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Thursday, 31 October, 2024
होममत-विमतकोविड के 'न्यू नॉर्मल' में क्या भारतीय संसद को भी वर्चुअल चलाने का समय आ गया है

कोविड के ‘न्यू नॉर्मल’ में क्या भारतीय संसद को भी वर्चुअल चलाने का समय आ गया है

जब वर्तमान वैश्विक महामारी ने लगभग सभी क्षेत्रों और संस्थाओं को अपनी रीति-नीति को बदलने पर विवश कर दिया है तो संसद भी इससे अछूती क्यों रहे ? भारतीय संसद को वे सभी जरूरी बदलाव करने के बारे में सोचना चाहिए जो किसी भी राष्ट्रीय संकट, आपदा या महामारी की स्थिति में उसे अपने जरूरी दायित्वों का निर्वाह करने के लिए सक्षम बना सके.

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पहले से ही अत्यंत छोटे संसद के मॉनसून सत्र को अनेक सांसदों और मंत्रियों के कोरोना पाज़िटिव पाए जाने पर निर्धारित समय से आठ दिन पूर्व ही समाप्त कर दिया गया. यह सत्र मात्र दस दिन चल पाया. इसके पूर्व मार्च में होने वाला बजट सत्र भी कोरोना संक्रमण के खतरे के कारण ग्यारह दिन पहले ही समाप्त कर दिया गया था. विचारणीय प्रश्न यह है कि जब महामारी के इस दौर में भारत में सभी संस्थाएं पूरी तरह से ऑनलाइन या हाइब्रिड मॉडल को अपनाने की ओर तेजी से बढ़ रही हैं और संचार तकनीकी के माध्यमों का प्रयोग करके लोग अपने घरों से भी कार्य कर रहे हैं ऐसे में संसद और राज्यों की व्यवस्थापिकाओं के लिए यही व्यवस्था क्यों नहीं अपनाई जा सकती है?

इनफार्मेशन तकनीक के युग में ई-कॉमर्स, ई-बिज़नेस, ई-गवर्नेंस, ई-बैंकिंग आदि शब्द भारतीय जनता के लिए अनजाने नही रह गए हैं. डिजिटल इंडिया का नारा जन जन के जीवन में अपनी जगह पहले ही बना चुका है. ऐसे में जब कोरोना महामारी का दौर आया तो उन संस्थाओं नें भी ऑनलाइन माध्यम से अपनी सेवाएं देना प्रारंभ कर दिया जो पूर्व में पारंपरिक साधनों से ही काम कर रही थीं.

जैसे ही कोरोना महामारी ने अपने पैर पसारने शुरू किये वैसे ही विश्व की अनेक छोटी, बड़ी संसदों ने ऑनलाइन या वर्चुअल व्यवस्था को अपना कर काम शुरू कर दिया. विश्व की सबसे बड़ी संसद संयुक्त राष्ट्र संघ की बैठकें ऑनलाइन सम्पन्न हुईं. कोविड महामारी प्रबंधन के संबंध में यूरोपियन पार्लियामेंट का 26 मार्च को जो सत्र हुआ उसमें इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से वोटिंग हुई. इस अवसर पर पार्लियामेंट के अध्यक्ष नें कहा कि, ‘यूरोपियन पार्लियामेंट को कार्य करना चाहिए क्योंकि एक वायरस लोकतंत्र का अंत नहीं कर सकता. विधि निर्माताओं के रूप में हमारे पास साधन हैं, संभावनाएं हैं और सहायता करना हमारा कर्तव्य है’.


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ऑस्ट्रेलिया से लेकर नार्वे तक की संसद हुई ऑनलाइन

अगस्त माह में जब ऑस्ट्रेलिया की फेडरल पार्लियामेंट की बैठक शुरू हुई तो वहां पर भी मिश्रित व्यवस्था अपनाई गई. जहां सांसद व्यक्तिगत रूप से संसद आते रहे, वहां अनेक सांसद जो स्वास्थ्य कारणों से अथवा कोविड यात्रा प्रतिबंधों के कारण संसद की बैठकों में भाग नहीं ले पाए उनको वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से बैठकों में सम्मिलित होने की अनुमति दी गई. यद्यपि यह अनुमति कुछ बंधनों के साथ दी गई जैसे उनको सदन में मतदान या वोटिंग का अधिकार नहीँ दिया गया और साथ ही उनकी उपस्थिति को कोरम के लिए नहीं गिना गया. परंतु उन्हें प्रश्न काल में प्रश्न पूछने और चर्चाओं में भाग लेने की अनुमति दी गई.

