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Saturday, 27 April, 2024
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भाजपा को मिला नया हेडक्वार्टर – पर कार्यकर्ताओं को करनी पड़ेगी मशक्कत

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भाजपा का पुराना कार्यालय अंग्रेजों का बना हुआ एक आलीशान बंगला था, जो चारों ओर से हवादार और खुला हुआ था, इससे कोई भी चारों तरफ के मौसम के नजारे ले सकता था। जबकि नया कार्यालय एक शानदार किला है।

नई दिल्लीः दो महीने पहले, भारतीय जनता पार्टी ने अंग्रेजो द्वारा निर्मित दिल्ली के 11 अशोक रोड पर ऊंची दीवारों वाली खूबसूरत संरचना के साथस्थित अपने पुराने कार्यालय को 6ए दीनदयाल उपाध्याय मार्ग,राष्ट्रीय राजधानी के भीड़-भाड़ वाले संस्थागत व्यापार मंडल के एक क्षेत्र में परिवर्तित कर लिया है।

लेकिन इस बदलाव को सिर्फ इसके पते के रूप में ही नहीं, बल्कि इसे पार्टी के बढ़ते निगमीकरण और बदलती संस्कृति के परिवर्तन के रूप में भी माना जा रहा है।

पिछले हफ्ते, पूर्व भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा ने एक कॉलम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के तहत पार्टी के बदले कामकाज की ओर इशारा करते हुए लिखा था कि “पार्टी मुख्यालय एक कॉर्पोरेट कार्यालय बन गया है, जहाँ सीईओ से मिलना असंभव है।”

सभी राजनीतिक दलों को लुटियन्स बंगला जोन से स्थानांतरित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद बीजेपी को एक नए पते पर जाना पड़ा।वास्तव में, भाजपा पहली पार्टी थी जिसने एक वर्ष के भीतर अपने नए मुख्यालय के निर्माण को पूरा करने के आदेश का अनुपालन किया। इसके विपरीत,कांग्रेस का नया कार्यालय अभी भी निर्माणाधीन है।

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और शायद, यह समय इस राजनीतिक क्षण की एक और झलक है – भाजपा एक निष्ठुर कॉर्पोरेट शैली के रूप में आगे बढ़ रही है, जिसमें कांग्रेस अपने कदम फूंक-फूक कर रख रही है।

 

बीजेपी ने क्या खोया और क्या पाया

लुटियंस जोनमें बीजेपी कार्यालय का पुराना बंगला काफी विशिष्ट, आरामदायक तथा चारों ओर से खुला हुआ था।
दूसरी तरफ, लखनऊ में बहुजन समाज पार्टी के कार्यालय की तर्ज पर, नया कार्यालय,एक किले की तरह, बहु-मंजिला और आलीशान है। ऊंची दीवारों, संलग्न संरचनाओं और चकाचौंध कर देने वाले खिड़की में लगे काँच के शीशों से अच्छी तरह से संरक्षित यह नया कार्यालय, शीर्ष कॉर्पोरेट कार्यालय की तरह दिख रहा है। नई इमारत की नक्काशी,मुंबई के वास्तुकार नंदापुरकर और इनके साथी के द्वारा की गई है, जिनकी प्रमुख परियोजनाओं में कॉर्पोरेट कार्यालय भवन, वाणिज्यिक प्रतिष्ठानऔर आवासीय परिसर शामिल हैं।

इमारत की सबसे महत्वपूर्ण पांचवीं मंजिल पर पार्टी अध्यक्ष अमित शाह का कब्जा है, जहाँ पुराने कार्यालय के विपरीत, किसी को भी अपॉइंटमेंट के बिना प्रवेश करने की अनुमति नहीं है, पुराने कार्यालय में लोग आसानी से इधर-उधर घूम सकते थे।

