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Saturday, 20 April, 2024
होममत-विमतदिवालिया होने की कगार पर पाकिस्तान- बदहाल अर्थव्‍यवस्‍था, डॉलर की कमी, विदेशों में बिक रही संपत्ति

दिवालिया होने की कगार पर पाकिस्तान- बदहाल अर्थव्‍यवस्‍था, डॉलर की कमी, विदेशों में बिक रही संपत्ति

आत्‍मनिर्भरता से कोसों दूर खडा पाकिस्‍तान विदेशी माल से अटा पडा है और आयात के बिल से बुरी तरह त्रस्‍त हो चुका है.

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राजनीति, कूटनीति, कानून एवं व्‍यवस्‍था के मोर्चे पर बेहाल पाकिस्‍तान आर्थिक बदहाली के कारण फिर से डालर के लिये मोहताज हो गया है और विदेशों की अपनी सम्‍पत्ति बेचने की कोशिशों के कारण उसकी साख दयनीय होती जा रही है. श्रीलंका के बाद पाकिस्‍तान की आर्थिक स्थिति बेहद डांवाडोल होती जा रही है. डालर के मुकाबले श्रीलंकाई करेंसी 365 रूपये और पाकिस्‍तानी करेंसी 226 रूपये के भयावह आंकडे की ओर लगातार बढ़ रही है. बंगला देश की करेंसी 102 रूपये और नेपाली करेंसी प्रति डालर 132 रूपये है. पाकिस्‍तान के मुकाबले ये देश ज्‍यादा छोटे हैं फिर भी स्थिर राजनीति के बूते अपने पैर पर खडे दिखाई देते हैं.

आत्‍मनिर्भरता से कोसों दूर खडा पाकिस्‍तान विदेशी माल से अटा पडा है और आयात के बिल से बुरी तरह त्रस्‍त हो चुका है. एक पाकिस्‍तानी मंत्री ने कुछ महीने पहले जनता से अपील की थी कि वह चाय की खपत कम करें. वजह यह थी कि चाय के आयात पर डालर में भुगतान करना पडता है और मंत्री महोदय को लगता है कि यह खर्च बेइंतहा है. उनके इस बयान पर पाकिस्‍तान में तीखी प्रतिक्रिया तो हुई ही, साथ में बेइंतहा कसीदे कसे गये कि सरकार के लिये जनता का सामना करना मुश्किल हो गया.

चार महीने से कर्मचारियों को नहीं दिया वेतन

आलम ये है कि वाशिंगटन में पाकिस्‍तानी दूतावास के पास अपने कुछ कर्मचारियों को कम से कम चार महीने के वेतन का भुगतान करने के लिए धन नहीं था. अगस्त 2021 से पाकिस्तानी दूतावास में स्थानीय रूप से भर्ती अनुबंधित कर्मचारियों में से कम से कम पांच को देरी और उनके मासिक वेतन का भुगतान न करने का सामना करना पड़ा. इनमे से एक कर्मचारी ने देरी से और भुगतान नहीं करने के कारण इस्तीफा दे दिया जो दूतावास में पिछले दस वर्षों से काम कर रहा था.

ऐसे कर्मचारियों को पाकिस्‍तान कम्युनिटी वेलफेयर (पीसीडब्ल्यू) फंड से भुगतान किया जाता है जो स्थानीय रूप से सेवा शुल्क के माध्यम से एकत्र होता है और फिर स्थानीय स्तर पर भी वितरित किया जाता है. पीसीडब्ल्यू फंड पिछले साल ढह गया क्योंकि कोविड -19 महामारी के बाद वेंटिलेटर और अन्य चिकित्सा उपकरण खरीदने के लिए पैसा दूसरे मद में खर्च कर दिया गया. उधार से अर्थव्‍यवस्‍था को चला रहे पाकिस्‍तान को वहां पर भी कर्मचारियों को हर महीने वेतन देने के लिए अन्य खातों से उधार लेना पड़ा.

पाकिस्तान विदेशों में बेच रहीं अपनी संपत्ति

पाकिस्तान के आर्थिक संकट इस हाल में पहुंच गए हैं कि उसे अब विदेशों में अपनी संपत्ति को बेचना पड़ रहा है. अमेरिका में भी पाकिस्तान अपने दूतावास की इमारत बेच रहा है. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने हाल ही में अमेरिका में स्थित अपने दूतावास की इमारत को बेचने की मंजूरी दी थी. इसे खरीदने के लिए बोली लगनी शुरू हो गई है. पता चला है कि इस इमारत के लिए अब तक तीन बोलियां आईं हैं. इनमें सबसे ऊंची बोली एक यहूदी समूह ने लगाई है. वहीं दूसरी सबसे ऊंची बोली एक भारतीय रिएल्टर की तरफ से है. यह इमारत अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन के पॉश इलाके में है और इसकी कीमत करीब 60 लाख अमेरिकी डॉलर बताई गई है.

