आठ महिला कमांडिंग अफसरों के कामकाज को लेकर लिखा गया एक अर्द्ध-सरकारी पत्र नवंबर के अंत में ‘लीक’ हुआ और सोशल मीडिया से लेकर मुख्यधारा की मीडिया में हंगामा मच गया. पूर्वी कमांड के जनरल अफसर कमांडिंग-इन-चीफ ले.जनरल राम चंदर तिवारी को लिखे 17वीं कोर के जनरल अफसर कमांडिंग ले.जनरल राजीव पुरी के इस पत्र में इन महिला कमांडिंग अफसरों की ‘मैन मैनेजमेंट’ क्षमता, नेतृत्व शैली, नैतिक साहस, सेवा संबंधी विशेषाधिकारों की उनकी समझ में गंभीर कमियों का जिक्र किया गया था.
इस पत्र को लेकर भावनाएं उग्र हो गईं, मीडिया में तरह-तरह के विचार, आलोचनाएं और सलाह आने लगीं. जनरल पर पितृसत्तात्मक भेदभाव करने के आरोप लगाए गए और कहा गया कि महिला सशक्तिकरण को चोट पहुंचाने के लिए इस पत्र को जानबूझकर लीक किया गया. इस सबके कारण नुकसान निष्पक्षता को पहुंचा.
संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 के अनुसार देश का कानून कहता है कि महिलाओं को सेना में समान अवसर देने की व्यवस्था की गई है. इस व्यवस्था की पुष्टि सुप्रीम कोर्ट के फैसलों और सरकार की नीति ने भी की है. लेकिन समान अवसर का अर्थ है योग्यता के मामले में स्त्री-पुरुष का भेद नहीं किया जाएगा और मानदंडों का पालन किया जाएगा. पत्र में जिन कमियों की बात की गई है वे मुख्यतः अल्पकालिक अनुबंध से स्थायी कमीशन में परिवर्तन किए जाने के कारण हैं. यह परिवर्तन न्यायपालिका और उसके कारण सरकारी नीति के चलते सेना पर थोपा गया है.
मेरे विचार से, जनरल पुरी पर महिला कमांडिंग अफसरों के साथ कथित पितृसत्तात्मक भेदभाव करने का अनुचित आरोप लगाया गया है. उन्हें साधारणीकरण का दोषी तो ठहराया जा सकता है लेकिन उनका ज़ोर कमांडिंग अफसरों से पेशेवराना मानदंडों के पालन को लेकर जो अपेक्षा रखी जाती है उसमें कमियों पर उन्हें दूर करने की उनकी कोशिशों की पहचान करने पर रहा है. वैसे, इस पत्र के लीक होने के गंभीर नतीजे हो सकते हैं.
एक स्थापित प्रक्रिया
महिला अफसरों को ‘कंबैट सपोर्ट आर्म्स और सर्विसेज’ के तहत यूनिटों की कमान पहली बार फरवरी 2023 में सौंपी गई. जब संगठन में कोई बुनियादी किस्म का बदलाव किया जाता है सेना मुख्यालय में नीतिगत सुधार के लिए कमान की पूरी कड़ी में निरंतर फीडबैक दी जाती है. वास्तव में, यह फीडबैक देना ‘जीओसी’ का फर्ज और ज़िम्मेदारी है, जो कि उनके अपने आकलनों, नीचे के सीनियर कमांडरों से मिली जानकारियों, और वार्षिक ‘एप्रेजल सिस्टम’ पर आधारित होना चाहिए.
यह मान लेना तार्किक ही होगा कि सेना मुख्यालय को महिला कमांडिंग अफसरों के कामकाज पर फीडबैक सभी आर्मी फॉर्मेशन्स और वरिष्ठ कमांडरों के विचारों पर आधारित होगा. यह प्रक्रिया निश्चित तौर पर पीछे ले जाने वाली नहीं है. बल्कि इसका मकसद परिवर्तन को सहज, और ज्यादा कार्यकुशल बनाना है.
