गुरुग्राम: हरियाणा में सत्ता परिवर्तन के बाद से विवादों में घिरे भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता अनिल विज ने अपनी नाराज़गी जगज़ाहिर कर दी है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया है कि अगर उन्हें सीएम के लंबित इस्तीफे के बारे में जानकारी नहीं है तो गृह मंत्री बने रहने का कोई मतलब नहीं है.
विज ने स्पष्ट रूप से कहा कि 12 मार्च को उन्हें सबसे ज्यादा दुख इस बात से हुआ कि मनोहर लाल खट्टर उन्हें इस्तीफा देने के लिए अपनी कार में राजभवन ले गए, लेकिन इसके बाद की घटनाओं के बारे में कुछ भी नहीं बताया.
हरियाणा के पूर्व मंत्री, जिनकी अक्सर खटटर के साथ अनबन रहती थी, ने स्पष्ट रूप से कहा कि नए मुख्यमंत्री के रूप में नायब सिंह सैनी का चयन भाजपा विधायक दल की बैठक में उनके लिए “एक बम” की तरह है.
विज ने दिप्रिंट को बताया, “जब पर्यवेक्षकों ने सैनी के नाम की घोषणा की, तो यह मेरे लिए बम गिरने जैसा था. मैं पार्टी का वरिष्ठ सदस्य हूं और वरिष्ठ मंत्री था. वे (खट्टर) अपनी योजनाएं मेरे साथ साझा कर सकते थे. मैं राज्य का गृह मंत्री था और मुझे इतनी गलत जानकारी थी कि मुझे यह भी नहीं पता था कि अगले कुछ मिनटों में मेरे राज्य का मुख्यमंत्री बदला जाने वाला है. अगर गृह मंत्री का पद ऐसा है, तो किसी को इसकी ज़रूरत क्यों है?”
वरिष्ठ भाजपा नेता ने विधायक दल की बैठक बीच में ही छोड़ दी थी और एक निजी वाहन से अंबाला में अपने आवास चले गए थे. इसके बाद वे 12 मार्च को सैनी के शपथ ग्रहण समारोह और 19 मार्च को कैबिनेट विस्तार दोनों में शामिल नहीं हुए थे.
यह पूछे जाने पर कि क्या खट्टर या उनके उत्तराधिकारी सैनी ने उन्हें नए मंत्रिमंडल में शामिल होने के लिए कहा था, विज ने नकारात्मक जवाब दिया. उन्होंने आगे कहा कि मंगलवार को दोपहर बाद उन्हें सैनी का फोन आया और उन्होंने उन्हें कैबिनेट विस्तार का गवाह बनने के लिए आमंत्रित किया.
जब दिप्रिंट ने विज का ध्यान खट्टर और सैनी के उन बयानों की ओर दिलाया, जिनमें उन्होंने कहा था कि वे उन्हें कैबिनेट में शामिल होने के लिए मनाएंगे, तो पूर्व मंत्री ने जवाब दिया कि केवल दोनों नेता ही इस सवाल का जवाब दे सकते हैं.
उन्होंने पहले मीडिया से एक सवाल के जवाब में कहा था कि सैनी कैबिनेट में शामिल होना एक “काल्पनिक सवाल” है.
गुरुवार की सुबह, विज ने उर्दू कवि अल्लामा इकबाल के दोहे को एक्स, पर पोस्ट किया : “कुछ बात है कि हस्ती हमारी मिटती नहीं हमारी. सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-ज़माँ हमारा.”
कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी।
सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-ज़माँ हमारा।।— ANIL VIJ MINISTER HARYANA ( मोदी का परिवार ) (@anilvijminister) March 21, 2024
यह भी पढ़ें: सत्ता विरोधी लहर, राहुल की जाति जनगणना का आह्वान, OBC गणित — हरियाणा में CM बदलने की BJP की रणनीति
‘धनखड़ से सबक ले सकते थे’
हरियाणा के राजनीतिक विश्लेषक हेमंत अत्री का मानना है कि विज अब हरियाणा में बीजेपी के ‘एल.के आडवाणी’ हैं और उनकी भूमिका अधिकतम ‘मार्ग दर्शक मंडल’ तक ही सीमित है, हालांकि, यह संभावना नहीं थी कि नए सीएम उनकी सलाह लेंगे.
अत्री ने कहा कि हालांकि, सैनी शीर्ष पद पर हैं, लेकिन वास्तविक तौर पर खट्टर ही मुख्यमंत्री बने हुए हैं.
