scorecardresearch
Friday, 31 October, 2025
होमThe FinePrintमोदी के भव्य आयोजनों में खो गई सरदार पटेल की विरासत, हर मंच पर खुद को कर रहे प्रमुख

मोदी के भव्य आयोजनों में खो गई सरदार पटेल की विरासत, हर मंच पर खुद को कर रहे प्रमुख

सरदार पटेल स्टेडियम का नाम 2021 में नरेंद्र मोदी स्टेडियम रखे जाने पर भी यही झलक दिखी—जब अपने छवि निर्माण के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने सरदार के नाम को भी पीछे छोड़ दिया.

Text Size:

सरदार पटेल के नाम का इस्तेमाल करने और उन्हें सच्चे अर्थों में सम्मान देने के बीच बहुत बड़ा फर्क है. बार-बार मौजूदा सरकार—जो पूरी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नियंत्रण में चलती है, उसने नाम के इस्तेमाल में बेहद उत्साह दिखाया है, जबकि पटेल को अक्सर नज़रअंदाज़ किया गया.

पिछले दो दशकों से मोदी और भाजपा लगातार सरदार पटेल की छवि को अपनाने की कोशिश करते रहे हैं. “सरदार के साथ अन्याय हुआ” जैसे बार-बार दोहराए गए राजनीतिक विमर्श से लेकर स्टैच्यू ऑफ यूनिटी—जो दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा है—तक, सबमें जोर भव्यता पर रहा है, सार्थकता पर नहीं. विडंबना यह है कि लगभग 3,000 करोड़ रुपये की लागत से तैयार हुई यह प्रतिमा चीन में बनाई गई और भारत में जोड़ी गई. सरदार के सादगीपूर्ण जीवन को देखते हुए यह प्रतिमा एक श्रद्धांजलि से ज़्यादा “स्टैच्यू ऑफ आयरनी” (विडंबना की मूर्ति) प्रतीत होती है.

2021 में फिर एक बार यह स्पष्ट रूप से दिखा, जब अहमदाबाद के मोटेरा स्थित सरदार पटेल स्टेडियम का नाम बदलकर नरेंद्र मोदी स्टेडियम कर दिया गया. इसके बाद समर्थकों ने सोशल मीडिया पर सफाई देने की होड़ मचा दी—किसी ने कहा कि स्टेडियम का असली नाम पहले भी मोटेरा स्टेडियम था, तो किसी ने दावा किया कि सरदार पटेल का नाम अब पूरे स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स से जुड़ा है, लेकिन बीसीसीआई अध्यक्ष जय शाह के पुराने ट्वीट कुछ और कहानी बताते हैं. आज अहमदाबाद में लगे साइनबोर्ड्स पर सिर्फ “नरेंद्र मोदी स्टेडियम” लिखा दिखता है—न सरदार पटेल का नाम, न किसी स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स का ज़िक्र.

श्रद्धांजलि या आत्म-प्रचार?

यह नाम बदलने की प्रवृत्ति एक बड़े पैटर्न में फिट बैठती है. जैसे-जैसे मोदी का कद बढ़ा, उनके गुरु और पहले “छोटे सरदार” कहे जाने वाले लालकृष्ण आडवाणी पूरी तरह हाशिये पर चले गए. आडवाणी खुद को लंबे समय से “लौह पुरुष” और “छोटे सरदार” के रूप में पेश करते थे. उपप्रधानमंत्री का पद, जैसा कि सरदार पटेल के पास भी था, उनके इस उपनाम की वजह नहीं था — यह ऐतिहासिक समानता से ज़्यादा आत्म-छवि का मामला था. स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के उद्घाटन समारोह से आडवाणी की अनुपस्थिति बहुत कुछ कह गई.

भारतीय जनता पार्टी का सरदार पटेल के प्रति आकर्षण नया नहीं है. मोदी के मुख्यमंत्री बनने से पहले ही, दिसंबर 1996 में मुख्यमंत्री सुरेश मेहता के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने तत्कालीन प्रधानमंत्री एच. डी. देवेगौड़ा के साथ मिलकर अहमदाबाद एयरपोर्ट का नाम बदलकर सरदार वल्लभभाई पटेल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा रखा था. यह प्रतीकात्मक कदम उस समय के विपरीत था जब अहमदाबाद में सरदार पटेल से जुड़े असली स्मारक उपेक्षा झेल रहे थे.

नवंबर 2002 में, गोधरा हिंसा के बाद, narendramodi.org नाम की वेबसाइट पर एक डिजिटल रूपांतरण दिखाया गया था — जिसमें चार चरणों में मोदी का चेहरा धीरे-धीरे सरदार पटेल में बदलता था. द इंडियन एक्सप्रेस (16 नवंबर 2002) की रिपोर्ट के मुताबिक, यह साइट आधिकारिक नहीं थी, लेकिन इसे मोदी के एक दोस्त ने होस्ट किया था. बताया गया कि मोदी को साइट के ईमेल तक पहुंच थी और जिस डिज़ाइन कंपनी ने यह काम किया, उसे सरकारी ठेके भी मिले. यह ट्रांसफॉर्मेशन “Know Your Sardar” टैगलाइन के साथ 31 अक्टूबर, सरदार पटेल की जयंती पर लाइव हुआ था. यह एक प्रतीकात्मक कदम था जो श्रद्धांजलि और आत्म-प्रचार की सीमा को धुंधला कर देता था. यही था मोदी का “अपना तरीका” सरदार को सम्मान देने का.

