चंडीगढ़: हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला को उम्मीद है कि सहयोगी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अगले साल के लोकसभा चुनाव में उनकी जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के हितों को समायोजित करेगी. लेकिन उन्होंने इस साल के अंत में राजस्थान चुनाव में 25 सीटों पर चुनाव लड़कर अपने सहयोगी के लिए मुश्किलें पैदा करने की अपनी पार्टी के फैसले का बचाव नहीं किया है.
चंडीगढ़ स्थित अपने आवास पर दिप्रिंट के साथ एक इंटरव्यू में, दुष्यंत चौटाला ने दोहराया कि जेजेपी 2019 में राज्य में भाजपा के साथ गठबंधन करने के बाद से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का हिस्सा रही है. भाजपा चाहती है कि हम ऐसी सरकार कैसे दे सकते हैं जो राज्य को आगे ले जा सके. कोविड और इस साल की बाढ़ जैसी कई चुनौतियों के बावजूद, गठबंधन अच्छा काम करने में सक्षम रहा है.
उन्होंने कहा कि जहां तक चुनाव लड़ने का सवाल है, जेपीपी “एनडीए का हिस्सा” है.
यह उल्लेख करते हुए कि कैसे “लोग अक्सर वरिष्ठ भाजपा नेताओं को यह कहते हुए उद्धृत करते हैं कि पार्टी सभी 10 सीटों (हरियाणा में संसदीय सीटें; जिनमें से सभी पर भाजपा ने 2019 में जीत हासिल की थी)” पर चुनाव लड़ेगी, चौटाला ने दिप्रिंट को बताया कि इन मुद्दों पर बीजेपी के नेतृत्व वाला एनडीए में चर्चा की गई थी.
हालांकि, उन्होंने कहा कि “ऐतिहासिक रूप से, ऐसे कई उदाहरण हैं जहां राजनीतिक दलों ने अपने सहयोगियों को समायोजित करने के लिए समझौते किए हैं,” – यह दर्शाता है कि भाजपा अगले साल आम चुनाव में सहयोगी जेजेपी के लिए कुछ सीटें छोड़ सकती है.
चुनावी राज्य राजस्थान के बारे में पूछे जाने पर, हरियाणा के 35 वर्षीय उपमुख्यमंत्री ने कहा, “जब समय आएगा, हम भाजपा नेताओं के साथ बैठेंगे और यह पता लगाने की कोशिश करेंगे कि हम (राजस्थान में) एक साथ कैसे चुनाव लड़ सकते हैं.”
उन्होंने आगे कहा, “वास्तव में, मैंने पहले ही भाजपा के साथ कुछ स्तर पर इस मुद्दे पर चर्चा की है और मुझे समाधान की उम्मीद है. इसी तरह, हरियाणा में विभिन्न सीटों का मुद्दा भी दोनों दलों के एक साथ बैठने पर तय किया जाएगा.”
हरियाणा में, हिसार संसदीय और उचाना विधानसभा सीटें जेजेपी और वरिष्ठ भाजपा नेता बीरेंद्र सिंह के बीच विवाद की जड़ बनकर उभरी हैं. बीरेंद्र सिंह के बेटे, बृजेंद्र सिंह, हिसार से सांसद हैं – यह सीट 2014 से 2019 तक चौटाला द्वारा प्रतिनिधित्व की गई थी. दूसरी ओर, विधानसभा सीट से मौजूदा विधायक प्रेमलता, जो बीरेंद्र सिंह की पत्नी हैं, को हराने के बाद 2019 में चौटाला को राज्य विधानसभा के लिए चुना गया.
अब, भाजपा के राज्य प्रभारी बिप्लब कुमार देब ने उचाना से प्रेमलता की उम्मीदवारी की घोषणा की है, जबकि चौटाला ने अपनी सीट बरकरार रखने के इरादे की घोषणा की है. इसी तरह, चौटाला की जेजेपी एक बार फिर से हिसार और भिवानी संसदीय सीटों पर अपना दावा पेश करना चाह रही है, जहां से या तो वह या उनके पिता अजय सिंह चौटाला अतीत में चुनाव लड़ चुके हैं और जीत चुके हैं.
दिप्रिंट से बातचीत के दौरान, दुष्यंत चौटाला ने किसानों की अशांति, नूंह हिंसा और हरियाणा की अर्थव्यवस्था की स्थिति से लेकर कई अन्य मुद्दों पर भी चर्चा की.
