‘राष्ट्र निर्माण में युवाओं की भूमिका’ तथा ‘सफलता के सूत्र’ समेत अनेक विषयों पर मैं लंबे समय से बिहार के युवाओं से बात करता रहा हूं. जिसके बारे में मैं समय समय पर सोशल मीडिया पर अपनी बात साझा भी करता चला आ रहा हूं.
इस साल बिहार दिवस पर जब अपनी अवधारणा को और स्पष्ट करते हुए मैंने आह्वान स्वरूप ‘Let’s Inspire Bihar’ शीर्षक का प्रयोग एक हैशटैग #LetsInspireBihar के साथ किया, तभी से अनेक युवा साथी इस संदर्भ में अपनी जिज्ञासाओं को व्यक्त करते आ रहे हैं. अब युवा इतनी तेजी से इसके साथ जुड़ रहे हैं तो मैं इस मिशन की जरूरी चीजें आपके साथ साझा करना चाहता हूं.
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क्या है Let’s Inspire Bihar
#LetsInspireBihar क्या है, यह जानने से पहले आप खुद से यह सवाल करें कि क्या आप मानते हैं कि संपूर्ण भारतवर्ष के उज्ज्वल भविष्य की प्रबल संभावनाएं कहीं न कहीं उसी भूमि में समाहित हो सकती हैं जिसने इतिहास के एक कालखंड में संपूर्ण अखंड भारत के साम्राज्य का नेतृत्व किया था और वह भी तब जब न आज की तरह संचार के माध्यम थे, न सोशल मीडिया जैसी तीव्रता की यहां खबर डाली झट पूरी दुनिया में खबर पहुंच गई. न विकसित मार्ग और न प्रौद्योगिकी.
आप खुद से सवाल कीजिए और दीमाग पर जोर डालिए तो आपको याद आएगा कि बिहार ही ज्ञान की वह भूमि है जहां वेदों ने भी वेदांत रूपी उत्कर्ष को प्राप्त किया, ज्ञान के प्राचीन बौद्धिक परंपरा की जब अभिवृद्धि हुई तब इसी भूमि ने बौद्ध और जैन धर्मों के दर्शन सहित अनेक तत्वों एवं सिद्धांतों के जन्म के साथ नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालयों की स्थापना देखी.
जहां ज्ञान की ऐसी अद्भुत प्रेरणा रही, वहां शौर्य का दिखना भी स्वाभाविक ही था. इतिहास गवाह है वह बिहार ही है जहां से अखंड भारत पर शासन चलाया जाता था और वह भी सशक्त एवं जोरदार तरीके से. उद्मिता(जहां से नए नए तरह के व्यवसाय) की इस प्राचीन भूमि ने ही ऐतिहासिक काल में ऐसी प्रेरणा का संचार किया जिसके कारण दक्षिण पूर्वी एशिया के नगरों तथा यहां तक कि राष्ट्रों का नामकरण भी इसी भूमि के प्रेरणादायक नगरों के नामों पर होने लगे, जिसका सबसे सशक्त उदाहरण वियतनाम है जो चंपा (वर्तमान भागलपुर, बिहार) के ही नाम से लगभग 1500 वर्षों तक पूरी दुनिाय में जाना गया.
सोचिए और खुद ही जवाब दीजिए कि बिहार के ऐसे इतिहास और सामर्थ्यवान यशस्वी पूर्वजों के वशंज हम क्या मौजूदा समय में भारत के उज्ज्वल भविष्य के निर्माण में अपना सकारात्मक योगदान दे पा रहे हैं?
लगभग तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में भारत में रहे यूनानी राजदूत मेगास्थनीज ने अपने ग्रंथ इंडिका में तत्कालीन पाटलिपुत्र को उस समय के विश्व के सर्वश्रेष्ठ नगर के रूप में इसका वर्णन किया था. आप कल्पना कीजिए कि यदि उस समय किसी पाटलिपुत्र निवासी से 2500 वर्ष बाद इसके स्वरूप के संबंध में पूछा जाता तो भला किस प्रकार का आशा से भरा उत्तर मिलता और क्यों वह स्वाभाविक भी लगता.
लेकिन अगर आज की बात करें और आज को देखें और जब भी भविष्य की संभावनाओं को ध्यान में रखकर बिहार के युवाओं से बातचीत होती है, तब मुझे ऐसा क्यों महसूस होता है कि कहीं न कहीं या यूं कहें चारों तरफ एक प्रकार की निराशा है.
