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Friday, 20 December, 2024
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तेलंगाना चुनाव से पहले निजाम पर फिल्म बनाने की मची होड़, तीन प्रोड्यूसर में एक भाजपा नेता भी शामिल

एक तरफ जहां फिल्म निर्माता अभिषेक अग्रवाल का कहना है कि उनकी फिल्म में कोई ‘शुगर कोटिंग नहीं’ होगी, पटकथा लेखक विजयेंद्र प्रसाद का दावा है कि वह अपने काम के जरिये मानवीय संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं.

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हैदराबाद: तेलंगाना में अगले साल प्रस्तावित विधानसभा चुनाव को लेकर तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में बढ़ती प्रतिद्वंद्विता के बीच कम से कम तीन फिल्म निर्माता पूर्व शासक निजाम हैदराबाद और उनकी निजी मिलिशिया रजाकार पर फिल्म बनाने में जुटे हैं.

तीन निर्माताओं में एक फिल्म ‘कश्मीर फाइल्स’ के प्रोड्यूसर अभिषेक अग्रवाल हैं, तो दूसरे तेलंगाना भाजपा के एक नेता. इस बीच, दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक, राज्यसभा सदस्य विजयेंद्र प्रसाद भी इसी विषय पर एक अलग स्क्रिप्ट लिखने में व्यस्त हैं.

यह सब ऐसे समय चल रहा है जब निजाम शासन और रजाकारों के अत्याचार तेलंगाना की सियासी सरगर्मियों के बीच गहन चर्चा का विषय बने हुए हैं, खासकर इसलिए क्योंकि ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) का कहीं न कहीं रजाकारों से सीधे रिश्ता रहा है.

मिलिशिया का नेतृत्व मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एमआईएम) नेता कासिम रिजवी ने किया था और यही संगठन बाद में एआईएमआईएम में बदल गया, जिसका नेतृत्व अब असदुद्दीन ओवैसी कर रहे हैं. रिजवी ने असदुद्दीन ओवैसी के दादा अब्दुल वहीद ओवैसी को बागडोर सौंपी थी जो कि पहले संगठन से जुड़े नहीं थे.

आजादी के समय तकरीबन सभी 500 रियासतों को भारत या पाकिस्तान में शामिल होने या स्वतंत्र रहने का विकल्प दिया गया. सरदार वल्लभ भाई पटेल ने निज़ाम को अपनी रिसायत का भारत में विलय करने को कहा लेकिन शासक ने इनकार कर दिया. इसके बजाय निज़ाम ने 15 अगस्त 1947 को हैदराबाद को एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया.

हालांकि, निज़ाम को दुनिया के सबसे धनी लोगों में शुमार किया जाता था लेकिन उनकी संपत्ति का एक हिस्सा किसानों से अत्यधिक कर वसूले जाने का नतीजा था, जिन्हें उनके जमींदार बहुत ज्यादा प्रताड़ित करते थे. इसी अवधि में रजाकार आपराधिक गतिविधियों में लिप्त थे और लोगों को आतंकित करते थे. उन्होंने किसान आंदोलन और भारतीय संघ में विलय के विचार को दबाने में भी अहम भूमिका निभाई.

हैदराबाद के देश में विलय पर जारी वार्ता असफल होने के बाद भारतीय सशस्त्र बलों ने ‘ऑपरेशन पोलो’ के तहत हस्तक्षेप किया, जिसके बाद ही 17 सितंबर 1948 को हैदराबाद का भारत में विलय हो पाया.

भाजपा अब तेलंगाना पर पूरा ध्यान भी केंद्रित कर रही है, जहां पिछले दो सालों में दो विधानसभा सीटों पर उपचुनाव जीतने और ग्रेटर हैदराबाद नगर निकाय चुनावों में उल्लेखनीय प्रदर्शन के बाद वह टीआरएस के साथ सीधे मुकाबले की स्थिति में नजर आ रही है.


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‘सच बताया जाना चाहिए’

‘कश्मीर फाइल्स’ के निर्माताओं में से एक अभिषेक अग्रवाल ने दिप्रिंट को बताया कि स्क्रिप्ट पर ज्यादातर काम हो चुका है.

उन्होंने कहा, ‘दो साल से अधिक समय से हम इस पर शोध करने में लगे थे. चीजें आगे बढ़ गई हैं, और उन्हें बस अंतिम रूप दिया जाना बाकी है. शोध में कम से कम 11 सदस्य शामिल रहे हैं. हम चाहते हैं कि चीजें सही ढंग से आकार लें, जो हुआ उसे ठीक-ठीक चित्रित किया जाए और सच्चाई को वैसे ही बताया जाए जैसी वह थी. उसमें कोई शुगर कोटिंग न हो.’ साथ ही जोड़ा कि इस साल किसी समय इस बारे में घोषणा की जा सकती है.

निर्माता ने कहा कि उनकी ‘कश्मीर फाइल्स’ की टीम इस प्रोजेक्ट पर भी काम करेगी.

सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि हैदराबाद के ही रहने वाले अभिषेक अग्रवाल के केंद्रीय पर्यटन मंत्री किशन रेड्डी, तेलंगाना भाजपा प्रमुख बंदी संजय और दिल्ली के कुछ अन्य शीर्ष नेताओं के साथ काफी अच्छे संबंध हैं.

