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Friday, 19 April, 2024
होममत-विमतकेजरीवाल गुजरात और हिमाचल में जिस ‘दिल्ली मॉडल’ का वादा कर रहे हैं, वो पंजाब में नजर क्यों नहीं आ रहा?

केजरीवाल गुजरात और हिमाचल में जिस ‘दिल्ली मॉडल’ का वादा कर रहे हैं, वो पंजाब में नजर क्यों नहीं आ रहा?

अगर भाजपा के पास गुजरात मॉडल है तो आप के पास दिल्ली मॉडल. लेकिन चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी के वीडियो क्लिप लीक मामले से पता चलता है इसमें कुछ समस्या है.

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रविवार सुबह जब लोगों की आंखें खुलीं तब तक हर तरफ चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी में कथित आपत्तिजनक वीडियो लीक होने को लेकर छात्राओं के विरोध-प्रदर्शन के साथ-साथ वीडियो के कंटेंट, उन्हें किस पर फिल्माया गया है और आत्महत्या के प्रयास की खबरों को लेकर हर तरफ भ्रम और अफवाहों वाला माहौल बन चुका था. पुलिस ने आत्महत्या की खबरों का तत्काल खंडन किया. मोहाली के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक विवेक सोनी ने कहा कि अब तक की जांच बताती है कि केवल आरोपी का ही एक वीडियो सामने आया है.

इस पूरे प्रकरण पर भ्रम की स्थिति बढ़ाने की वजह बने आम आदमी पार्टी (आप) के नेताओं की तरफ से किए गए ट्वीट:—

सुबह 10.18 बजे आप संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट किया कि चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी की एक लड़की ने ‘कई छात्राओं के आपत्तिजनक वीडियो’ रिकॉर्ड किए और इसे वायरल कर दिया. उन्होंने अपराधियों को ‘कड़ी सजा’ देने का वादा किया.

सुबह 10.32 बजे, आप सांसद और पंजाब सरकार की सलाहकार समिति के अध्यक्ष राघव चड्ढा ने एक ट्वीट में वादा किया कि ‘पंजाब सरकार इस मामले में अपराधियों को कठघरे में लाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी.’

सुबह 11.59 बजे पंजाब के सीएम भगवंत मान ने ट्विटर के जरिए इस प्रकरण पर दुख जताया और कहा, ‘हमारी बेटियां हमारी शान हैं…इस घटना की उच्च स्तरीय जांच के आदेश दिए गए हैं…जो भी दोषी हैं उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी.’

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ये तीनों ट्वीट हमें क्या बताते हैं? सबसे पहले तो हमें इनकी टाइमलाइन देखनी चाहिए. पंजाब के सीएम की प्रतिक्रिया अपने दिल्ली के समकक्ष की प्रतिक्रिया के 101 मिनट बाद और दिल्ली में बैठे अपनी सरकार के सलाहकार के ट्वीट के 87 मिनट बाद आई. शायद इसलिए कि मान जर्मनी में थे. राज्य में स्टूडेंट के इस तरह के विरोध-प्रदर्शन के बीच उम्मीद तो यही की जा सकती थी कि मुख्यमंत्री अपना दौरा बीच में छोड़कर पंजाब लौट आएंगे. इसके बजाय, जैसा द हिंदू की रिपोर्ट बताती है, वह फ्रैंकफर्ट एयरपोर्ट तक आकर लौट गए. द हिंदू ने एक यात्री के हवाले से कहा कि भगवंत मान जैसा दिखने वाला एक व्यक्ति विमान में दाखिल हुआ लेकिन कुछ समय बाद वहां से चला गया. आप के एक प्रवक्ता ने कहा कि मुख्यमंत्री ‘थोड़ा अस्वस्थ’ महसूस कर रहे हैं और इसलिए बाद में रात की फ्लाइट लेंगे.