31 अक्टूबर 2018 को स्टैच्यू ऑफ यूनिटी का उद्घाटन हुआ. तब से लगातार, औपचारिक और अनौपचारिक दोनों स्तरों पर, इसे एक स्मारक से ज़्यादा एक पर्यटन स्थल के रूप में प्रमोट किया गया है. जंगल सफारी (जहां बाहर से लाए गए जानवर रखे गए हैं), वैली ऑफ फ्लावर्स और लेज़र शो जैसी चीज़ें यहां की मुख्य आकर्षण बन गई हैं.

हालांकि, यह प्रतिमा सरदार पटेल से जुड़ी है, लेकिन ज़्यादातर लोग उनकी विरासत से नहीं जुड़ते. यहां आने वाले पर्यटकों की बातचीत में शायद ही कभी उनके जीवन या योगदान का ज़िक्र होता है. साइट पर एक म्यूजियम है, लेकिन वह भी अक्सर नज़रअंदाज़ रह जाता है — इतिहास जैसे सामने होकर भी ओझल है. इसके बजाय लोग बात करते हैं चिड़ियाघर, बॉटनिकल गार्डन, ई-रिक्शा, लंबी कतारों और लेज़र शो की. केंद्र सरकार यहां राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रम आयोजित करती है और कई राज्यों से विशेष ट्रेनें भी चलाई जाती हैं, लेकिन समग्र रूप से जो प्रभाव उभरता है, वह यह है कि यह स्थान सरदार पटेल की तुलना में मोदी का उत्सव ज़्यादा लगता है.


यह भी पढ़ें: सरदार पटेल के व्यंग और मजाक के कायल थे महात्मा गांधी


भव्य जश्न

आइए अब 31 अक्टूबर 2024 पर लौटते हैं — संस्कृति मंत्रालय ने सरदार पटेल की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में दो साल तक चलने वाले समारोह की घोषणा की, जिसकी शुरुआत स्टैच्यू ऑफ यूनिटी से हुई. प्रस्तावित कार्यक्रमों में एक स्मारक सिक्का और डाक टिकट, ‘वल्लभ’ नाम की एक विशेष पुस्तक और 560 से अधिक रियासतों के एकीकरण में पटेल की भूमिका पर एक डॉक्यूमेंट्री शामिल थी. मंत्रालय ने लेक्चर, प्रदर्शनियां, युवा कार्यक्रम, डिजिटल प्रोजेक्ट और एक वर्चुअल म्यूज़ियम की भी घोषणा की थी. इसके लिए एक समर्पित पोर्टल — www.sardar150.gov.in — लॉन्च किया गया था, जहां आम जनता इन कार्यक्रमों और संसाधनों तक पहुंच पा सके.

लेकिन इन वादों में से ज़्यादातर अभी अधूरे हैं. ‘वल्लभ’ पुस्तक अब तक प्रकाशित नहीं हुई है और आधिकारिक वेबसाइट खोलने पर “404 Page Not Found” की त्रुटि दिखती है. स्मारक सिक्का अब 31 अक्टूबर 2025 को जारी किए जाने की योजना है. अब तक जो एकमात्र ठोस “नवाचार” दिखा है, वह प्रधानमंत्री संग्रहालय में लगाया गया एआई से बना सरदार पटेल का अवतार है, जहां विजिटर्स उनसे सवाल पूछ सकते हैं और “पटेल की आवाज़” में जवाब सुन सकते हैं. यह आवाज़ और जवाब दोनों ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से बनाए जाते हैं. यह प्रयोग कई ऐतिहासिक और नैतिक सवाल खड़े करता है.

सरदार पटेल की 150वीं जयंती के इस भव्य समारोह में गणतंत्र दिवस की तरह एक परेड का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें 10 झांकियां शामिल होंगी. भारतीय वायुसेना की सूर्य किरण एरोबेटिक टीम फ्लाई-पास्ट करेगी और प्रधानमंत्री को केंद्रीय सुरक्षा बलों व गुजरात पुलिस की ओर से गार्ड ऑफ ऑनर दिया जाएगा. समारोह के बाद 15 दिन का सांस्कृतिक उत्सव भी होगा, जिसमें पूरे भारत से खानपान और हस्तशिल्प की दुकानें, लाइव प्रस्तुतियां और प्रदर्शनियां लगेंगी — जो देश की समृद्ध परंपरा को दिखाएंगी.

लेकिन इस पूरी भव्य योजना का सरदार पटेल की मूल भावना से कोई लेना-देना नहीं है.

पटेल की सच्ची विरासत सादगी, प्रशासनिक कुशलता, विनम्रता, महात्मा गांधी के प्रति गहरा सम्मान और जवाहरलाल नेहरू के साथ विचारों में मतभेद होते हुए भी सिद्धांतों पर आधारित सहयोग से परिभाषित होती है. यह विरासत मोदी के उस नैरेटिव में फिट नहीं बैठती, जो प्रतीकात्मक (स्वामित्व लेने) और व्यक्तिगत महिमामंडन पर टिकी है.

(उर्वीश कोठारी अहमदाबाद स्थित एक वरिष्ठ स्तंभकार और लेखक हैं. व्यक्त विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: भारतीयों ने सरदार पटेल को बस 1947 के एकीकरण तक सीमित कर दिया है, वो और भी बहुत कुछ थे


 

share & View comments