पुराने कार्यालय के विपरीत, जो एक क्षैतिज संरचना थी, मुख्य ब्लॉक की तीसरी मंजिल पार्टी के आठ सामान्य सचिवों के लिए आरक्षित की गई है।

“11 अशोक रोड ऑफिस का सबसे बड़ा फायदा यह था कि हम पार्टी के रूप में कितने सुलभ और दृढ़मूल हैं यह दिखता था।इस कार्यालय में, लोगों को आने और जाने के लिए अपॉइंटमेंट लेने की आवश्यकता होती है। एक बीजेपी नेता, जिसने इस पर अपनी पहचान न प्रकट करने की शर्त पर, ये कहा कि हम आधुनिक तो दिख रहे हैं, लेकिन जनता की पहुँच से दूर हैं।”

नया कार्यालय हाई-टेक है, जो आधुनिक संचार के उपकरणों से लैस है, जिसके माध्यम से राजधानी में पार्टी के नेता / कर्मचारी वास्तविक समय में राज्यों के साथ बात-चीत कर सकते हैं। हालांकि, कुछ कार्यकर्ताओं के लिए, यह परिवर्तन अभिनन्दन से बहुत दूर है।

“हम केवल पुराने कार्यालय में जा सकते थे और जिसकी वजह से हम शीर्ष नेताओं से मिलने में भी कामयाब रहते थे। राजस्थान के एक पार्टी कार्यकर्ता ने कहा, अब एक मंजिल पूरी तरह से निषिद्ध है और कुल मिलाकर कार्यालय का जलवा संरक्षित हो गया है, जिससे हमें वरिष्ठ नेताओं से मिलना बहुत मुश्किल हो गया है।

कॉर्पोरेट संस्कृति की गूँज

महत्वपूर्ण बात तो यह है कि, भाजपा के मुख्यालयों की ये बदली हुए लहर,एक नई इमारत की कहानी हैं, क्योंकि पार्टी का यह परिवर्तनकाल, मोदी और शाह के शासन में व्यावसायिक रूप से अच्छी तरह चलने वाला एक यंत्र है। पिछले कुछ वर्षों में चुनाव के परिणाम इसका प्रमाण हैं।

उदाहरण के लिए, पार्टी के पास प्रत्येक राज्य में चुनाव से काफी पहले की तैयार संरचना है – पन्ना प्रमुख (मतदाताओं की सूची के प्रत्येक पृष्ठ के प्रभारी लोग), बूथ स्तरीय समितियां, शक्ति केंद्र, विभिन्न मोर्च और जिला समितियां, प्रत्येक इसके ऊपर की फीडिंग करती हैऔर इसके साथ समान समितियों के साथ समन्वय करती हैं।इनके अलावा, निश्चित रूप से, सोशल मीडिया और संचार कक्ष हैं जो समान परिभाषा के साथ काम करते हैं।

ऐसी दिखने वाले पटल और अच्छी तरह से योजनाबद्ध संरचनाएं कॉरपोरेट फ़ंक्शनिंग के तहत जटिल हैं।

साथ ही, कार्पोरेट कल्चर के लिए सच है, जहाँ विलय और अधिग्रहण आम बात हैं, बीजेपी ने अन्य पक्ष के लोगों को अपने पाले में लाने की कला में महारत हासिल कर लिया है।’लोगों की पार्टी’ होने के अपने पहले अवतार के विपरीत, जहाँ शीर्ष नेतृत्व भी आसानी से सुलभ था,मोदी तथा शाह के अधीन पार्टी अब और अधिक अपारदर्शी बन गई है –ज्यादातर लोगों के लिए शीर्ष पायदान पहुंच से बाहर रहते हैं।

एक पार्टी के लिए, जिसको व्यवस्थित रूप से प्रबंधित किया जाता है, भारत की अधिक खतरनाक,अराजक और अनौपचारिक पारंपरिक राजनीतिक पार्टी संस्कृति के विपरीत, बीजेपी का नया मुख्यालय इस विकास की मिसाल है।

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