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Saturday, 18 May, 2024
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राहुल गांधी कांग्रेस के वेलफेयर एजेंडे को नया आकार दे रहे हैं, मैं इसे शूद्र विकास मॉडल कहता हूं

भाजपा के आर्थिक मॉडल के विपरीत, जो बड़े उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाता है, कांग्रेस उन लोगों पर ध्यान केंद्रित करती है जो भूमि और श्रम से धन पैदा करते हैं.

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कर्नाटक में पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान पेश किए गए और तेलंगाना में अपग्रेड किए गए कांग्रेस के वेलफेयर एजेंडे ने भाजपा और उसके दक्षिणपंथी अर्थशास्त्रियों को असमंजस में डाल दिया है. यहां तक कि कांग्रेस समर्थक रूढ़िवादी अर्थशास्त्री और पार्टी के पारंपरिक बुद्धिजीवी भी भ्रमित हैं. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पी.चिदंबरम जैसे दिग्गज नेताओं ने गांव की उत्पादक जनता के लिए इतने बड़े पैमाने पर कल्याणकारी उपायों को मंजूरी नहीं दी होती.

दक्षिणपंथी क्लासिकल थियरी के अनुसार, ग्रामीण किसानों और मजदूरों को मासिक पेंशन के समान बैंक अकाउंट में पैसे ट्रांसफर करना – 55 वर्ष से अधिक उम्र वालों के लिए 5,000 रुपये, और रयथु बंधु जैसी योजनाओं में हर साल 15,000 रुपये प्रति एकड़ भूमि मालिक और उनके परिवार को प्रदान करना – निवेश के रूप में देखा जाता है. कांग्रेस ने सुधार के डोज़ के रूप में प्रत्येक मजदूर के परिवार को प्रति वर्ष 12,000 रुपये देने का भी वादा किया. इस तरह के पैसे के हस्तांतरण को कृषक जनता की आलसी आबादी की ज़रूरतों की पूर्ति के रूप में देखा जाता है.

इस सबके अलावा, तेलंगाना की प्रत्येक महिला को उसके परिवार के खर्च के लिए प्रति माह 2,500 रुपये दिए जाएंगे, साथ ही 500 रुपये का गैस सिलेंडर भी दिया जाएगा. कांग्रेस ने 10 लाख रुपये तक के इलाज तक का सीधे अस्पताल में सीधे पेमेंट किए जाने के साथ- साथ 2 लाख रुपये की ऋण माफी का भी वादा किया है. हालांकि, कई अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि ऐसी कल्याणकारी पहल औद्योगिक विकास को कमजोर करती हैं. इनमें से अधिकांश अर्थशास्त्रियों का बड़े उद्योगपतियों को आलसी के बजाय मेहनती मानते हुए यह कहना है कि अगर ये उद्योगपति घाटा दिखाते हैं तो उनका सैकड़ों करोड़ का कर्ज माफ कर देना चाहिए.

इसके विपरीत, माना जाता है कि दक्षिण भारत की कल्याणकारी अर्थव्यवस्था विशाल ग्रामीण दलित/आदिवासी/ओबीसी/शूद्र जनता की क्रय शक्ति को बढ़ाएगी – जो भारत में धन के वास्तविक उत्पादक हैं – चाहे कृषि क्षेत्र में हों या औद्योगिक क्षेत्र में. जैसा कि बिहार जाति जनगणना ने सही ढंग से दिखाया है, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और शैक्षिक क्षेत्रों में द्विज (‘उच्च जाति’) बुद्धिजीवियों द्वारा विशाल उत्पादक जनता की भलाई को जानबूझकर नकार दिया गया था. राष्ट्रीय जाति जनगणना भारतीय सामाजिक व्यवस्था के भीतर की बीमारी को वैसे ही उजागर करेगी जैसे अल्ट्रासाउंड मानव शरीर में करता है.