भविष्य के संबंध में भी नकारात्मक विचार ही युवाओं के बीच पनप रहे हैं, जो भारत के उज्ज्वल भविष्य के लिए ठीक नहीं है.
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क्यों युवाओं में निराशा फैल रही है
जिस भूमि ने प्राचीनतम काल में ही कई कई कीर्तिमानों को प्राप्त किया था, यदि वह वैसे ही धीरे धीरे अपनी स्वाभाविक प्राकृतिक वृद्धि करता रहता या उसकी वृद्धि हुई होती तो निश्चित ही आज का स्वरूप बहुत अलग होता. और इसी कड़ी में अगर हम भविष्य की संभावनाओं के बारे में इन्हीं युवाओं से पूछते तो उनके जवाब आशाओं से लबरेज होते.
अब बड़ा सवाल बार बार ये उठता है कि बाद के समय में ऐसा क्या होता गया जिसके कारण जो आशावादिता उस काल में स्पष्ट और साफ साफ दिखाई देती थी, वह आज के युवाओं की कोशिशों पर ही नहीं बल्कि उनके प्रश्न करने पर भी नहीं नज़र आती?
आखिर ऐसा क्यों है कि जिस क्षेत्र में कभी पूरी दुनिया के विद्वान अध्ययन के लिए दुर्गम मार्गों से सुदूर यात्राएं कर पहुंचने के लिए लालायित रहते थे, वहीं के विद्यार्थी आज परिश्रम एवं पुरुषार्थ के मार्गों से कई अवसरों पर नदारद दिखते हैं. साथ ही कई क्षेत्रों में अध्ययन एवं जीवनयापन के लिए प्रयासरत रहते हैं?
अब जरूरत है ये जानने की इससे कैसे निपटा जाए.
मैं यहां कहना चाहता हूं कि चिंतन करने से ही समाधान मिलेगा. चूंकि भूमि वही है, उर्जा भी वही है. इसमें कोई संदेह भी नहीं है कि हम उन्हीं यशस्वी पूर्वजों के वंशज हैं जिनकी प्रेरणा आज भी मन को उद्वेलित करती है जोश से भर देती है और कहती है कि यदि संकल्प सुदृढ़ हो तो इच्छित परिवर्तन अपने माध्यम खुद ही तय कर लेते हैं.
यदि हम इतिहास में प्राप्त उत्कर्ष के कारणों पर चिंतन करेंगे तो पाएंगे कि हमारे पूर्वज दूर की सोचते थे. उर्जा के साथ जिज्ञासा तो हमारे पूर्वजों की ऐसी थी जो सामान्य भौतिक ज्ञान से संतुष्ट होने वाली नहीं थी. वह सत्य के वास्तविक स्वरूप को जानना चाहते थे जिसके कारण ज्ञान परंपरा के उत्कर्ष को समाहित किए उपनिषदों की दृष्टि संभव हो सकी.
यदि भूमि के ऐतिहासिक शौर्य के कारणों पर हम चिंतन करें तो वहां भी बृहत्ता के लक्षण तब स्पष्ट होते हैं जब हम महाजनपदों के उदय के क्रम में पाटलिपुत्र में महापद्मनंद के राज्यारोहण को याद करते हैं.
चूंकि जिस समय अन्य जनपदों में जहां पूर्व से स्थापित शासक वर्ग के अतिरिक्त किसी अन्य वर्ग से संबद्ध शासक की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी, मगध में केवल सामर्थ्य को ही कुशल शासकों हेतु उपयुक्त लक्षणों के रूप में स्वीकृति प्राप्त हुई थी. ऐसे चिंतन के कारण ही मगध का सबसे शक्तिशाली महाजनपद के रूप में उदय हुआ जिसने कालांतर में साम्राज्य का रूप ग्रहण कर लिया.
उत्कृष्ट चिंतन के कारण जहां राजतंत्र के रूप में मगध का उदय हुआ, वहीं वैशाली में गणतंत्र की स्थापना भी हुई. यदि कालांतर में ऐसे शौर्य का क्षय हुआ तो उसके कारण शस्त्र और शास्त्र में समन्वय का अभाव ही रहा. इतिहास गवाह है कि भले ही शास्त्रीय ज्ञान अपने चरम उत्कर्ष पर क्यों न हो, यदि शस्त्रों के सामर्थ्य में कमी आती है तो उत्कृष्ट (बेहतरीन) शास्त्र भी नष्ट हो जाते हैं.
