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Friday, 26 April, 2024
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संबित पात्रा की एक प्रशिक्षित सर्जन से अक्खड़ टीवी स्टार तक की यात्रा

संबित पात्रा भाजपा की उस बौद्धिकता-विरोधी प्रवृत्ति का उदाहरण हैं जिसपर फेक न्यूज़ फैलाते हुए पकड़े जाने का कोई असर नहीं होता.

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दिल्ली के हिंदू राव अस्पताल के पूर्व सहकर्मी उन्हें बात-बात पर भगवद्गीता को उद्धृत करने वाले एक हंसमुख और लोकप्रिय चिकित्सक के रूप में याद करते हैं. इसलिए 20 साल बाद आज उन्हें ऑल इंडिया मज़लिसे इत्तेहादुल मुस्लिमीन के एक प्रवक्ता को यह कहते हुए ललकारते देखकर कि ‘ऐ सुनो, अल्ला के भक्त हो तो बैठ जाओ वरना किसी मस्जिद का नाम बदलकर भगवान विष्णु के नाम रख दूंगा,’ उनका स्तब्ध होना स्वाभाविक है.

उनका मितभाषी पूर्व सहकर्मी जिस प्रतिभा का प्रदर्शन कर रहा है इसकी उन्हें भनक तक नहीं थी- वह बहस करते हुए गा सकता है, हर मुसलमान वक्ता को मौलाना/आईएसआईएस एजेंट/मिस्टर जिन्ना कह सकता है, नेहरू-गांधी परिवार के पुजारी का अभिनय कर सकता है और यहां तक कि कूदकर कांग्रेस के संजय निरुपम के आगे अपना गाल कर सकता है ताकि वह थप्पड़ मार सकें.

बुरला, संबलपुर के वीएसएस चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल से एमबीबीएस और कटक में उत्कल विश्वविद्यालय के एससीबी चिकित्सा महाविद्यालय से सर्जरी में स्नातकोत्तर डॉ. संबित पात्रा की ज़िंदगी में ऐसा कुछ भी नहीं था जिससे कि लगता कि आगे चलकर वह ज़हरीली राजनीति की आवाज़ तथा दंभी भारत के और भाजपा सरकार की हर तरह की गड़बड़ी के प्रतीक बन जाएंगे. पर प्रतिभाओं के अकाल की स्थिति के चलते, जब बेहतरीन प्रवक्ताओं को सरकार में शामिल होना पड़ा और मैदान दूसरे दर्ज़े के प्रवक्ताओं के लिए खाली छूट गया, आज 44-वर्षीय पात्रा पार्टी की तरफ़दारी करने वालों की फौज में सबसे आगे हैं.


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अपनी नाटकीय उदघोषणाओं और बेतुकी ड्रामेबाज़ी के ज़रिए हमारे घरों तक पहुंचने से पहले पात्रा चांदनी चौक और मल्कागंज में भाजपा की बैठकों में नियमित रूप से शामिल हुआ करते थे. इस प्रक्रिया में वह दिल्ली के भाजपा नेताओं, वर्तमान में केंद्रीय मंत्री, विजय गोयल और डॉ. हर्षवर्द्धन के करीब आ गए. 2011 में हिंदू राव अस्पताल के चिकित्सकों के आवास में रहते हुए वह दिल्ली भाजपा के प्रवक्ता बन चुके थे. और 2012 में, नगर निगम चुनाव में कश्मीरी गेट वार्ड से भाजपा प्रत्याशी के रूप में वह मतदाताओं से नाली और नाड़ी दोनों दुरुस्त करने का वायदा कर रहे थे.

तब वह गले में आला लटकाए रहते थे और सिर्फ विकास की बातें करते थे. तब उन्हें कवर कर रहे इंडियन एक्सप्रेस के एक रिपोर्टर ने उन्हें यह कहते बताया था: “इस वार्ड में तीन सरकारी अस्पताल हैं, पर उनकी हालत ऐसी है कि महिलाओं का इलाज नहीं हो पा रहा. मैं इस स्थिति को बदलना चाहता हूं. बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के बिना विकास अधूरा है.”

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उस चुनाव में उन्हें बुरी तरह मुंह की खानी पड़ी, पर केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली की उन पर नज़र पड़ चुकी थी, और उन्होंने पात्रा को 2014 में राष्ट्रीय प्रवक्ता बना दिया. तब से टीवी पर बहसों का स्तर जैस-जैसे नीचे गिरता गया, उनकी प्रसिद्धि वैसे-वैसे बढ़ती गई. विपक्ष में रहने के दौरान, ख़ासकर नितिन गडकरी के पार्टी अध्यक्ष रहते, भाजपा की मीडिया इकाई का स्पष्ट लक्ष्य था- भ्रष्टाचार को लेकर सरकार की धुनाई करना और कैग रिपोर्ट से उठाए गए अपुष्ट आंकड़ों को लगातार दोहराते रहना. नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री और अमित शाह के पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद, मीडिया में जो उनके साथ नहीं हैं उन्हें साफ तौर उनके खिलाफ़ मान लिया गया है.