मुख्यमंत्री मान खाद्य और पेयपदार्थों पर व्यापार मेले ड्रिंकटेक 2022 और अन्य कार्यक्रमों में हिस्सा लेने के लिए एक सप्ताह के जर्मनी दौरे पर थे. एयरपोर्ट से उनकी वापसी के कारण चाहे जो भी रहे हों—विमान में सवार होने से पहले या बाद—चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी प्रकरण पर उनकी और आप के अन्य नेताओं की प्रतिक्रिया पर कुछ स्पष्टीकरण की दरकार जरूर है.

हो सकता है कि मान जर्मनी से ही इस संकट को निपटाने में व्यस्त रहे हों और इसलिए उन्होंने दोषियों के खिलाफ कार्रवाई का वादा करने का काम खुद से पहले अपनी पार्टी के बॉस और अपने भरोसेमंद सहयोगी पर छोड़ दिया हो. निश्चित तौर पर कोई भी इस पर कोई सवाल खड़े नहीं कर सकता. हालांकि, सबसे अजीब बात यह रही कि दिल्ली के सीएम ने ‘कई छात्राओं के आपत्तिजनक वीडियो’ का खुलासा किया, जबकि पंजाब पुलिस ने कहा कि सिर्फ एक छात्रा का अपना खुद का वीडियो था.

पंजाब के सीएम ने भी अपने ट्वीट में ‘बेटियों’ की बात की, हालांकि यह सामान्य अर्थों में भी हो सकता है. तो फिर क्या मान सरकार तथ्यों को दबा रही थी? या दिल्ली के सीएम को पंजाब पुलिस की तरफ से किए जाने वाले खुलासे से ज्यादा जानकारी थी? लेकिन उनकी प्रतिक्रिया में इस तरह का अंतर केवल अफवाहों को बल देने वाला और छात्राओं और अभिभावकों को और अधिक चिंता में डालने वाला ही साबित हो सकता था.

यही नहीं ये हमें आप के पंजाब मॉडल ऑफ गवर्नेंस की झलक भी दिखाता है. 2022 के विधानसभा चुनावों में केजरीवाल ने पंजाब में तथाकथित दिल्ली मॉडल लागू करने का वादा किया था. सीएम भगवंत मान ने 16 सितंबर को अपने कार्यकाल के छह महीने पूरे कर लिए हैं. ऐसे में उनका हनीमून पीरियड खत्म हो गया है. इसका, दूसरे अर्थों में इस्तेमाल का कोई इरादा नहीं है. बल्कि तथ्य तो यही है कि जुलाई में गुरप्रीत कौर के साथ उनकी शादी पिछले छह महीनों के दौरान पंजाब की थोड़ी-बहुत खुशनुमा खबरों में से एक है.


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हर पल एक समस्या

मान के नेतृत्व वाली सरकार पंजाब में जब से सत्ता में आई है, तब से ही किसी न किसी संकट से जूझ रही है. कार्यकाल संभाले एक हफ्ते भी नहीं हुआ था कि पंजाब से राज्यसभा के लिए पार्टी के ‘बाहरी लोगों’ के नामांकन को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया.

फिर ‘दिल्ली दरबार’ से पंजाब सरकार चलाने को लेकर विवाद उठा, जब केजरीवाल ने नौकरशाहों और मंत्रियों को दिल्ली बुलाया और फिर अपने विश्वासपात्र राघव चड्ढा को मान सरकार में एक सलाहकार समिति के अध्यक्ष के तौर पर औपचारिक भूमिका सौंपी—जो कि काफी हद तक केंद्र में यूपीए शासनकाल के दौरान सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की तर्ज पर है.

मान अपने राज्य में दखल देने वाले दिल्ली के नेताओं का ज्यादा कुछ नहीं कर सकते. ऐसा लगता है कि उन्होंने इस सच्चाई के साथ समझौता कर लिया है. ऐसे में मान मोहाली के एसएसपी के साथ सहानुभूति रखने के अलावा शायद कुछ कर भी नहीं सकते थे जब केजरीवाल ने लीक वीडियो पर सार्वजनिक रूप से उनके दावों का खंडन किया.

