scorecardresearch
Wednesday, 18 December, 2024
होममत-विमतमुंबई-दिल्ली नहीं बल्कि कोयंबटूर-इंदौर-सूरत लिखेंगे भारत में शहरीकरण की कामयाबी की कहानी

मुंबई-दिल्ली नहीं बल्कि कोयंबटूर-इंदौर-सूरत लिखेंगे भारत में शहरीकरण की कामयाबी की कहानी

चाहे भारत हो या दूसरे देश, बड़े महानगरों को शहरों की रैंकिंग में कभी ऊंची जगह नहीं मिलती; मुंबई-दिल्ली को कभी ऊंची रैंकिंग नहीं मिलती, न ही यूरोप-अमेरिका-चीन के सबसे बड़े शहरों को रहने के बहुत काबिल माना जाता है

Text Size:

शहरों की रैंकिंग तय करना भी एक फलता-फूलता व्यवसाय हो गया है. दि इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट ने सबसे महंगे और सबसे सस्ते शहरों की ताजा रैंकिंग इस सप्ताह घोषित की. अहमदाबाद दुनिया के सबसे सस्ते शहरों में टॉप-10 की लिस्ट में दमिश्क और त्रिपोली जैसे तबाह शहरों के साथ मौजूद है. इससे पहले सरकार ने भारत के सबसे स्वच्छ शहरों की नई सूची जारी की थी जिसमें इंदौर एक बार फिर सबसे अव्वल आया है.

सरकार ने उन शहरों की रैंकिंग भी जारी की है जिनमें रहनसहन सबसे आसान है. इन शहरों में बंगलूरू का नाम शिखर पर है. इसके बाद पुणे है. श्रीनगर और धनबाद को सबसे नीचे की रैंकिंग मिली है. इसी तरह की एक लिस्ट सेंटर फॉर साइंस ऐंड एनवायर्मेंट ने जारी की है जिसमें बंगलूरू टॉप पर है. इसके बाद चेन्नै का नंबर है जिसे सरकारी रैंकिंग में चौथा स्थान दिया गया है. अगर अब तक नहीं हुआ हो तो स्मार्ट शहरों की रैंकिंग भी जल्दी ही आ रही होगी क्योंकि इसकी कड़ी कसौटी तय की गई है.

कुछ प्रवृत्तियों पर आसानी से गौर किया जा सकता है. बड़े मेट्रो को अच्छी रैंकिंग नहीं मिलती, न तो भारत में और न विदेश में. मुंबई और दिल्ली (या कोलकाता भी) शायद ही ऊंची रैंकिंग हासिल कर पाते हैं. विदेश में भी, रहने के लिहाज से सबसे अच्छे शहर मझोले आकार वाले ही होते हैं, जैसे विएना, ऑकलैंड और वैंकूवर. हालांकि मेलबर्न लंबे समय तक अच्छी रैंकिंग पाता रहा है. यूरोप, अमेरिका और चीन के सबसे बड़े शहर रहने के लिहाज से सबसे उपयुक्त नहीं माने जाते. इसकी कुछ वजह यह है कि उनमें जमीन-जायदाद सबसे महंगे हैं.

इसके अलावा, शहर में आवाजाही पर खर्च होने वाले समय और प्रदूषण की भी समस्या है. जापान ने इस चलन को कायम रखा है. उसका ओसाका शहर टोक्यो से बाजी मार रहा है.


यह भी पढ़ें: वीर दास का कहना बिल्कुल सही है, हम दो भारत में रहते हैं जिसके बीच की खाई कम नहीं हो रही


दूसरी बात यह है कि विंध्य पर्वत के दक्षिण के शहर और गुजरात के तीन बड़े शहर अच्छी प्रगति कर रहे हैं (यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है). रहन-सहन की लागत और स्वास्थ्य सेवा (बेहतर जीवन के मामले में ग्लोबल रैंकिंग की सात में से दो कसौटियों) के मामले में मंगलूरू, कोयंबटूर, चेन्नै और तिरुवनंतपुरम बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं.

