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Friday, 20 December, 2024
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ढेर सारा साजो-सामान, लॉन्ड्री और मेडिकल वैन; कैसे ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान बस जाता है एक नया शहर

150 भारत यात्रियों, कार्यकर्ताओं और राहुल गांधी की सभी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए, रात के समय के विश्राम शिविर को लगाना और फिर उसे उखाड़ना हर दिन की जाने वाली एक नौ घंटे की कवायद है.

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बेल्लारी/चित्रदुर्ग: ‘भारत यात्रियों’ को चुस्त-दुरुस्त रखने के पीछे काफी मेहनत लगानी पड़ती है.

हर शाम, जैसे ही कांग्रेस की 3,570 किलोमीटर की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ रात्रि विश्राम के लिए रुकती है, शिपिंग कंटेनरों, सफेद तंबूओं और तेज़ फ्लडलाइट्स का एक शहर किसी भी वीरान सी जगह में आबाद हो उठता है, मानो कोई जादू हो गया हो.

इस यात्रा के आयोजकों का कहना है, हर दिन इस अस्थायी शिविर को खड़ा करना और फिर उसे उजाड़ना ‘साजो-सामान (लॉजिस्टिक्स) के नजरिये से एक बुरे स्वप्न के जैसा’ है.

दरियागंज (दिल्ली) के नगर पार्षद और इस यात्रा के लिए लॉजिस्टिक्स के प्रभारी यास्मीन किदवई, दिप्रिंट को बताते हैं, ‘कंटेनरों के साथ वाले 60 ट्रक इस समूह के साथ यात्रा कर रहे हैं.

यह पूरा कारवां एक साथ यात्रा कर रहा है. हमारे पास रेकी (पूर्व निरीक्षण) करने के लिए सिर्फ एक महीने का समय था और एक अग्रिम दल ने आगे बढ़कर इस यात्रा के मार्ग में 40 शिविर स्थलों की पहचान की.

अभी भी एक अग्रिम दल काम पर है जो शिविर स्थलों का निरीक्षण कर रहा है या आवश्यकतानुसार नए स्थलों का चयन कर रहा है. ये सभी सार्वजनिक स्थान होने चाहिए.

हमने रास्ते में कई सारी अप्रत्याशित चुनौतियों का भी सामना किया है. मिसाल के लिए, लगभग तीन दिन पहले, हम पर मौसम की मार पड़ी और मूल शिविर स्थल में बाढ़ आ गई.

यात्रियों के सुबह आगे के लिए प्रस्थान करने के बाद इस सारे ताम-झाम को हटाने में ढाई घंटे लगते हैं और यात्रियों के फिर से इनमें वापस आने, जो इन दिनों शाम लगभग 6.30-7 बजे होता है, से पहले इसे स्थापित करने में फिर साढ़े पांच से छह घंटे लग जाते हैं. कभी-कभी, यह किसी बुरे सपने जैसा होता है.’

इन शिविरों तक लोगों की पहुंच को सख्ती के साथ नियंत्रित किया जाता है और सुरक्षा प्रोटोकॉल राहुल गांधी की एक झलक पाने की उम्मीद लगाए कांग्रेस के कई फॉलोवर्स को बाहर ही फंसे छोड़ देता है.

यात्रा के अगले चरण की ओर चलने से पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी, के 150 साथी भारत यात्री और सहयोगी कर्मी एक रात के लिए जिस मोबाइल सिटी में रहते हैं, उसमें जरूरत की सभी चीजों की व्यवस्था है और इसमें एक साथ चलने वाली रसोई, रेलवे कोच जैसे बंक बेड (एक के ऊपर एक बने बिस्तर), एक मोबाइल क्लीनिक और एक इन-हाउस लॉन्ड्री (यात्रा के साथ चलने वाला कपड़े धोने का संयंत्र) भी शामिल रहती है.

3,570 किमी की इस यात्रा के पूरे दौर में ट्रकों पर लदे 60 कंटेनर इस समूह के साथ यात्रा कर रहे हैं. इनमें से कुछ कंटेनर सुबह 11 बजे के ब्रेकप्वाइंट (ब्रेक के लिए निर्धारत स्थल) पर उतार दिए जाते हैं जबकि अन्य अगली रात को रुकने वाले स्थल तक सीधे चले जाते हैं.

