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Saturday, 23 November, 2024
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बिन ब्याहे माता-पिता का सुख पाने की चाहत पूरी करने के लिये किराये की कोख लेना होगा मुश्किल

संसद के शीतकालीन सत्र में किराये की कोख (विनियमन) विधेयक, 2019 राज्य सभा में पेश किया जायेगा. इस विधेयक को लोक सभा ने पारित कर दिया था.

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हाल के सालों में अनेक चर्चित हस्तियां बगैर शादी के ही किराये की कोख के चमत्कार से मां या पिता होने का सुख भोग चुकी हैं. चर्चा तो डिज़ायनर संतान प्राप्त करने के लिये भी किराये के कोख के इस्तेमाल की सुनने में आती रही है. लेकिन अब पैसे के दम पर किराये की कोख लेकर संतान सुख प्राप्त करने के दिन लदने वाले हैं. बिन ब्याहे माता या पिता बनने का सुख पाने की चाहत रखने वाली एकांकी, समलैंगिक जीवन गुजारने वालों और प्रजनन के लिये पूरी तरह सक्षम हस्तियों द्वारा किराये की कोख की मदद से संतान सुख प्राप्त करने के रास्ते बंद होने जा रहे हैं.

किराये के कोख की प्रणाली के बढ़ते दुरूपयोग की वजह से लंबे समय से इसे नियंत्रित करने की आवश्यकता महसूस हो रही थी. भारत में किराये के कोख के कारोबार को तो ‘फर्टीलिटी टूरिज्म’ का नाम तक दे दिया गया था. इस प्रणाली दुरूपयोग की बढ़ती घटनाओ को देखते हुये पहली बार तीन साल पहले 2016 में संसद में एक विधेयक पेश किया गया था.

संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान किराये की कोख (विनियमन) विधेयक, 2019 राज्य सभा में पेश किया जायेगा. इस विधेयक को संसद के बजट सत्र के दौरान लोक सभा ने पारित कर दिया था.

किराये की कोख का मकसद निःसंतान दंपत्ति को संतान का सुख प्राप्त करने का विकल्प उपलब्ध कराना था. लेकिन इस समूची प्रक्रिया का तेज़ी से व्यावसायीकरण हो गया. नतीजा यह हुआ कि निःसंतान दंपत्तियों की इच्छा पूरी करने वाले हज़ारों क्लीनिक देश के विभिन्न हिस्सों में खुल गये और पैसे के लालच में समाज के गरीब तबके की महिलाओं के शोषण की घटनायें बढ़ने लगी. यहीं से किराये की कोख के कारोबार को नियंत्रित करने की आवश्यकता महसूस की जाने लगी क्योंकि इस प्रक्रिया के माध्यम से समाज के संपन्न तबके में बिन ब्याहे ही मां या पिता बनने का सुख प्राप्त करने की मानो होड़ लग गयी.

स्थिति यह हो गयी कि वैवाहिक जीवन में पहले ही माता पिता बन चुके चर्चित चेहरे भी किराये की कोख से एक बार फिर संतान सुख लेने की दौड़ में शामिल हो गये . किराये की कोख की मदद से संतान का सुख प्राप्त करने वालों की सूची काफी लंबी है. इसमें फिल्म निर्माता करण जौहर, अभिनेता तुषार कपूर, अभिनेता आमीर खां-पत्नी किरण राव, अभिनेत्री सनी लेओनी -पति डैनियम वेबर, शाहरूख खां-गौरी खां और हास्य कलाकार कृष्णा अभिषेक-कश्मीरा शाह सरीखी अनेक हस्तियों के नाम शामिल हैं. करण जौहर और तुषार कपूर जैसी हस्तियां तो अविवाहित हैं.

किराये की कोख उपलब्ध कराने के कारोबार में डाक्टरों, अस्पतालों और इससे जुड़े दूसरे व्यावसाय के लोगों के अलावा गरीब तबके की अनेक महिलायें भी शामिल हैं. इस समय देश में निःसंतान दंपत्तियों के संतान की इच्छा पूरी करने वाले देश में हज़ारों क्लीनिक हैं. किराये की कोख के माध्यम से जल्द ही धन अर्जित करने की लालसा में गरीब महिलाओं के उत्पीड़न के भी अनेक मामले सामने आये हैं.


