पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले के संदेशखाली क्षेत्र में हो रहा विरोध प्रदर्शन इस क्षेत्र में लंबे समय से जारी अशांति का एक हिस्सा भर है. तृणमूल कांग्रेस के नेताओं शेख शाहजहां, शिब प्रसाद हाजरा और उत्तम सरदार के खिलाफ गांव के लोगों द्वारा ज़मीन पर कब्ज़ा करने और यौन उत्पीड़न सहित अन्य तरह के अत्याचारों के आरोप दिखाते हैं कि स्थिति कितनी गंभीर है. हाजरा और सरदार को तो गिरफ्तार कर लिया गया है, लेकिन शाहजहां उस दिन से फरार है जिस दिन ईडी की टीम जनवरी महीने में उसके घर पर छापा मारने पहुंची थी, और उसके लोगों ने अधिकारियों पर हमला कर दिया था. लेकिन, इस पूरे प्रकरण में गांव वालों की शिकायत पर सीएम ममता बनर्जी की जो प्रतिक्रिया अब तक रही है, वह चिंता का विषय है.
यौन उत्पीड़न के आरोपों के गंभीर मामले में किए गए दावों और प्रतिदावों यानि कि उसके खंडन की सत्यता को जांच पाना अभी मुश्किल है. टीएमसी और बीजेपी के बयानों का विश्लेषण करना काफी मुश्किल है. लेकिन हमें उनकी प्रतिक्रियाओं और पश्चिम बंगाल की राजनीति में जो नाटक चल रहा है उसकी जांच ज़रूर करनी चाहिए. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शेख शाहजहां पर लगे आरोपों से निपटने में तेजी और गांव वालों के प्रति सहानुभूति नहीं दिखाई है. इसके बजाय वह भाजपा पर राजनीति करने का आरोप लगा रही हैं. दूसरी ओर, भाजपा इसे हिंदू बनाम मुस्लिम मुद्दा बनाने में लगी है और गांव वालों को न्याय दिलाने के बजाय टीएमसी को घेरने में उसकी ज्यादा रुचि दिख रही है.
भाजपा कार्यकर्ताओं और पुलिस के बीच झड़पों से फैले तनाव का हिंसा में बदलना, बताता है कि संदेशखाली में स्थिति कितनी खराब हो चुकी है. ये घटनाएं राज्य में शासन, कानून प्रवर्तन और बुनियादी अधिकारों की सुरक्षा से संबंधित गहरे मुद्दों की पोल खोलती हैं.
दोषारोपण करने का खेल मत खेलो
जब लिंग आधारित हिंसा और अन्याय के आरोप सामने आते हैं, तो नेताओं को सभी प्रभावित पक्षों के लिए सहानुभूति, दृढ़ता और न्याय के प्रति प्रतिबद्धता दिखानी चाहिए. इस मामले में अब तक कुछ गिरफ्तारियां की गई हैं और सीएम ममता बनर्जी ने कार्रवाई करने का वादा किया है, लेकिन राजनीति से प्रेरित आरोप-प्रत्यारोप में उलझकर उन्होंने स्थिति की गंभीरता को भी कमतर किया है. सिस्टेमेटिक बदलाव की जरूरत है और मुख्यमंत्री इसे बिल्कुल नहीं समझ रही हैं.
सरकारों और कानून प्रवर्तन एजेंसियों को बल के प्रयोग पर पूरा नियंत्रण रखने की ज़रूरत है. यह शासन का एक मूलभूत सिद्धांत है. हालांकि, पश्चिम बंगाल में इससे समझौता किया गया है क्योंकि यह क्षेत्र सिंडिकेट राजनीति के प्रभाव में आ गया है. ऐसा लगता है कि टीएमसी नेताओं का एक वर्ग एक विकृत व्यवस्था के नापाक नेटवर्क के भीतर अपनी महत्वपूर्ण भूमिकाओं व स्थितियों की वजह से इस तरह से काम कर रहा है कि जैसे उसे किसी तरह की सज़ा का कोई डर ही न हो.
इस महत्वपूर्ण समस्या को हल करने के लिए सरकार को ठोस कार्रवाई करनी होगी जिसका असर पड़े भी और दिखे भी. अधिकारियों को कानून का शासन कायम करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता दिखानी चाहिए और इसे कमजोर करने में शामिल लोगों को जड़ से उखाड़ फेंकना चाहिए. ऐसा न कर पाने से न केवल अपराधियों को प्रोत्साहन मिलेगा बल्कि कानून और न्याय-व्यवस्था बनाए रखने में सरकार की क्षमता के प्रति भी लोगों के विश्वास में कमी आएगी.
