scorecardresearch
Wednesday, 8 May, 2024
होममत-विमतएक नया वैश्वीकरण उभर रहा है, जो भारत के लिए अच्छा भी साबित हो सकता है और बुरा भी

एक नया वैश्वीकरण उभर रहा है, जो भारत के लिए अच्छा भी साबित हो सकता है और बुरा भी

वैश्वीकरण के पारंपरिक तत्व अपना आकर्षण खो रहे हैं, देशों की सीमाओं में सीमित न रहने वाले जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद जैसे मसले देशों को करीब आने के लिए मजबूर कर रहे हैं

Text Size:

वैश्वीकरण के कुछ पारंपरिक तत्व— सामान, धन, लोगों आदि की मुक्त आवाजाही— ओझल हो रहे हैं. और नये एजेंडे उभर रहे हैं, तो वैश्वीकरण का रूप ही बदल रहा है. ये एजेंडे अब जलवायु परिवर्तन को रोकने, वैश्विक कंपनियों पर टैक्स लगाने, आतंकवाद से मुक़ाबला करने, वैक्सीन में साझीदारी आदि पर कार्रवाई को बढ़ावा दे रहे हैं. ज्यादा करीब आई दुनिया में देशों की सीमाओं को पार करने वाली समस्याएं उन्हें करीब आने पर मजबूर कर रही हैं, जबकि पारंपरिक वैश्वीकरण के तत्व अपना आकर्षण खो रहे हैं. पुराना वैश्वीकरण भारत के लिए मूलतः अच्छा था. नया वैश्वीकरण अच्छी और बुरी खबर का मेल होगा.

उदाहरण के लिए, वैश्विक बाज़ार वैश्विक जीडीपी की तुलना में सुस्त गति से वृद्धि कर रहा है. यह लंबे समय से जारी चलन को उलट दे रहा है. पिछले सात में से केवल एक वर्ष में वाणिज्य व्यापार ने विश्व अर्थव्यवस्था की तुलना में तेज वृद्धि दर्ज की. 2019 में, एक दशक में पहली बार वैश्विक व्यापार समग्र अर्थों में सिकुड़ गया, और महामारी के कारण 2020 में भी ऐसा हुआ. भारत समेत कई देशों ने संरक्षण की दीवार खड़ी कर ली.

इसके बाद लोगों की मुक्त आवाजाही के बारे में विचार करें. दुनिया में कुल जितने लोग आवाजाही करते हैं उनमें यूरोप और उत्तरी अमेरिका वालों का हिस्सा आधे से ज्यादा का होता है. उनकी संख्या भी घटी है, बेशक कम अंतर से. ब्रेक्जिट और डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों के कारण आवाजाही की जो व्यवस्था 70 साल से निरंतर ज्यादा उदार होती जा रही थी उसकी दिशा उलट गई. कुछ पश्चिम एशियाई देशों ने भी अपनी वीज़ा नीति को सख्त बनाना शुरू कर दिया.

यह नयी प्रवृत्ति मजबूत हुई तो भारत को घाटा होगा. वह दुनिया में प्रवासियों का नंबर वन स्रोत है और बाहर से पैसे पाने वाला भी नंबर वन देश है. मुक्त व्यापार ने पिछले तीन दशकों से भारत को भारी लाभ पहुंचाया है. मौका अभी भी है क्योंकि कई देश चीन पर, जो मैनुफैक्चरिंग और व्यापार के मामले में सबसे बड़ी ताकत है, अपनी निर्भरता कम करना चाहते हैं. भारत इस मौके का लाभ उठा सकता है लेकिन दूसरे देशों ने पहल करके बढ़त ले ली है.

