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Wednesday, 1 May, 2024
होममत-विमतयोगी आदित्यनाथ मोदी के निकटतम राजनीतिक क्लोन और संभावित उत्तराधिकारी बनकर उभरे हैं

योगी आदित्यनाथ मोदी के निकटतम राजनीतिक क्लोन और संभावित उत्तराधिकारी बनकर उभरे हैं

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अपने पिता के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं होने के फैसले को काम के प्रति उनके समर्पण और प्रशासनिक कुशलता के पक्के सबूत के तौर पर पेश किया जा रहा है.

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जब योगी आदित्यनाथ के पिता का पिछले सप्ताह देहांत हुआ, तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अधिकारियों के साथ कोविड-19 को लेकर बैठक में भाग ले रहे थे. अगले दिन के अख़बारों में विस्तार से बताया गया था कि कैसे नम आंखों के साथ उन्होंने बैठक को जारी रखा, और कैसे आंसुओं को छुपाने के लिए वह दिन भर मास्क लगाए रहे.

बाद में उन्होंने अपनी शोकाकुल मां को पत्र लिखकर सूचित किया कि वह पिता से उनके ‘अंतिम पलों’ में मिलना चाहते थे लेकिन उत्तर प्रदेश की 23 करोड़ जनता के प्रति अपने ‘कर्तव्यबोध’ के कारण ऐसा नहीं कर पाए. ये नहीं पता कि पत्र उनकी मां तक कब पहुंचा, लेकिन लखनऊ के मीडिया तक उसके पहुंचने में कोई देर नहीं लगी.

पत्र में, मुख्यमंत्री ने लिखा कि वह लॉकडाउन की सफलता के हित में अपने ‘पूर्वाश्रम के जन्मदाता’ के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो सकेंगे.

पिछले सप्ताह इस कहानी के वर्णन से पन्ने रंगे हुए थे कि 1992 में 20 वर्ष की उम्र में घर छोड़ने वाले अजय सिंह बिष्ट का कैसे योगी आदित्यनाथ के रूप में कायाकल्प हुआ, एक ऐसा ‘संत’ जिसने जनता की सेवा के लिए अपने परिवार को त्याग दिया. एक टीवी चैनल उनकी बड़ी बहन का इंटरव्यू कर लाया जो उत्तराखंड के एक सामान्य गांव में फूल बेचती हैं और आजीविका के लिए ढाबा चलाती हैं.


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योगी प्रशासन: तीन वर्ष बनाम एक माह

मुख्यमंत्री के त्याग और वैराग्य की कहानी ने लोगों के दिलों में जगह बना ली, खासकर ऐसे समय जब डरे-सहमे लोग कोरोनावायरस के खिलाफ अपनी लड़ाई में उम्मीद की हर किरण को सहारा मान ले रहे हैं. उत्तर प्रदेश में अब आम धारणा यही है कि मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने जनता को अपने परिवार से, और जनता के हितों को अपनी निजी क्षति से ऊपर रखा है. यहां तक कि उनके आलोचक भी अब संभल कर बोल रहे हैं.

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राजनीति पर गहन दृष्टि रखने वाले एक मित्र ने मुझसे फोन पर कहा, ‘उनके कार्यकाल के पहले तीन साल के बारे में बताने को कुछ भी नहीं था, सिवाय इसके कि उन्होंने सांप्रदायिक आधार पर लोगों के ध्रुवीकरण की कोशिश की लेकिन कोविड-19 के उनके प्रबंधन और फिर पिता के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं होने के उनके निर्णय का लोगों पर बहुत अच्छा असर हुआ है.’

लखनऊ में मेरे सहयोगी प्रशांत श्रीवास्तव ने इस पर सहमति जताई: ‘पिछले एक महीने ने उनके पूरे तीन साल के रिकॉर्ड को बदल कर रख दिया है. लोग मुझसे कहते हैं कि और कोई मुख्यमंत्री है जो अपना कर्तव्य निभाने के लिए इस तरह की त्रासदी को नजरअंदाज़ करे.’

इसलिए अब राज्य में कोरोनावायरस की बहुत कम टेस्टिंग के बारे में कोई सवाल नहीं पूछता– शुक्रवार तक, 23 करोड़ की आबादी में क़रीब 53,000 टेस्टिंग ही हुई थी. एक सप्ताह के पहले तक तो स्थिति और भी खराब थी. कोई ये तक नहीं पूछ रहा कि कोविड नियंत्रण का कथित आगरा मॉडल इतनी जल्दी नाकाम कैसे हो गया.