महिला कमांडिंग अफसरों के कामकाज का आकलन ब्रिगेड, डिवीजन, और कोर कमांडरों की तीन स्तरीय एप्रेजल सिस्टम के जरिए भी किया गया होगा. एक चौथा विकल्प आर्मी कमांडर के स्तर पर भी आकलन का है. यह वार्षिक प्रक्रिया है. अफसरों का आकलन उनकी व्यक्तिगत विशेषताओं, उनके कामकाज के प्रदर्शन के मानकों के आधार पर किया जाता है. इसके अलावा, ऊंचे कमांड और स्टाफ नियुक्ति को लेकर उनकी क्षमता का नौ मानकों के पैमाने पर आकलन भी किया जाता है.
कमांड और एप्रेजल सिस्टम, दोनों में सुधार के लिए काउंसेलिंग या गलती को ठीक करने की व्यवस्था निहित होती है. सामान्यतः यह काम तात्कालिक बड़े अधिकारी करता है, और जरूरत पड़ने पर और वरिष्ठ कमांडर करते हैं.
काउंसेलिंग मौखिक रूप से या लिखित रूप से की जा सकती है और उसका रेकॉर्ड रखा जाता है.
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पत्र में आलोचना
मैंने उस पत्र की एक कॉपी देखी है. यहां हम उसका ब्योरा दे रहे हैं.
जनरल पुरी के अनुसार, महिला कमांडिंग अफसर प्रायः नेतृत्व की तानाशाही शैली अपना लेती हैं, वे मातहत कमांडरों से सलाह-मशविरा महज नाम के बराबर या बिलकुल नहीं करतीं. वे कहते हैं कि वे बातचीत या असहमति को हतोत्साहित करती हैं और मातहत कमांडरों के दायरे में अक्सर दखलंदाजी की जाती है जिसके कारण फैसले करने में उनकी भूमिका सीमित हो जाती है. जनरल पुरी कहते हैं कि इसके कारण पहल करने का उत्साह मर जाता है और मिलकर मिशन को पूरा करने में उनकी हिस्सेदारी घटती है.
यहां यह जिक्र करना जायज होगा कि सेना में कमांड का सिद्धांत नेतृत्व की निर्देशात्मक शैली की वकालत करता है जिसमें लोकतांत्रिक तथा तानाशाही शैलियों का उचित मेल हो. तानाशाही शैली के मतांध पालन को निश्चित ही नकारात्मक लक्षण माना जाता है.
पत्र में मानव संसाधन के प्रबंधन में अहम खामियों का भी उल्लेख है जिनमें पारस्परिक सम्मान, विश्वास, चतुरता, सहानुभूति, और सैनिकों की भलाई पर ध्यान देना शामिल है. जनरल पुरी के मुताबिक, भावुक अनुरोधों पर गंभीरता से विचार नहीं किया जाता, और असहमति को अवज्ञा के रूप में देखा जाता है. वे लिखते हैं कि आपसी सम्मान और विश्वास के जरिए ‘संघर्ष समाधान’ करने की जगह ज्यादा ज़ोर कमांड के अधिकार के बल पर संघर्ष को समाप्त करने पर दिया जाता है.
पत्र में यह भी कहा गया है कि महिला कमांडिंग अफसर अपने कमांड की पूरी ज़िम्मेदारी और जवाबदेही स्वीकार नहीं करतीं. अपने मातहतों के बारे में पहले अपने अधिकारों और शक्तियों का उपयोग करने की जगह उनमें वरिष्ठ कमांडरों से उनकी ‘शिकायत करने की प्रवृत्ति ज्यादा हावी रहती है’.
उनमें अपने ‘अधिकारों को लेकर गलत धारणा’ का भी पत्र में जिक्र किया गया है जिसके कारण पद तथा विशेषाधिकारों का दुरुपयोग भी किया जाता है. जनरल पुरी ने कहा है कि यह प्रवृत्ति केवल महिला कमांडिंग अफसरों में ही नहीं है बल्कि यह इस रैंक में ही देखी जाती है.
अस्पष्टता के प्रति सहनशीलता की कमी को भी एक मसला बताया गया है इस पत्र में. पत्र में दावा किया गया है कि उच्च स्तरीय कमांडरों के आदेशों और निर्देशों का मूल्यांकन किए बिना और यह देखे बिना कि वे यूनिट या उप-यूनिटों के मिशन के लिए वे उपयुक्त हैं या नहीं, उन्हें सीधे उनके कमांड पर थोप दिया जाता है. इससे उन कमांडरों के पद का अवमूल्यन होता है और यह ज़िम्मेदारी तथा जवाबदेही की अनदेखी को उजागर करता है.