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भारत में एक अनुमान के अनुसार किराये की कोख का कारोबार अरबों रूपए का है. यदि किराये की कोख के कारोबार पर रोक लगाने संबंधी कानून ने मूर्तरूप ले लिया तो इस व्यवसाय से जुड़े तमाम क्षेत्र प्रभावित हो सकते हैं.

ज़रूरतमंद दंपत्तियों की बजाये चर्चित हस्तियों के मां या पिता बनने की चाहत की वजह से किराये की कोख के इस्तेमाल और इस प्रक्रिया में महिलाओं के शोषण को सरकार ने काफी गंभीरता से लिया है. यही वजह है कि सरकार निःसंतान दंपतियों को भी संतान का सुख प्रदान करने के लिये इस्तेमाल हो रही इस प्रणाली को कानून की मदद से नियंत्रित करना चाहती है. इसका मकसद किराये की कोख के बढ़ते व्यावसायीकरण और इसकी आड़ में महिलाओं के शोषण पर प्रभावी तरीके से अंकुश लगाना और इस कानून का दुरूपयोग रोकना है.

संसद के बजट सत्र के दौरान लोक सभा ने किराये की कोख (विनियमन) विधयेक, 2019 पारित कर दिया है. अब इसे संसद के शीतकालीन सत्र में राज्य सभा में पेश किया जायेगा. राज्य सभा से पारित होने के बाद राष्ट्रपति की संस्तुति मिलते ही यह कानून बन जायेगा और फिर एकांकी, समलैंगिक या संतानोत्पति करने में सक्षम दंपत्ति किराये की कोख का लाभ नहीं उठा सकेंगे.

राजग सरकार ने सबसे पहले 2016 में यह विधेयक लोकसभा में पेश किया था. लोकसभा ने 21 नवंबर 2016 को पेश इसे संसद की स्थाई समिति के पास भेज दिया गया था. स्थाई समिति ने 10 अगस्त, 2017 को संसद को अपनी रिपोर्ट दी थी. इसके बाद 16वीं लोकसभा ने दिसंबर, 2018 में किराये की कोख (विनियमन) विधेयक पारित किया था लेकिन राज्य सभा से इसे पारित नहीं कराया जा सका था.

इस विधेयक के कानून का रूप मिलने के बाद किराये की कोख की मदद से संतान सुख सिर्फ वे दंपति ही प्राप्त कर सकेंगे जिनके मामले में चिकित्सकीय रूप से यह प्रमाणित होगा कि वे संतानोत्पति करने में सक्षम नहीं है. संतानोत्पति करने में अक्षमता को प्रमाणित करने के लिये राष्ट्रीय सरोगेसी बोर्ड और राज्य सरोगेसी बोर्ड से प्रमाण पत्र लेना अनिवार्य होगा.

इस संबंध में कानून बन जाने के बाद विदेशी दंपत्तियों के लिये भारत में किराये की कोख प्राप्त करना नामुमकिन हो जायेगा और संतान की चाहत रखने वाले ऐसे दंपति को बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया का पालन करना होगा. यही नहीं, गोद लेने की प्रक्रिया से बच्चा प्राप्त करने वाली दंपत्ति आगे चलकर ऐसी संतान का परित्याग नहीं कर सकेंगी.

किराये की कोख (विनियमन) विधेयक के प्रावधान सिर्फ निःसंतान दंपति को अपने ‘नज़दीकी रिश्तेदार’ के माध्यम से संतान के जन्म लेने की अनुमति देते हैं. यह कानून बनने के बाद जहां महिला जीवन में सिर्फ एकबार किसी निःसंतान दंपति की ख्वाहिश पूरी करने के लिये अपनी कोख किराये पर उपलब्ध करा सकती है, वहीं इसका लाभ प्राप्त करने के इच्छुक जोड़े के लिये ज़रूरी है कि वह कम से कम पांच साल से कानूनी रूप से विवाहित जीवन गुजार रहा हो और निःसंतान हो.

इसमें यह प्रावधान भी है कि किराये की कोख के माध्यम से संतान प्राप्त करने के इच्छुक दंपति में से किसी एक को यह साबित करना होगा कि वह संतान पैदा करने में सक्षम नहीं है और उसे 90 दिन के भीतर इस संबंध में चिकित्सीय प्रमाण पत्र देना होगा. इस तरह का प्रमाण पत्र प्राप्त करने के इच्छुक दपंतियों के लिये ज़रूरी है कि पत्नी की आयु 23 से 50 साल के बीच और पति की आयु 26 से 55 साल के बीच हो. इसके अलावा, यह भी ज़रूरी है कि ऐसे दंपत्ति के कोई जीवित जैविक, गोद ली हुयी या किराये की कोख से जन्मी संतान नहीं हो, इसमें मानसिक या शारीरिक अक्षमता या असाध्य रोग से पीड़ित बच्चे शामिल होंगे.