यदि समय के साथ में हमारा अपेक्षाकृत विकास नहीं हुआ और यदि हम पुराने समय को पार करते हुए वर्तमान में वैसा तारतम्य अनुभव नहीं करते तो इसका कारण कहीं न कहीं समय के साथ लघुवादों (हमारी संकीर्ण सोंच) अथवा अतिवादों से ग्रसित होना ही रहा है, नहीं तो जिस भूमि ने इतिहास के उस काल में कभी महापद्मनंद को शासक के रूप में सहर्ष स्वीकार जन्म विशेष के लिए नहीं परंतु उनकी क्षमताओं पर विचारण के उपरांत किया था, उसके उज्ज्वलतम भविष्य में भला संदेह कहां था.
यदि वर्तमान में हम विकास में अन्य क्षेत्रों से कहीं पिछड़े हैं और अपने भविष्य को उज्ज्वल देखना चाहते हैं तो आवश्यकता केवल और केवल अपने उन यशस्वी पूर्वजों का स्मरण करते हुए लघुवादों (छोटी ओछी हरकतों से अलग) तथा जातिवाद, संप्रदायवाद इत्यादि से ऊपर उठकर राज्य एवं राष्ट्रहित में चिंतन करने की है. भविष्य के दृष्टिकोण को मन में स्थापित करते हुए अपने सामर्थ्य के अनुसार थोड़ा ही सही लेकिन निस्वार्थ भाव से सामाजिक योगदान करने की. जरूरत है एक वैचारिक क्रांति की जो युवाओं के बीच प्रसारित हो और जो भविष्य निर्माण के संगठित रूप में संकल्प ले और आगे बढ़ें.
परिवर्तन प्रकृति का नियम है. जरूरत आशा से लबरेज होकर आगे बढ़ने की है. जिस भूमि ने वैदिक काल से ही गार्गी वाचक्नवी एवं मैत्रेयी जैसी विदुषियों को नारी में भी समाहित विद्वता का प्रतिनिधित्व करते देखा हो, उसका भविष्य भला उज्ज्वल क्यों न हो?
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आगे का रास्ता
अब यदि इस पर चर्चा करें कि ‘Let’s Inspire Bihar’ के तहत करना क्या है तो वह भी स्पष्ट करता हूं –
1. अपनी समृद्ध विरासत तथा स्वयं की क्षमता को जानिए एवं समझिए.
2. मानवीय क्षमता के चरमोत्कर्ष की चर्चा करते हुए मैंने उपनिषदों के अत्यंत प्रेरणादायक एवं महत्वपूर्ण श्लोक को अनेक अवसरों पर उद्धृत किया है जिसमें यह वर्णन मिलता है कि पूर्ण को खंडित करने पर भी हर खंड पूर्ण ही रहता है और पुनः पूर्ण में ही विलीन हो जाता है, अर्थात् हर आत्मा जो परमात्मा का ही अंशरूप है उसमें उसके सभी गुण समाहित हैं.
‘ऊँ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते .
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवा वसिष्यते ..’
ऐसे में युवा मन में अपने सामर्थ्य के प्रति किसी प्रकार का संदेह न हो इसके लिए यह अनुभूति आवश्यक है कि ईश्वर (पूर्ण) की वह असीम शक्ति सभी के अंदर पूर्णतः समाहित है और सदैव सही मार्गदर्शन के लिए तत्पर भी है. ऐसे में कहीं और न देखकर यदि हम एकाग्रचित्त होकर गहन आत्मचिंतन करेंगे तो सभी के लिए खुद मार्गदर्शक तथा इच्छित परिवर्तन के प्रबल वाहक बन जाएंगे.
3. यह समझना होगा कि स्वयं के सामर्थ्य को जाने बिना जब कई बार दूसरों के अनुसरण के कारण हम अपने मूल्यों से दिग्भ्रमित हो जाते हैं, तब हमारा अपनी मूल क्षमताओं से विश्वास डिग जाता है, जो बिल्कुल अनुचित है.