महत्वाकांक्षाओं को लेकर परस्पर विरोधी प्रवृत्तियों को भी जनरल पुरी उजागर करते हैं. वे लिखते हैं कि कुछ महिला अफसर अपनी अतिवादी महत्वाकांक्षाओं का प्रदर्शन करती हैं और हद से बाहर जाकर खुद को साबित करने की कोशिश करती हैं. ऐसा करते हुए वे अफसरों तथा सैनिकों से अनुचित मांगें करती हैं. पुरी कहते हैं कि अपने ऊपर के कमांडरों को खुश करने और उनकी नजर में बने रहने की चाहत यूनिट की ट्रेनिंग, प्रशासन, और सैनिकों के कल्याण पर बुरा असर डालती है. दूसरे छोर पर के लिए वे कमांडिंग अफसर हैं जो जोखिम मुक्त रास्ता अपनाया और कामकाज में सुधार करने की जगह न्यूनतम मानदंड का पालन करते हुए यथास्थिति बनाए रखी.
तर्कों और सिफ़ारिशों की सूची
व्यवस्था से संबंधित मसलों की कई खामियों को भी पत्र में गिनाया गया है. जनरल पुरी बताते हैं कि 2020 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने तक महिला अफसरों को अधिकतम 14 साल के अनुबंध के साथ सपोर्ट काडर के रूप में जोड़ा जाता था. उनमें से अधिकतर की कमांड या स्टाफ नियुक्तियां नहीं की जाती थीं. उन्हें कमांडिंग अफसर की भूमिका के लिए उस कसौटी रिपोर्ट के आधार पर नहीं परखा जाता था जो रिपोर्ट कंपनी कमांडरों के लिए आवश्यक मानी जाती थी. इसका नतीजा यह हुआ कि कमांडिंग अफसर की मानव संसाधन प्रबंधन की ज़िम्मेदारी उनके लिए पूरी तरह नयी चीज हो गई, जिसके कारण उन्हें इसे पद पर रहते गलती करते हुए सीखना पड़ा.
जनरल पुरी कहते हैं कि महिला अफसरों को ऐसा बोझ माना जाने लगा जिससे बचना मुश्किल है, और उन्हें हल्के काम दिए जाने लगे जिसके कारण उन्हें सैनिकों के साथ सेवा से जुड़े खतरों और मुश्किलों का पर्याप्त अनुभव नहीं हो पाया. यह अलगाव उनमें सहानुभूति के अभाव के रूप में सामने आया.
महिला अफसरों में पुरुषों के प्रति पूर्वाग्रह का भी पत्र में उल्लेख है. जनरल पुरी इसे अंतर्वेयक्तिक संघर्षों की जड़ बताते हैं. उनका दावा है कि महिला अफसर खुद को ‘नरम’ की जगह सख्त साबित की जो कोशिश करती हैं उसके कारण मानव संसाधन के मसलों को वे अपने पुरुष सहकर्मियों के मुक़ाबले कम सदभावना तथा सहानुभूति के साथ निबटाती हैं.
पहले, सेना महिलाओं की छोटी उपलब्धियों को भी प्रतीकात्माक रूप से बढ़ाचढ़ाकर प्रस्तुत करती थी. जनरल पुरी के अनुसार, इसके कारण निरंतर अपनी प्रशंसा हासिल करने की प्रवृत्ति पैदा होती है और यह अति महत्वाकांक्षा के रूप में प्रकट होती है.
जनरल पुरी नियुक्तियों, उच्च पदों के लिए चयन, और मिशन की ज़िम्मेदारी सौंपने के मामलों में स्त्री-पुरुष भेद के मामले में तटस्थता की एक विस्तृत नीति सुझाते हैं. वे सावधान करते हैं कि उच्च अधिकार वाले पदों पर दिखावे के लिए प्रतीकात्मक रूप से महिला अफसरों की नियुक्ति से बिलकुल परहेज किया जाए. इसकी जगह, मानव संसाधन प्रबंधन की ट्रेनिंग पर ज्यादा ज़ोर देने की जरूरत है. वे यह भी सलाह देते हैं कि पति-पत्नी की पोस्टिंग में तालमेल की नीति में उसी मानदंड का पालन किया जाए जिसका पालन सभी सैनिकों की सहानुभूति पोस्टिंग में किया जाता है.
