भारत में जनसंख्या नियंत्रण को लेकर मामला उच्चतम न्यायालय के विचाराधीन है. उत्तर प्रदेश की बढ़ती जनसंख्या को स्थिर करने के उद्देश्य से योगी आदित्यनाथ सरकार ने उत्तरप्रदेश जनसंख्या कानून पेश किया है. इसके फायदे और नुकसान की कड़ाई से समीक्षा करने की जरूरत महसूस की जा रही है. भारत की जनसंख्या वर्ष 2023 में चीन से आगे निकल सकती है और यह चिंता का विषय है.
दुनिया की आबादी आठ अरब हो गई है जो वर्ष 2030 में लगभग साढ़े अरब और वर्ष 2050 में नौ अरब 70 करोड़ तक पहुंच सकती है. संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष के अनुसार आधी से अधिक आबादी एशिया में रहती है. चीन और भारत एक अरब 40 करोड़ से अधिक लोगों के साथ दो सबसे अधिक आबादी वाले देश हैं.
जनसंख्या सात अरब से आठ अरब होने में 12 साल लगे. इसे वर्ष 2037 तक नौ अरब होने में लगभग 15 साल लगेंगे. ये आंकड़े बताते हैं कि दुनिया की जनसंख्या वर्ष 1950 के बाद से अपनी सबसे धीमी गति से बढ़ रही है जो वर्ष 2020 में एक प्रतिशत से कम रहा है.
वर्ष 2050 तक दुनिया की जनसंख्या में आधे से अधिक की वृद्धि आठ देशों कांगो, मिस्र, इथियोपिया, भारत, नाइजीरिया, पाकिस्तान, फिलीपींस और संयुक्त गणराज्य तंज़ानिया में होने का अनुमान है.
भारत की जनसंख्या वृद्धि स्थिर होने के बावजूद अभी भी 0.7% प्रतिवर्ष की दर से बढ़ रही है और वर्ष 2023 में इसकी आबादी दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश चीन से अधिक होने की संभावना है. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, चीन की जनसंख्या अब बढ़ नहीं रही है और वर्ष 2023 की शुरुआत से इसमें कमी आनी शुरू हो सकती है.
वर्ष 2048 तक भारत की आबादी सबसे ज्यादा एक अरब 70 करोड़ होने का अनुमान है और फिर इस सदी के अंत तक गिरावट के साथ यह एक अरब 10 करोड़ रह जायेगी. दुनिया में किशोरों (10 से19 वर्ष) की सबसे अधिक आबादी 25 करोड़ 30 लाख भारत में है. वर्ष 2022 में भारत की 68 प्रतिशत आबादी 15 से 64 वर्ष के बीच है जबकि 65 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों की आबादी सात प्रतिशत है. देश में 27 प्रतिशत से अधिक लोग 15 से 29 वर्ष की आयु के हैं. वर्ष 2030 तक भारत के सबसे ज़्यादा युवा जनसंख्या वाला देश बने रहने की संभावना है.
देशभर में जनसंख्या नियंत्रण को लेकर पिछले लंबे समय से बहस जारी है. इस पर सख्त कानून बनाए जाने की बात हो रही है और अब यह मामला उच्चतम न्यायालय में पहुंच गया है. जनसंख्या नियंत्रण को लेकर दायर इन याचिकाओं में कहा गया है कि बढ़ती आबादी के कारण लोगों को बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं इसलिए देश में जनसंख्या नियंत्रण कानून की जरूरत है. हालांकि इस याचिका के जवाब में केंद्र सरकार ने कहा है कि वह परिवार नियोजन को अनिवार्य बनाने का कानून बनाने के पक्ष में नहीं है. परिवार नियंत्रण कार्यक्रम को स्वैच्छिक रखना ही सही होगा. सरकार पहले भी इस मामले पर अपना रुख साफ कर चुकी है. चूंकि मामला कानून बनाने का है तो यह संभव है कि उच्चतम न्यायलय इस पर सरकार को ही फैसला लेने का अधिकार दे.
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जनसंख्या वृद्धि के कई कारण
जनसंख्या बढ़ोत्तरी के अनेक कारण हैं जिनमे जन्म दर में वृद्धि तथा मृत्यु दर में कमी, निर्धनता, गाँवों की प्रधानता तथा कृषि पर निर्भरता, प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि, धार्मिक एवं सामाजिक अंधविश्वास, शिक्षा का अभाव प्रमुख है.