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भाजपा के आईटी प्रकोष्ठ का 2007 में गठन करने वाले प्रोद्युत बोरा पात्रा को अच्छी तरह जानते हैं, और आज उनकी बुद्धिमता का दुरुपयोग होने को लेकर उन्हें दुख होता है. बोरा कहते हैं, “वह आज मध्यकालीन मानसिकता वाले एक भड़काऊ नेता मात्र हैं, पर उस पार्टी से और क्या उम्मीद कर सकते हैं जिसका एक प्रवक्ता तजिंदर सिंह बग्गा हो.” वह नई दिल्ली स्थित भगत सिंह क्रांति सेना के संस्थापक सदस्य का ज़िक्र कर रहे थे, जो एक कुख्यात ट्रोल के रूप में ज़्यादा चर्चा में रहते हैं.

भाजपा का दामन 2015 में ही छोड़ चुके बोरा मानते हैं कि पार्टी के मौजूदा स्वरूप में पात्रा का उज्ज्वल भविष्य है, क्योंकि इस समय शोर मचाने और नेता के प्रति निष्ठावान रहने को सर्वाधिक महत्व दिया जाता है. ये बात अलग है कि मौजूदा पार्टी प्रमुख अमित शाह को उनका नाम नहीं याद रहता- हाल ही में एक संवाददाता सम्मेलन में शाह ने पात्रा को ‘संदीप पात्रा’ बताया था, और इसे लेकर कई चुटकुले भी बन चुके हैं.

न्यूज़लॉन्ड्री के सहसंस्थापक अभिनंदन सेखरी स्वीकार करते हैं कि पात्रा (उनकी वेबसाइट के लिए ‘नेशनल ट्रोल्सपर्सन’) अपने अटपटे बयानों के ज़रिए उन्हें काफी मसाला देते रहते हैं. लेकिन सेखरी ये भी मानते हैं कि निरक्षता के प्रति सम्मानभाव तथा वैज्ञानिक एवं तार्किक बातों के प्रति निरादरभाव के कारण पात्रा आज की भाजपा का अधिक सटीक प्रतिनिधित्व करते हैं. इस बात को कांग्रेस की प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी ने भलीभांति नोटिस किया है.

वह कहती हैं, ‘जब हमने 2013 में बहसों में भाग लेना शुरू किया, संबित तथ्यों और आंकड़ों से लैस होकर आते थे. पर भाजपा की सरकार बनने के बाद से मैंने सत्तारूढ़ पार्टी के प्रवक्ताओं में तीन प्रवृत्तियों को चिन्हित किया है- सबसे पहले वे प्रधानमंत्री मोदी की महानता का गुणगान किया करते थे. इसके बाद वे कांग्रेस नेतृत्व पर अपमानजक हमले करने लगे. और अब, वे प्रवक्ता विशेष पर व्यक्तिगत हमले करते हैं- मुद्दे उठाने पर उनकी अपमानजक बातें सुननी पड़ती हैं, मानो टीवी न्यूज़ का बालाजी-करण हो गया हो.’


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प्रियंका ने हाल की एक बहस का ज़िक्र किया जब पात्रा ने उन्हें ‘सोसायटी गर्ल’ करार देते हुए यह संकेत देने की कोशिश की कि वह कांग्रेस अध्यक्ष के ‘बहुत, बहुत करीब’ हैं. यह बहुत पुरानी रणनीति है: महिलाओं को परोक्ष संकेतों और उपहास के बल पर चुप कराना. इसमें हिंसा की आशंका का एक नया ख़तरनाक पहलू जुड़ गया है, क्योंकि लाइव बहसों में प्रवक्ता अक्सर दर्शकों को भड़काने की कोशिश करते हैं.

हाल में एक टीवी एंकर ने भले ही एक बच्चे का उल्लेख करते हुए संबित पात्रा की तुलना डोरेमोन और मिकी माऊस से की हो, पर उनमें भोलेपन जैसी कोई बात नहीं है. वह अक्सर मुसलमानों को अपमानित करते हैं, महिलाओं के प्रति अशालीन हैं, और कभी-कभार ‘जूते मारो राहुल को’ कहकर दर्शकों को उकसाते भी हैं. ‘डियर लीडर’ से वह फैशन टिप्स भी लेते हैं. अक्सर ‘जैसा देश, वैसा वेश’ बोलने वाले संबित पात्रा युवाओं के बीच स्मार्ट सूट में, पूर्वी भारत में कड़क धोती-कुर्ता में और टीवी स्टूडियोज़ में रंग-बिरंगी जैकेटों में दिखते हैं; और, अनौपचारिक आयोजनों में महंगी कश्मीरी शॉल में– जो कि हर जेटली समर्थक के वार्डरोब का हिस्सा बन चुकी हैं.

