तीन साल पहले हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के हॉस्टल में एक रिसर्च स्कॉलर का मृत शरीर मिला था. वह लाश यूनिवर्सिटी के समाजशास्त्र विभाग के पीएचडी स्कॉलर रोहित वेमुला की लाश थी. किसी यूनिवर्सिटी में स्टूडेंट्स की आत्महत्या की ये कोई पहली या आखिरी घटना नहीं है. लेकिन रोहित वेमुला का मामला इन सबसे अलग था. इस घटना के बाद देशभर में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसी दौरान जब लखनऊ में बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में छात्रों को डिग्रियां बांट रहे थे तो दो दलित छात्रों ने खड़े होकर मुर्दाबाद और वापस जाओ के नारे लगाए. नरेंद्र मोदी के पूरे कार्यकाल में ये पहली बार हुआ, जब उन्हें अपने सामने से मुर्दाबाद सुनना पड़ा. नरेंद्र मोदी को अपना भाषण रोकना पड़ा और जब उन दोनों छात्रों को हॉल से बाहर निकाल दिया गया और उन्होंने अपना भाषण शुरू किया तो ये कहा कि रोहित वेमुला भारत मां का लाल था. उनकी मृत्यु पर प्रधानमंत्री ने दुख जताया.
यह भी पढ़ेंः लोहिया और आंबेडकर का अधूरा एजेंडा क्या माया-अखिलेश करेंगे पूरा?
इस घटना के बाद तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी जहां कहीं भी गईं, उन्हें विरोध का सामना करना पड़ा. संसद में उनके भाषण का जमकर विरोध हुआ. इस घटना के बाद हुए पहले मंत्रिमंडल के फेरबदल में उनका विभाग बदल दिया गया. विरोध के कारण मोदी मंत्रिमंडल के किसी मंत्री के हटने का ये एकमात्र मामला था. इसके अलावा कई प्रशासनिक कदम उठाए गए. जैसे एक जांच कमेटी बनी, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल मामले में जुड़े और जासूसी करके बताया कि रोहित वेमुला की जाति क्या है. विश्वविद्यालयों में दलित-आदिवासी छात्रों का उत्पीड़न रोकने के सवाल पर राष्ट्रीय बहस शुरू हुई.
घटना क्या है?
इस घटना को अलग अलग लोग अलग अलग तरह से देख सकते हैं. लेकिन जिन तथ्यों और घटनाओं पर मोटे तौर पर आम सहमति है वो ये कि हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में आंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन और आरएसएस के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं के बीच मारपीट की एक घटना हुई. इसके बाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने जांच बिठाई. इस बीच आरएसएस के नेता तथा स्थानीय सांसद और केंद्रीय मंत्री बंदारु दत्तात्रेय ने स्मृति ईरानी को पत्र लिखकर मामले में कार्रवाई करने का अनुरोध किया. स्मृति ईरानी ने विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर को एक के बाद एक कई पत्र लिखकर कार्रवाई करने को कहा.
विश्वविद्लाय प्रशासन ने आंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन के नेताओं पर कार्रवाई की और उन्हें हॉस्टल खाली करने का आदेश दिया. रोहित वेमुला उनमें ही एक थे. हॉस्टल खाली करके ये छात्र विश्वविद्लाय के चौराहे पर खुले में रहने लगे. इसे उन्होंने वेलीवाडा या दलित बस्ती का नाम दिया. यहीं रहने के दौरान एक दिन रोहित वेमुला हॉस्टल के कमरे में गए और कुछ समय बाद वहां उनकी लाश टंगी मिली. साथ ही वहां रोहित वेमुला का लिखा एक पत्र मिला, जिसकी भाषा और दार्शनिकता ने अच्छे-अच्छे विद्वानों को चौंका दिया और तब लोगों को एहसास हुआ कि देश ने एक अच्छा विद्वान खो दिया है.