अभी दुनिया में हर साल औसतन 12 से 14 करोड़ बच्चे पैदा होते हैं. मतलब हर मिनट 270 बच्चों का जन्म होता है. 18वीं सदी तक एक महिला औसतन छह बच्चों को जन्म देती थी. 19वीं सदी में इसमें थोड़ी गिरावट आई. 1951 के आंकड़े बताते हैं कि उस दौरान एक महिला औसतन पांच बच्चों को जन्म देती थी. अब साल 2021 में यह आंकड़ा 2.5 पर आ गया था और इस लिहाज से पिछले 70 साल में जन्म दर आधी हो गई है.
भारत में जन्म दर को लेकर क्षेत्रवार विषमता है. दक्षिणी राज्यों की आबादी की रफ्तार बाकी राज्यों की तुलना में कम रही है. उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल इस लिहाज ज्यादा आबादी वाले राज्य हैं. जब भी आबादी बढ़ने की बात होती है तो हम लोग सिर्फ जन्म दर पर गौर करते हैं जबकि इसका दूसरा पहलू मृत्यु दर है. आबादी बढ़ने का कारण समझने के लिए हमें मृत्यु दर पर भी गौर करना होगा.
आंकड़ों पर नजर डालें तो अभी हर साल एक हजार लोगों पर करीब 18 बच्चों का जन्म होता है. इसके उलट एक हजार की आबादी पर ही 7.60 लोगों की मौत होती है. मतलब जन्म दर का आंकड़ा मृत्यु दर से दो गुना से ज्यादा है. इसलिए भले ही जन्मदर घट रही है, लेकिन वो मृत्यु दर से अभी भी कहीं ज्यादा है.
अगर भारत में आबादी बढ़ रही है तो जनसंख्या नियंत्रण कानून लाकर इसे कम किया जा सकता है. ऐसा करने से कम बच्चे पैदा होंगे. एक समय के बाद मौजूदा युवा बुजुर्गों की श्रेणी में आ जाएंगे. जिनकी संख्या काफी अधिक होगी. वहीं कम बच्चे पैदा होने के कारण युवाओं की संख्या बहुत घट जाएगी. तेजी से बुजुर्गों की संख्या बढ़ेगी और तब भारत दुनिया का सबसे ज्यादा बुजुर्गों वाला देश बन सकता है. ऐसे में भारत में काम करने वालों की संख्या बहुत कम हो जाएगी जो किसी भी देश के लिए सबसे खतरनाक स्थिति होती है.
चीन जनसंख्या नियंत्रण पर कानून बनाने वाले सबसे पहले देशों में है. चीन ने 1979 में एक बच्चे का कानून बनाया जब वहां आबादी तेजी से बढ़ रही थी. लेकिन अब दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाला ये देश जन्म-दर में हो रही अत्यधिक कमी से जूझने लगा है. लैंसेट की रिपोर्ट बताती है कि सदी के आखिर तक चीन की आबादी 140 करोड़ से घटकर करीब 70 करोड़ रह जाएगी.
चीन के राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो के अनुसार देश में जनसंख्या का संकट 2022 में गहरा गया क्योंकि 1961 के बाद पहली बार जन्म दर तेजी से कम होने के कारण जनसंख्या में कमी दर्ज की गई है. चीन में पिछले वर्ष की तुलना में 2022 के अंत में आबादी 8,50,000 कम रही.
ऐसी आशंका है कि चीन एक ‘डेमोग्राफिक टाइम बॉम्ब’ बन गया है. यहां काम करने वालों की संख्या तेजी से घटती जा रही है और बुजुर्ग ज्यादा होने लगे हैं. चीन ने बुजुर्गों की बढ़ती आबादी से चिंतित होकर वर्ष 2015 में एक बच्चे की नीति बंद कर दी और दो बच्चे पैदा करने की अनुमति दे दी. इससे जन्म-दर में तो थोड़ा इजाफा हुआ लेकिन लंबे समय में ये योजना बढ़ती बुजुर्ग आबादी को रोकने में पूरी तरह सफल नहीं हो सकी. यही कारण है कि अब चीन ने तीन बच्चे पैदा करने वालों को तोहफा देना शुरू कर दिया है.
