बिहार में चल रहे चुनावी माहौल में जाति एक अहम मुद्दा बन गई है. मौजूदा चर्चा उम्मीदवारों की जातिगत संरचना पर केंद्रित है. अपने पिछले दो लेखों में हमने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के दो प्रमुख दलों — जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) — के उम्मीदवारों की जातिगत स्थिति का विश्लेषण किया था. एनडीए के दो अन्य घटक दल, लोक जनशक्ति पार्टी और राष्ट्रीय लोक मोर्चा, पहले ही अपने उम्मीदवारों की जातिगत संरचना सार्वजनिक कर चुके हैं.
यह लेख राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के उम्मीदवारों की जातिगत पृष्ठभूमि का विश्लेषण करता है. बिहार के विभिन्न इलाकों में स्थानीय नेताओं और विशेषज्ञों से बातचीत कर जुटाए गए आंकड़ों के मुताबिक, आरजेडी के आधे उम्मीदवार पिछड़ी जातियों से हैं.
अति पिछड़ी जातियों (ईबीसी) से नामांकन कम हुए हैं, जबकि पिछड़ी जातियों से नामांकन बढ़े हैं. यह दिखाता है कि पार्टी का ध्यान अब पिछड़ी जातियों की ओर अधिक केंद्रित हो गया है.
RJD उम्मीदवारों की जाति संरचना
आरजेडी उत्तर भारत में विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ ब्लॉक की प्रमुख पार्टी है. पार्टी नेता तेजस्वी यादव ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी के साथ चुनाव पूर्व रोड शो किए, लेकिन दोनों पार्टियां आखिरी समय तक सीट बंटवारे के फार्मूले पर सहमत नहीं हो सकीं. इसलिए दोनों ने अपने उम्मीदवार अलग-अलग घोषित किए. आरजेडी ने 143 सीटों के लिए उम्मीदवारों की घोषणा की है. 2020 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 144 सीटों पर चुनाव लड़ा था. यानी सीटों की संख्या में ज्यादा बदलाव नहीं है.
फिगर 1 में आरजेडी द्वारा चार सामाजिक समूहों — ऊंची जातियां (15), पिछड़ी जातियां (73), अति पिछड़ी जातियां (16), अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (21) और मुसलमान (18) — के आधार पर टिकटों का जातिवार बंटवारा दिखाया गया है. यहां ऊंची, पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियां हिंदू धर्म से जुड़ी जातियों को दर्शाती हैं. जबकि इस्लाम मानने वाली सभी जातियों को विश्लेषण के लिए मुस्लिम श्रेणी में रखा गया है. आंकड़े बताते हैं कि आरजेडी के करीब आधे उम्मीदवार पिछड़ी जातियों से हैं.
फिगर 1

2020 के चुनावों से बदलाव
फिगर 2 में 2020 और 2025 के बिहार चुनावों में आरजेडी उम्मीदवारों की जातीय संरचना का तुलनात्मक विश्लेषण दिया गया है. इससे पता चलता है कि पार्टी ने इस बार कोई बड़ा बदलाव नहीं किया है. हालांकि, ऊंची जातियों के उम्मीदवारों की हिस्सेदारी 10.42 प्रतिशत से बढ़कर 10.59 प्रतिशत हुई है. पिछड़ी जातियों के उम्मीदवार 50 प्रतिशत से बढ़कर 51.05 प्रतिशत हुए हैं. एससी/एसटी उम्मीदवारों की हिस्सेदारी 13.89 प्रतिशत से बढ़कर 14.69 प्रतिशत हुई है. मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या 12.5 प्रतिशत से थोड़ा बढ़कर 12.59 प्रतिशत हुई है. वहीं अति पिछड़ी जातियों (EBCs) के उम्मीदवारों की संख्या 13.13 प्रतिशत से घटकर 11.19 प्रतिशत रह गई है. इसका कारण यह हो सकता है कि 2020 के चुनाव में ईबीसी उम्मीदवारों की जीत दर सबसे कम रही थी. हालांकि, आरजेडी ने ईबीसी को लुभाने के लिए पार्टी का राज्य अध्यक्ष उसी समुदाय से बनाया और उसके लिए अलग घोषणा पत्र भी जारी किया. लेकिन उम्मीदवारों की नामांकन के मामले में पार्टी झिझकती हुई नजर आती है.
फिगर 2