उन्होंने कहा, “खट्टर 12 मार्च तक सीएम थे. वे अब एक सुपर सीएम हैं. सीएमओ में अफसरों को देखिए. एक भी वरिष्ठ अधिकारी को नहीं बदला गया है. जैसा कि रामायण में है, भरत सिंहासन पर अपने बड़े भाई राम की ‘खड़ाऊ’ के साथ अयोध्या के मामलों की देखभाल करते थे, सैनी खट्टर की ओर से और उनकी इच्छा पर राज्य के मामलों को चला रहे हैं.”
उन्होंने कहा कि कैबिनेट विस्तार के जरिए खट्टर ने न केवल विज को हटा दिया, जो हमेशा उनके शरीर में कांटे की तरह थे, बल्कि उन्होंने गुरुग्राम के सांसद अभय सिंह यादव को कैबिनेट में शामिल करके राव इंद्रजीत सिंह को भी वश में कर लिया.
राव इंद्रजीत सिंह ने भी सोमवार को मीडिया से कहा कि हाल की घटनाओं के दौरान उनसे कभी सलाह नहीं ली गई, न ही जब खट्टर ने इस्तीफा दिया और सैनी ने पदभार संभाला, न ही मंत्रियों के चयन के समय.
अत्री ने कहा कि जिस तरह से भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ओ.पी. धनखड़ की जगह सैनी को लाया गया, उससे यह साबित हो गया कि जो वरिष्ठ भाजपा नेता खट्टर की योजनाओं में फिट नहीं बैठते थे, उन्हें हटा दिया गया. उन्होंने कहा, “खट्टर ने अब खुद को और अधिक शक्तिशाली साबित कर दिया है.”
एक अन्य विश्लेषक पवन कुमार बंसल ने कहा कि भाजपा एक अनुशासित पार्टी है और जिस तरह से 12 मार्च को विज भाजपा विधायक दल से बाहर चले गए, वो आज की भाजपा में कभी बर्दाश्त नहीं किया गया.
विज का स्टॉक गिर गया है, यह तब स्पष्ट हो गया जब अक्टूबर 2022 में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सूरजकुंड में गृह मंत्रालय द्वारा आयोजित दो दिवसीय चिंतन शिविर में उन्हें नज़रअंदाज कर दिया.
चूंकि, विज नखरों से खट्टर को शर्मिंदा करते रहे — जैसे कि 2020 में सीआईडी के कामकाज पर खींचतान और 2023 में एक महीने से अधिक समय तक स्वास्थ्य विभाग में काम न करना — बंसल ने कहा, खट्टर ने मौका आने पर उन्हें सूक्ष्म तरीके से बाहर का रास्ता दिखा दिया था.
बंसल ने आगे कहा कि हरियाणा में किसी को कोई संदेह नहीं है कि सैनी के सीएम बनने के बाद भी राज्य में सत्ता की असली डोर खट्टर के हाथों में है.
उन्होंने कहा, “हरियाणा में डमी मुख्यमंत्रियों का एक लंबा इतिहास रहा है. जब इंदिरा गांधी ने 1975 में तत्कालीन हरियाणा के सीएम बंसी लाल को रक्षा मंत्री बनाया, तो उन्होंने उनकी जगह बनारसी दास गुप्ता को नियुक्त किया. 1977 में जनता पार्टी के सत्ता में आने और आपातकाल की ज्यादतियों की जांच के लिए शाह आयोग का गठन करने के बाद, गुप्ता ने रिकॉर्ड पर कहा कि वे सिर्फ एक नकली सीएम थे और असली शक्ति (बंसी लाल के बेटे) सुरेंद्र सिंह के पास थी.”
बंसल ने बताया, “महम हिंसा के बाद जब मई 1990 में (ओम प्रकाश) चौटाला ने उन्हें फिर से सीएम नियुक्त किया, तो गुप्ता को यह कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं थी कि वे चौटाला के लिए एक डमी थे. बाद में जब मीडिया ने हुकम सिंह से पूछा कि क्या वे भी एक डमी सीएम हैं, तो सिंह ने जवाब दिया कि वे किसी डमी से कम नहीं हैं.”
उन्होंने कहा कि नए मुख्यमंत्री बंसी लाल और चौटाला के लिए बनारसी दास गुप्ता और हुकम सिंह से अलग साबित होने की संभावना नहीं है.
“ऐसी परिस्थितियों में खट्टर कभी भी विज जैसे वरिष्ठ व्यक्ति को नायब सैनी के मंत्रिमंडल का हिस्सा बनना पसंद नहीं करेंगे, जो शासन के मामलों पर अपने तरीके से काम करता है.”
