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Friday, 19 April, 2024
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फेसबुक, अमेज़न, एप्पल, नेटफ्लिक्स, गूगल पर दबिश बनाने की तैयारी में क्यों है दुनियाभर के मुल्क

किसी जमाने में दुनियाभर में प्रशंसित ‘टेक जायंट्स’ मानी गईं फेसबुक, अमेज़न, एप्पल, नेटफ्लिक्स और गूगल जैसी कंपनियों के समूह के प्रति दुनियाभर की सरकारों का नज़रिया बदला.

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चंद दिनों के मेहमान इस ऐतिहासिक साल को कोरोना महामारी के अलावा किसी और चीज के लिए अगर याद किया जाएगा तो वह है किसी जमाने में दुनियाभर में प्रशंसित उन कंपनियों के समूह के प्रति बदला नज़रिया. इन कंपनियों को ‘टेक जायंट्स’ तकनीक का धुरंधर माना जाता है. इस समूह में फेसबुक, अमेज़न, एप्पल, नेटफ्लिक्स और गूगल शामिल हैं, जिन्हें ‘फांग ’ समूह के नाम से भी जाना जाता है. ऐसा लगता है कि अटलांटिक के दोनों ओर की सरकारें जिन्हें व्यवसाय का परभक्षी व्यवहार, टैक्स देने से कतराना, आंकड़ों का दुरुपयोग मानती हैं उनसे निपटने के लिए कमर कस चुकी हैं. ऐसे व्यवहारों का स्रोत वह कॉर्पोरेट ताकत है जिसका जन्म सर्च, ऑनलाइन शॉपिंग और डिजिटल विज्ञापनों जैसे ‘जो जीता वही सिकंदर’ वाले कारोबार से हुआ है.

ये कारोबार इंटरनेट युग में जरूरी जरूरतों को जन्म देते हैं और उन्हें पूरी करते हैं, इन्होंने कोरोना महामारी के कारण पैदा हुई नई वास्तविकता (उदाहरण के लिए, ऑनलाइन शॉपिंग में वृद्धि) के दौर में बढ़िया काम किया जबकि दूसरे कारोबारों को नुकसान झेलना पड़ा है. आरोप यह है कि ऐसा नतीजा बाज़ार में वर्चस्व का गलत फायदा उठाकर हासिल किया गया है. निवेशकों को इसके कारण आई समृद्धि से कोई शिकायत नहीं है.

2020 में ‘फांग ’ समूह के शेयरों की कीमत में 50 फीसदी तक की उछाल आई है जबकि इससे पीछे के तीन वर्षों में उनकी कीमतों में करीब 75 फीसदी तक की वृद्धि हो चुकी थी. अमेज़न, एप्पल और अल्फाबेट (गूगल की मालिक कंपनी) ट्रिलियन डॉलर के उपक्रम बन चुके हैं और फेसबुक भी इसी राह पर है. ये पांच पराक्रमी मिलकर एस-ऐंड-पी-500 इंडेक्स के पांचवें से ज्यादा हिस्से पर काबिज हैं.

इतनी भारी दौलत के साथ ताकत भी खुद-ब-खुद आ जाती है. फेसबुक के मार्क जुकरबर्ग को इस धरती का सबसे ताकतवर अनिर्वाचित व्यक्ति माना जाता है— ‘सुप्रा-स्टेट’ का अवतार. वे एक से अधिक बार अपने इस इरादे की घोषणा कर चुके हैं कि वे राष्ट्रीय चुनावों की शुद्धता की ‘रक्षा’ करेंगे जो कि अपने आप में एक विडंबना है क्योंकि खुद फेसबुक पर नफरत फैलाने वाले भाषणों और फर्जी समाचारों को हटाने का दबाव रहा है. वह उन अमेरिकी कानून निर्माताओं की जांच की जड़ में रहा है जो रहस्यमय राजनीतिक विज्ञापनों की जांच कर रहे हैं. वह ‘वाल स्ट्रीट जर्नल ’ की उन रिपोर्टों का विषय रहा है जिसमें उसे भारत में भाजपा के साथ साठगांठ करने वाला बताया गया है.


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अब तक शांत बैठी रहीं सरकारें तैयारी कर रही हैं. दो महीने पहले, अमेरिकी न्याय विभाग साझीदार फर्मों (एप्पल समेत, जो मिलीभगत में शायद शामिल नहीं रही होगी) के साथ गूगल के सौदों की जांच कर रहा है, जिनके तहत प्रतिद्वंदी ‘सर्च इंजनों’ द्वारा वितरण को ब्लॉक किया गया हो. भारत में कौन-सी व्यवस्था चल रही है?