उनका वार्डरोब बढ़ती ख्याति के अनुरूप ही समृद्ध होता गया है. ना सिर्फ सार्वजनिक स्थलों पर उनके प्रशंसकों की भीड़ उमड़ती है, बल्कि वह बड़ी संख्या में मीम एक्ट्स के विषय भी बने हैं. ऐसे ही एक मीम में कहा गया है कि हर किसी के लिए वह एस. पात्रा हैं, पर अर्नब गोस्वामी के लिए स्पार्टा. एक अन्य में, जो थोड़ा फूहड़ किस्म का है, में कहा गया है, “मैं आज भी मोदीजी के फेंके हुए कपड़े पहनता हूं.” हर मौक़े के लिए कोई न कोई मीम उपलब्ध है.

तीन दशकों से पत्रकारिता कर रहे एबीपी न्यूज़ के एंकर दिबांग ने कई प्रवक्ताओं को लड़खड़ाते देखा है, और वह पात्रा को एक स्टार मानते हैं. उन्होंने कहा, ‘अपनी पार्टी के पक्ष में बोलना उनका काम है और वह नाटकीयता और सामयिकता के मिश्रण के सहारे ऐसा करते हैं, जिसे कि नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता. एक क्षण को वह विनम्र दिखेंगे, पर अगले ही पल रोष से भरे. वह बेबाक, विवादास्पद और तीखे कुछ भी हो सकते हैं. विपक्ष सर्वाधिक उनसे चिढ़ता है, यह अपने आप में उनकी सफलता का मानदंड है.’

संबित पात्रा भाजपा की उस बौद्धिकता-विरोधी प्रवृत्ति का उदाहरण हैं जिसमें फेक न्यूज़ (याद करें नारे लगाते कन्हैया कुमार का फर्ज़ी वीडियो) या फेक फोटो (आईवो जिमा में अमेरिकी सैनिकों की फोटोशॉप की हुई तस्वीर को 2016 में कारगिल में भारतीय सैनिकों का बताना) फैलाते हुए बारंबार पकड़े जाने का भी शायद उन पर कोई असर नहीं होता.

उनके कई सहयोगी बहसों के लिए घंटों टीवी स्टूडियोज़ में, जहां सर्वाधिक अप्रिय बोलने वाला जीतता है, डेरा डालने की उनकी क्षमता का ज़िक्र (खुद इससे बचने की स्वीकारोक्ति के साथ) करते हैं. अपने नेताओं के लिए लोहा लेते हुए वह किसी हद तक जा सकते हैं- इस हद तक कि प्रेस कांफ्रेंस कर चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के कांग्रेस के आरोप से या हटा दिए जाने का आरोप लगाने पर मानहानि का दावा करने की संदीप दीक्षित की धमकी से उन्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ता.


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हमेशा स्टूडियो लाइट में रहने के बाद भी संबित पात्रा एक रहस्यपूर्ण शख्सियत हैं. पात्रा और उनके परिवार के बारे में इससे ज़्यादा जानकारी नहीं है कि वह अपने माता-पिता से मिलने बीच-बीच में संबलपुर जाते हैं, कि वह अब नॉर्थ एवेन्यू में रहते हैं और यह कि पात्रा सेंटर फॉर होलिस्टिक एडवांसमेंट एंड अपलिफ्टमेंट ऑफ पुअर एंड लैंडलेस नामक कोई संस्था चलाते हैं. इस संस्था में पात्रा समेत पांच निदेशक हैं, और 2014 में इसके एक आयोजन को मुख्य अतिथि के रूप में अरुण जेटली ने संबोधित किया था. और, यह जानकारी कि पात्रा ओएनजीसी के बोर्ड में निदेशक के रूप में अगले तीन वर्षों के लिए शामिल रहेंगे.

पात्रा को उनके एमसीडी का चुनाव लड़ने के दिनों से जानने वालों का मानना है कि भविष्य में यदि उन्हें राज्यसभा में भेजा जाता है तो उन्हें कोई अचरज नहीं होगा. आप निश्चिंत रह सकते हैं कि उस मौक़े के लिए उनके पास एक गाना, एक स्मार्ट बयान और एक स्लोगन तैयार होगा.

संबित पात्रा किस हद तक गिर सकते हैं?

टीवी के इन पांच पलों पर गौर करें:

1. ‘जहां तक मुसलमानों को टार्गेट करने का सवाल है… कभी हिंदू ने मुसलमान क्या, किसी को भी टार्गेट नहीं किया. उसी का नतीजा है कि आप देखिए हिंदुस्तान में हमारे मुसलमान भाई अच्छे से फले-फूले हैं… और आज 20 से 25 प्रतिशत संख्या उनकी बनी है… 2 प्रतिशत से 25 प्रतिशत पहुंचे हैं हिंदुस्तान में.’

2. ‘सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक गाय का गोबर कोहिनूर से भी ज़्यादा महंगा होता है.’

3. ‘हिंदुस्तान का खाती है, और शबनम लोन पाकिस्तान का गाती है.’

4. ‘मोदीजी देश के बाप हैं.’ (कन्हैया कुमार के यह पूछने पर कि क्या मोदीजी उनके चाचाजी हैं.)

5. ‘बस टोपी लाओ, मैं नमाज़ पढ़ने जा रहा हूं.’

(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं और 2011 से 2014 तक इंडिया टुडे की संपादक रही हैं.)

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