10 जुलाई को, मुझे हाउस ऑफ लॉर्ड्स में एक आकर्षक कार्यक्रम में भाग लेने का सौभाग्य मिला. लेकिन जिस चीज़ ने वास्तव में मेरा ध्यान खींचा वह उसके बाद आई घोषणा थी- पहली बार, भारत की स्वतंत्रता का जश्न मनाने वाला एक कार्यक्रम यूके संसद के ऊपरी सदन द्वारा आयोजित किया जाएगा.
तो भारत-ब्रिटेन संबंधों में इस बदलाव का कारण क्या है? द 1928 इंस्टीट्यूट और भारत-व्यापार एवं निवेश तथा एपीपीजी विदेश मामलों पर सर्वदलीय संसदीय समूह द्वारा आयोजित ‘भारत और हिंद-प्रशांत’ गोलमेज सम्मेलन में विशेषज्ञों की चर्चा के दौरान, यह स्पष्ट हो गया कि भारतीय अर्थव्यवस्था अब एक महत्वपूर्ण कारक बन गया है. वक्ताओं ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत 2060 तक दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है. इसके अतिरिक्त, यूके द्वारा इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में एक प्रमुख व्यापार ब्लॉक, ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (सीपीटीपीपी) के लिए व्यापक और प्रगतिशील समझौते में शामिल होने की हालिया घोषणा एक संकेत देती है. यह भारत के प्रति यूके के दृष्टिकोण में बदलाव को दिखाता है.
लेकिन क्या अर्थव्यवस्था ही ऐसे बदलाव लाने वाला एकमात्र कारक है? वास्तव में नहीं, क्योंकि मैं देख सकता थी कि ऐसे समारोहों के आयोजन में ब्रिटिश-भारतीय समुदाय की सक्रिय रुचि के बिना यह प्रगति संभव नहीं होती. अतीत में, भारतीय प्रवासी अपनी भारतीय पहचान से दूरी रख कर, अपनी ब्रिटिश पहचान पर जोर देते रहे हैं, जो समय के साथ युवाओं में बढ़ती दिख रही थी, लेकिन अब वह अपनी भारतीय जड़ों को स्वीकार रहे हैं और उसपर जोर दे रहे हैं. जबकि अन्य ‘सांस्कृतिक रूप से ब्रिटिश’ लेकिन ‘राजनीतिक रूप से भारतीय’ होने के बारे में दिलचस्प तर्क पेश करते हैं. इससे यह सवाल उठता है कि क्या हिंदू समुदाय, जिसमें पहले एक राजनीतिक समूह के रूप में एकजुटता का अभाव था, एकता की ओर बढ़ रहा है. यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या हिंदू राजनीतिक पहचान भारत से परे फैली हुई है.
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हमारे संबंधों में कमियों को दूर करना
बैठक भारत-ब्रिटेन सहयोग के इर्द-गिर्द घूमती रही, लेकिन दुर्भाग्य से, और बहुत ही उल्लेखनीय रूप से, कोई भी संवेदनशील मुद्दों को संबोधित नहीं करना चाहता था – जैसे कि खालिस्तानी आतंकवादियों का खतरा या लीसेस्टर दंगों जैसी सांप्रदायिक घटनाएं – जो भारत की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के लिए हर संभव गलती का फायदा उठाते हैं. यह चुप्पी भारत-ब्रिटेन संबंधों में कमियों को उजागर करती है और आगे के सहयोग पर सवाल उठाती है. गोलमेज चर्चा के बाद, लेबर पार्टी के संसद सदस्य कीर स्टार्मर ने मेहमानों, विशेषकर भारतीय प्रवासियों को संबोधित किया. उन्होंने आतंकवाद का मुकाबला करने और अन्य महत्वपूर्ण मोर्चों पर रणनीतिक गठबंधन बनाने में सहयोग की इच्छा व्यक्त की.
व्यापक रूप से ब्रिटेन के ‘वेटिंग प्राइम मिनिस्टर’ माने जाने वाले स्टार्मर ने आगे बढ़ने और अतीत से सीखने के महत्व पर जोर दिया, जिससे भारतीय प्रवासियों का समर्थन हासिल करने के उनके इरादे का संकेत मिलता है. हालांकि, एक महत्वपूर्ण प्रश्न बना हुआ है: जबकि भारत यूके को चीनी व्यापार निर्भरता और एक विश्वसनीय लोकतांत्रिक साझेदारी का विकल्प प्रदान करता है, ऐसा क्यों है कि भारतीय संप्रभुता का विरोध करने वाले तत्वों को देश की धरती पर जगह मिलती है? हाल ही में, खालिस्तानी तत्वों ने लंदन में भारतीय उच्चायोग से तिरंगा उतार दिया और ब्रिटिश पुलिस सतर्क होने के बावजूद कोई सुरक्षा प्रदान करने में विफल रही. इससे वियना कन्वेंशन (जो विदेशों में राजनयिक मिशनों को छूट प्रदान करता है) और भारत-यूके संबंधों के लिए निर्धारित महत्वाकांक्षी रणनीतिक गठबंधनों के प्रति यूके सरकार की प्रतिबद्धता के बारे में अनिश्चितताएं पैदा होती हैं. यह भारत को एक गलत राजनीतिक संकेत भेजता है – तथा ब्रिटिश भूमि पर अलगावादी राजनीतिक गतिविधियों, जिसमें पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी भी अपनी भूमिका निभाता है, को जगह मिलती है.
कुछ कठिन सच्चाइयों को संबोधित किए बिना वास्तविक समझ और सहयोग प्राप्त नहीं किया जा सकता है. सार्थक गठबंधन को बढ़ावा देने के लिए वास्तविकताओं को स्वीकार करना, खुली चर्चा करना और सभी पक्षों की संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और आंतरिक मामलों का सम्मान करना आवश्यक है.
अंत में, एक उच्च-स्तरीय राजनयिक बैठक में भाग लेने वाले एक सामान्य भारतीय नागरिक के रूप में, मैं आश्चर्यचकित रह गई कि क्या ये संपन्न, विशेषाधिकार प्राप्त व्यक्ति वास्तव में आम लोगों के दृष्टिकोण को समझ सकते हैं या उनके साथ सहानुभूति रख सकते हैं. उस पल, मुझे इस तथ्य की गहरी सराहना महसूस हुई कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनता से जुड़ी पृष्ठभूमि से आते हैं. इसने मुझे हमारे मतदान अधिकारों की ताकत का एहसास कराया, जिसे हम अक्सर कम महत्व देते हैं. वोट देने की क्षमता के बिना, क्या ये प्रणालियां वास्तव में आम व्यक्तियों की चिंताओं को ध्यान में रखेंगी?
(आमना बेगम अंसारी एक स्तंभकार और टीवी समाचार पैनलिस्ट हैं. वह ‘इंडिया दिस वीक बाय अमाना एंड खालिद’ नाम से एक साप्ताहिक YouTube शो चलाती हैं. वह @Amana_Ansari पर ट्वीट करती है. व्यक्त विचार निजी हैं.)
(संपादन: ऋषभ राज)
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