राहुल गांधी समेत प्रत्येक ‘भारत यात्री’ रात के समय इन कंटेनरों में ही सो रहे हैं – हालांकि राहुल के पास एक पूरा कंटेनर है, अन्य यात्री कंटेनर साझा करते हैं. पुरुषों के लिए एक कंटेनर में 12 बिस्तर हैं जबकि महिलाओं के लिए एक कंटेनर में चार बिस्तरों की व्यवस्था की गई है.

किदवई ने कहा कि मदद करने वाली बात यह है कि हर दिन यात्रा की गई वास्तविक दूरी केवल 20-25 किमी है, इसलिए ट्रक कम-से-कम समय में एक पड़ाव स्थल से दूसरे पड़ाव स्थल तक पहुंच जाते हैं.

इन कंटेनरों में होने वाला एहसास काफी शानदार है और उनके शौचालय बड़े होटलों की याद ताजा करती है, भले ही दोपहर तक उनमें पानी खत्म हो जाता है. कन्याकुमारी से ही साथ चलने वाले भारत यात्रियों में से एक ने दिप्रिंट को बताया: ‘नेताओं के कंटेनर वास्तव में शानदार हैं, लेकिन हम जिनमें रह रहे हैं, उनमें ऐसा कुछ ख़ास नहीं है. यह बहुत ही बुनियादी किस्म का है – एक कंटेनर में 12 पुरुषों को ठहराया जाता है, शुक्र है कि एक कंटेनर में केवल चार महिलाएं ही रहती हैं.’

यात्रा जिस भी राज्य से गुजर रही है, उसकी प्रदेश कांग्रेस कमेटी द्वारा इसकी रसोई का संचालन किया जाता है. कर्नाटक में इस समूह के पीछे-पीछे चलने वाला एक हरा ट्रक भी है जो भारत यात्रियों द्वारा सड़क पर छोड़े गए सभी तरह के कचरे और पानी की बोतलों को उठा रहा है.

सुबह के ब्रेकप्वाइंट पर दिन के 11 बजे जब सूरज की तपन कड़ी होने लगती है, तो यात्रियों को दोपहर के भोजन से कटे हुए फल और पानी दिया जाता है. कांग्रेस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा, ‘भोजन का प्रबंधन स्थानीय प्रदेश कांग्रेस कमेटी करती है.’

आर्किटेक्ट और मार्शल आर्ट की टीचर अपेक्षा कक्कड़ कन्याकुमारी से इस यात्रा के साथ चल रही हैं. उन्होंने कहा, ‘मैं कांग्रेस की सदस्य नहीं हूं, लेकिन मैं साथ चल रही हूं क्योंकि मैं कांग्रेस की विचारधारा में यकीन करती हूं.

मैं देश को ऐसे देख रहीं हूं जैसे पहले कभी नहीं देखा, ऐसे लोगों से मिल रही हूं जिनसे मैं शायद कभी नहीं मिल पाती. यह पहले कभी न होने वाले अनुभव जैसा है. लेकिन मुझे केरल का खाना पसंद नहीं आया.

वे शाकाहारी और मांसाहारी दोनों तरह का खाना प्रदान करते थे. मुझे सांभर बहुत पसंद था, लेकिन उन्होंने हमारे लिए उत्तर भारतीय दाल-रोटी बनाने की कोशिश की जो मुझे ज्यादा पसंद नहीं आई. तमिलनाडु [चरण] के दौरान, परोसा जाने वाला खाना एकदम से शाकाहारी था.’

भारत यात्रियों को सहायता प्रदान करने वाले कांग्रेस पदाधिकारियों के लिए इन स्थानों के काफी दूरी पर बसे होने की वजह से उनका काम जटिल हो जाता है.

ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के एक पदाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘हम उन स्थानों पर भी रहे हैं जहां लगातार तीन दिनों तक किसी के पास नेटवर्क नहीं था .हमने सिर्फ मोबाइल नेटवर्क पाने के लिए चार किलोमीटर की दूरी तय की है ताकि हम अपना काम पूरा कर सकें.’