इसी तरह, किराये की कोख देने की पात्रता रखने वाली महिला के लिये भी एक प्रमाण पत्र प्राप्त करना अनिवार्य होगा. इसके अंतर्गत महिला विवाहित होनी चाहिए जिसकी अपनी संतान हो और उसकी आयु 25 से 35 साल के बीच हो. ऐसी विवाहित महिला जीवन में एक बार ही अपनी कोख किराये पर दे सकेगी और इसके पास किराये की कोख के लिये चिकित्सीय तथा मानसिक रूप से स्वस्थ होने का प्रमाण पत्र होना चाहिए.


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प्रस्तावित कानून के तहत जहां केन्द्र और राज्य सरकारें किराये की कोख की सहायता से संतान प्राप्त करने के इच्छुक दंपति और इसके लिये सहमति देने वाली महिला को पात्रता का प्रमाण पत्र देने के लिये उचित प्राधिकार की नियुक्ति करेगी और यह सुनिश्चित किया जायेगा कि किराये की कोख उपलब्ध कराने वाली महिला को उचित मेडिकल खर्च के अतिरिक्त कोई और भुगतान नहीं किया जाये.

इसके प्रावधानों में किराये की कोख के लिये धन लेने, विज्ञापन करने या किराये की कोख देने वाली महिला का शोषण करना, किराये की कोख से जन्मी संतान का परित्याग, शोषण या उसे अपनाने से इंकार करना और किराये की कोख के लिये भ्रूण या गैमिट की बिक्री या उनका आयात दंडनीय अपराध बनाया जा रहा है. इसके लिये दस साल तक की कैद और दस लाख रूपए तक के जुर्माने की सज़ा का प्रावधान इसमें है.

किराये की कोख से जन्म लेने वाली संतान और इस तरह की प्रजनन प्रक्रिया से जुड़े कई मामले उच्चतम न्यायालय में आ चुके हैं और इस पर विधि आयोग भी अपनी रिपोर्ट दे चुका है.

इस संबंध में एक मामला याद आता है जिसमें जर्मन सरकार ने भारतीय महिला की किराये की कोख से जन्मे जर्मन दंपति जान बलाज और सुसान लोह्ले के जुड़वा बच्चों को वीजा देने से इंकार कर दिया था क्योंकि किराये की कोख अपनाने की प्रक्रिया जर्मनी के कानून के तहत दंडनीय अपराध है.

इस दंपति ने एक समझौते के तहत गुजरात के आणंद में एक महिला की कोख किराये पर ली थी. महिला ने जनवरी, 2008 में जब जुड़वा बच्चों को जन्म दिया तो जर्मन दंपति इनके लिये भारतीय नागरिकता चाहता था क्योंकि ऐसा होने पर बच्चों को भारत का पासपोर्ट मिल सकता था और इसके सहारे वे जर्मनी जा सकेंगे.

गुजरात उच्च न्यायालय ने इन बच्चों को भारत की नागरिकता प्रदान करने और उन्हें यात्रा के दस्तावेज़ उपलब्ध कराने का निर्देश केन्द्र को दिया था क्योंकि उनका जन्म भारतीय महिला की किराये की कोख से हुआ था. लेकिन केन्द्र सरकार ने इसे उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी क्योंकि किराये की कोख से जन्म लेने वाले इन बच्चों को भारत की नागरिकता नहीं दी जा सकती. ऐसी स्थिति में इस दंपति के सामने इन बच्चों को गोद लेने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं था और मई 2010 में इसी प्रक्रिया के माध्यम से वह अपने बच्चों को जर्मनी ले जा सका.

उम्मीद की जानी चाहिए की किराये की कोख के अनियंत्रित तरीके से पनप रहे इस कारोबार को नियंत्रित करने के प्रयास में सरकार को सफलता मिलेगी और किराये की कोख की सुविधा का लाभ सिर्फ जरूरतमंद दंपत्तियों को ही मिल सकेगी.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं .जो तीन दशकों से शीर्ष अदालत की कार्यवाही का संकलन कर रहे हैं. इस लेख में उनके विचार निजी हैं)

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