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इस सप्ताह टेक्सास ने गूगल के खिलाफ एक मुकदमा दायर कर आरोप लगाया कि उसने इंटरनेट पर विज्ञापन के स्थान की नीलामी में घोटाला करने के लिए गूगल के साथ सौदा किया. जून में यूरोपीय संघ (ईयू) ने गूगल पर अपनी शॉपिंग सर्च सर्विस को फायदा पहुंचाने के लिए सर्च के परिणामों में हेरफेर करने पर रिकॉर्ड 2.7 अरब डॉलर का जुर्माना ठोक दिया. इसने थर्ड पार्टी मर्चेन्ट डेटा के गलत इस्तेमाल के मामले में अमेज़न की जांच की है. और, चूंकि ‘फांग ’ कंपनियों ने अपने मुनाफे को कम टैक्स वाले स्थानों के जरिये स्थानांतरित किया है इसलिए ईयू इन कंपनियों से ज्यादा टैक्स वसूलने पर विचार कर रहा है. इसके अलावा, भविष्य में गड़बड़ी करने पर सालाना वैश्विक आमदनी के एक निश्चित प्रतिशत के बराबर जुर्माना वसूला जा सकता है. इस बीच, फेसबुक पर इसलिए हमले हो रहे हैं क्योंकि वह प्रतिस्पर्धी शर्तों पर गेम तथा सर्विस उपलब्ध करा रही प्रतियोगी फर्मों को खदेड़ रहा है.

यह स्पष्ट नहीं है कि नियमन के उपाय कितने सफल होंगे और फेसबुक ने व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम का जो अधिग्रहण किया है उसे अमेरिका रद्द करेगा या नहीं. कोई भी कंपनी यह कबूल नहीं करती कि उसने कोई गलत काम किया है. गूगल ने ईयू द्वारा ठोके गए जुर्माने के खिलाफ अपील की है लेकिन आयरलैंड की टैक्स व्यवस्था में खामी का इस्तेमाल उसने बंद कर दिया है जबकि फेसबुक क्रॉस-बॉर्डर डेटा ट्रांसफर के खिलाफ एक निर्देश को रद्द करवाने की लड़ाई लड़ रहा है. इस बीच, बताया जाता है कि अमेज़न डेटा के सीमा पार प्रवाह के लिए प्रस्तावित ग्लोबल ई-कॉमर्स समझौते का इस्तेमाल कर बाज़ार पर अपनी पकड़ मजबूत करने की तैयारी कर रहा है. भारत और दूसरे देशों की सरकारों ने विरोध दर्ज किया है और डेटा ट्रांसफर के नियमन के लिए नियम बनाए हैं.

इन तमाम घटनाओं ने ‘फांग ’ कंपनियों के बारे में धारणा किस तरह बदल दी है इसके बारे में ‘एटलांटिक ’ पत्रिका की वेबसाइट पर एक लेख जारी किया गया है जिसका शीर्षक है— ‘फेसबुक इज़ अ डूम्सडे मशीन’ . लेख में कहा गया है, ‘(सोशल वेब के) दिवालियापन का केंद्र है….फेसबुक. कंपनी की जबरदस्त पहुंच इसका मूलभूत तत्व है लेकिन यह मानवता के लिए भारी खतरा भी है.’

फांग ’ कंपनियों का तो यह मानना है कि वे मशीनी बुद्धि का इस्तेमाल कर जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं का समाधान प्रस्तुत कर रही हैं लेकिन सिविल सोसाइटी के कार्यकर्ताओं को डर है कि संभावित वर्चस्व के नये क्षेत्रों में उनकी पैठ के कारण खतरा बढ़ रहा है. भारत में इस मसले पर अब तक सीमित बहस ही हुई है जबकि भारत में लगभग सभी ‘फांग ’ कंपनियों ने भारत के सबसे शक्तिशाली व्यवसायी के साथ कई तरह से संबंध जोड़ लिया है. यह सवाल काफी दिलचस्प है कि क्या ‘नेशनल डेटा बाउंड्री वाल’ बनाने के सरकारी कदम ने ‘फांग ’ कंपनियों को जियो के साथ अरबों मूल्य के सौदों के लिए प्रेरित किया?

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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1 टिप्पणी

  1. फॉन्ग कम्पनिओं पर सरकारों की नकेल का परिणाम लोक स्वतंत्रता के परिपेक्ष्य में धनात्मक रहेगा, पर निश्चित रूप से इन कंपनियों के कमजोर होने से चीन की कंपनियां बाज़ार पर कब्ज़ा कर लेंगी, जो हर किसी के लि नुकसानदेय साबित होगा।

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