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Thursday, 28 March, 2024
होममत-विमतसवर्ण तुष्टीकरण में नरेंद्र मोदी से आगे निकलना चाहते हैं राहुल गांधी

सवर्ण तुष्टीकरण में नरेंद्र मोदी से आगे निकलना चाहते हैं राहुल गांधी

महिला आरक्षण विधेयक को मौजूदा स्वरूप में पारित करने से ओबीसी और माइनॉरिटी के लोग नाराज हो सकते हैं. लेकिन ऊंचे वादे करने की होड़ में राहुल ये जोखिम उठा रहे हैं.

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भारतीय जनता पार्टी ने जिस तरह से 2014 के लोकसभा चुनाव को हर तबके के लिए चांद-तारे तोड़ लाने का वादा करके भारी सफलता अर्जित की थी, अब कांग्रेस भी उसी तर्ज पर चलना चाह रही है.

कांग्रेस का ताजा वादा महिला आरक्षण के विधेयक को पारित कराने का है जो कई सालों से लंबित रहा है. कांग्रेस का मानना है कि इस विधेयक को पारित कराने का वादा करके वह आधी आबादी के वोट भी हासिल कर लेगी और इस तरह से भाजपा का एक बड़ा नुकसान करते हुए, केंद्र में अपनी स्थिति मजबूत कर लेगी.

सबको खुश करने की कांग्रेसी नीति

राहुल गांधी अब तक जिस रणनीति पर चलते दिख रहे हैं, वह यही है कि किसी को नाराज न करते हुए, अलग-अलग सबको खुश कर दिया जाए. इसी के तहत वो ऐसे मुद्दों पर बोलने से बच रहे हैं जो एक वर्ग को खुश और दूसरे वर्ग को नाराज करते हैं.

राहुल ने बड़े जतन से, सवर्णों को कांग्रेस की ओर मोड़ने की कोशिशें जारी रखी हैं. इनके तहत उन्होंने 5 राज्यों के चुनावों के समय एससी-एसटी एक्ट को लेकर होते रहे विवाद पर तटस्थता अपनाए रखी.

इसी नीति के तहत राहुल ने खुद को बार-बार ब्राह्मण बताया और जबरदस्ती अपने लिए दत्तात्रेय गोत्र भी खोजते हुए, उसका प्रचार किया. राहुल ने मंदिरों में मत्था भी टेकना शुरू किया और एक परंपरागत ब्राह्मण पुजारी के वेश में भी दिखे.

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5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में 3 में विजय के बाद राहुल आश्वस्त हो गए कि सवर्णों ने अब भाजपा को छोड़कर कांग्रेस का साथ देने का मन बना लिया है.

इसके बाद राहुल ने ओबीसी को आबादी के अनुपात में यानी 52 प्रतिशत आरक्षण देने की बात कांग्रेस के घोषणा पत्र में शामिल किए जाने की खबर फैलाई और ओबीसी को साधने की कोशिश की. अभी यह पूरी तरह से घोषित नहीं किया गया है, लेकिन माना जा रहा है कि कांग्रेस इसे घोषणा पत्र में शामिल कर सकती है.

न्यूनतम आय गारंटी योजना का वादा

ऐसे ही एक अन्य प्रयास में राहुल गांधी ने न्यूनतम आय गारंटी योजना को लागू करने का भी वादा कर दिया है. इस मामले में कांग्रेस ने ये चतुराई की कि केंद्र की एनडीए सरकार से पहले इसका ऐलान कर दिया. माना जा रहा है कि केंद्र में सत्ता जाने के खतरे को देखते हुए, मोदी सरकार भी ऐसी ही योजना पर विचार कर रही है. अब राहुल ने इस पर पहल करके, अपना संभावित नुकसान बचाने की कोशिश की है.

किसानों की कर्जमाफी के मामले में कांग्रेस पहले ही पहल करके विधानसभा चुनावों में इसका फायदा ले चुकी है. इस सफलता से उसे ये बल मिला है कि लोक-लुभावन घोषणाओं और वादे करने से राजनीतिक फायदा मिलना तय रहता है. दूसरा, ऐसी घोषणाओं और वादों को करने में आगे रही भाजपा की काट के लिए कोई दूसरा रास्ता बच नहीं गया था.

महिला आरक्षण विधेयक पारित कराने का वादा

अब राहुल ने महिला आरक्षण विधेयक को भी पारित कराने का वादा किया है. स्वाभाविक तौर पर संपन्न और सवर्ण तबके की महिलाओं को इससे काफी प्रसन्नता होगी. कांग्रेस को तो ये भी उम्मीद होगी कि एससी, एसटी और ओबीसी महिलाएं भी महिला आरक्षण विधेयक से खुश हो सकती हैं, लेकिन इसकी सत्यता अभी परखना बाकी है.

इस तरह से वादों पर वादों की झड़ी लगाए जा रहे राहुल गांधी भारतीय जनता पार्टी को झटके पर झटका दिए तो जा रहे हैं, लेकिन इसके कुछ खतरे भी हो सकते हैं. वैसे राहुल का अब किसी तरह के खतरे पर ध्यान है नहीं, और वो हर हाल में कांग्रेस की स्थिति केंद्र और राज्यों में सुधारने को प्राथमिकता दे रहे हैं.

अपनी चतुराई में ही फंसने का खतरा

अपने थैले से लगातार वादे निकालते जा रहे राहुल गांधी इस सारी चतुराई भरी नीतियों के बीच, कुछ मामलों में फंस सकते हैं. इनमें महिला आरक्षण विधेयक लाने का वादा शामिल है. जैसा कि सभी जानते हैं, ओबीसी के लोग महिला आरक्षण का विरोध इस आधार पर करते रहे हैं कि इसमें उनकी महिलाओं के लिए अलग से कोटा निर्धारित नहीं हो रहा है. राहुल ने ऐसा कुछ प्रावधान कराने के बारे में कुछ बोला भी नहीं है.

कैसे पारित कराएंगे महिला आरक्षण विधेयक

सामान्य तौर पर यह माना जा सकता है कि राहुल महिला आरक्षण विधेयक को मौजूदा स्वरूप में ही लाने का वादा कर रहे हैं. अगर ऐसा है तो कांग्रेस के लिए ओबीसी समुदाय को अपनी तरफ खींच पाना मुश्किल हो जाएगा.

दूसरी बात ये भी पूछी जा सकती है कि जब संभावित नई सरकार में कांग्रेस के साथ-साथ तमाम अन्य प्रांतीय दल भी शामिल होंगे तो राहुल इस तरह का विधेयक अकेले दम पर कैसे लागू करवा पाएंगे. इन दलों में कई ऐसे हैं जो महिला आरक्षण विधेयक के मौजूदा स्वरूप का लगातार विरोध करते रहे हैं.


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इस विधेयक को पारित कराने का वादा करके, तो राहुल भाजपा विरोधी गठबंधन का नेता बनने की अपनी संभावनाएं भी खत्म करते लग रहे हैं. जब किसी प्रस्तावित गठबंधन की बात आएगी, तो सपा, बसपा, आरजेडी, डीएमके, टीडीपी, आरएलएसपी, लोकतांत्रिक जनता दल जैसी तमाम पार्टियां कांग्रेस से महिला आरक्षण विधेयक के स्वरूप पर सवाल करेंगी.

कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि राहुल वादों की झड़ी लगाते हुए, अपनी संभावनाएं तो बढ़ाते लगते हैं, लेकिन जाने-अनजाने अपने लिए मुश्किलें भी खड़ी करते दिख रहे हैं.

(लेखक वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक हैं.)

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