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Saturday, 4 May, 2024
होममत-विमतमोदी उद्यमियों को कर्मचारियों की सैलरी ना काटने की हिदायत दे रहे हैं वहीं अपने स्टाफ का वेतन काट रहे हैं

मोदी उद्यमियों को कर्मचारियों की सैलरी ना काटने की हिदायत दे रहे हैं वहीं अपने स्टाफ का वेतन काट रहे हैं

लॉकडाउन से पीड़ित व्यवसायों को कर्मचारियों के कोविड-19 संक्रमित पाए जाने की स्थिति में प्रस्तावित दंडात्मक कार्रवाई पर केंद्रीय गृह मंत्रालय के ढुलमुल रवैये से गहरा झटका लगा है.

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एक महीने से अधिक समय से देशव्यापी लॉकडाउन के कारण लगभग सभी आर्थिक और वाणिज्यिक गतिविधियां ठप पड़ी हैं. उल्लेखनीय है कि नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा घोषित लॉकडाउन 25 मार्च को को लागू हुआ था.

विनिर्माण इकाइयां और दुकानें बंद पड़ी हैं, औद्योगिक इकाइयों के मालिकों और खरीदारों के बीच कोई लेनदेन नहीं हो रहा है, भुगतान रुके पड़े हैं, नौकरियां खत्म हो रही हैं, और कम-से-कम अगली वित्तीय तिमाही में भी बेरोज़गारी का बढ़ना जारी रहने वाला है.

इसके बावजूद, मोदी सरकार चाहती है कि उद्यमी और व्यवसायी अपने कर्मचारियों को तनख्वाह देते रहें – वो भी ऐसी स्थिति में, जब आंध्रप्रदेश, केरल, राजस्थान, ओडिशा और महाराष्ट्र सरकारों ने अपने कर्मचारियों के वेतन में कटौती करने और खुद केंद्र सरकार ने महंगाई भत्ते को फ्रीज़ करने का फैसला किया है. इस विरोधाभास को सही नहीं ठहराया जा सकता है.

नौकरशाहों को शायद इस बात का अहसास नहीं रहा होगा कि ये आदेश संभवत: कानूनी दृष्टि से भी मान्य नहीं ठहराए जा सकते हैं.

सरकारों का बहाना

कुछ राज्यों ने प्रोपर्टी मालिकों को चेतावनी दी है कि वे किरायेदारों पर किराये के लिए दबाव नहीं बनाएं या उनके किराया नहीं देने स्थिति में उन्हें बेदखल नहीं करें. अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली दिल्ली सरकार ने मकान मालिकों को आश्वासन दिया है कि अगर लॉकडाउन अवधि में श्रमिकों और छात्रों ने किराये का भुगतान नहीं किया तो उन्हें इस एवज़ में मुआवज़ा दिया जाएगा. यह स्पष्ट नहीं है कि यह व्यवस्था कितनी व्यावहारिक या कानूनी रूप से लागू करने लायक होगी.

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केंद्र और राज्य सरकारों ने आवश्यक दिशा-निर्देशों को जारी करते हुए महामारी रोग अधिनियम, 1897 और आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 का हवाला दिया है. हालांकि कुछ राज्यों ने इसे परामर्श मात्र बताते हुए कानूनी दायरे में रहने का प्रयास किया है.


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कई उद्योग संघ किसी भी प्रकार की आर्थिक गतिविधि के अभाव में कर्मचारियों को वेतन देने में अपनी असमर्थता से केंद्र और राज्य सरकारों को अवगत करा चुके हैं.

अनुचित चेतावनी

व्यवसायों को कहीं बड़ा झटका कर्मचारियों के कोविड-19 संक्रमित पाए जाने पर संबंधित कंपनियों के निदेशकों और प्रबंधन के खिलाफ प्रस्तावित दंडात्मक कार्रवाई को लेकर केंद्रीय गृह मंत्रालय के ढुलमुल रवैये से लगा है.