4. यह समझना होगा कि यदि हम प्रतिकूल परिस्थितियों में निराश होते हैं तो हम युवावस्था में समाहित उस असीम उर्जा के स्रोत से संभवतः स्वतः विच्छिन्न होते जाते हैं जिसके मूल में आशावादिता एवं सकारात्मकता सन्निहित है.
5. यदि अपने पूर्वजों के कृतित्वों से आप प्रेरित हैं और स्वयं की असीमित क्षमताओं के विषय में स्पष्ट हैं तो केवल स्वयं तक सीमित मत रहिए, इस अद्भुत प्रेरणा का प्रसार कीजिए.
6. लघुवादों तथा जातिवाद, संप्रदायवाद, लिंगभेद आदि संकीर्णताओं से परे उठकर बिहार तथा भारत के उज्ज्वलतम भविष्य के निर्माण हेतु बृहत चिंतन करें तथा दूसरों को भी प्रेरित करें.
7. प्रेरित युवा संगठित होने का प्रयास करें जिससे नकारात्मकता के विरुद्ध युद्ध के लिए संकल्पित सकारात्मक विचारों की शक्ति प्रबल हो उठे. संगठन को बृहत स्वरूप प्रदान करने के लिए ‘Let’s Inspire Bihar’ के जिलावार चैप्टरों से सोशल मीडिया एवं भौतिक माध्यमों से जुड़ें जिनकी स्थापना आपके जिले के प्रेरित युवा समन्वयकर्ताओं द्वारा की जा रही है.
बिहार के सभी जिलों के युवाओं और अप्रवासी बिहारवासियों के लिए भी प्रारंभ में सोशल मीडिया के माध्यमों के जरिए ही चैप्टरों को प्रारंभ किया जा रहा है जिनसे जुड़ने के लिए आप अपने जिले या नगर से संबंधित फेसबुक पेज से जुड़ सकते हैं या letsinspirebihar@gmail.com पर अपना नाम, उम्र, जिला का नाम और फोन नंबर के साथ ई-मेल कर सकते हैं ताकि आपके क्षेत्र से संबंधित समन्वयकर्ता आपसे संपर्क कर सकें.
8. प्रेरित युवाओं के साथ अपने व्यस्त समय में से कुछ समय सकारात्मक सामाजिक गतिविधियों के निमित्त चिंतन एवं योगदान हेतु भी समर्पित करें.
9. जो लघुवादों से ग्रसित हैं तथा दिग्भ्रमित हो रहे हैं उनके मार्गदर्शन हेतु अपने स्तर से भी प्रयास करें. उन्हें समझाने का प्रयास करें कि यदि व्यक्ति अपने वास्तविक सामर्थ्य को जान लें तथा सफलता प्राप्त करने के निमित्त अत्यंत परिश्रम करे तो कोई भी लक्ष्य असाध्य नहीं रह जाता.
मिलकर, हम निश्चित ही राष्ट्रहित में अपने जीवन में कुछ उत्कृष्ट योगदान समर्पित कर सकते हैं.
10. सकारात्मक विचारों एवं प्रेरणादायक उदाहरणों को सोशल मीडिया पर #LetsInspireBihar हैशटैग के साथ साझा करें.
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सकारात्मक चिंतन ही एकमात्र विकल्प
भविष्य परिवर्तन के निमित्त युवाओं द्वारा संकल्पित सकारात्मक चिंतन एवं योगदान ही बिहार के उज्ज्वलतम भविष्य की दिशा स्थापित करने का एकमात्र विकल्प है. इतिहास की प्रेरणा में ऐसी अद्भुत शक्ति समाहित है जो बिहार समेत संपूर्ण भारतवर्ष के भविष्य को परिवर्तित करने की क्षमता रखती है.
मेरा मन भविष्यात्मक दृष्टिकोण के निमित्त विशेषकर युवाओं से स्वरचित पंक्तियों के माध्यम से आह्वान करना चाहता है-
‘पूर्व प्रेरणा करे पुकार, आओ मिलकर गढ़ें नव बिहार
नव चिंतन नव हो व्यवहार, लघुवादों से मुक्त हो संसार
ज्ञान परंपरा का विस्तार, दीर्घ प्रभाव का सतत प्रसार
बृहतर चिंतन सह मूल्यों पर, आधारित युवा करें विचार ‘
(विकास वैभव एक आईपीएस अधिकारी हैं और वर्तमान में बिहार में स्पेशल गृह सचिव के बतौर काम कर रहे हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
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