नार्वे और फ़िनलैंड की संसदों ने दूरस्थ बैठकों की अनुमति देने के लिए अपने कानूनों में संशोधन किये. ब्रिटेन, न्यूज़ीलैंड और ऑस्ट्रेलिया की संसदों में संसदीय-समितियां भी इस अवधि में अपनी बैठकें वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से करती रहीं. स्पेन और ब्राजील की संसद नें कोविड-19 की शुरुआत में ही मिश्रित और वर्चुअल बैठकों को अपना लिया और इसके लिए उन्होनें अपनी प्रक्रिया के नियमों को लचीला बनाया. यहां पर यह भी उल्लेख करना समीचीन होगा कि स्पेन की संसद के निम्न सदन, कांग्रेस ऑफ डेपुटीज़ नें वर्ष 2011 और उच्च सदन सीनेट ने वर्ष 2013 से ही उन सांसदों को दूरस्थ मतदान की सुविधा प्रदान की है जो अस्वस्थ हैं, गर्भवती हैं अथवा मातृत्व/पितृत्व अवकाश पर हैं.

ऑनलाइन की चुनौतियां

मिश्रित अथवा हाइब्रिड व्यवस्था में संसद भवन में सामान्य रूप से बैठकें चल रही होती हैं, वहीं वे सदस्य जो अनेक प्रतिबंधों के कारण बैठकों में सम्मिलित नहीं हो सकते वे वर्चुअल माध्यमों से सहभागिता कर सकते हैं. यद्यपि वर्चुअल संसद की व्यवस्था में कुछ कमियां भी हो सकती हैं जैसे कि संसद की बैठकों में चर्चाओं के दौरान एक स्वाभाविकता होती है. सदस्यों की हाज़िर जवाबी और विनोद के बहुत अवसर आते हैं जो गंभीर चर्चाओं में भी माहौल को हल्का फुल्का कर देते हैं जबकि ऑनलाइन बैठकों में वह व्यक्तिगत भाव नहीं आ पाता है. यह भी तर्क दिया जा सकता है कि संसद की वास्तविक बैठकों में सरकार की आलोचना और जांच अधिक प्रभावशाली ढंग से की जा सकती है जो वर्चुअल बैठकों में संभव नहीं है. संसद की कार्यवाहियों, विशेष तौर पर भारत में जीरो-आवर के दौरान विपक्ष के पास अपने असंतोष को व्यक्त करने के बहुत मौके होते हैं जो वर्चुअल वादविवाद में संभव नहीं हैं.

उपरोक्त के अतिरिक्त सबसे बड़ी चुनौती तो यह है कि संसद में मिश्रित प्रकृति के कार्य किये जाते हैं. वहां पर बैठकें होती हैं, वाद-विवाद होते है, कानून निर्माण समेत अनेक विषयों पर मत विभाजन होते हैं, प्रश्न पूछे जाते हैं, संसदीय समितियों की बैठकें भी होती रहती हैं इत्यादि. इन विभिन्न संसदीय उपकरणो के सुचारु रूप से संचालन हेतु अलग-अलग प्रकार के ऑनलाइन टूल्स की आवश्यकता होगी.

अनेक सीमाओं के होते हुए भी वर्चुअल संसद के कुछ सकारात्मक पहलू हैं, जैसे कि संसदीय समितियां ऑनलाइन बैठकें कर सकती हैं और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के द्वारा दूर स्थित व्यक्तियों से भी साक्षात्कार ले सकती हैं. अस्वस्थता, मातृत्व, यात्रा प्रतिबंध या अन्य किसी अपरिहार्य कारण की स्थिति में भी सदस्य संसद की बैठकों में भाग ले सकते हैं और अपना बहुमूल्य योगदान दे सकते हैं. सांसद अपने निर्वाचन क्षेत्रों की समस्याओं को दूर करने में अधिक समय बिता सकते हैं क्योंकि कई मामलों में केवल मतदान के लिए ही उनको संसद में आना पड़ता है. महिला सदस्य भी अधिक मात्रा में अपना योगदान दे सकती हैं यदि पारिवारिक या अन्य यात्रा प्रतिबंधों के कारण वे बैठकों में उपस्थित नहीं हो सकतीं. ब्रिटेन की पार्लियामेंट में हाउस ऑफ लॉर्ड्स लाइब्रेरी द्वारा किये गए एक अध्ययन में यह पाया गया कि कोरोना संक्रमण की अवधि में संसद की जो वर्चुअल बैठकें हुईं उनमें महिला सांसदों नें कार्यवाहियों में अधिक भाग लिया.

