने की केवल तैयारी है.”

वहीं लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) प्रमुख और सांसद चिराग पासवान ने नीतीश कुमार पर हमला करते हुए कहा, “विशेष राज्य के दर्जे की मांग कर मुख्यमंत्री जी अपनी ही विफलताओं को जगजाहिर कर रहे हैं. नीतीश कुमार जी के 19 वर्षों के शासनकाल  के बावजूद उन्हें विशेष राज्य के दर्जे की मांग करनी पड़ रही है. आखिर उन्हें NDA से अलग होने पर ही विशेष राज्य के दर्जे की याद क्यों आती है. मुख्यमंत्री जी बिहारियों को मूर्ख बनाना चाहते है जो अब संभव नहीं है.”

‘विशेष राज्य के दर्जे की मांग पुरानी’

साल 2005 में मुख्यमंत्री बनने के बाद नीतीश कुमार ने सबसे पहले विशेष राज्य के दर्जे की मांग 2006 में उठाई थी, लेकिन केंद्र सरकार ने हमेशा से इस मांग को अनसुना किया है.

विशेष राज्य के दर्जे की मांग को लेकर नीतीश ने सबसे पहली और सबसे बड़ी हुंकार 4 नवंबर 2012 को पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान से भरी. नीतीश ने रैली में आई भीड़ को संबोधित करते हुए कहा था, “यह मांग सिर्फ बिहार की नहीं है. यह मांग उन सभी राज्यों की है जो विकास सहित अन्य मामलों में राष्ट्रीय औसत से नीचे हैं. केंद्र सरकार को ऐसे राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा देना चाहिए, ताकि वे राष्ट्रीय औसत तक पहुंच सके.”

उस वक्त नीतीश ने तत्कालीन कांग्रेस सरकार पर हमला करते हुए कहा था कि विशेष राज्य का दर्जा तो हम लेकर रहेंगे लेकिन जब हम इस सिलसिले में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मिलने की कोशिश करते हैं तो वह समय भी नहीं देते.

इसके बाद साल 2013 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विशेष राज्य के दर्जे की मांग को लेकर दिल्ली के रामलीला मैदान में एक ‘अधिकार रैली’ की. इस रैली में बड़ी संख्या में जदयू कार्यकर्ता और दिल्ली में रहने वाले बिहारी लोग शामिल हुए थे.

रैली को संबोधित करते हुए नीतीश कुमार ने कहा था, “बिहार को उसका हक मिलना चाहिए. बिहार को भी विकास करने का अधिकार है. बिहार ने पहली बार अपना हक मांगा है और वो मिलना चाहिए.”

नीतीश ने तत्कालीन केंद्र सरकार को चुनौती देते हुए कहा था कि यह पहली बार है जब दिल्ली में बिहारियों ने अपनी ताकत दिखाई है.

इस रैली में नीतीश कुमार ने बीजेपी और कांग्रेस दोनों पर हमला करते हुए कहा था कि जो भी पार्टी बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की बात करेगी, वो उनके साथ जाएंगे.

इसके बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से भी इस मुद्दे को लेकर मिले थे.

साल 2014 में केंद्र की सत्ता में बीजेपी भारी बहुमत के साथ आई. बिहार में नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया, लेकिन मोदी लहर के चलते बीजेपी के सामने टिक नहीं पाई. जदयू को बिहार की 40 में सिर्फ दो सीटें मिली.

2014 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान भी नीतीश कुमार ने विशेष राज्य के दर्जे की मांग को जारी रखा.

इसके बाद साल 2015 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले जेडीयू ने राजद और कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ने का फैसला लिया. इस चुनावी अभियान के दौरान भी विशेष राज्य की मांग जोर-शोर से जारी रही.

उसके बाद साल 2017 में नीतीश ने महागठबंधन से खुद को अलग कर लिया और बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई. इसके बाद विशेष राज्य के दर्जे की मांग थोड़ी धीमी पड़ गई. 2019 का लोकसभा चुनाव जेडीयू ने नीतीश कुमार के साथ मिलकर लड़ा और बड़ी जीत हासिल करने में सफल रहें.

हालांकि, साल 2022 में नीतीश ने बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़कर वापस राजद और अन्य सहयोगी दलों के साथ मिलकर सरकार बनाई.

अभी बिहार में बीजेपी विपक्ष में है और जाति सर्वेक्षण के बाद लोकसभा चुनाव से पहले नीतीश विशेष राज्य के दर्जे की मांग कर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं.