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मेरी बात
जनरल पुरी के लिए मेरी पहली आपत्ति यह है कि वे केवल आठ कमांडिंग अफसरों की आंतरिक समीक्षा की बात करते हैं. उन्होंने उसी के आधार पर महिला कमांडिंग अफसरों के कामकाज पर आम टिप्पणी की है और सभी आठों अफसरों को एक ही कूची से रंग डाला है, जो किसी तरह से तार्किक नहीं है.
दूसरे, वे अपने मातहत कमांडरों द्वारा की गई और खुद उन्होंने जो काउंसेलिंग की है उनके नतीजो पर खामोश हैं. मेरा अनुभव यह रहा है कि नैतिकता के साथ की गई काउंसेलिंग कभी सुधारात्मक कार्रवाई शुरू करने में विफल नहीं होती. जो पृष्ठभूमि है और स्थायी कमीशन देने तथा ऊंचे पदों के लिए चयन करने में जो जल्दबाज़ी की गई उनके मद्देनजर काउंसेलिंग और ज्यादा जरूरी थी.
तीसरे, आठ कमांडिंग अफसरों की वार्षिक कनफिडेंशियल रिपोर्टों की समीक्षा करने वाले सीनियर अफसर के तौर पर जनरल पुरी को बुनियादी टिप्पणी करने तक ही सीमित रहना चाहिए था. विशेष टिप्पणियां करते हुए वे उनके केरियर की प्रगति आकलन करने में निष्पक्षता खो बैठे. और यह दुर्भाग्यपूर्ण लीक इस बात की गारंटी बनेगी कि ये अफसर उनकी समीक्षा, यहां तक कि उनके सही आकलन के खिलाफ भी जो अर्जी देंगे उसे कथित पक्षपात की आधार पर मान्य किया जाएगा.
अंत में, उन्हें अपने कमांड वाले करीब 40 पुरुष कमांडिंग अफसरों के आकलन में सामने आई खामियों को भी रेखांकित करना चाहिए था. अनुभवजन्य विवेक यही संकेत करता है कि यह मामला सापेक्ष किस्म का है और यह केवल महिला कमांडिंग अफसरों तक सीमित नहीं है.
अब ऐसा कोई संदेह नहीं रहना चाहिए कि स्थायी कमीशन की तैयारी के लिए पूरा एक दशक, और केरियर में प्रगति के लिए समान अवसर (2010 में दिल्ली हाइकोर्ट के एक फैसले के तहत, जिस पर सुप्रीम कोर्ट कभी रोक नहीं लगा पाया) उपलब्ध थे, इसके बावजूद सेना ने ऐसी तैयारी नहीं की. मौजूदा समस्याएं जल्दबाज़ी में लागू की गई नीति और ऊंचे पदों के लिए महिला अफसरों को अपर्याप्त रूप से तैयार करने का नतीजा हैं. लंबित मामलों का निबटारा करने के बाद महिला अफसरों को भविष्य में पुरुष अफसरों की तरह ऊंचे पदों के लिए प्रशिक्षित और तैयार किया जाएगा.
अब तक जो सार्वजनिक बहस और कानूनी लड़ाई हुई है वह स्त्री-पुरुष समानता और समता के संवैधानिक अधिकार के इर्दगिर्द केंद्रित रही है. सेना में महिलाओं के कामकाज के नैतिक आकलन को कभी कोई मुद्दा नहीं बनाया गया. कुछ ही समय बाकी है जब हमारी 14 लाख सैनिकों वाली सेना में महिलाओं का अनुपात 10-15 फीसदी के आसपास पहुंच जाएगा यानि उनकी संख्या 140,000 से लेकर 210,000 पर पहुंच जाएगी. स्त्री-पुरुष समानता की स्थापना के बाद, सैन्य सेवा के सभी पहलुओं में लैंगिक तटस्थता की ओर बढ़ने का समय आ गया है.
लेफ्टिनेंट जनरल एच एस पनाग पीवीएसएम, एवीएसएम (रिटायर) ने भारतीय सेना में 40 साल तक सेवा की. वे उत्तरी कमान और मध्य कमान के जीओसी इन सी रहे. सेवानिवृत्ति के बाद वे सशस्त्र बल न्यायाधिकरण के सदस्य रहे. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.
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