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Thursday, 19 December, 2024
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अखिलेश यादव ने ‘वैक्सीन राष्ट्रवाद’ के लिए भाजपा की राह आसान की, पूरे विपक्ष को चुकानी पड़ सकती है इसकी कीमत

अखिलेश का बयान भाजपा को कितना ज्यादा खुश करेगा इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. सपा नेता ने कोविड वैक्सीन पर भगवा रंग चढ़ा दिया है जिससे भाजपा नेताओं की खुशी छिपाए नहीं छिपेगी.

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समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव द्वारा पिछले सप्ताह दिए गए इस बयान की काफी निंदा हो रही है कि वे ‘भाजपा की वैक्सीन नहीं लगवाएंगे’. लेकिन इस बयान पर पहली प्रतिक्रिया इस सीख के रूप में ही सामने आती है कि ‘अपना मुंह खोल कर अपनी मूर्खता के बारे में सारे संदेहों को दूर कर देने से तो चुप रहना ही बेहतर है’.

वैसे, सबसे पहले यह सीख अब्राहम लिंकन ने दी थी या मार्क ट्वेन ने, इसको लेकर अलग-अलग दावे हैं. लेकिन इसमें शक नहीं है कि भारत की समकालीन राजनीति और खासकर विपक्षी खेमे के लिए यह सीख काफी मौजूं है.

पिछले शनिवार की दोपहर एक पत्रकार सम्मेलन में अखिलेश यादव ने यह बयान अपनी वाहवाही लूटने के लिए न भी दिया हो लेकिन साफ है कि उनका मकसद शायद फब्तीबाजी करना था. वे उस समय अपने अगल-बगल हिंदू, मुस्लिम और सिख धर्मगुरुओं को लेकर बैठे थे, शायद यह साबित करने के लिए कि सबको साथ लेकर चलना ही उनका राजनीतिक दर्शन है. उम्मीद की जाती है कि 2022 में जब उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव हो रहे होंगे, तब राम मंदिर निर्माण ज़ोर-शोर से चल रहा होगा. लगता है, सपा अध्यक्ष ने ‘राम राज्य’ की अपनी कल्पना को प्रस्तुत करने की तैयारी अभी से शुरू कर दी है. लेकिन कोविड की वैक्सीन पर पूछे गए सवाल ने शायद उन्हें चक्कर में डाल दिया. धर्मगुरुओं को अगल-बगल बैठाकर उन्होंने जो मकसद साधने की योजना बनाई थी उसे उनकी इस फब्तीबाजी ने चौपट कर दिया.

यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अगर यह अनुमान नहीं लगा पाए कि शासक दल के ‘अवैज्ञानिक ताली-थाली वाले सोच’ पर उनका हमला नहीं बल्कि ‘भाजपा की वैक्सीन’ वाला बयान ही सुर्खियां बनेगा, तो वे निश्चित ही बड़े भोले हैं. भाजपा ने मौके को तुरंत ताड़ा और उनके बयान को ‘देश के डॉक्टरों और वैज्ञानिकों का अपमान’ बता दिया, भले ही भाजपा के केंद्रीय मंत्री और सांसद-विधायक यह दावे करते रहे हैं कि गोमूत्र और गोबर से न केवल कोरोनावायरस के संक्रमण को बल्कि कैंसर तक को ठीक किया जा सकता है.

आरएसएस के लोग वायरस को दूर भगाने के लिए गोमूत्र पार्टियां करते रहे हैं. भाजपा और इसके मानस सखाओं तथा संरक्षकों का वैज्ञानिक वृत्ति से कितनी दूर का रिश्ता रहा है, इसमें तो कोई संदेह नहीं ही है.


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अखिलेश को कोई राजनीतिक नुकसान नहीं

सपा के अंदर के लोगों को भले ही देर से यह इलहाम हुआ हो मगर उन्हें अखिलेश के विवादास्पद बयान में एक ठोस तर्क नज़र आ गया.

उन्हें इस बयान से अखिलेश को कोई राजनीतिक नुकसान होता नहीं दिखा. बल्कि, इन लोगों का कहना था कि यह बयान और कुछ नहीं, तो अखिलेश और उनकी पार्टी को भाजपा का मुख्य प्रतिद्वंदी तो बना ही देगा.

सपा विधानसभा के उपचुनावों में भाजपा को परेशान तो कर ही रही है. पिछले महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनाव क्षेत्र बनारस में भाजपा विधान परिषद की दो सीटें हार गई— एक ग्रेजुएट निर्वाचन क्षेत्र में और एक शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र में.

