नई दिल्ली: यह तो जगजाहिर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जहां भी जाते हैं, मौके और माहौल के लिहाज से सार्थक राजनीतिक संदेश देने में कोई कसर नहीं छोड़ते और इस हफ्ते उत्तराखंड की उनकी यात्रा इसमें कोई अपवाद नहीं रही. शुक्रवार को चार धाम मंदिरों में पूजा-अर्चना और एक जनसभा को संबोधित करने के दौरान करीब आठ घंटे की अवधि में उन्हें चार अलग-अलग पोशाकों में देखा गया.
माना जा रहा है कि इस दौरे के दौरान प्रधानमंत्री ने अपने कपड़ों का चयन हिमाचल प्रदेश—जहां 12 नवंबर को विधानसभा चुनाव होने हैं—और गुजरात की परंपराओं और संस्कृति के प्रति अपने सम्मान को जाहिर करने के लिए किया. गौरतलब है कि गुजरात में भी इसी साल के अंत में चुनाव होने हैं.
संदेश देने का उनका अंदाज इस बात को पुष्ट करता है कि मोदी के समर्थन-आधार पर प्रतीकवाद का कितना गहरा असर है. मौका चाहे सेना के जवानों के साथ दिवाली मनाने का हो या फिर कुनो नेशनल पार्क में चीते छोड़ने का, मोदी का पहनावा मौके और माहौल के लिहाज से एकदम उपयुक्त होता है और समर्थकों के साथ-साथ विरोधियों को भी एक गहरा संदेश देता है.
हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर हरीश ठाकुर ने कहा, ‘मोदी हालिया समय के एकमात्र ऐसे राजनेता है, जिन्हें यह बात अच्छी तरह पता है कि किसी राजनीतिक संबोधन के दौरान पोशाक और सांस्कृतिक प्रतीक चिह्नों का कितना गहरा असर पड़ता है. वह लोगों से सीधे जुडने और भावनात्मक तौर उन्हें प्रभावित करने और उनमें स्थानीय गौरव और राष्ट्रवाद की भावना बढ़ाने के लिए इस तरह के प्रतीकवाद का इस्तेमाल करते हैं.’
उन्होंने याद दिलाया कि कैसे प्रधानमंत्री ने इस साल गणतंत्र दिवस पर अपने संबोधन के दौरान उत्तराखंडी टोपी पहनी थी और उनका यह संबोधन उत्तराखंड में चुनाव से कुछ महीने पहले हुआ था. ठाकुर ने कहा, ‘यह लोगों के साथ सीधे जुड़ाव का संदेश देने की एक कोशिश थी और उत्तराखंड में चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी के हर नेता ने ऐसी टोपी का इस्तेमाल किया.’
गुजरात के एक बीजेपी नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि मोदी से ही प्रेरणा लेते हुए गुजरात भाजपा प्रमुख सी.आर. पाटिल ने राज्य में चुनाव के मद्देनजर पार्टी के प्रचार अभियान के लिए विशेष तौर पर ऐसी लाखों टोपियां बनवाई हैं.
एक अन्य केंद्रीय बीजेपी नेता ने कहा, ‘प्रधानमंत्री दिवाली या अन्य अवसरों पर सैन्य चौकियों पर जाते हैं तो वह जवानों की पहचान बनी वर्दी पहनते हैं और इसके जरिए मतदाताओं को राष्ट्रवाद का संदेश भी देते हैं.’
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एक दिन में चार बार बदली पोशाक
प्रधानमंत्री मोदी शुक्रवार सुबह जब देहरादून के जॉली ग्रांट एयरपोर्ट पहुंचे तो उन्होंने प्लेन व्हाइट कुर्ते के साथ मल्टीकलर प्रिंटेड स्टोल डाल रखा था.
फिर, केदारनाथ मंदिर में पूजा करते समय वह हिमाचल प्रदेश के गद्दी समुदाय के पुरुषों की पारंपरिक पोशाक ‘चोला डोरा’ पहने नजर आए. ऊनी बेल्ट (डोरा) और एक पहाड़ी टोपी के साथ लंबा-सा सफेद कोट (चोला) में मोदी की तस्वीरें काफी सुर्खियों में रहीं. पिछले आठ सालों में मोदी की यह छठी केदारनाथ यात्रा थी.
फिर बद्रीनाथ मंदिर के दर्शन के दौरान उन्हें काले रंग की पफर जैकेट के साथ पीला स्टोल डाले देखा गया.
फिर वह एक जनसभा को संबोधित करने के लिए माणा गांव पहुंचे, जहां उन्होंने एक ग्रे बटन-डाउन ओवरकोट पहना. साथ में एक ग्रे स्टोल और दस्ताने पहने भी नजर आए.