कहने की जरूरत नहीं कि वैश्वीकरण के दूसरे तत्व कायम रहेंगे, जैसे पूंजी का सीमापार आवागमन. यह भारत के लिए उपयोगी है, क्योंकि वह पूंजी का सबसे बड़ा आयातक है. इसके अलावा नयी टेक्नोलॉजी का असर भी है, जिसने थॉमस फ़्रीडमैन से ग्रंथ ‘फ्लैट वर्ल्ड’ लिखवा लिया. आज बंगलूरू में बैठा कोई एकाउंटेंट बोस्टन में बैठे किसी शख्स के टैक्स का हिसाब लगा सकता है, और कोलकाता में बैठा कोई रेडियोलॉजिस्ट लंदन के किसी मरीज की मेडिकल स्कैन की रिपोर्ट का विश्लेषण कर सकता है. भारत की आइटी क्रांति को कोई खतरा नहीं है.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें


यह भी पढे़ंः भारत को वैकल्पिक ऊर्जा चाहिये लेकिन वैश्विक अगुवाई के लिए अलग राह अपनाने की जरूरत: अशीष कोठारी


वैश्विक व्यवसाय के लिए वैश्विक नियम

वैश्वीकरण फेज-2 का क्या होगा? यह अब सरकारों के एजेंडे के रूप में मौजूद है; उनका असर व्यवसाय और देशों पर क्या पड़ेगा यह समय के साथ सामने आ जाएगा. सरकारों के द्वारा एजेंडा तय करना भारत के लिए कोई बड़ी बात नहीं है क्योंकि वह नियम बनाने वाला नहीं बल्कि नियम कबूल करने वाला रहा है. इसलिए इसका लाभ या घाटा सांयोगिक ही होता है. इसका एक उदाहरण नया अंतरराष्ट्रीय कॉर्पोरेट टैक्स व्यवस्था है, जिसे तैयार किया जा रहा है. इसके तहत, जिस देश में राजस्व पैदा होगा वहाँ न्यूनतम दर से टैक्स देना पड़ेगा. भारत को इससे खुश होना चाहिए, लेकिन जब नयी व्यवस्था लागू हो जाएगी तब इसका मुख्य फायदा अमीर देशों को ही होगा.

जलवायु परिवर्तन के एजेंडा की स्थिति ज्यादा विचित्र है. हालांकि भारत 2015 के पेरिस समझौते को उत्साह से लागू करता है लेकिन उसे नयी टेक्नोलॉजी को लागू करने और कोयला आधारित ऊर्जा को त्यागने के लिए कोई सहायता (वित्तीय या तकनीकी) नहीं मिलेगी. इसके साथ ही, जो देश कार्बन गैस के भारी उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं उन्हें फ्री पास मिलेगा. यहां तक कि वैक्सीन की अंतरराष्ट्रीय सप्लाइ के मामले में भी, अमीर देशों के जी-7 गुट की हाल की बैठक में जो आंकड़े तय किए गए वे उल्लेखनीय नहीं हैं. भारत ने कोविड के टीके पर से पेटेंट खत्म करने की जो मांग की उस पर किसी ने अब तक ध्यान नहीं दिया है.

यहां पर हम नये वैश्वीकरण के सबसे अहम तत्व, सोशल मीडिया मंचों की वृद्धि, पर पहुंचते हैं. इस क्षेत्र पर वर्चस्व रखने वाली विशाल कंपनियों को खुली छूट हासिल रही लेकिन वे भारत समेत सभी संप्रभु राज्यसत्ताओं के खिलाफ उठ खड़ी होती रही हैं. यह ऐसा उपयुक्त मामला है जिसमें वैश्विक व्यवसाय के लिए वैश्विक नियम बनाने की जरूरत है. ताकतवर तानाशाही सत्ताओं के उभार के मद्देनजर यह एक मुश्किल चुनौती होगी. इसलिए भी इस बारे में फैसला करना और ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है.

(बिजनेस स्टैंडर्ड से स्पेशल अरेंजमेंट के जरिए)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


यह भी पढ़ेंः UN की रिपोर्ट के मुताबिक- COVID संकट के बावजूद 2020 में दुनियाभर में लाखों लोग विस्थापित हुए


 

share & View comments