scorecardresearch
Thursday, 25 April, 2024
होमदेशअब कोख के व्यवसाय पर लगेगी रोक, लोकसभा में विधेयक पारित

अब कोख के व्यवसाय पर लगेगी रोक, लोकसभा में विधेयक पारित

लोकसभा में सरोगेसी विधेयक पास हो गया. महिलाओं का शोषण रोकने के लिए लाए गए इस विधेयक से कमर्शियल सरोगेसी पर प्रतिबंध लग जाएगा.

Text Size:

नई दिल्ली: लोकसभा में सरोगेसी (नियामक) विधेयक 19 दिसंबर को पास हो गया. यह विधेयक महिलाओं के शोषण को रोकने के उद्देश्य से पारित किया गया है. इस विधेयक से कमर्शियल सरोगेसी पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. यानी अब पैसे लेकर किराये की कोख से बच्चे पैदा नहीं किए जा सकेंगे. लेकिन नि:संतान दंपति गैर व्यावसायिक ढंग से सरोगेसी की मदद ले सकते हैं. इसके लिए नि:संतान दंपति अपने करीबियों की मदद ले सकेंगे. इस पर कोई प्रतिबंध नहीं होगा.

वकीलों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और बुद्धजीवियों के प्रयास से पारित हुए इस विधेयक को लेकर अलग-अलग विचार आने लगे हैं. जहां इस विधेयक को पारित कराने में लगे लोगों ने इसे सराहनीय कदम बताया है, वहीं सरोगेसी करने वाले आईवीएफ सेंटर के डाक्टर विधेयक को लेकर नाखुश हैं.

सरोगेसी विधेयक में है क्या

सरोगेसी यानी किसी और के कोख से अपने बच्चे को जन्म देना. इसके तहत कोई भी निसंतान दंपति संतान सुख भोग सकता है. जब कोई दंपति किन्हीं कारणों से माता-पिता नहीं बन पाते तो वे तीसरी महिला की मदद लेते हैं, जिसे इसके बदले में पैसा और अन्य सुविधाएं दी जाती हैं. इस विधेयक के तहत कमर्शियल सरोगेसी को प्रतिबंधित किया गया है. ऐसा करने के पीछे का मकसद भारत को कमर्शियल सरोगेसी का हब बनने से रोकना है.

इसके तहत सरोगेसी की मदद ले रहे दंपति सरोगेट मदर के मेडिकल खर्च और इंश्योरेंस कवरेज का ही भुगतान कर पाएंगे. सरोगेट मदर उस दंपति की करीबी रिश्तेदार होनी चाहिए और उसकी उम्र 25-35 साल के बीच होनी चाहिए. इसके अलावा उस महिला का कम से कम एक अपना बच्चा होना चाहिए. विधेयक के इस प्रावधान का मकसद फर्टिलिटी सेंटरों की मनमानी को रोकना भी है.

विधेयक के अनुसार समलैंगिक, सिंगल पैरेंट और लिव-इन पार्टनर्स किराये की कोख नहीं ले पाएंगे. ऐसे मामलों के लिए नेशनल सरोगेसी बोर्ड और स्टेट सरोगेसी बोर्ड बनाए जाएंगे. इन्हीं के जरिये सरोगेसी को रेगुलेट किया जाएगा. विधेयक के मुताबिक जो दंपति सरोगेसी का लाभ लेना चाहते हैं, उन्हें 90 दिनों के भीतर इनफर्टिलिटी का सर्टिफिकेट देना होगा. यही नहीं, विधेयक में सरोगेसी के नियमों को भी काफी कठोर बना दिया गया है. सरोगेसी के नियम तोड़ने पर दंपति को 5 साल और सरोगेट मदर को 10 साल तक की सजा हो सकती है. इसके अलावा 10 लाख तक का जुर्माना भी लगाया जा सकता है.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

सरोगेसी विधेयक की जरूरत क्यों पड़ी?

किराये पर कोख देने के नाम पर महिलाओं के साथ हो रहे किसी भी तरह के शोषण से उन्हें बचाने के लिए एक कानून की जरूरत थी. देश में तेजी से फल-फूल रहे इनफर्टिलिटी सेंटरों के बीच दुनिया भर से लोग सरोगेट मदर की तलाश में भारत आ रहे थे.