जाहिर है, अखिलेश भाजपा विरोधी वोटों को अपने पक्ष में करने के लिए माहौल बना रहे हैं. अखिलेश के जुगाडुओं का दावा है कि जबकि बसपा अध्यक्ष मायावती का रुख शासक दल के प्रति नरम हो रहा है, असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एआइएमआइएम) जैसे नए खिलाड़ी यूपी में पैर बढ़ाने की जुगत में लगे हैं, तब अखिलेश का ‘सियासी वैक्सीन’ वाला बयान भाजपा विरोधी वोटरों को भा सकता है.

यूपी में 2019 के लोकसभा चुनाव में मतदान करने वाले करीब 50 फीसदी और 2017 के विधानसभा चुनाव में 40 फीसदी मतदाताओं ने भाजपा को वोट दिया था. सपा अध्यक्ष बाकी बचे वोटों के एकमात्र नहीं, तो सबसे बड़े दावेदार तो बनना ही चाहेंगे.


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‘भाजपा के वैक्सीन’ पर विपक्ष की खीझ

इस बात से तो कोई इनकार नहीं कर सकता कि अखिलेश का उपरोक्त बयान गैर-ज़िम्मेदारी भरा है क्योंकि यह वैक्सीन के बारे में ऐसे समय में डर पैदा करता है जब हमारे जनप्रतिनिधियों को उनके बारे में लोगों में भरोसा पैदा करने की जरूरत है.

याद कीजिए कि अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन ने टीवी कैमरे के सामने वैक्सीन लगवाई. हमारे नेताओं को भी ऐसा कुछ करने की जरूरत है ताकि लोगों में यह भरोसा जागे कि यह संकट अब खत्म होने को है.

सपा अध्यक्ष ने इस तरह का बयान देकर भारी भूल की है, चाहे उनके सलाहकार जो भी दावे पेश करें.

लेकिन यह प्रकरण कोविड-19 से लड़ाई में भाजपा की सफलता को लेकर विपक्षी नेताओं की खीझ को भी उजागर करता है. इसकी वजह भी है.

सरकार पर उनके इन हमलों पर कम ही लोगों को विश्वास हुआ कि मोदी सरकार ने वायरस के खतरे से निपटने में देर की क्योंकि वह अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की खातिरदारी में आयोजित ‘नमस्ते ट्रंप’ समारोह में व्यस्त थी, उसने देशव्यापी लॉकडाउन लगाकर लाखों प्रवासी मजदूरों को बेरोजगार किया और उन्हें घर वापसी के लिए हजारों मील पैदल चलने पर मजबूर किया, ‘ताली-थाली’ कार्यक्रम करके उसने वाहवाही लूटने की कोशिश की, कोविड से निपटने की ज़िम्मेदारी राज्य सरकारों पर डाल कर उसने अपने हाथ झाड़ लिये, उसने इसमें गड़बड़ी के लिए विपक्षी राज्य सरकारों को तो निशाना बनाया लेकिन भाजपाई राज्य सरकारों की गड़बड़ियों की अनदेखी की, अर्थव्यवस्था को संभालने में अपनी अक्षमता को ढकने के लिए उसने वायरस को जिम्मेदार ठहराया.

दिसंबर में मोदी ने जब ‘कोवैक्सीन’ पर शोध कर रही हैदराबाद की कंपनी भारत बायोटेक और दुनिया की बड़ी दावा कंपनियों के सहयोग से ‘कोवीशील्ड’ वैक्सीन पर काम कर रहे पुणे के सीरम इंस्टीट्यूट का दौरा किया तो विपक्ष में कई लोगों को लगा कि यह सब दिखावा ही है. वे आपस में यही शिकायत कर रहे थे कि मोदी वैज्ञानिकों के प्रयासों का राजनीतिक फायदा उठाने में लग गए हैं.

लेकिन क्या किसी नेता से आगे बढ़कर नेतृत्व देने की अपेक्षा नहीं की जाती या उसे आगे बढ़कर नेतृत्व नहीं देना चाहिए? और मोदी तो चौबीसों घंटे राजनीति में डूबे रहने वाले नेता हैं.


