प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यों को 21 जून से मुफ्त में कोविड वैक्सीन देने की जो घोषणा की है वह अंततः एक अच्छा नीतिगत फैसला तो है ही लेकिन महत्वपूर्ण बात है कि यह एक चतुर राजनीतिक चाल भी है. मोदी सरकार की वैक्सीन नीति भयानक रूप से गलत थी- यह बुरी अवधारणा वाली, गड्डमड्ड तो थी ही, इससे अपेक्षित समय में सभी योग्य भारतीय नागरिकों का टीकाकरण नहीं हो पाने वाला था. दरअसल, यह प्रधानमंत्री मोदी और ‘सुशासन’ के उनके दावों को कठघरे में खड़ा करने का मसाला जुटाती थी.
लेकिन मोदी तो अपने मतदाताओं को यह विश्वास दिलाने में महारत रखते हैं कि अंततः वे ही उनके मसीहा हैं, भले ही उनके आलोचक उनकी खामियों को उजागर करने की क्षमता रखते हैं.
अब वैक्सीन को लेकर उन्होंने जो घोषणा की है वह इसी वजह से एक चुस्त राजनीति है. मोदी ने एक बार फिर दिखा दिया है कि वे एक मसीहा हैं और देश की जनता को बचाने के लिए आगे आए हैं, जबकि राज्य सरकारें विफल रही हैं. आपको केवल राष्ट्र के नाम उनके संदेश को पढ़ने की जरूरत है, उसकी बारीकियों में जाने की भी जरूरत नहीं है और आप जान जाएंगे कि अपनी नयी वैक्सीन नीति के जरिए मोदी ने किस तरह संदेश देने की कोशिश की और राष्ट्र के नाम उनके संदेश को इसके इर्दगिर्द किस तरह बुना गया.
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मोदी: द वैक्सीनेटर
सोमवार की शाम 5 बजे राष्ट्र के नाम मोदी के इस संदेश से उदारता और परोपकारिता टपक रही थी कि 18 साल से ऊपर के लोगों को मुफ्त वैक्सीन लगाया जाएगा. यानी, अगर आप यह सोच रहे थे कि इस बीच अपनी आलोचनाओं को मोदी अनसुनी कर रहे थे, तो आप गलत थे. वे उन्हें सुन रहे थे और बहुत ध्यान से सुन रहे थे.
सोमवार के अपने संदेश में उन्होंने आलोचना के एक-एक मुद्दे को आलोचकों का लगभग मज़ाक उड़ाने की शैली में उठाया और खुद को सही ठहराया. यह और बात है कि वे सवाल उठाते हैं और उसका जवाब भी देते हैं. जब आप खुद ही एकालाप में सवालों का चयन कर सकते हैं और उनके जवाब भी दे सकते हैं तो संवाद में किसी को अपने जवाब पर सवाल करने का मौका क्यों दें?
लेकिन जिस सबसे बड़ी आलोचना का जवाब देने की कोशिश उन्होंने की वह यह थी कि देश में वैक्सीन के संकट के दौरान उन्होंने राज्यों को अपने भरोसे छोड़ दिया. उन्होंने दावा किया कि पहले तो उनकी यह आलोचना की गई कि स्वास्थ्य तो राज्यों का विषय है इसके बावजूद केंद्र में उनकी सरकार ने हर चीज को अपने नियंत्रण में ले रखा है. लेकिन जब उन्होंने 1 मई को टीकाकरण का विकेंद्रीकरण कर दिया तो दिल्ली, केरल, राजस्थान, झारखंड, ओडिशा और आंध्र प्रदेश जैसे आधा दर्जन राज्य पुरानी केंद्रीकृत व्यवस्था वापस लागू करने की मांग करने लगे.
मोदी ने कहा, ‘इतने बड़े काम में किस तरह की समस्याएं सामने आती हैं, यह उन्हें पता लगने लगा.’ लेकिन प्रधानमंत्री ने यह नहीं बताया कि राज्यों को केंद्र की शरण में इसलिए जाना पड़ा क्योंकि विदेशी वैक्सीन कंपनियों ने राज्यों के साथ सौदा करने से मना कर दिया था. और अब, सभी योग्य भारतीयों का टीकाकरण करने के लिए मोदी वैक्सीन उपलब्ध कराने के लिए आगे आए हैं.
