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Thursday, 21 November, 2024
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मोदी सरकार में चार में से तीन मंत्री आरएसएस की पृष्ठभूमि से आते हैं

सरकार के 53 मंत्रियो में से 38 मंत्री संघ की पृष्ठभूमि से आते हैं. मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में जिन 66 मंत्रियो ने शपथ ली थी. उनमें से 41 मंत्री संघ से आते हैं.

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नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े भाजपा के पांच सांसदों में से एक को 2019 में नरेंद्र मोदी की कैबिनेट में मंत्री के रूप में शामिल किया गया था. लेकिन, संघ की पृष्ठभूमि से न आने वाले सांसदों का अनुपात 1:14 है.

सीधे शब्दों में कहें तो आरएसएस की पृष्ठभूमि से आने वाले सांसदों के पास दूसरों की तुलना में तीन गुना बेहतर मंत्री बनने की संभावनाएं थीं, यह एक तथ्य है जिसे आकांक्षी मंत्रियों को टीम मोदी के संभावित कैबिनेट विस्तार के बारे में अटकलों के बीच ध्यान में रखना चाहिए.

हालांकि, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद आरएसएस के पूर्व प्रचारक हैं. सरकार में नंबर दो गृहमंत्री और भाजपा के पूर्व अध्यक्ष अमित शाह आरएसएस की छात्र शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से भी जुड़े थे. यह सरकार की नीतियों पर संघ के विचारधारा के प्रभाव को भी जाहिर करता है.

मोदी सरकार में भाजपा के 53 मंत्रियों में से 38 संघ की पृष्ठभूमि से हैं. यह कुल मंत्रियो का 71 प्रतिशत है. यह आंकड़ा मोदी के पहले कार्यकाल में 62 प्रतिशत था, जब 2014 में शपथ लेने वाले 66 भाजपा मंत्रियों में से 41 आरएसएस से थे.

हालांकि, प्रधानमंत्री ने ऐसे मंत्रियों को कई महत्वपूर्ण विभाग सौंपा है, जिनकी आरएसएस की पृष्ठभूमि नहीं है. इनमें वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण, विदेश मंत्री एस जयशंकर, आवास और शहरी मामलों के मंत्री हरदीप सिंह पुरी और ऊर्जा  मंत्री आरके सिंह हैं.

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने इसे ज्यादा महत्व नहीं दिया.

भाजपा नेता ने कहा, ‘आरएसएस से संबंध मंत्री बनने की कसौटी नहीं है. पीएम और वरिष्ठ नेतृत्व इस पर निर्णय करते हैं. यह कहना कि किसी को केवल इसलिए पदोन्नत किया जा रहा है क्योंकि उनके आरएसएस से संबंध हैं तो उचित टिप्पणी नहीं है.

यह विचार आरएसएस के पदाधिकारी से बार-बार सुनने को मिला. आरएसएस के पदाधिकारी ने कहा, पार्टी के लिए टिकट या पोर्टफोलियो तय करने में आरएसएस की कोई भूमिका नहीं होती है. आरएसएस केवल दो चीजों में विश्वास करता है ऐसे लोग, जो पहले से ही हमारे साथ हैं और जिन्हें अभी हमारे साथ आना बाकी है.

आरएसएस के पदाधिकारी ने यह भी बताया कि जहां तक ​​भाजपा नेताओं का सवाल है. सुषमा स्वराज की कोई आरएसएस की पृष्ठभूमि नहीं थी, लेकिन उनके पास महत्वपूर्ण पद थे और यहां तक ​​कि जसवंत सिंह भी नहीं थे. इसलिए ये वर्गीकरण सही नहीं है.

संघ का पदचिह्न

इस तरह के विरोध के बावजूद मोदी सरकार पर संघ के निशान स्पष्ट रूप से हैं. लोकसभा के 303 भाजपा सांसदों में से 146 या 48 प्रतिशत सांसदों का आरएसएस से जुड़ाव है. राज्यसभा में 82 सांसदों में से भाजपा के 34 सांसदों का संघ से लिंक है. इस तरह के लिंक सरकार के निर्णय लेने में भी तेजी से दिखाई दे रहे हैं.