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विपक्षी नेताओं में छटपटाहट क्यों है

2007 में अमेरिका में भारत के राजदूत ने भारत-अमेरिका परमाणु संधि का विरोध करने वाले विपक्षी नेताओं को ‘हेडलेस चिकेन’ कह कर भारी विवाद पैदा कर दिया था. यह उपमा आज के विपक्षी नेताओं के लिए भी सटीक बैठती है. अखिलेश का उपरोक्त बयान भाजपा को कितना ज्यादा खुश करेगा इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता.

सपा नेता ने कोविड वैक्सीन पर भगवा रंग चढ़ा दिया है जिससे भाजपा नेताओं की खुशी छिपाए नहीं छिपेगी.

विपक्षी नेता भाजपा के जाल में कोई पहली बार नहीं फंसे हैं. यूपी विधानसभा चुनाव से पहले 2016 में जब भारत ने पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में आतंकवादी शिविरों पर ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ किया था तब भाजपा के रणनीतिकार मानो इंतजार ही कर रहे थे कि कांग्रेस इस पर सवाल उठाए. विपक्ष ने जल्दी ही उसकी यह ख़्वाहिश पूरी कर दी और भाजपा ने मौके का तुरंत फायदा उठाते हुए उस पर हमला कर दिया कि विपक्ष हमारी सेना की बहादुरी पर सवाल उठा रहा है.

2019 के लोकसभा चुनाव से पहले बालाकोट पर हमले के मामले में भी यही हुआ. विपक्ष के नेता दुश्मन खेमे में मौतों की संख्या के प्रमाण मांगने लगे.

2019 में एनडीए सरकार ने जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त कर राज्य को केंद्रशासित दो क्षेत्रों में बांटने का जब फैसला किया तो गृह मंत्री अमित शाह ने इसके लिए राज्य सभा का मंच चुना जिसमें विपक्ष के नेता थे जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आज़ाद. संसद के ऊपरी सदन में विपक्षी खेमे में ऐसे नेता हैं जिनमें अपनी विचारधारा के प्रति मजबूत आग्रह है और वे उदारवादी मूल्यों में यकीन रखते हैं, जिन्हें चुनाव लड़ने की जरूरत नहीं पड़ती. विपक्ष के नेता जब जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त किए जाने पर अपना आक्रोश प्रकट कर रहे थे, शाह का चेहरा इस खुशी से दमक रहा था कि उनकी रणनीति सफल हो रही है और उसका माकूल नतीजा सामने आ रहा है.

कोविड-19 के वैक्सीन के मामले में भी भाजपा ने बिहार विधानसभा चुनाव के अपने घोषणापत्र में बिहार के नागरिकों को मुफ्त वैक्सीन उपलब्ध कराने का वादा कर राजनीतिक पहल कर दी थी. इसके रणनीतिकार सांस रोके इंतजार कर रहे होंगे कि विपक्ष के नेता वैक्सीन के लिए भाजपा को कुछ तो श्रेय देंगे, जिन्हें मोदी की निगरानी में तैयार किया गया था.

मोदी के हैदराबाद और पुणे दौरों की याद तो आपको होगी ही. रविवार को भारत के औषधि रेगुलेटर ने ऑक्सफोर्ड-आस्ट्राज़ेनेका द्वारा विकसित और भारत में निजी कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट द्वारा उत्पादित किए जा रहे ‘कोवीशील्ड’ वैक्सीन को मंजूरी दे दी. लोगों के लिए यह बड़ी खबर थी मगर वैक्सीन ‘राष्ट्रवादियों’ के लिए उतनी बड़ी खबर नहीं थी. और तो और, भारत के औषधि रेगुलेटर ने कोवैक्सीन को भी मंजूरी दे दी, जबकि उसकी कामयाबी के बारे में आंकड़े अभी आए भी नहीं हैं क्योंकि तीसरे चरण के इसके परीक्षण अभी पूरे नहीं हुए हैं.

विपक्ष के नेता सवाल उठाने लगे तो भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने यह कहकर झिड़क दिया कि ‘कांग्रेस और विपक्ष को किसी भी भारतीय चीज पर गर्व नहीं होता.’

यह ‘वैक्सीन राष्ट्रवाद’ की शुरुआत है. आगामी दिनों और महीनों में जब यह अपने चरम पर होगा तब विपक्षी नेता इसके हमले से बचने की जुगत करने के सिवा शायद ही कुछ कर पाएं. अखिलेश यादव को ‘भाजपा की वैक्सीन’ की खोज करने का श्रेय तो दिया ही जाएगा चाहे इसकी कीमत उन्हें और पूरे विपक्ष को क्यों न चुकानी पड़े.

(व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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