संदेश बिलकुल साफ है.
प्रधानमंत्री यह दिखाना चाहते थे कि कई राज्य सरकारें अनिश्चय की शिकार हैं, अक्षम हैं और अपने बूते काम नहीं कर सकतीं, कि वैक्सीन नीति अब तक अगर विफल रही तो यह मोदी सरकार के कारण नहीं बल्कि इसलिए हुआ क्योंकि राज्यों ने अपना नियंत्रण चाहा था. एक झटके में मोदी ने वैक्सीन के मोर्चे पर हुई गड़बड़ी से खुद को बेदाग साबित कर दिया और अपने समर्थकों को जता दिया कि अब वे जिम्मा ले रहे हैं और यह व्यवस्था करेंगे कि वैक्सीन मुफ्त में सबको लगे.
उन्होंने घोषणा की, ‘भारत सरकार सभी भारतीय को मुफ्त में वैक्सीन उपलब्ध कराएगी.’ संदेश प्रसारित करने का उनका मकसद इस घोषणा के साथ पूरा हो गया.
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मोदी: भरोसा दिलाने में माहिर
नरेंद्र मोदी को अपनी नीति का पता हो या न हो, राजनीति वे अच्छी तरह जानते हैं.
मतदाता उन्हें सभी आरोपों से बरी कर दें इसके लिए बड़ी चतुराई से समय चुन कर और बड़ी सफाई से तैयार किए गए संदेश के जरिए उन्हें भरोसा दिलाना हमेशा उनकी खासियत रही है. इसलिए विरोधी चाहे उन्हें ‘चोर ’ कहें, वे यही साबित कर देंगे कि वे ही पक्के ‘चौकीदार ’ हैं. नोटबंदी भले ही भारी नीतिगत भूल रही हो लेकिन मोदी लोगों को भरोसा दिला सकते हैं कि इससे लाभ हुआ है, चाहे वह अमूर्त रूप में ही क्यों न हो (नोटबंदी के बाद हुए चुनाव के नतीजे तो प्रमाण हैं ही).
देश भले ही अबूझ महामारी से त्रस्त हो लेकिन प्रधानमंत्री लोगों का हौसला बढ़ाने के लिए उन्हें थाली और ताली बजाने के लिए राजी कर सकते हैं.
मोदी हमेशा उद्धारक रहे हैं- चाहे वह उरी में हमले का मौका क्यों रहा हो, वे ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ करके इसका जवाब देते हैं. और पुलवामा में आतंकवादी हमला होता है तो बालाकोट पर हवाई हमला करके मोदी पाकिस्तान को ‘घुटने टेकने’ पर मजबूर कर देते हैं.
और अब, प्रधानमंत्री ने खुद को वैक्सीनेशन अभियान में अटके रोड़े के सटीक जवाब के रूप में पेश किया है. भले ही इस लड़खड़ाते अभियान के लिए अधिकांश तौर पर मोदी सरकार ही क्यों न जिम्मेदार रही हो. विपक्ष को उन पर हमला करने का सटीक हथियार मिल गया था- कोविड महामारी की दूसरी लहर से निपटने में उनकी विफलता के रूप में.
केंद्र के तरीके के खिलाफ राज्य सरकारों ने हल्ला बोल दिया था. लेकिन मोदी ने अपने संदेश में यह इशारा करके कि ‘वे तो नहीं कर सकें, मैं कर दूंगा’- वही किया है जिसमें वे माहिर हैं. यानी उन्होंने राजनीतिक शतरंज के खेल को और चुनौतीपूर्ण बना दिया है.
सोमवार का उनका ‘राष्ट्र के नाम संदेश’ उनकी एक और ‘मन की बात ’ थी और यही वह ‘बात ’ है जिसका भरोसा वे अपने मतदाताओं को दिलाने में सफल रहते हैं.
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(व्यक्त विचार निजी हैं)
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