द्विज अर्थशास्त्री

रूढ़िवादी द्विज अर्थशास्त्रियों ने, चाहे वे विदेश में पढ़े हों या भारत में, ऐसी योजनाओं को अव्यवहार्य बताते हुए कहा कि वे श्रम शक्ति को आलसी बना सकती हैं. लेकिन वास्तविकता यह है कि ग्रामीण कृषि क्षेत्र शूद्र/ओबीसी/दलित/आदिवासियों के हाथ में है. उन्हें खाद्यान्न पैदा करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है, चाहे राज्य से कल्याणकारी सहायता मिले या नहीं. वे उत्पादन वाले सीज़न में आलसी होने का जोखिम नहीं उठा सकते.

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कांग्रेस का नया वेलफेयर एजेंडा, अगर इसे पूरे भारत में अपनाया जाता है, तो ग्रामीण बाजारों में पैसा डाला जाएगा जहां लक्जरी मॉल नहीं हैं और उच्च-मध्यम वर्ग के अमीर महानगरीय शहरों में पाए जाते हैं. पैसा इन बाज़ारों में प्रवाहित होता है और गांवों व छोटे-बाज़ार वाले कस्बों में एक या दो महीने के भीतर लगभग तुरंत खर्च हो जाता है. इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था समृद्ध होगी, जो भाजपा द्वारा बनाए जा रहे राजमार्गों, हवाई अड्डों और वंदे भारत ट्रेनों से दूर है.

यह ग्रामीण आवास, शिक्षा और स्वास्थ्य के विकास का नेतृत्व करने का एक बेहतर तरीका है, क्योंकि यह उत्पादक व्यक्तियों और उनके परिवारों की जीवन की स्थितियों में सुधार करता है. बेहतर भोजन, कपड़े और आवास के साथ, श्रम शक्ति के बीच कुपोषण कम होने की संभावना है, और जनसंख्या की उत्पादक ऊर्जा बढ़ेगी. उनकी उम्र भी बढ़ेगी.


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जीएसटी आय

ग्रामीण और छोटे-शहरी बाजारों में तेजी आने के साथ तेलंगाना और समग्र रूप से भारत के जीएसटी रिटर्न में उल्लेखनीय वृद्धि होने की उम्मीद है. गांवों में डिजिटल भुगतान से कोई भी छोटा व्यापारी टैक्स से नहीं बच पाएगा. राज्य के बजट से ग्रामीणों के खातों में जाने वाला पैसा एक्सपैंडेड जीएसटी के रूप में राज्य के खजाने में वापस आ जाएगा.

भारत जैसे देश में, यदि सरकारें प्रमुख ठेकेदारों को भारी मात्रा में धन आवंटित करती हैं, तो केवल एक अंश ही बाज़ार में वापस आ पाता है. कुछ हाथों में बड़े पैमाने पर धन संकेंद्रण के अलावा, प्रचलित मुद्दों में कर चोरी (हम केवल अमीर घरों में कर छापे देखते हैं), और विदेशों में हवाला लेनदेन शामिल हैं. भारत को अपनी ऊंची इमारतों, राजमार्गों और विशाल बंदरगाहों और हवाई अड्डों के साथ अमेरिका जैसा बनने के लिए नहीं बनाया गया है. हमारे देश में जनता भूमि और श्रम से धन पैदा करती है.

वर्तमान में, इन धन उत्पादकों को सबसे अमीर लोगों द्वारा नियंत्रित किया जाता है – जो निश्चित रूप से द्विज होते हैं. उनमें ग्रामीण उत्पादक जनता के प्रति सहानुभूति का अभाव है. यह सांस्कृतिक अलगाव जाति विभाजन को मजबूत करता है, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की इस धारणा के विपरीत है कि हिंदू धर्म जातियों से परे सद्भावना को बढ़ावा देता है. व्यापक जातिगत बाधाओं से जूझ रहे भारत को सार्वभौमिक मानवीय सद्भावना को बढ़ावा देने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.