वैसे कॉल रिकॉर्डिंग और वीडियो क्लिप के आधार पर कथित भ्रष्टाचार के आरोपी स्वास्थ्य मंत्री विजय सिंगला की बर्खास्तगी का श्रेय तो मान और केजरीवाल दोनों ने काफी बढ़चढ़कर लिया था. लेकिन अब एक और ऑडियो क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है जिसमें एक अन्य मंत्री फौजा सिंह सरारी कथित तौर पर अपने करीबी सहयोगी को पैसे निकालने के लिए ठेकेदारों को ‘ट्रैप’ करने को कह रहे हैं.

एक सप्ताह से अधिक हो गया है, लेकिन केजरीवाल और मान ने चुप्पी साध रखी है. आप नेता बस इतना ही कह रहे हैं कि सरारी के ऑडियो क्लिप की ‘जांच’ की जा रही है. जहां एक मंत्री—सिंगला—की बलि से आप नेतृत्व के भ्रष्टाचार-विरोधी होने के दावे को बल मिला था, वहीं अगर इसी तरह के आरोपों पर किसी अन्य मंत्री को बर्खास्त करने की नौबत आई तो कहीं न कहीं उनका यह तमगा दागदार हो सकता है.


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क्या इसी के लिए पंजाब ने वोट किया था?

आप ने पंजाब में अपने चुनाव अभियान के जरिये उन मतदाताओं के बीच कुछ उम्मीदें जगाई थीं जिनका पारंपरिक पार्टियों से मोहभंग हो चुका था. लेकिन अब आप के लिए वोट करने के सात महीने बाद भी वे शासन के बहुप्रचारित दिल्ली मॉडल का इंतजार कर रहे हैं. किसानों ने उस पार्टी को वोट दिया जिसने दिल्ली सीमा पर साल भर के आंदोलन के दौरान उन्हें लगातार समर्थन दिया. मान सरकार ने उन्हें प्रति माह 300 यूनिट मुफ्त बिजली दी है. लेकिन इस तरह के मुफ्त रेवड़ियां लंबे समय तक खेती-किसानी का सहारा बनने के लिए पर्याप्त नहीं हैं. मूंग उगाने वालों से पूछिए जिनसे आप सरकार ने लंबे-चौड़े वादे किए थे. उनमें से ज्यादातर निराश हो चुके हैं.

अगर 18 साल से ऊपर की महिलाएं केजरीवाल के वादे के मुताबिक अपने बैंक खातों में 1,000 रुपये प्रति माह आने की उम्मीदें पाले बैठी हैं, तो उन्हें अभी और इंतजार करना होगा. इस माह अपने कर्मचारियों को समय पर वेतन तक नहीं दे पाई सरकार के लिए चुनाव-पूर्व के वादे परेशानी का सबब बन रहे हैं. महिलाओं से किया वादा पूरा करने का मतलब है सालाना 12,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त व्यय, जो चालू वित्त वर्ष में अनुमानित 2.85 लाख करोड़ रुपये के कर्ज के बोझ से दबे राज्य के लिए एक बहुत बड़ी रकम है. मान सरकार के पहले बजट के बाद पंजाब में प्रति व्यक्ति ऋण 2022-23 में 1.01 लाख रुपये तक पहुंचने का अनुमान है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 7,700 रुपये अधिक है.

एक विधायक-एक पेंशन, भ्रष्टाचार विरोधी हेल्पलाइन, मोहल्ला क्लीनिक, कॉलेजों-यूनिवर्सिटीज़ में सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करना और 20,000 नौकरियां कुछ सुखद उपलब्धियां हैं. लेकिन प्रतिकूल रिपोर्ट्स इस पर कहीं ज्यादा भारी पड़ रही हैं, मसलन ‘दिल्ली दरबार’ या ‘बाहरी लोगों’ का बोलबाला, सुरक्षा हटते ही रैपर सिद्धू मूसेवाला की हत्या, एक मंत्री का एक ख्यात डॉक्टर के साथ दुर्व्यवहार करना और दूसरे मंत्री की कथित तौर पर ठेकेदारों को ‘ट्रैप’ करने की कोशिश, शीर्ष कानूनी और पुलिस अधिकारियों के पद—एडवोकेट जनरल और डीजीपी—को लेकर मची होड़, गुजरात चुनाव के मद्देनजर मान सरकार का विज्ञापनों पर करोड़ों रुपये खर्च करना और ईसाई धर्म में धर्मांतरण पर बहस के बीच एक चर्च में तोड़फोड़ आदि…यह सूची बहुत लंबी होती जा रही है.