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पाकिस्तानी अखबार डॉन ने राजनयिक सूत्रों के हवाले से खबर दी है कि जिस इमारत में कभी पाकिस्तान के दूतावास का रक्षा विभाग स्थित था, उसके लिए एक यहूदी समूह ने सबसे ऊंची बोली लगाई है. पाकिस्तानी राजनयिक सूत्रों ने बताया कि लगभग 68 लाख अमरीकी डालर (56.33 करोड़ रुपये) की उच्चतम बोली यहूदी समूह ने लगाई है. यह समूह इस इमारत में एक सिनेगॉग (प्रार्थना स्थल) बनाना चाहता है.

सूत्रों के अनुसार, एक भारतीय रियल एस्टेट एजेंट ने भी लगभग पचास लाख अमरीकी डॉलर (41.38 करोड़ रुपये) की दूसरी बोली लगाई जबकि एक पाकिस्तानी रियल एस्टेट एजेंट ने लगभग चालीस लाख अमरीकी डॉलर (33.18 करोड़ रुयये) की तीसरी बोली लगाई. पाकिस्तानी-अमेरिकी रियल एस्टेट एजेंटों के अनुसार इमारत को सबसे ऊंची बोली लगाने वाले को बेचा जाना चाहिए.

डॉन ने एक पाकिस्तानी रिएल्टर का हवाला देते हुए कहा कि “हमें इस परंपरा को बनाए रखना चाहिए, क्योंकि यह एक प्रभावशाली अमेरिकी समुदाय में काफी सद्भावना पैदा करेगा, जो इसे पूजा स्थल के रूप में इस्तेमाल करना चाहते हैं.” इस महीने की शुरुआत में पाकिस्तानी दूतावास के अधिकारियों ने कहा था कि वाशिंगटन में इस्लामाबाद की तीन राजनयिक संपत्तियां हैं, जिनमें से एक आर स्ट्रीट एनडब्ल्यू पर मौजूद इमारत है, जिसे बेचा जा रहा है.

द एक्सप्रेस ट्रिब्यून की एक रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्‍तान पर कुल कर्ज और देनदारी 59.7 ट्रिलियन रुपया (पाकिस्तानी रुपया) है. यह पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 11.9 ट्रिलियन रुपया यानी 25 प्रतिशत अधिक है. स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान के अनुसार पिछले वित्तीय वर्ष में सार्वजनिक ऋण 9.3 ट्रिलियन रुपया था, जो जून 2022 के अंत तक बढ़कर 49.2 ट्रिलियन रुपया हो गया. सार्वजनिक ऋण में वृद्धि के लिए प्रत्यक्ष रूप से सरकार को जिम्मेदार माना जाता है.


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पाकिस्तान में घट रही गाड़ियों की डिमांड

हालात इतने बुरे हो चुके हैं कि दिग्गज वाहन निर्माता कंपनियां भी अब मुल्क छोड़ने की तैयारी कर रही हैं. जापानी वाहन निर्माता कंपनी टोयोटा के बाद अब पाकिस्तान सुजुकी मोटर्स ने भी दो जनवरी से छह जनवरी तक वाहनों का उत्‍पादन बंद कर दिया और इसकी सूचना पाकिस्तान स्टॉक एक्सचेंज को पहले ही दे दी थी.

पाकिस्तानी मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, कंपनी का कहना है कि, ऑटो पार्ट्स और कंप्लीटली नॉक्ड डाउन किट के आयात की सशर्त अनुमति के चलते प्रबंधन ने शट डाउन का फैसला किया गया है. कंपनी ने कहा कि स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान के प्रतिबंध के कारण उसकी आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित हो रही है. कंपनी ने कहा कि सशर्त अनुमति के कारण निर्यात खेप प्रभावित हो रही है. प्रतिबंध से इन्वेंट्री को भारी नुकसान पहुंचा है.

इससे पहले दिसंबर की शुरुआत में इंडस मोटर कंपनी ने भी स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान द्वारा कंप्लीटली नॉक्ड डाउन किट के आयात पर प्रतिबंध लगाने के कारण 10 दिनों के लिए अपने प्लांट को बंद करने की घोषणा की थी. इंडस मोटर कंपनी टोयोटा के वाहनों को असेंबल और निर्माण करती है और कंपनी ने 20 दिसंबर से 30 दिसंबर तक अपने प्लांट में प्रोडक्शन बंद कर दिया था.

पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपने कार्यकाल के अंत में सकल सार्वजनिक रिण, जीडीपी, को 20 ट्रिलियन तक कम करने का वादा किया था. पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक के बुलेटिन मुताबिक पाकिस्तान तेजी से भारी कर्ज के बोझ से दब रहा है. एशियाई विकास बैंक की ताजा रिपोर्ट बताती है कि आने वाले वित्त वर्ष में पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था की रफ्तार 3.5 प्रतिशत तक धीमी हो सकती है. मुद्रास्फीति 18 प्रतिशत तक बढ़ने का अनुमान है.