उदाहरण के लिए मोदी 2.0 में एक अलग पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन मंत्रालय बनाया गया था, यह सुझाव मुख्य रूप से विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) की तरफ से सामने आया है. इसके अलावा राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) भी संघ से जुड़े संगठनों से मसौदा नीति में कई सुझावों को तवज्जो दिया गया है.

पिछले साल लोकसभा चुनावों से पहले आरएसएस और वीएचपी द्वारा दबाव डाले जाने के बाद भाजपा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से अयोध्या शीर्षक विवाद मामले में तेजी लाने के लिए कहा था.

लेखक और पत्रकार नीलांजन मुखर्जी ने कहा कि यह सरकार वैचारिक अखंडता रखने वालों को बढ़ावा देना चाहती है. पिछली अटल बिहारी वाजपेयी सरकार की तुलना में जिसे पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं था मोदी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यह ऐसी सरकार है, जिसके पास संघ के एजेंडे को आगे बढ़ाने में कोई हिचक नहीं है.

आइकन्स ऑफ़ इंडियन राइट्स और नरेंद्र मोदी: द मैन, द टाइम्स के लेखक मुखोपाध्याय ने कहा, पीएम, गृहमंत्री और रक्षामंत्री, सभी की आरएसएस पृष्ठभूमि है. तथ्य यह भी है कि आरएसएस की पृष्ठभूमि के और भी मंत्री हैं क्योंकि यह सरकार का संघ परिवार को बेहतर तरीके से एकीकृत करने का तरीका है, ताकि कोई विभाजन न हो सके.


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सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान पढ़ाने वाले सुहास पलशीकर ने कहा कि वाजपेयी सरकार के समय स्थिति बहुत अलग थी, क्योंकि उस समय गठबंधन था. पलशिकर ने कहा, ‘मेरा मानना ​​है कि अगर हम वाजपेयी सरकार के साथ इसकी तुलना करते हैं तो शायद स्थिति अलग हो सकती है, क्योंकि वह गठबंधन सरकार थी. जहां तक ​​मोदी सरकार का संबंध है, हम आरएसएस के साथ बहुत विशिष्ट संबंध देखते हैं और उनका एजेंडा सरकार द्वारा लिया जाता है.

उन्होंने यह भी कहा, जहां तक ​​मंत्रियों का संबंध है तो कोई भी देख सकता है कि आरएसएस की पृष्ठभूमि से आने वाले लोग महत्वपूर्ण विभागों को संभाल रहे हैं. यह एक संगठन और एक पार्टी के बीच की अनोखी स्थिति है, जहां यह कहना मुश्किल है कि कौन किसे नियंत्रित कर रहा है. लेकिन उनके एजेंडे निश्चित रूप से एक दूसरे के पूरक हैं और इसलिए उनकी राजनीतिक परियोजनाएं भी हैं.

कैबिनेट

मोदी कैबिनेट में सबसे महत्वपूर्ण पैनल, सुरक्षा पर कैबिनेट समिति (सीसीएस) पर संघ का प्रभुत्व है, लेकिन इसमें दो गैर-आरएसएस सदस्य हैं- वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और विदेश मंत्री एस जयशंकर. समिति की अध्यक्षता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करते हैं और संघ परिवार से गृहमंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ भी हैं.

आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए), दूसरा सबसे महत्वपूर्ण मंत्रिस्तरीय पैनल, जिसमें आरएसएस की पृष्ठभूमि वाले लोग भी शामिल हैं. समिति में राजनाथ सिंह, शाह, नितिन गडकरी, डीवी सदानंद गौड़ा, नरेंद्र सिंह तोमर, रविशंकर प्रसाद, पीयूष गोयल और धर्मेंद्र प्रधान, जिन सभी के संबंध आरएसएस से हैं. इसमें सीतारमण और जयशंकर अपवाद हैं.

आरएसएस का शिक्षा, संस्कृति और श्रम के मूल हितों में लिंक देखा जा सकता है. इन सभी विभागों को संगठन से नज़दीकी संबंध रखने वाले नेताओं द्वारा संभाला जाता है. इन विभागों को रमेश पोखरियाल, प्रह्लाद सिंह पटेल और संतोष गंगवार संभाल रहे हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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