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भाजपा की पंजाब मॉडल पर नजर

आप नेता तर्क दे सकते हैं कि पंजाब की स्थिति को लेकर इतना निराशावादी होने की जरूरत नहीं है. कह सकते हैं कि केजरीवाल या मान छह महीने या दो साल में दशकों के कुशासन का असर दूर नहीं कर सकते. लेकिन आप की मुश्किल यह है कि खुद को साबित करने के लिए उसके पास ज्यादा समय नहीं है. इसका तथाकथित दिल्ली मॉडल पंजाब में निर्विरोध चल गया क्योंकि कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल सहित इसके मुख्य विरोधियों में दूरदृष्टि और कुशाग्रता का अभाव था. इससे पहले, यह पार्टी जिस शहर दिल्ली में जन्मी, उसमें भाजपा को हराने में सक्षम हो पाई क्योंकि भाजपा के पास केंद्र शासित इस राज्य में कोई लोकप्रिय चेहरा नहीं था. यहां तक कि कांग्रेस भी आप के अस्तित्व में आने से पहले लगातार तीन विधानसभा चुनावों में इसे मात देती रही थी. और, भाजपा की तरह, आप के लिए भी कांग्रेस को हराना आसान रहा.

गुजरात और हिमाचल प्रदेश के लिए ये बिल्कुल नया सियासी खेल है. यह पहली बार है जब केजरीवाल भाजपा सरकार को हराने की कोशिश कर रहे हैं. आप अपने शासन के दिल्ली मॉडल की मार्केटिंग में माहिर बनती, इससे काफी पहले भाजपा कई राज्यों में इस मोर्चे पर खुद को साबित कर चुकी है.

भाजपा ने सत्ता विरोधी लहर को मात देने का गुजरात मॉडल विकसित किया है. और ऐसे में भाजपा को उसकी ही जमीन पर मात देना कोई आसान काम नहीं होगा.

आप नेतृत्व को शायद पहले ही इसका अहसास हो चुका होगा. प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और यहां तक कि दिल्ली पुलिस की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा जैसी केंद्रीय जांच एजेंसियां अभी हरकत में आई हैं. ये तो बस शुरुआत है. थोड़ा इंतजार कीजिए और फिर देखिए कि कैसे दिल्ली भाजपा गुजरात और हिमाचल भाजपा को चुनाव प्रचार सामग्री उपलब्ध कराने वाली नोडल इकाई बन जाती है, जिसका एकमात्र उद्देश्य होगा चुनावी राज्यों में आप के तथाकथित दिल्ली मॉडल की हवा निकालना.

पूरी संभावना है कि भाजपा जल्द ही आप के पंजाब मॉडल की ओर रुख करेगी. मान को सत्ता में आए अभी ज्यादा समय नहीं बीता है, इसलिए भाजपा इस पर नजरें बनाए हुए है. जब कभी भी केजरीवाल की पार्टी एक प्रमुख चुनौती बनेगी—भले ही नवंबर-दिसंबर में गुजरात और हिमाचल के चुनाव में वह कांग्रेस को मुख्य विपक्षी दल की जगह से हटाने में ही सफल हो पाए—भाजपा और यहां तक कि अन्य दल भी पंजाब मॉडल की खामियां निकालना शुरू कर देंगे,—और यह संभवत: दिल्ली मॉडल को नुकसान पहुंचाने वाला साबित होगा.

(डीके सिंह दिप्रिंट के राजनीतिक संपादक हैं. वह @dksingh73 पर ट्वीट करते हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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