पाकिस्तान फिर डालर के संकट से जूझ रहा है और आयात कार्गो की क्लीयरेंस तक के लिए डॉलर उपलब्ध नहीं हैं. देश में डॉलर मिलने का जरिया कम होता जा रहा है और विदेशी क़र्ज़ की अदायगी के भारी बोझ के कारण मुद्रा विनिमय के कोष घटकर चार साल के निचले स्तर पर आ चुके हैं.

पाकिस्तान में डॉलर की कमी का संकट

शाहबाज शरीफ सरकार के सत्‍ता में आने के बाद पाकिस्तान के वित्त मंत्री इसहाक़ डार जो डॉलर के मूल्य को नियंत्रित रखने के वादे किये थे लेकिन अब वे ख्‍याली पुलाव लगने लगे हैं. पाकिस्‍तान में एक ओर डॉलर की सरकारी दर 225 से 226 रुपये तक पहुंच चुकी है और जब आयात करने वाले डॉलर के लिए बैंकों से संपर्क करते हैं तो उन्हें डॉलर मुहैया नहीं कराए. आलम ये है कि ग्रे मार्केट में एक डॉलर का पाकिस्‍तानी करेंसी में 240 रुपये से ऊपर जा चुका है.

खाद्य तेल,प्याज़, अदरक और लहसुन जैसी दैनिक उपयोग की वस्‍तुओं का आयात करना घाटे का सौदा हो गया है. इनके कंटेनरों को काफ़ी दिनों तक क्लीयरेंस के इंतज़ार करना पडता है क्‍योंकि पाकिस्‍तानी बैंक डॉलर के रूप में विदेश में भुगतान कर पा रहे हैं. खाद्य तेल के आयात का भुगतान पाकिस्‍तान सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल है ताकि देश में उसकी कमी पैदा न हो लेकिन इसके बावजूद डालर में भुगतान होने में बैंको की आनाकानी के कारण अक्‍सर उनकी क्लीयरेंस में देरी हो रही है.

अब डॉलर का संकट कम करने का एक ही उपाय है कि पाकिस्‍तान को डॉलर कहीं और से या किसी अन्‍य माध्‍यम से मिले लेकिन इस समय कहीं से नहीं मिल पा रहा है. फिलहाल ये डालर सऊदी अरब से आये या चीन से या आईएमएफ़ से, यह उन देशों से या किसी और संस्था की ओर से डॉलर मिलने के पर निर्भर है.

पाकिस्तान डिफ़ॉल्टर बनने की दहलीज पर है.बॉन्ड्स की अदायगी एक चीज़ है जो पाकिस्तान ने पिछले दिनों की बडी मुश्किल से की, जबकि फ़ॉरेन ट्रेड के लिए डॉलर की ज़रूरत एक अलग बात है और आयात कार्गो के लिए डॉलर की अनुपलब्धता की वजह भुगतान संतुलन (बैलेंस ऑफ़ पेमेंट) का संकट है जो देश में डॉलर की कमी के कारण है.

पाकिस्तान को इस वित्तीय वर्ष में 30 अरब डॉलर से अधिक का विदेशी भुगतान भी करना है. इस बीच पाकिस्‍तान में डॉलर लाने वाले तीन महत्वपूर्ण स्रोत, निर्यात, विदेशों से भेजी गयी विदेशी मुद्रा और विदेशी पूंजी निवेश पिछले कुछ महीनों में नकारात्मक वृद्धि दर्ज कर रहे हैं.

हर मोर्चे पर अपनी बदहाली के कारण पाकिस्‍तान पहले ही दुनिया में अलग थलग पड चुका है. दरअसल, उसकी राजनीति एवं नीतियों में ठहराव नहीं है और उसकी छवि एक छलनेवाले देश की हो गई है. भारत में मोदी सरकार के आने के बाद पा‍किस्‍तान के तत्‍कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ नई पहल हुई थी लेकिन तख्‍तापलट के बाद वह फिर से पुराने ढर्रे पर आ गया और वह लगातार आतंकवाद को बढावा देने वाले सरगनाओं और संगठनों की गिरफ्त में फंसा हुआ है. इसका नतीजा यह हुआ कि मोदी सरकार का पाकिस्‍तान पर से भरोसा ही उठ गया और पाकिस्‍तान दलदल में फंसा पडा है.

पाकिस्‍तान बार बार अमरीका, चीन और रूस की ओर हाथ फैलाता है जहां से उसे जो आर्थिक मदद मिलती है उसका बड़ा हिस्‍सा वह विदेशी सामानों के आयात पर खर्च कर देता है. वह उनके रहमोकरम पर टिका है और ऐसे में वह अपने बड़े मददगारों के कर्ज के जाल में बुरी तरह फंसता जा रहा है जैसे श्रीलंका फंस चुका है. पाकिस्‍तान को समझना होगा कि भारत से दुश्‍मनी मोलकर उसका अबतक कोई भला नही हुआ है और अगर उसने अपने को नही बदला तो उसके हालात बद से बदतर होते चले जायेंगे.

(लेखक अशोक उपाध्‍याय वरिष्‍ठ पत्रकार हैं. वह @aupadhyay24 पर ट्वीट करते हैं . व्यक्त विचार निजी हैं)


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