राजनीतिक विश्लेषक ने कहा कि सैनी को अपने कार्यों से साबित करना होगा कि वे असली सीएम हैं, डमी नहीं.
एक अन्य राजनीतिक विश्लेषक सतीश त्यागी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि विज की खट्टर के साथ प्रतिद्वंद्विता कोई नई बात नहीं थी क्योंकि जब 2014 में उन्हें सीएम बनाया गया था, तो अंबाला छावनी विधायक भी वही कुर्सी की इच्छा रखे हुए थे.
त्यागी ने कहा, “सैनी पिछले 10 साल के दौरान हमेशा खट्टर के भरोसेमंद लेफ्टिनेंट रहे हैं…पीएम मोदी के आशीर्वाद से, खट्टर अपनी इच्छानुसार सरकार के साथ-साथ पार्टी भी चला सकते हैं. अक्टूबर में धनखड़ के पार्टी अध्यक्ष पद से हटने से विज को सबक मिल सकता था. यह उनके तरीकों के कारण है कि वे खुद को इस स्थिति में पा रहे हैं.”
उन्होंने कहा कि रामबिलास शर्मा, कैप्टन अभिमन्यु और ओपी धनखड़ जैसे सभी वरिष्ठ भाजपा नेता 2019 में अपना चुनाव हार गए थे. “विज एकमात्र वरिष्ठ नेता बचे थे, लेकिन अब, उन्हें भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है.”
विज के एक करीबी सूत्र ने दिप्रिंट को बताया कि पूर्व मंत्री सरकार के भीतर उनके साथ किए जा रहे व्यवहार से खुश नहीं थे.
सूत्र ने कहा, “हर बार जब मंत्री ने सार्वजनिक हित के लिए कोई मुद्दा उठाया, तो उन्हें नज़रअंदाज कर दिया गया और अपमानित भी किया गया और सीआईडी को उनके दायरे से हटा दिया गया (2020 में) और पुलिस विभाग में अधिकारियों के तबादलों के लिए उनसे सलाह नहीं ली गई.”
निकट अतीत में खट्टर कैबिनेट के दूसरे सबसे शक्तिशाली भाजपा मंत्री होने की उनकी प्रभावशाली स्थिति को देखते हुए, विज की गिरावट एक सप्ताह से कुछ अधिक समय में तेज़ हो गई है.
मंगलवार को सैनी द्वारा अपने सप्ताह भर पुराने मंत्रिमंडल का विस्तार करने से कुछ घंटे पहले, विज ने चंडीगढ़ में हरियाणा विधानसभा अध्यक्ष ज्ञान चंद गुप्ता से मुलाकात की थी. उन्होंने मीडिया को बताया था, “मैं अध्यक्ष से मिला और मैंने उनसे विधानसभा की कुछ उप-समितियों में मुझे नामांकित करने का अनुरोध किया है. एक बार जब मैं उप-समिति में शामिल हो जाऊंगा, तो हर सप्ताह मेरी बैठकें होंगी. इसलिए मैं चंडीगढ़ में बार-बार आता रहूंगा.”
उस समय, छह बार के भाजपा विधायक ने मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किए जाने और शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित नहीं किए जाने के बारे में मीडिया के सवाल को ज्यादा महत्व नहीं दिया था. उन्होंने कहा था, “मैं पहले ही कई बार कह चुका हूं कि मैं भाजपा का अनन्य भक्त हूं. मैं उस समय से भी अधिक समर्पित रहूंगा जब मैं मंत्री था.”
फिलहाल, विज को अपने गृह क्षेत्र अंबाला छावनी में अभी भी लोकप्रिय माना जाता है, इस सीट ने उन्हें 1990, 1996, 2000, 2009, 2014 और 2019 में विधानसभा भेजा था.
कैबिनेट विस्तार के एक दिन बाद, विज ने एक यूट्यूब वीडियो साझा किया जिसमें वे अंबाला छावनी में अपने समर्थकों के साथ बैठे नज़र आ रहे हैं. जब समर्थक तालियां बजा रहे थे और लोकप्रिय बॉलीवुड गाना “तेरे जैसा यार कहां, कहां ऐसा याराना, याद करेगी दुनिया, तेरा मेरा अफसाना” गा रहे थे तो विज मुस्कुरा रहे थे.
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: हरियाणा के मुख्य सचिव पद की दौड़ में 3 IAS अधिकारियों ने की वरिष्ठता सूची में संशोधन की मांग