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‘नीतीश का प्रेशर पॉलिटिक्स’

राजनीतिक विश्लेषक नीतीश के इस कदम को ‘प्रेशर पॉलिटिक्स’ कहते हैं. महात्मा गांधी सेंट्रल यूनिवर्सिटी, मोतिहारी में सामाजिक विज्ञान विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर और राजनीतिक विश्लेषक संजय कुमार दिप्रिंट से कहते हैं, “नीतीश कुमार ने यहां एक तीर से दो निशाने लगाए हैं. विशेष राज्य के दर्जे की मांग कर उन्होंने बीजेपी पर दबाव बनाने की कोशिश तो की ही है, साथ ही कांग्रेस की भी एक मैसेज दिया है. उनको पता है कि जाति जनगणना के बाद से ही बीजेपी प्रेशर में है और लोकसभा चुनाव से ठीक पहले यह एक सही दांव साबित हो सकता है.”

संजय कुमार आगे कहते हैं, “बिहार में नीतीश का कभी बड़ा वोट बैंक नहीं था. अभी उनका वोट बैंक काफी सिमट भी गया है. ईबीसी और महादलित नीतीश के सबसे बड़े वोट बैंक हुआ करते थे, लेकिन बीजेपी ने अब इसमें सेंध लगा ली है. नीतीश को पता है कि वह कभी भी अकेले कोई भी चुनाव जीत नहीं सकते. वह पहले यह करके देख चुके हैं और इसमें असफल रहे हैं. इसलिए वह एक ऐसे मुद्दे पर जोर दे रहे हैं जिसमें लोगों की ‘बिहारी अस्मिता’ जाग उठे.”

वहीं एएन सिन्हा सामाजिक अध्ययन संस्थान, पटना के पूर्व डायरेक्टर डीएम दिवाकर ने दिप्रिंट से बात करते हुए कहा, “ये नीतीश कुमार की बीजेपी पर ‘मोरल प्रेशर’ बनाने की कोशिश है. जाति सर्वेक्षण की रिपोर्ट आने के बाद बिहार में राजद और जदयू का जातिगत समीकरण काफी मजबूत हो चुका है. बिहार की राजनीति धर्म से उठकर जाति पर शिफ्ट हो चुकी है. आगे लोकसभा चुनाव भी होने वाले हैं और यह नीतीश कुमार के लिए बीजेपी पर दबाव बनाने की एक कोशिश है.”

डीएम दिवाकर आगे कहते हैं, “नीतीश काफी ‘स्मार्टली वर्क’ करना जानते हैं. जब तक वो बीजेपी के साथ रहे इस मुद्दे पर चुप रहे, लेकिन अब जब अलग हुए तो वापस वह दोबारा यह मांग करने लगे. उन्हें पता है कि बीजेपी इस मुद्दे से परेशान होती है.”

क्या है विशेष राज्य का दर्जा (SCS)

विशेष राज्य का दर्जा केंद्र द्वारा उन राज्यों को दिया जाता है जो भौगोलिक, आर्थिक और सामाजिक नुकसान का सामना करते हैं. हालांकि, यह कोई संवैधानिक प्रावधान नहीं है लेकिन 1969 में पांचवें वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर इसे लागू किया गया था. वर्तमान समय में देश के 11 राज्यों- असम, नागालैंड, मणिपुर, मेघालय, सिक्किम, त्रिपुरा, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और तेलंगाना- को यह दर्जा मिला हुआ है.

तेलंगाना इसमें सबसे नया राज्य है जिसे आंध्र प्रदेश से अलग होने के बाद यह दर्जा मिला था.

केंद्र शासित प्रदेश बनने से पहले जम्मू-कश्मीर को भी विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त था.

हालांकि, केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस साल की शुरुआत में स्पष्ट किया था कि सरकार अभी किसी भी राज्य के लिए विशेष राज्य के दर्जे पर विचार नहीं करेगा, क्योंकि 14 वें वित्त आयोग ने यह पहले ही स्पष्ट कर दिया है.

विशेष राज्य का दर्जा मिलने के बाद राज्यों को कई लाभ मिलते हैं जिसमें केंद्र प्रायोजित योजना में जहां अन्य राज्यों को 60 से 75  प्रतिशत तक भुगतान किया जाता है वहीं विशेष राज्य को 90 प्रतिशत तक भुगतान किया जाता है. इसके अलावा उत्पाद शुल्क, सीमा शुल्क, आयकर और निगम कर जैसे विषयों में भी रियायत मिलती है.


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