कांग्रेस का एजेंडा

कांग्रेस भी अपनी पुरानी द्विज मानसिकता से मुक्त नहीं है. अर्थव्यवस्था का वर्तमान मॉडल, जिस पर आरएसएस/भाजपा काम कर रही है, कांग्रेस द्वारा बनाया गया था. अब यह बदलता दिख रहा है और इसका श्रेय पार्टी नेता राहुल गांधी को जाना चाहिए. धान की रोपाई और कटाई में पुरुषों और महिलाओं को शामिल करने जैसे उनके प्रतीकात्मक प्रयास, पार्टी की पारंपरिक विचारधारा से बदलाव के बारे में बताते हैं. अपनी दादी और पिता के विपरीत, किसानों के साथ बातचीत करने ने उन्हें कुछ नया सिखाया है जो कि भारत में जाति-आधारित अर्थव्यवस्था का अस्तित्व होना है. चुनावी प्रणाली से परे, गांधी की अंतर्दृष्टि किस हद तक देश के वेलफेयर सिस्टम को नया आकार देगी, यह देखना अभी बाकी है. हालांकि उन्होंने एक नए विकास मॉडल पर जोर देना शुरू कर दिया है, जैसा कि छत्तीसगढ़ प्रयोग में देखा गया है, इसे अखिल भारतीय मॉडल बनाना एक चुनौती है. यह तो वक्त ही बताएगा कि पार्टी उनके रुख के मुताबिक कब तक चलेगी.

गांधी और कांग्रेस को आगामी 2024 के आम चुनावों में अपने मॉडल से विपरीत नरेंद्र मोदी सरकार और आरएसएस/भाजपा के आर्थिक मॉडल से लड़ना होगा. भाजपा के आर्थिक मॉडल के विपरीत, जो बड़े उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाता है, कांग्रेस का मॉडल उस जनता पर केंद्रित है जो भूमि और श्रम से धन पैदा करते हैं. गांधी का मॉडल, जो दक्षिण भारत-विशेष रूप से तमिलनाडु- से प्रभावित है और सैद्धांतिक रूप से उनके परदादा जवाहरलाल नेहरू के लोकतांत्रिक समाजवाद में निहित है, एक वैकल्पिक दृष्टिकोण प्रदान करता है.

अंग्रेजी शिक्षा

अब तक, कांग्रेस ने गांव के स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा का वादा नहीं किया है, संभवतः द्विज मीडिया द्वारा इसे मातृभाषा विरोधी करार दिए जाने की संभावित आलोचना के कारण. प्राइवेट अंग्रेजी मीडियम स्कूल और कॉलेज शिक्षा माफिया के प्रभाव को बढ़ावा मिलने की भी आशंका है. हालांकि, पार्टी ने तेलंगाना में अंग्रेजी पढ़ा रहे पहले से स्थापित 709 आवासीय स्कूलों में से प्रत्येक मंडल (लगभग 15 गांवों को कवर) में एक अंतर्राष्ट्रीय अंग्रेजी माध्यम स्कूल शुरू करने का वादा किया है. इसने छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कुछ स्कूल खोलकर इसकी शुरुआत की. और बीजेपी/आरएसएस ने इसका विरोध किया था.

एक राष्ट्रीय पार्टी के रूप में कांग्रेस ने अंततः वर्तमान भाजपा के ब्राह्मण-बनिया विकास मॉडल (बीबीडीएम) के विपरीत, जिसे मैं शूद्र विकास मॉडल (एसडीएम) कहता हूं, उसे स्वीकार कर लिया है. जबकि राहुल गांधी से पहले की कांग्रेस बीबीडीएम का पालन करती थी, पार्टी अब बदलाव की इच्छुक है. यह बदलाव निश्चित रूप से देश के लिए अच्छा होने वाला है.

(कांचा इलैया शेफर्ड एक राजनीतिक सिद्धांतकार, सामाजिक कार्यकर्ता और लेखक हैं. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं)

(संपादनः शिव पाण्डेय)

(इस लेख को अंग्रज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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