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Thursday, 25 April, 2024
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कर्नाटक और गोवा की तरह जम्मू-कश्मीर में मुमकिन नहीं दल बदलना

धारा-370 की बदौलत जम्मू कश्मीर के पास अपना एक बेहद ख़ास और सख़्त दल-बदल विरोधी कानून है जो गोवा और कर्नाटक में चल रहे राजनीतिक घठनाक्रम में एक रोशनी की किरण सा दिखता है.

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धारा-370 को लेकर भले ही देशभर में जम्मू कश्मीर की अलग छवि बनाने की कोशिश की गई हो मगर इस धारा में मिले संवैधानिक अधिकारों की बदौलत राज्य के पास अपना एक बेहद ख़ास और सख़्त दल-बदल विरोधी क़ानून है जो गोवा और कर्नाटक में चल रहे राजनीतिक घठनाक्रम में एक रोशनी की किरण सा दिखता है.

जी हां, जम्मू कश्मीर का दल-बदल विरोधी क़ानून इतना कड़ा है कि देश के अन्य हिस्सों की तरह आए दिन नेताओं द्वारा दल बदलना जम्मू कश्मीर में कम से कम आसान नहीं है. राज्य का अपना यह क़ानून, राष्ट्रीय स्तर पर लागू क़ानून से पूरी तरह अलग है और दल-बदल को सख़्ती से रोक पाने में अभी तक कामयाब ही हुआ है.

जम्मू कश्मीर के दल-बदल विरोधी क़ानून की चर्चा ठीक उस समय और भी प्रासंगिक हो जाती है जब गोवा और कर्नाटक में चल रहे राजनीतिक नाटक के बाद देश में लागू दल-बदल विरोधी क़ानून को लेकर एक बार फिर से सवाल उठने लगे हैं.

ऐसे में जम्मू कश्मीर में लागू दल-बदल विरोधी क़ानून, आया राम-गया राम की राजनीतिक को खत्म करने में एक मिसाल बन सकने की ताकत रखता है.

जम्मू कश्मीर का यह दल-बदल विरोधी क़ानून इतना कड़ा है कि अगर कोई निर्वाचित विधायक इसका किसी भी तरह से उल्लंघन करता है तो उसकी विधानसभा की सदस्यता भी खतरे में पड़ सकती है.

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क्या है क़ानून और क्या हैं इसके प्रावधान

जम्मू कश्मीर के संविधान में एक संशोधन कर 2005 में पीडीपी-कांग्रेस सरकार के रहते एक नया दल-बदल क़ानून बना था. उस समय गुलाम नबी आज़ाद राज्य के मुख्यमंत्री थे.

जम्मू कश्मीर के संविधान में 13वें संशोधन के रूप में जाने जाने वाले इस कानून को 30 दिसंबर 2005 को विधानसभा में पारित किया गया था. इस क़ानून के प्रावधान इतने सख़्त हैं कि इसके तहत कोई भी विधायक अपने संबंधित दल को छोड़ नहीं सकता है. यहां तक कि एक समूह में भी विधायकों द्वारा अपने दल को छोड़ पाना आसान नहीं है. इस तरह से इस क़ानून के तहत अकेले या समूह में अपने राजनीतिक दल से अलग हो पाना किसी भी निर्वाचित विधायक के लिए संभंव नहीं है.

जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील भूपेंद्र सिंह सलाथिया के अनुसार जम्मू कश्मीर दल-बदल विरोधी क़ानून के तहत अगर किसी दल के सभी विधायक भी किसी दल से अलग हो जाते हैं और अलग ग्रुप भी बना लेते हैं तो भी जम्मू कश्मीर के दल-बदल क़ानून के तहत सभी को फौरन अयोग्य ठहराया जा सकता है.

जम्मू कश्मीर के इस दल-बदल क़ानून के प्रावधानों के मुताबिक किसी भी विधायक या समूह द्वारा अपने संबंधित दल से त्यागपत्र देने पर संबंधित विधायक या विधायकों की सदस्यता रद्द हो सकती है और संबंधित विधायक या विधायकों को दोबारा चुनाव लड़ना पड़ सकता है.

इस क़ानून के तहत विधानसभा के अध्यक्ष के मुकाबले में किसी भी दल के विधायक दल के नेता को व्यापक अधिकार भी दिए गए हैं. विधायक दल के नेता द्वारा जारी किए गए पार्टी व्हिप का उल्लंघन किसी भी निर्वाचित विधायक के लिए काफी महंगा साबित हो सकता है.

जम्मू कश्मीर दल-बदल क़ानून में पार्टी लाइन से अलग जाने और पार्टी छोड़ने पर विधायक दल के नेता को पार्टी छोड़ने वाले विधायक को अयोग्य ठहराने का अधिकार भी दिया गया है. विधायक दल के नेता के पास व्यापक अधिकार होने से किसी भी विधायक द्वारा अपने दल को छोड़ना मुश्किल हो जाता है.

विधायक दल के नेता द्वारा लिए गए फ़ैसले के खिलाफ विधानसभा अध्यक्ष भी नहीं जा सकते और वह बाध्य हैं कि विधायक दल के नेता के निर्णय को मानें.

हालांकि अध्यक्ष की भी अपनी एक भूमिका है, मगर विधायक दल के नेता का निर्णय अंतिम है. जबकि राष्ट्रीय स्तर पर लागू क़ानून में विधायक दल के नेता के पास ऐसा कोई अधिकार नहीं है कि किसी भी तरह का उल्लंघन करने या पार्टी छोड़ने पर वह अपनी पार्टी के सदस्य के खिलाफ कोई कार्यवाही कर सके.

जम्मू कश्मीर के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक दिनेश मन्होत्रा मानते हैं कि जम्मू कश्मीर जैसे कड़े क़ानून की तरह ही एक क़ानून देशभर में भी लागू होना चाहिए ताकि दल-बदल को कड़ाई से रोका जा सके. मन्होत्रा का मानना है कि जम्मू कश्मीर में जिस तरह से दल-बदल के खिलाफ रोक संभव हो सकी है उसे देखते हुए देश में स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जम्मू कश्मीर जैसा क़ानून बेहद ज़रूरी है.


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गौरतलब है कि गत वर्ष जम्मू कश्मीर में पीपुल्स डेमॉक्रेटिक पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच मतभेद उभरने के बाद जब महबूबा मुफ्ती सरकार गिर गई थी, तो भारतीय जनता पार्टी की ओर से पीपुल्स डेमॉक्रेटिक पार्टी के नाराज गुट के साथ मिलकर सरकार बनाने की एक कोशिश की गई थी. मगर इस कोशिश के रास्ते में भी जम्मू कश्मीर का दल-बदल क़ानून आ गया था. उस समय क़ानूनी विशेषज्ञों की राय के बाद पीपुल्स डेमॉक्रेटिक पार्टी में तोड़-फोड़ कर सरकार बनाने के विचार को त्याग दिया गया था.

यहां यह उल्लेखनीय है कि धारा-370 के अंतर्गत मिले अधिकारों के तहत जम्मू कश्मीर का अपना संविधान है और उसके अपने क़ानून हैं. इसी कारण से जम्मू कश्मीर के पास अपना दल-बदल विरोधी क़ानून है जो कि बाकि देश से पूरी तरह से अलग है.

(लेखक जम्मू कश्मीर के वरिष्ठ पत्रकार हैं. यह लेख उनके निजी विचार हैं)

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