शुरुआत में, गृह मंत्रालय ने संकेत दिया था कि दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी, लेकिन बाद में स्पष्ट किया कि दंडात्मक प्रावधान तभी लागू किए जाएंगे जब अपराध ‘नियोक्ता की सहमति से, उसकी जानकारी में या उसकी लापरवाही’ से हुआ हो.

 

किसी नियोक्ता ने लापरवाही की है ये कौन तय करेगा और लापरवाही का निर्धारण कैसे किया जाएगा? भले ही गृह मंत्रालय ने स्पष्टीकरण जारी कर दिया हो, लेकिन शायद पहले ही नुकसान – नियोक्ताओं को अकारण चेतावनी देने के रूप में – हो चुका है.

एक ही कानून के तहत दो अलग-अलग मानदंड नहीं हो सकते – सरकार के लिए कुछ और निजी सेक्टर के लिए कुछ और.

क्या निर्देश कानून सम्मत हैं?

गृह मंत्रालय के मनमाने निर्देशों को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में इस बात को उजागर किया गया है कि कैसे वे संविधान के अनुच्छेद 14 और 19 का उल्लंघन करते हैं, जिनमें कि समानता और व्यापार करने के अधिकारों की गारंटी दी गई है.

वस्त्र निर्यातक नागरिक एक्सपोर्ट्स ने अपनी याचिका में कारखाने बंद होने पर भी कर्मचारियों, श्रमिकों और ठेका मजदूरों को पूरा वेतन देने के केंद्र और महाराष्ट्र सरकार के निर्देशों को चुनौती दी गई है.

सरकारी निर्देशों के खिलाफ दलील देते हुए याचिका में इस बात को उजागर किया गया है कि राज्य सरकार ने खुद अपने कर्मचारियों के वेतन में कटौती करने या उन्हें किश्तों में भुगतान करने का फैसला किया है.

नकदी से संपन्न भारत सरकार और साथ ही भाजपा शासित उत्तरप्रदेश सरकार ने हाल में सरकारी कर्मचारियों को देय महंगाई भत्ते को फ्रीज़ करने का फैसला किया है. और अब तमिलनाडु भी इस सूची में शामिल हो गया है.

जब सरकार मनमाने ढंग से इस तरह के कर्मचारी विरोधी फैसले कर सकती है, तो फिर निजी उद्योग इस संबंध में पाबंदियां का सामना क्यों करे?


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अधिवक्ता सुरेन उप्पल और स्नेहा बॉल ने फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) को स्पष्ट किया है कि कानूनन सरकार नकदी संपन्न कॉरपोरेट उपक्रमों के लिए अपने कर्मचारियों को वेतन देना अनिवार्य बना सकती है, लेकिन ऐसा कोई कानून नहीं है कि जिसके आधार पर व्यवसाय मालिकों को ऐसा आदेश दिया जा सके, भले ही ‘प्राकृतिक आपदाओं जैसी अप्रत्याशित परस्थितियों के कारण’ व्यवसाय ठप होने के कारण उनके कर्मचारियों को गंभीर परेशानियों का सामना करना पड़ रहा हो.

उन्हें कानूनन सिर्फ ये साबित करने की ज़रूरत होगी कि उनके कर्मचारी घर पर रहते हुए अपनी ड्यूटी नहीं कर सकते थे.
आदर्शत: ऐसे कठिन दौर में, सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न हितधारकों के साथ मिलकर काम करती है कि तमाम वास्तविक चिंताओं से निपटा जा सके ताकि आगे स्थितियां सामान्य होने पर नुकसान का स्तर संभाले जाने लायक हो. लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार ने उद्योग जगत के अग्रणी लोगों के साथ काम करने और लॉकडाउन से बने कठिन हालात से पार पाने में व्यवसायों की मदद करने में अपनी अक्षमता का प्रदर्शन किया है. कम-से-कम वह इस तरह के कमज़ोर कानूनी आधार वाले आदेश नहीं देकर उद्यमियों के परेशानियों को बढ़ाने से बच सकती है.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. व्यक्त विचार उनके अपने हैं.)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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