उम्मीदवारों की जातिवार संरचना
फिगर 3 में आरजेडी के जाति-वार उम्मीदवारों के नामांकन को दिखाया गया है. सभी जातियों में, पार्टी ने सबसे ज्यादा उम्मीदवार यादव जाति से उतारे हैं (53), जो मुसलमानों के साथ उसका मुख्य वोट बैंक मानी जाती है. हालांकि, पिछली बार की तुलना में इस बार यादव उम्मीदवारों को पांच टिकट कम दिए गए हैं. पिछले चुनाव में यादव उम्मीदवारों को 58 सीटों से मैदान में उतारा गया था.
सवर्ण जातियों में, पार्टी ने सबसे ज्यादा उम्मीदवार शेख मुस्लिम समुदाय से उतारे हैं (8), इसके बाद राजपूत (6), भूमिहार (6), ब्राह्मण (3) और सैयद मुस्लिम (2) आते हैं. चौंकाने वाली बात यह है कि पार्टी ने कायस्थ जाति से एक भी उम्मीदवार नहीं उतारा है, जबकि बिहार जाति सर्वेक्षण के अनुसार यह राज्य की सबसे शिक्षित और आर्थिक रूप से समृद्ध जाति मानी जाती है.
फिगर 3

सभी पिछड़ी जातियों (धर्म से इतर) में, आरजेडी ने सबसे ज्यादा उम्मीदवार यादव (53) जाति से उतारे हैं, इसके बाद कुशवाहा (13), सूरजपुरी मुस्लिम (3), सूरी (3), कलवार (2), सोनार (1) और कुर्मी (1) आते हैं. दिलचस्प बात यह है कि कुशवाहा समुदाय ही एकमात्र ऐसी जाति है, जिसे तीनों बड़ी पार्टियों — भाजपा, जदयू और आरजेडी — ने अधिक संख्या में टिकट दिए हैं. जबकि इसी समुदाय की अपनी पार्टी भी है — उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा (आरएलएम).
ईबीसी समुदाय को नीतीश कुमार का मजबूत समर्थन आधार माना जाता है. इसे तोड़ने के लिए आरजेडी ने इसी समुदाय से राज्य अध्यक्ष नियुक्त किया और अलग कार्यक्रम भी शुरू किया. लेकिन जब नामांकन की बात आती है, तो पार्टी ने इस वर्ग से सबसे ज्यादा उम्मीदवार तेली (5) जाति से उतारे हैं, इसके बाद अंसारी मुस्लिम (3), नोनिया (2), कहार (2), धनुक (2), कुलहैया मुस्लिम (1), मल्लाह (1), गंगोता (1), धुनिया मुस्लिम (1), चौरसिया (1), डांगी (1) और बिंद (1) आते हैं. यहां पार्टी की रणनीति ज्यादा से ज्यादा जातियों से उम्मीदवार उतारने की लगती है.
आरजेडी ने अपने सभी एससी/एसटी उम्मीदवारों को आरक्षित सीटों से उतारा है. इसमें सबसे ज्यादा उम्मीदवार रविदास (6) जाति से हैं, इसके बाद दुसाध (5), पासी (4), मुसहर (3), सरदार (1) और चौपाल (1) आते हैं. पार्टी का एकमात्र एसटी उम्मीदवार संथाल समुदाय से है.
आरजेडी की जाति-वार टिकट वितरण रणनीति से साफ है कि उसने पिछली बार की तुलना में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया है. पार्टी ने एक बार फिर सबसे ज्यादा उम्मीदवार यादव समुदाय से उतारे हैं. विपक्षी दल इस मुद्दे का इस्तेमाल ईबीसी समुदाय में यादवों के खिलाफ लामबंदी के लिए कर सकते हैं. पिछले कुछ महीनों में पार्टी ने ईबीसी समुदाय को साधने की कुछ कोशिशें की हैं, लेकिन यह उम्मीदवारों के नामांकन में दिखाई नहीं देती.
अरविंद कुमार यूनिवर्सिटी ऑफ हर्टफोर्डशायर, यूके में पॉलिटिक्स और इंटरनेशनल रिलेशन के विज़िटिंग लेक्चरर हैं. उनका एक्स हैंडल @arvind_kumar__ है. पंकज कुमार जामिया मिल्लिया इस्लामिया में पीएचडी शोधार्थी हैं. यह लेखकों के निजी विचार हैं.
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