उत्तराखंड दौरे के दौरान पीएम ने चमोली जिले में 3,400 करोड़ रुपये के कनेक्टिविटी प्रोजक्ट का उद्घाटन किया और दो रोपवे परियोजनाओं और सड़क चौड़ीकरण परियोजनाओं की आधारशिला भी रखी.
‘चोला डोरा’ क्यों है खास
मोदी को यह ‘चोला डोरा’ कथित तौर पर हिमाचल के चंबा जिले की महिलाओं से बतौर उपहार मिला है. कांगड़ा—जहां 15 विधानसभा सीटें हैं—के कुछ हिस्सों और जम्मू-कश्मीर के अलावा चंबा के भरमौर में एक बड़ी गद्दी आबादी रहती है.
गुजरात (2017), हिमाचल प्रदेश (2017), बिहार (2020) और उत्तराखंड (2022) में भाजपा को वोट देने वालों में महिलाओं की एक बड़ी संख्या है और उनके बीच प्रधानमंत्री को लोकप्रियता ही भाजपा को सत्ता विरोधी लहर से उबारने में सफल रही थी. उदाहरण के तौर पर हिमाचल में पिछले विधानसभा चुनावों में पुरुषों की तुलना में अधिक महिलाओं ने भाजपा को वोट दिया.
उन्होंने शुक्रवार को केदारनाथ में जो ऊनी कोट पहना, उस पर स्वास्तिक जैसे चिह्न कढ़े थे, जिसे सांस्कृतिक तौर पर समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. और उस पर भगवान कृष्ण का प्रतीक माना जाने वाला एक मोर पंख भी लगा था. चोला को इस तरह सिला जाता है कि एक जगह से दूसरी जगह प्रवास के लिए जाने के दौरान गद्दी समुदाय के पुरुषों के लिए मेमनों को ले जाना आसान बना दे.
कमर में लपेटा जाने वाला बहुरंगी डोरा आमतौर पर लगभग 2 किलो वजन का होता है और गद्दी पुरुषों को अपनी पीठ पर भार ढोने में मदद करता है. और उनकी पहाड़ी टोपी—जो हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय वीरभद्र सिंह को खासतौर पर पसंद थी—ने पहाड़ी राज्य के लोगों को यह संदेश भी दिया कि भाजपा उनकी जीवनशैली को कितनी अहमियत देती है.
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‘सबका लिबास’
माना जा रहा है कि दिवाली से ऐन पहले सप्ताहांत में प्रधानमंत्री मोदी का हिंदुओं के सबसे प्रतिष्ठित तीर्थस्थलों बद्रीनाथ और केदारनाथ में दर्शन करने पहुंचना और इस मौके पर खास तरह के परिधानों का चयन करना भाजपा के हिंदू मतदाताओं के लिए एक संदेश है, खासकर हिमाचल और गुजरात में आगामी चुनावों के मद्देनजर.
2011 की जनगणना के मुताबिक, उत्तराखंड की कुल आबादी में हिंदुओं की संख्या 82.97 प्रतिशत थी, जबकि गुजरात में यह आंकड़ा 88.57 प्रतिशत था.
कांगड़ा से भाजपा सांसद किशन कपूर ने कहा कि प्रधानमंत्री का हिमाचल से विशेष जुड़ाव है. किशन कपूर ने दिप्रिंट को बताया, ‘कुल्लू दशहरे के दौरान उन्होंने (पीएम) हिमाचली टोपी और हिमाचली शॉल पहनी थी. वहीं, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की भारत यात्रा के दौरान उन्होंने उन्हें हिमाचली कलाकृतियां और एक शॉल भेंट भी की थी.’
कपूर ने इस बात को रेखांकित किया कि मोदी 20 साल पहले हिमाचल प्रदेश के लिए भाजपा के प्रभारी रहे थे और साथ ही बताया कि प्रधानमंत्री हिमाचली लोगों के ‘हर रीति-रिवाज’ को अच्छी तरह जानते हैं. उन्होंने आगे कहा कि मोदी ने दो पहाड़ी राज्यों उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के के बीच कनेक्टिविटी सुधारने पर जोर दिया है.
दुनियाभर के अधिकांश नेताओं की तरह मोदी भी अपने परिधानों का इस्तेमाल अपने समर्थकों के बीच संदेश पहुंचाने के लिए करते हैं. अपनी पोशाक वह अक्सर लक्ष्य और मौका-माहौल को ध्यान में रखकर तय करते हैं जो ‘सबका साथ, सबका विकास’ और ‘सबका लिबास’ के उनके विचार को भी रेखांकित करती है.
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