इस घटना के इतने व्यापक विरोध की क्या थी वजह
1 . छात्र संगठनों की तत्परता: हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में जो चल रहा था, उसकी सूचना देश के कई विश्वविद्यालयों में थी. हैदराबाद के छात्रों का प्रतिनिधिमंडल कई जगहों पर जाकर बता चुका था कि वहां किस तरह दलित छात्रों को पीड़ित किया जा रहा है और वे खुले में रहने को मजबूर हैं. इसलिए रोहित वेमुला की सांस्थानिक हत्या की खबर फैलते ही देशभर में विरोध शुरू हो गए. इसमें सिर्फ दलित संगठन नहीं, बल्कि कई विचारधाराओं के छात्र शामिल थे. घटना के अगले दिन जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में बंद रखा गया और कई हजार छात्रों ने दिल्ली में मानव संसाधन विकास मंत्रालय के बाहर प्रदर्शन किया.
2. घटना में केंद्रीय मंत्रियों और बीजेपी नेताओं की भूमिका : विश्वविद्यालयों में हंगामा और मारपीट कोई अजूबी घटना नहीं है. लेकिन ये मामला इतना गंभीर इसलिए माना गया क्योंकि इसमें दो केंद्रीय मंत्रियों ने सीधे तौर पर हस्तक्षेप किया था. इसके अलावा स्थानीय आरएसएस नेता भी इसमें सक्रिय थे. इसकी वजह से लोगों का गुस्सा सीधे सरकार के खिलाफ हो गया.
3 दलित संगठनों की सक्रियता: जांच कमेटी और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने बेशक रोहित वेमुला की जाति ओबीसी बताई, लेकिन इससे आंदोलन थमा नहीं. दलितों ने रोहित वेमुला को अपना आदमी और आंबेडकरवादी मान लिया था. रोहित वेमुला एक आंबेडकरवादी के तौर पर काफी सक्रिय थे और यही उनकी सार्वजनिक पहचान थी. इसलिए ओबीसी बताए जाने के बावजूद दलित संगठनों का गुस्सा शांत नहीं हुआ, बल्कि ओबीसी की तरफ से ये बात आने लगी कि क्या ओबीसी है तो विश्वविद्यालय प्रशासन किसी को हॉस्टल से बाहर फेंक देगा.
4 राजनीतिक संगठनों की भूमिका: राजनीतिक दलों ने इस घटना को काफी गंभीरता से लिया. बहुजन समाज पार्टी ने इस घटना का विरोध किया. कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी खुद हैदराबाद पहुंचे और शोक के तौर पर एक दिन का उपवास रखा. आरजेडी से लेकर तमाम और विपक्षी दलों ने भी इसे लेकर विरोध प्रदर्शन किए. मामला संसद मे भी गूंजा और इस पर अलग से बहस कराई गई.
यह भी पढ़ेंः आंबेडकर, मायावती और तेजस्वी वाली तस्वीर की कहानी
5. सोशल मीडिया की भूमिका: भारत में सोशल मीडिया 2007 से ही है. लेकिन सोशल मीडिया का आंदोलनों के लिए इस्तेमाल अब तक दूसरे तरह के आंदोलन वाले करते थे. मिसाल के तौर पर इंडिया अंगेस्ट करप्शन आंदोलन में सोशल मीडिया का जमकर इस्तेमाल हुआ. निर्भया कांड के बाद विरोध संगठित करने में सोशल मीडिया का प्रयोग किया गया. 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया का बखूबी प्रयोग किया. लेकिन सोशल मीडिया में दलितों की भी खासी उपस्थिति थी, जिनका संगठित रूप पहली बार रोहित वेमुला के मामले में देखा गया. इसलिए हैदराबाद की एक घटना अगले ही दिन राष्ट्रीय रूप ले लेती है और जगह जगह प्रदर्शन होने लगते हैं.
इन तमाम परिस्थितियों में एक युवा की मौत का राष्ट्रीय असर होता है और दलितों के संगठित विरोध की अभिव्यक्ति होती है. इसी का ज्यादा सघन रूप 2018 में 2 अप्रैल को देखने को मिला, जबकि दलितों और आदिवासियों ने एससी-एसटी एक्ट को कमजोर किए जाने के खिलाफ भारत को सफलतापूर्वक बंद कर दिया.