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सरकार का पहला कदम अपनी अथॉरिटी को लागू करना और कथित सिंडिकेट और उसके सहयोगियों का सामना करना होना चाहिए. जनता को आश्वस्त करने के लिए तेज़ी से और मजबूती के साथ कानून को लागू करना और पारदर्शी जवाबदेही तंत्र की ज़रूरत होगी ताकि यह जनता को यह महसूस हो कि न्याय दिया जा रहा है.
यह देखना बेहद निराशाजनक है कि टीएमसी जैसी राजनीतिक पार्टी जो अक्सर खुद को प्रगतिशील, उदारवादी और महिला सशक्तीकरण के समर्थक के रूप में पेश करती रही है, वह अपने ही राज्य की महिलाओं के खिलाफ अत्याचार के आरोपों को अपेक्षित महत्व नहीं दे रही है. अप्रैल 2022 में नादिया ज़िले में एक जन्मदिन पार्टी में शामिल होने के लिए गई कथित तौर पर बलात्कार की शिकार हुई एक नाबालिग लड़की का दुखद मामला ऐसी प्रवृत्ति को उजागर करता है जो काफी परेशान करने वाली है. इस दर्दनाक घटना के तुरंत बाद पीड़िता की मौत हो गई थी, लेकिन कथित तौर पर टीएमसी नेता समर गोआला के दबाव में बिना शव परीक्षण (Autopsy) के उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया था. नेता का बेटा, ब्रज गोपाल गोआला, इस मामले में मुख्य आरोपी है.
बाद में पश्चिम बंगाल पुलिस ने ब्रज गोपाल को हिरासत में ले लिया, लेकिन 14 वर्षीय लड़की के साथ बलात्कार की खबरों पर बनर्जी की प्रतिक्रिया निराश करने वाली थी. बलात्कार की घटना पर ममता बनर्जी का सवाल खड़े करना और ‘उसके साथ रेप हुआ, क्या वो प्रेग्नेंट थी, या लव अफेयर का मामला था या फिर वह बीमार थी’ जैसी काल्पनिक बातें कहकर, सीएम ने पीड़ित परिवार के दुख और न्याय पाने की उनकी उम्मीदों की उपेक्षा की.
कोई हिंदू-मुस्लिम मुद्दा नहीं
महिलाओं के विरोध पर भाजपा की प्रतिक्रिया से उम्मीद है कि सरकार पर त्वरित कार्रवाई करने का दबाव बनेगा. लेकिन राजनीतिक लाभ के लिए इसे हिंदू बनाम मुस्लिम का मुद्दा बनाने से लंबे समय में गंभीर नतीजे हो सकते हैं.
हिंदू महिलाओं को मुस्लिम पुरुषों के शिकार के रूप में पीड़ित दिखाना ध्रुवीकरण की राजनीति का एक स्वरूप है जिसके परिणाम सकारात्मक नहीं हो सकते. बीजेपी सांसद लॉकेट चटर्जी ने इस घटना की तुलना पाकिस्तान और इराक में हिंदू महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों से की है. यह एक गलत तुलना है, चूंकि हिंदू, सिख और अन्य गैर-मुस्लिम महिलाओं को अपने धार्मिक पहचान की वजह से पाकिस्तान में अपहरण, बलात्कार और जबरन धर्म परिवर्तन का सामना करना पड़ता है, इसलिए इसकी तुलना संदेशखाली मामले से नहीं की जा सकती क्योंकि यहां आरोपी हिंदू और मुस्लिम दोनों हैं.
इसके अतिरिक्त, गैर-भाजपा शासित राज्यों की तुलना पाकिस्तान से करना एक खतरनाक अतिसरलीकरण है जो भारत की विविध वास्तविकताओं और जटिलताओं को नजरअंदाज करता है. इस तरह की बयानबाजी केवल सामाजिक विभाजन को बढ़ाती है और समुदायों में एकता और सद्भाव को बढ़ावा देने के प्रयासों को कमजोर करती है. हालांकि, यह महत्वपूर्ण है कि भड़काऊ भाषा और बांटने वाले नैरेटिव का प्रयोग किसी पार्टी विशेष तक सीमित नहीं है.
(आमना बेगम अंसारी एक स्तंभकार और टीवी समाचार पैनलिस्ट हैं. वह ‘इंडिया दिस वीक बाय आमना एंड खालिद’ नाम से एक साप्ताहिक यूट्यूब शो चलाती हैं. उनका एक्स हैंडल @Amana_Ansari है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
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