भारत में ज्यादातर महिलाएं जानकारी के अभाव और पैसों की तंगी के चलते सरोगेट मदर बनने को तैयार हो जाती हैं. लेकिन उनकी इसी अज्ञानता और मजबूरी का फायदा इनफर्टिलिटी सेंटर वाले उठाते हैं. वह नि:संतान दंपति से एक सरोगेसी का 30-40 लाख वसूलते हैं लेकिन सरोगेट मदर के हिस्से केवल तीन-चार लाख रुपये ही आते हैं.

कई मामलों में तो महिलाओं को पूरे नौ महीने अपने परिवार से दूर किसी शेल्टर होम में रखा गया. ऐसे में महिलाओं, खासकर सेरोगेट मदर के हितों की रक्षा करने और उनको शोषण से बचाने के लिए एक कानून की जरूरत थी.

विधेयक को लेकर क्या हैं विचार

सरोगेसी विधेयक के लोकसभा में पास होने से इसे पारित कराने में लगे लोगों में खुशी है, वहीं सरोगेसी से तगड़ी रकम वसूलने वाले डाक्टरों ने इसका विरोध किया है.

2015 में कमर्शियल सरोगेसी पर प्रतिबंध लगाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी. याचिकाकर्ता की तरफ से पेश हुए सुप्रीम कोर्ट के वकील शेखर नाफडे इस विधेयक को लेकर कहते हैं, ‘सरोगेसी के तहत महिलाओं का शोषण हो रहा था. इस विधेयक के आने से उनके शोषण पर रोक लगेगी. इस विधेयक को लेकर कुछ लोगों के अपने विचार हो सकते हैं लेकिन यह विधेयक बहुत जरूरी था.’

विधेयक में सिंगल पैरेंट्स का सरोगेसी का लाभ उठाना प्रतिबंधित है.
इस पर शेखर नाफडे कहते हैं, ‘विधेयक का यह प्रावधान भी सही है. अगर प्राकृतिक रूप से देखा जाए तो एक बच्चे के विकास में माता-पिता दोनों का योगदान होता है. एक बच्चे को दोनों की जरूरत होती है. यह प्रावधान भारतीय समाज और वर्षों से चली आ रही हमारी परंपरा के भी अनुरूप है.’

सरोगेसी विधेयक को लेकर कुछ विरोध के स्वर भी उठते दिखाई दे रहे हैं. यह विरोध ज्यादातर इंफर्टिलिटी सेंटरों की ओर से है. आईवीएफ नर्चर की डॉ. अर्चना कहती हैं, ‘यह विधेयक बहुत ही रेडिकल है. हमारे समाज में इस काम के लिए सगे-संबधी ढूंढना बहुत ही कठिन है. रिश्तेदारों को मोटिवेट करना इसके लिए बहुत ही चैलेंजिंग है. इस विधेयक से जरूरतमंद कपल्स की दिक्कतें बढ़ गई हैं. मेरे यहां कई केस आए हैं जिनमें मिसकैरेज के बाद भी इस टेक्न्निक की मदद से उनकी संतान की चाहत पूरी हुई है.’

आईवीएफ सेंटरों पर मनमाना पैसा वसूलने और सरोगेट मदर्स के शोषण के आरोप लगते रहे हैं.

इस पर अर्चना कहती हैं, ‘हर तस्वीर के दो पहलू होते हैं. मेरे यहां ऐसे बहुत सारे दंपति हैं जिन्होंने सरोगेट मदर का जीवनभर का पूरा खर्चा उठाया है. मेरे यहां कोख धारण करने वाली कई महिलाओं का जीवन पूरी तरह से बदल गया. उनका जीवनस्तर सुधर गया है. सराकर को कमर्शियल सरोगेसी पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने की जगह इस पर कड़ी निगरानी रखनी चाहिए.’

सरोगेसी की मदद से कुछ सेलिब्रिटी ने भी संतान सुख प्राप्त किया है. विधेयक के आने से इन सेलिब्रिटियों को भी दिक्कत का सामना करना पड़ेगा.

share & View comments