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ईरान में जनसंख्या वृद्धि इस्लामिक क्रांति के बाद
ईरान में 1979 में हुई इस्लामिक क्रांति के बाद वहां की जनसंख्या में बढ़ोत्तरी हुई थी. इससे परेशान होकर सरकार ने वहां सख्त जनसंख्या नियंत्रण नीति लागू कर दी. अब ईरान में सालाना जनसंख्या वृद्धि दर एक प्रतिशत से भी कम हो गई है. एक रिपोर्ट के अनुसार अगर कोई कार्रवाई नहीं की गई तो अगले 30 साल में ईरान दुनिया के सबसे बुज़ुर्ग देशों में एक हो जाएगा. ऐसे में ईरान ने अपनी जनसंख्या बढ़ाने के लिए नई योजना बनाई है और तय किया है कि सरकारी अस्पतालों और मेडिकल केंद्रों में पुरुषों की नसबंदी नहीं की जाएगी और गर्भनिरोधक दवाएं भी सिर्फ उन्हीं महिलाओं को दी जाएंगी जिनको स्वास्थ्य कारणों से इसे लेना जरूरी होगा.
उत्तर प्रदेश की बढ़ती जनसंख्या को स्थिर करने के उद्देश्य से योगी आदित्यनाथ सरकार ने उत्तरप्रदेश जनसंख्या कानून पेश किया है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि जनसंख्या को स्थिर करना बेहद जरूरी है और बढ़ती जनसंख्या प्रमुख समस्याओं का मूल है. राज्य में वर्ष 2026 तक कुल प्रजनन 2.1 और वर्ष 2030 तक 1.9 प्रतिशत तक लाने का लक्ष्य रखा गया है. उत्तर प्रदेश जनसंख्या नीति को वर्ष 2022 से वर्ष 2030 तक लागू किया जाना है.
इस नीति के तहत सरकारी सुविधाओं को जारी रखने के इच्छुक अभिभावकों के लिये शर्तें रखी गई है, जिनकी दो से ज्यादा संतान हैं वे सरकारी नौकरी के पात्र नहीं होंगे. राशन कार्ड में भी केवल परिवार के चार सदस्यों के नाम ही दर्ज किये जायेंगे. ऐसे ही जो सरकारी नौकरी में है उन्हें इस आशय का शपथ पत्र देना होगा कि वह कानून नहीं तोड़ेंगे. दो से ज्यादा संतान होने पर पंचायत और स्थानीय निकायों के चुनाव लड़ने पर रोक होगी तथा दो से अधिक संतान होने पर सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलेगा.
ऐसे ही जो सरकारी नौकरी कर रहें है और जिनकी एक संतान है और जो अपनी इच्छा से नसबंदी कराकर जन संख्या कानून का पालन करेंगे उनके लिए सरकार द्वारा कुछ अतिरिक्त सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी. ऐसे नागरिक की संतान को 20 साल की उम्र तक स्वास्थ्य सेवायें और बीमा की सुविधा दी जाएगी. इकलौती संतान को उच्च स्तर की शिक्षा निःशुल्क प्रदान कराई जाएगी. लड़कियों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए छात्रवृत्ति दी जाएगी.
ऐसे नागरिक एवं परिवार जो गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहें है उन्हें पहली संतान के जन्म के बाद स्वेच्छा से नसबंदी कराने पर एकमुश्त राशि दी जाएगी. यदि लड़के का जन्म होता है तो 80 हजार रुपये और लड़की का जन्म होता है तो एक लाख रुपये दिए जायेंगे.
इस योजना को लागू करने के लिये इच्छाशक्ति की जरूरत है और प्रशासन के स्तर पर कड़ी निगरानी रखनी होगी. राज्य स्तर पर की जा रही इस पहल का लाभ उसके विकास में सहायक हो सकती है. योगी सरकार की इच्छाशक्ति और प्रशासन पर पकड़ के अनेक उदाहरण हैं जिन्हें सराहा भी जा रहा है. ऐसे में समाज के हर वर्ग को समय की मांग के अनुरूप शिक्षित करने की जरूरत है. साथ में यह भी नजर रखनी होगी कि उत्तरप्रदेश में युवा आबादी का संतुलन नहीं बिगड़े अन्यथा चीन और ईरान में आबादी नियंत्रण को लेकर अपनाई गई कठोर नीति के दुष्परिणाम झेलने पड़ सकते हैं.
(लेखक अशोक उपाध्याय वरिष्ठ पत्रकार हैं. वह @aupadhyay24 पर ट्वीट करते हैं . व्यक्त विचार निजी हैं)
(संपादन: ऋषभ राज)
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