हालांकि, अग्रवाल का कहना है कि उनकी फिल्म का किसी भी राजनीतिक दल या उसके प्रोजेक्ट से कोई लेना-देना नहीं है. उनके मुताबिक, यह पूरी तरह एक प्राइवेट प्रोजेक्ट है.

इस बीच, तेलंगाना भाजपा के एक नेता भी इसी विषय पर एक फिल्म को प्रोड्यूस कर रहे हैं. नाम न छापने की शर्त पर उक्त नेता ने बताया कि तेलंगाना भाजपा प्रमुख बंदी संजय ने 29 अगस्त को शूटिंग को हरी झंडी दिखाई थी.

नेता ने कहा, ‘इंटरटेनमेंट और क्रिएशन से जुड़ी मेरी कंपनी पहले ही फिल्म एसोसिएशन बॉडी में फिल्म के तीन टाइटिल रजिस्टर्ड करा चुकी है. हमने बाकायदा भुगतान करके फिल्म टाइटिल पंजीकृत कराए हैं, इसलिए कोई और उनका उपयोग नहीं कर सकता. ये ‘रजाकार’, ‘रजाकार फाइल्स’ और ‘निजाम डायरीज’ हैं.’

उन्होंने कहा, ‘पिछले छह महीनों से हम इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं और बजट लगभग 30 करोड़ रुपये है. (केंद्रीय गृह मंत्री) अमित शाह को हाल ही में हैदराबाद आने पर इसकी जानकारी दी गई थी. यह एक अखिल भारतीय फिल्म होगी, जो कई भाषाओं में रिलीज की जाएगी.’

मई में रजाकारों पर एक फिल्म के बारे में बंदी संजय की घोषणा के बाद प्रसाद के भी इसी तरह के विषय पर एक पटकथा लिखने की चर्चा हुई थी. बंदी संजय ने तो यहां तक कह दिया था कि जाने-माने पटकथा लेखक को फिल्म की पटकथा लिखनी ही होगी.

दिप्रिंट ने जब प्रसाद से संपर्क साधा तो उन्होंने यह पुष्टि तो की कि वह ‘पूर्ववर्ती हैदराबाद रिसासत की मुक्ति’ और भारतीय संघ में इसके विलय की पृष्ठभूमि के संबंध में एक स्क्रिप्ट पर काम कर रहे थे लेकिन इसके लिए किसी राजनीतिक दल के साथ जुड़े होने की बात से उन्होंने इनकार किया है..

उन्होंने आगे कहा, ‘मैं अभी लिख रहा हूं, और इसमें समय लगेगा. मैं एक मानवीय संदेश देने का प्रयास कर रहा हूं कि मुस्लिम और हिंदू दोनों भारत के अभिन्न अंग हैं और उन्हें शांतिपूर्वक सह-अस्तित्व में रहना चाहिए. स्क्रिप्ट तैयार होने में कम से कम दो महीने लगेंगे.’

गत 17 सितंबर—यानी 74 साल पहले की उस तारीख जिस दिन हैदराबाद भारत संघ का हिस्सा बना था—को शहर में टीआरएस और भाजपा के बीच एक शक्तिप्रदर्शन नजर आया. भाजपा ने जहां 17 सितंबर को ‘हैदराबाद मुक्ति दिवस’ के तौर पर मनाया, वहीं के.चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली टीआरएस सरकार ने इसे ‘तेलंगाना राष्ट्रीय एकता दिवस’ के रूप में मनाया.

हैदराबाद में मुक्ति दिवस समारोह का हिस्सा रहे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह सहित कई भाजपा नेताओं ने आरोप लगाया है कि एआईएमआईएम के दबाव की वजह से ही टीआरएस आधिकारिक तौर पर 17 सितंबर को ‘मुक्ति दिवस’ के तौर पर स्वीकारने को तैयार नहीं है.

एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी 17 सितंबर को ‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ के तौर पर मनाया था और यहां तक कि केसीआर और शाह से भी ऐसा ही करने का अनुरोध किया था.

कई इतिहासकारों ने इस बात को रेखांकित किया है कि कैसे ‘ऑपरेशन पोलो’ एक त्रासद स्मृति है, खासकर मुसलमानों के लिए. सुंदरलाल कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस ऑपरेशन के दौरान करीब 27,000 से 40,000 लोग मारे गए थे. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारतीय सैनिक कैसे कथित तौर पर असंख्य मुसलमानों के खिलाफ लूट, बलात्कार और हत्या की घटनाओं में लिप्त थे.

भाजपा पिछले सप्ताह इस अवसर को पूरी तौर पर एक जश्न की तरह मनाने में जुट गई थी. केंद्र सरकार ने इसके लिए साल भर चलने वाले समारोह की भी घोषणा की है.

भाजपा के पूर्व विधान परिषद सदस्य (एमएलसी) रामचंद्र राव ने कहा, ‘भाजपा आधिकारिक तौर पर ऐसे किसी प्रोडक्शन या ऐसी किसी फिल्म के प्रोजेक्ट पर काम नहीं कर रही है. लेकिन, अगर ऐसी कोई फिल्में रिलीज होती हैं, तो पार्टी इसे प्रोमोट करेगी ताकि ये अधिक से अधिक दर्शकों तक पहुंचे और लोगों को पता चले कि इतिहास क्या था.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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