यह उस व्यापक संदर्भ के दायरे में हैं कि भारत के सर्वोत्तम शहर कै ऊपर से तीसरे चतुर्थक में जगह पाते रहे हैं. यह अप्रभावशाली प्रदर्शन आय के निम्न स्तरो और गरम मौसम की वजह से है. इसलिए भारत के कई सर्वोत्तम शहर दक्षिण के पठार में हैं. यह बात उनके स्तर को ऊपर उठा देती हैं और यह उनके कम प्रतिकूल गरम मौसम की वजह से भी है.

इंदौर मालवा पठार (1800 फीट की ऊंचाई पर) के किनारे पर है जबकि कोयंबटूर (1350 फीट) नीलगिरि की पहाड़ियों तक पहुंचना आसान बनाता है. अगर भारत का सफल शहरीकरण करना है तो उसे 10-50 लाख की आबादी के इन टियर-2 वाले शहरों पर ध्यान देना होगा. इनमें से कुछ पर स्मार्ट सिटी वाले कार्यक्रम के तहत ध्यान दिया जा रहा है. यह अच्छी बात है मगर संरचनात्मक परिवर्तनों के बिना यह अधूरा रहेगा. संरचनात्मक परिवर्तनों में इन बातों को शामिल किया जा सकता है— प्रत्यक्ष चुनाव से मेयर की नियुक्ति, संपत्तिकर की तार्किक व्यवस्था, नागरिकों और साइकिलों के लिए अनुकूल डिजाइन, दफ्तरों के ऊंचे टावरों के निर्माण के लिए फ्लोर-एरिया अनुपात के लिए नियम, केंद्रीय व्यापार क्षेत्र का निर्माण और शहर के विस्तार से परहेज.

एक सबक

बड़े मेट्रो हालांकि बेहतर रहनसहन के मामले में कमजोर होते हैं फिर भी आज के डिक व्हिटिंगटनों को आकर्षित करते हैं. इस बात में भी एक सबक छिपा है. वास्तव में, सफल शहरों की आम विशेषता यह होती है कि वे बाहर के लोगों का स्वागत करते हैं. तभी तो मुंबई में इतने सारे गुजराती, पारसी, दक्षिण भारतीय बसे हैं और एक समय बग़दादी यहूदी भी थे. यही वजह है कि दिल्ली में अब पंजाबियों का बोलबाला घटा है और कोलकाता के बेहतर दिनों में वहां चीनियों, आर्मेनियनों, आदि के साथ-साथ दूसरे गैर-बंगाली भी ख़ासी तादाद में थे. यह मिश्रण ही मेट्रो शहरों को ज्यादा दिलचस्प और विश्वजनीन बनाता है जबकि छोटे शहर प्रांतीय बनकर रह
जाते हैं.

बंगलूरू एक दिलचस्प उदाहरण है. कई पैमानों (प्रदूषण, स्वास्थ्य सेवा, सुरक्षा) पर यह कोयंबटूर और मंगलूरू से पीछे है फिर भी इसे रहने के लिहाज से सबसे अच्छे माने गए शहरों में गिना जाता है. हालांकि यह कारों पर चलने वाले शहर की समस्याओं से ग्रस्त है. इसकी जलवायु, इसका विश्वजनीन वातावरण, सामर्थ्य के अंदर का रियल एस्टेट, क्रयशक्ति सूचकांक में ऊंची रेटिंग (संभवतः ‘टेक’ की ताकत वाले कुलीन वर्ग के चलते) इसे उन लोगों के लिए पसंदीदा शहर बना देते हैं जो मुंबई के महंगे रियल एस्टेट (आय की तुलना में दुनिया में सबसे महंगे) या कमतर रैंक वाले दिल्ली-गुड़गांव-नोएडा से दूर रहना चाहते हैं फिर भी टियर-2 वाले शहर सबसे तेजी से विकास कर रहे हैं. सूरत की आबादी पिछले चार दशक में औसतन 70 प्रतिशत बढ़ गई है. भारत में शहरीकरण की सफलता की कहानी ऐसे शहर ही लिखेंगे.

(बिजनेस स्टैंडर्ड से विशेष प्रबंध द्वारा)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: भारत का बैंकिंग सेक्टर तभी मजबूत हो सकता है जब वो ज्यादातर निजी हो, दिखावे की आदत छोड़नी होगी


 

share & View comments