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बेहतरीन ‘इन – हाउस’ लॉन्ड्री

भारत यात्रियों के लगभग सारे सामानों के नाम पर एक बंक बेड और अक्सर कंटेनर के किसी कोने में रखा एक सूटकेस ही है. उन्हें सफेद रंग के कपड़ों में होना जरूरी है. इसलिए कपड़े की सफाई जरूरी है. इन-हाउस लॉन्ड्री तक पहुंच केवल भारत यात्रियों के लिए उपलब्ध है. उन्हें हर तीन दिन में एक बार वहां जाने की अनुमति प्रदान की जाती है

दिल्ली की वकील अवनि बंसल, जो इस यात्रा का हिस्सा हैं, कहती हैं: ‘हर दो या तीन दिन में इन-हाउस लॉन्ड्री वाले कपड़े लेने के लिए आते हैं, कपड़ों को टैग करते हैं और एक शीट में सम्बंधित व्यक्ति का नाम और नंबर लिखते हैं. दो-तीन दिन में ये हमें वापस मिल जाते हैं. यदि कपड़े वापस नहीं आते, तो आपको अपने कपड़े शाम के समय कंटेनर के टॉयलेट में हाथ से धोने होते हैं.’

किदवई का कहना है कि लॉन्ड्री का काम एक कंटेनर में होता है जिसमें कपड़े धोने के सारे साजो-सामान हैं. उन्होंने कहा, ‘हम लगातार ऐसे धोबियों की तलाश में लगे रहते हैं जो स्थानीय रूप से कपड़े धोकर हमें वापस दे सकें.’

कर्नाटक चरण में यात्रा के साथ चल रही पूर्व सांसद मीनाक्षी नटराजन कहती हैं, ‘मैं अपने कपड़े खुद धो रही हूं. यह रास्ते में ही सूखता रहता है. इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता.

मेरे पास कई यात्राओं का अनुभव है और अब मुझे एक छोटे से बैग के सहारे अपना जीवन जीने की आदत हो गई है.’


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प्रेग्नेंसी टेस्टिंग किट और अन्य सहित मोबाइल मेडिकल वैन

छत्तीसगढ़ की एक महिला कांग्रेस कार्यकर्ता उन केवल दो भारत यात्रियों में से एक है, जिन्हें पिछले 38 दिनों से सड़क पर चल रही इस यात्रा के दौरान अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता पड़ी है. शिविर में मोबाइल मेडिकल वैन चला रहे डॉक्टर मनोहर एम कहते हैं कि उन्होंने बेचैनी की शिकायत की थी.

कर्नाटक स्थित एक गैर सरकारी संगठन संतोष लैड फाउंडेशन, जो मोबाइल चिकित्सा के क्षेत्र में काम करता है, यात्रा के इस चरण के लिए चिकित्सा सेवा प्रदान करने हेतु जिम्मेदार है.

उनके पास सभी नियमित रूप से उपयोग की जाने वाली दवाओं जैसे कि एंटी-इमेटिक्स, एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीपायरेटिक दवाओं की आपूर्ति है. उसके पास एड्रेनलीन और लैसिक्स जैसी इमरेजेंसी यूज़ वाली दवाएं भी उपलब्ध हैं. लेकिन आज उन्हें उनमें से किसी चीज की जरुरत नहीं है.

एक बीमार कांग्रेसी कार्यकर्ता गद्दे पर बैठी हुई दोपहर का भोजन किसी तरह से निगल रही है और स्पष्ट रूप से बेचैनी में लगती है. मनोहर, अवनि को एक गर्भावस्था परीक्षण किट सौंपते हैं और उस पार्टी कार्यकर्ता की ओर इशारा करते हुए उनसे कहते हैं, ‘कृपया उसे अपनी जांच करने के लिए कहें.’ कांग्रेस की इस महिला कार्यकर्ता को अभी-अभी अहसास हुआ है कि यात्रा शुरू होने के बाद से उनके पीरियड्स मिस हो गए हैं.

डॉक्टर मनोहर का कहना है कि यह निश्चित रूप से उनकी टीम के लिए एक अनोखी स्थिति है, लेकिन वे सभी तरह की आकस्मिक स्थितियों के लिए तैयार हैं. वे कहते हैं, ‘आम तौर पर लोग हमारे पास छाले, बुखार और गले में खराश की शिकायत के साथ आते हैं. कभी-कभी, उनका रक्तचाप बढ़ जाता है, लेकिन इससे अधिक जटिल कुछ भी नहीं है.’ यहां उपलब्ध सेवाएं किसी भी अन्य क्लीनिक की बराबरी वाली हैं.

एआईसीसी महासचिव, कांग्रेस के संचार मामलों के प्रभारी और राज्यसभा सांसद जयराम रमेश कहते हैं, ‘आज सुबह, मैंने अपना ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर का परीक्षण करवाया. ठीक वैसे ही जैसे हम संसद में जांच करवाते हैं.’ वह हर सप्ताह में पांच दिन के लिए इस यात्रा में भाग लेते हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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