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‘40% वोट शेयर का लक्ष्य’:दुष्यंत चौटाला
चौटाला ने अपना पहला चुनाव 2014 में अपने परदादा चौधरी देवीलाल की इंडियन नेशनल लोक दल (आईएनएलडी) से हिसार संसदीय सीट से जीता था. अपने चाचा अभय सिंह चौटाला के साथ मतभेद के बाद उन्हें सितंबर 2018 में पार्टी से निलंबित कर दिया गया था.
उसी वर्ष बाद में, उन्होंने जेजेपी का गठन किया जिसने 2019 के विधानसभा चुनावों में 90 में से 10 सीटें जीतीं. 40 सीटें हासिल करने वाली भाजपा के साथ गठबंधन ने उन्हें उप मुख्यमंत्री बनाया.
चौटाला ने कहा कि उन्होंने अगले साल अक्टूबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में जेजेपी का वोट शेयर 40 प्रतिशत तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा है. “2019 में, पार्टी बनाने के 11 महीनों के भीतर, हमें तीन चुनाव लड़ने थे – जनवरी में जींद विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव, मई में लोकसभा चुनाव और अक्टूबर में विधानसभा चुनाव. उस समय, पार्टी संगठन बिलकुल नया था.
उन्होंने कहा, “उसके बाद के वर्षों में, हमने संगठन पर काम किया है. अब हमारा संगठन बूथ स्तर तक पहुंच गया है. इस बार हमें निश्चित तौर पर बेहतर नतीजे मिलेंगे.”
2019 के विधानसभा चुनावों का जिक्र करते हुए, दुष्यंत चौटाला ने कहा कि उनकी पार्टी को “17 प्रतिशत वोट” मिले, इस तथ्य के बावजूद कि “हमारे तीन उम्मीदवारों ने हमें विश्वास में लिए बिना अपना नामांकन वापस ले लिया और हमारे एक उम्मीदवार का नामांकन खारिज कर दिया गया”.
उन्होंने कहा, ”मुझे विश्वास है कि हमारे कार्यकर्ता 2024 के विधानसभा चुनावों में हमारा वोट शेयर 17 से बढ़ाकर 40 प्रतिशत करने में सक्षम होंगे.”
हालांकि, चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, 2019 के विधानसभा चुनावों में जेजेपी का वोट शेयर 14.84 प्रतिशत (कुल मिलाकर) और पार्टी द्वारा लड़ी गई सीटों पर 15.32 प्रतिशत है.
यह पूछे जाने पर कि जब तक जेजेपी भाजपा के साथ गठबंधन में है, क्या उनका लक्ष्य या उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं की उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में देखने की इच्छा हासिल करना संभव है, चौटाला ने एक सवाल के साथ जवाब दिया: “ अगर बीजेपी 1984 में सिर्फ दो लोकसभा सीटों से वहां पहुंच सकती है. तो जेजेपी क्यों नहीं?”
‘बड़ी पर्ची और छोटी पर्ची’
अगले साल हरियाणा में विधानसभा चुनावों से पांच महीने पहले मई में होने वाले लोकसभा चुनावों पर, चौटाला ने कहा, “हरियाणा के मतदाता में हमेशा से ही मानसिक तौर पर बढ़ी पर्ची और छोटी पर्टी का अंतर होता है. उन्होंने कहा, “यह बड़ी पर्ची, छोटी पर्ची निश्चित रूप से एक चुनौती है, लेकिन मुझे यकीन है कि हम इस चुनौती से पार पा लेंगे.”
चुनाव आयोग के आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले चार चुनावों में, हरियाणा के मतदाताओं ने संसदीय चुनावों में राष्ट्रीय पार्टियों का समर्थन किया है, लेकिन विधानसभा चुनावों में ऐसा नहीं हुआ है.
यहां तक कि जेजेपी को 2019 के लोकसभा चुनावों में केवल 4.89 प्रतिशत वोट हासिल करके एक भी सीट नहीं मिली, इससे पहले उसी साल बाद में विधानसभा चुनावों में 10 सीटें हासिल हुईं.
चौटाला ने दिप्रिंट को बताया, “मैंने हमेशा कहा है कि जब भी क्षेत्रीय दलों की आवाज़ को लोकसभा में प्रतिनिधित्व मिलता है, तो दक्षता देखने को मिलती है. अगर मैं 2014 में लोकसभा सांसद नहीं बना होता तो ट्रैक्टर आज व्यावसायिक वाहन होता. यह केवल इसलिए था क्योंकि मैं वहां था और मैंने संसद में ट्रैक्टर के साथ विरोध प्रदर्शन किया था कि मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के तहत नियमों में प्रस्तावित संशोधन को हटा दिया गया था. ”
वह 15 दिसंबर, 2017 के एक उदाहरण का जिक्र कर रहे थे, जब वह मोटर वाहन अधिनियम, 1988 में कुछ नियमों में बदलाव के विरोध में ट्रैक्टर पर सवार होकर संसद पहुंचे थे, जो कथित तौर पर ट्रैक्टर रखने वाले किसानों के लिए हानिकारक था.