यह निर्विवाद रूप से सत्य है कि कोई भी तकनीक पूरी तरह से मानव का स्थान नहीं ले सकती है लेकिन तकनीक के माध्यम से मनुष्य की कार्यकुशलता को बढ़ाया जा सकता है. जब वर्तमान वैश्विक महामारी ने लगभग सभी क्षेत्रों और संस्थाओं को अपनी रीति-नीति को बदलने पर विवश कर दिया है तो संसद भी इससे अछूती क्यों रहे ? भारतीय संसद को वे सभी जरूरी बदलाव करने के बारे में सोचना चाहिए जो किसी भी राष्ट्रीय संकट, आपदा या महामारी की स्थिति में उसे अपने जरूरी दायित्वों का निर्वाह करने के लिए सक्षम बना सके. आधुनिक तकनीक के माध्यम से ऐसा सरलता से किया जा सकता है. इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी के साधनों का प्रयोग करते हुए असाधारण परिस्थितियों में भी संसद की कार्यवाही को ऑनलाइन माध्यम से चलाया जा सकता है और संसद वर्चुअल-संसद का रूप ले सकती है.


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वाद- विवाद, प्रश्नों, मतदान, संसदीय प्रपत्रों के रखरखाव आदि के लिए उन्नत टेक्नोलॉजी का प्रयोग करते हुए अधिक सुरक्षित सॉफ्टवेयर विकसित किये जा सकते हैं. विश्व की अनेक संसदें ऐसा करना शुरू भी कर चुकी हैं. ब्रिटेन की संसद में हाउस ऑफ कामन्स ने वाद-विवाद पर मतदान की स्थिति में ‘ कामन्स वोट्स एप ‘ को अपनाया है. संसदीय प्रपत्रों को रखने के लिए ‘ हाउस पेपर्स एप ’ को अपनाया गया है. हाउस ऑफ कॉमन्स ने बैठकों के लिए ज़ूम का प्रयोग किया वहीं हाउस ऑफ लॉर्ड्स ने माइक्रोसॉफ्ट-टीम को अपनाया. अनेक सांसदों ने वोटिंग के लिए सुरक्षित एप और ई-मेल इत्यादि को अपनाया है.

यह एक संयोग ही है कि भारतीय संसद के वर्तमान सत्र में एक संसदीय पैनल ने वर्चुअल न्यायालयों के बारे में अपनी अंतरिम रिपोर्ट राज्यसभा सभापति को सौंपी जिसमें अनेक तर्कों के माध्यम से यह स्पष्ट किया गया कि बदलते हुए समय और परिस्थितियों में न्यायालयों द्वारा ऑनलाइन सुनवाई की व्यवस्था अत्यंत उपयुक्त है. यह व्यवस्था सस्ती और सर्वसुलभ है. संसदीय पैनल नें यह भी स्वीकार किया है कि वर्तमान महामारी के समय में टेक्नोलॉजी एक गेम-चेंजर के रूप में उभर कर सामने आई है. महत्वपूर्ण बात यह है कि जब न्यायपालिका के वर्चुअल होने के बारे में संसद में विचार हो सकता है तो वर्चुअल-संसद के बारे में भी विचार किया जाना चाहिए.

वर्चुअल-संसद की चुनौतियां जो भी हों उनसे सीखते हुए मिश्रित व्यवस्था को और अधिक कार्यकुशल बनाने की ओर अग्रसर होना चाहिए. हाइब्रिड मॉडल की चुनौतियां तो आज सभी संस्थाओं के सामने हैं पर वे इसे अपने काम काज में अपनाने की ओर अग्रसर हो रही हैं ताकि भविष्य में भी किसी आपदा के समय शून्य-उत्पादकता की स्थिति न आए.
आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है अतः उचित होगा कि आज के आधुनिक समय में जब टेक्नोलॉजी लगातार विकसित हो रही है और आम जनता भी उसका भरपूर उपयोग कर रही है ऐसे में यदि हमारी संसद और राज्यो की विधायिकाएं भी ऑनलाइन व्यवस्था को अपनाएं तो उनकी कार्यकुशलता, पारदर्शिता, जनता की सहभागिता और विश्वास, और अधिक बढ़ेगी.

(लेखिका डॉक्टर सुमन मिश्रा ने भारत और ऑस्ट्रेलिया में व्यवस्थापिका के संसदीय उपकरणों प्रश्न काल और समिति व्यवस्था के तुलनात्मक अध्ययन में यूनिवर्सिटी ऑफ क्वीन्सलैंड से पीएचडी उपाधि प्राप्त की है, ये लेख लेखिका के निजी विचार हैं)


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