हरियाणा में सत्ता विरोधी लहर के बारे में पूछे जाने पर, जहां उनकी पार्टी 2019 से भाजपा के साथ सत्ता में है, चौटाला ने कहा कि यह कोई कारक नहीं है क्योंकि उन्हें लगता है कि उनकी पार्टी ने लोगों से किए गए अधिकांश वादे पूरे किए हैं.
उन्होंने कहा, “केवल एक वादा, निजी क्षेत्र में स्थानीय युवाओं को 75 प्रतिशत नौकरियां देने का वादा अधर में है क्योंकि पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय इसके खिलाफ एक याचिका पर सुनवाई कर रहा है. हालांकि, मुझे यकीन है कि मामले का फैसला सरकार के पक्ष में होगा और फिर निजी क्षेत्र के लिए 75 प्रतिशत नौकरियां स्थानीय लोगों को प्रदान करना अनिवार्य हो जाएगा. ”
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किसानों के मुद्दों और सांप्रदायिक हिंसा पर
जब उनका ध्यान राज्य सरकार के खिलाफ किसानों द्वारा बार-बार होने वाले आंदोलनों की ओर आकर्षित किया – जैसे, पहला, अब निरस्त किए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर साल भर चलने वाला आंदोलन; फिर, गन्ने और सूरजमुखी के लाभकारी मूल्यों के लिए; और अब, बाढ़ प्रभावित किसानों के मुआवजे के लिए-चौटाला ने कहा कि हरियाणा के किसान देश में सबसे समृद्ध हैं और इसका श्रेय राज्य सरकार की नीतियों को जाता है.
“जब हम किसानों के मुद्दों के बारे में बात करते हैं, तो हमें पहले यह स्पष्ट करना होगा कि वास्तव में उनकी मांगें क्या हैं. हमारे किसानों ने कृषि बिलों का विरोध किया लेकिन बिल वापस ले लिए गए. किसानों के पास केंद्र के साथ कई मुद्दे हैं लेकिन ये नए नहीं हैं…”
वह आगे कहते हैं, “जहां तक बाढ़ से राहत का सवाल है, हरियाणा ने किसानों को मुआवजा देने के लिए सक्रिय रूप से काम किया. अब, हम किसानों के खेतों से गाद निकालने की एक और नीति लेकर आए हैं और इससे भी किसानों को आर्थिक लाभ होगा.”
विभिन्न खाप पंचायतों के इस आरोप पर कि कुछ सप्ताह पहले नूंह में हुई सांप्रदायिक हिंसा भाजपा की विभाजनकारी राजनीति का परिणाम थी, चौटाला ने कहा कि ये झड़पें पिछले कुछ वर्षों में हुए कई घटनाक्रमों का परिणाम थीं और उन्होंने कहा कि राज्य सरकार की हिंसा के बाद स्थिति को संभालना सराहनीय था.
हरियाणा में निवेश पर बोले दुष्यंत चौटाला
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की नवीनतम रिपोर्ट में हरियाणा को पश्चिम बंगाल, गोवा, सिक्किम और केरल के साथ 2023-24 में सबसे कम निवेश वाले राज्यों के रूप में वर्गीकृत करने वाले एक सवाल के जवाब में, चौटाला ने कहा कि ऐसा लगता है कि आरबीआई ने केवल मेगा परियोजनाओं को ही इसमें लिया है. लेकिन हरियाणा ने एमएसएमई के रूप में निवेश के मामले में अच्छा प्रदर्शन किया है.
इस बात पर जोर देते हुए उन्होंने कहा, “हम हरियाणा की तुलना समुद्र तटीय राज्यों से नहीं कर सकते क्योंकि वे निर्यात सुविधाओं के मामले में लाभप्रद स्थिति में हैं. इसी प्रकार, जिन राज्यों में भूमि की लागत कम है, वे अधिक बड़ी परियोजनाओं को आकर्षित करते हैं. हमने आईटी, बीपीओ, सेवा क्षेत्र और एमएसएमई पर ध्यान केंद्रित किया है. महाराष्ट्र को छोड़ दें तो हरियाणा से बेहतर निवेश वाले बाकी राज्य जीएसटी संग्रह में हमसे ज्यादा आगे नहीं हैं.
(संपादन/ पूजा मेहरोत्रा)
(इस इंटरव्यू को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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