पिता के अंतिम संस्कार में नहीं जाना अचानक योगी आदित्यनाथ के काम के प्रति समर्पण और उनकी प्रशासनिक कार्यकुशलता का सबसे पुख्ता सबूत बन गया है.

मोदी के पदचिन्हों पर चलते योगी

परिवार-पर-कर्तव्य-को-तरजीह देने के फैसले ने योगी आदित्यनाथ को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे नेताओं की पांत में बिठा दिया है, जो जनता के उत्थान में जीवन खपा देने के लिए अपने परिवारों को त्याग देते हैं. वास्तव में, पद संभालने के पहले ही दिन से योगी खुद को मोदी के सांचे में ढाल रहे हैं. जैसा कि मैंने मार्च 2017 में हिंदुस्तान टाइम्स में लिखा था, पदभार ग्रहण करते ही योगी ने लखनऊ में केंद्र की पहलकदमियों को लागू करना शुरू कर दिया था: कार्यालयों में बायोमैट्रिक हाजिरी; मंत्रियों से उनकी संपत्ति की घोषणा कराना; अधिकारियों को स्वच्छता शपथ दिलाना; योजनाओं की पावरप्वाइंट प्रस्तुति; और, 100 दिवसीय एजेंडा.

मुख्यमंत्री ने अपने मंत्रियों को बाध्य किया कि वे रोज़ाना घंटों तक चलने वाली विभागों की प्रस्तुतियों में शामिल हों. जब एक मंत्री ने सवाल किया कि विभिन्न विभागों के प्रेजेंटेशन में उन्हें क्यों बैठना चाहिए, तो कहते हैं मुख्यमंत्री का जवाब था: ‘विभाग बदल भी तो सकते हैं.’ जब योगी ने एक केंद्रीकृत कमान और नियंत्रण व्यवस्था के तहत सुपर सीएम की भूमिका संभाली, तो आगामी महीनों और वर्षों के दौरान उनके मंत्रियों ने– केंद्र के मंत्रियों की तरह ही– पृष्ठभूमि में रहना सीख लिया.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने अपने अधिकारियों को गुजरात में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के राज में योजनाओं और कार्यक्रमों के कार्यान्वयन के तरीकों का अध्ययन करने को कहा. वाइब्रेंट गुजरात की तर्ज पर, उत्तर प्रदेश ने भी 2018 में निवेशकों का सम्मेलन आयोजित किया, हालांकि सम्मेलन की उपलब्धियां सवालों के घेरे में रही हैं. इसी तरह मोदी जहां भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाना चाहते हैं, वहीं योगी ने भी उत्तर प्रदेश के लिए 1 ट्रिलियन डॉलर का लक्ष्य तय किया है. इसी सिलसिले में फरवरी 2020 में ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट आयोजित करने की योजना थी, जिसे अब अक्टूबर-नवंबर के लिए टाल दिया गया है.

2013 में मीडिया की एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने बाढ़ प्रभावित उत्तराखंड का दौरा कर 15,000 गुजरातियों को वहां से सुरक्षित निकाला था. पूरे देश में इस रिपोर्ट की चर्चा हुई थी, एक तो इसमें किए गए बड़े दावे के कारण, और दूसरे रिपोर्ट के खंडन के कारण.

सात साल बाद, उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री राजस्थान के कोटा में फंसे अपने राज्य के हज़ारों छात्रों को लाने के लिए 300 बसें भेजते हैं. एक हिंदी अख़बार ने इस बचाव अभियान के लिए मुख्यमंत्री को ‘हनुमान’ की उपाधि दे डाली.

कोविड-19 के प्रबंधन में भी योगी मोदी के मॉडल को ही अपना रहे हैं. मोदी ने नौकरशाहों की 11 विशेषाधिकार प्राप्त समितियों और मंत्रियों के दो समूहों का गठन किया. इसी तरह मोदी ने वरिष्ठ नौकरशाहों की ‘टीम-11’ और मंत्रियों की अध्यक्षता वाली 11 समितियों का गठन किया है. मोदी की तरह ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को भी कड़क प्रशासक के रूप में पेश किया जाता है. लीक किए गए एक वीडियो में उन्हें गौतम बुद्ध नगर के डीएम को डांटते दिखाया गया है– ‘ये बकवास बंद करो’. इसके बाद उस अधिकारी को कोविड-19 का फैलाव रोकने में नाकामी के आरोप में हटा दिया जाता है.


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मोदी के संभावित उत्तराधिकारी?

जब मोदी ने उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में चुना, तो ये स्पष्ट था कि उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का समर्थन प्राप्त है. योगी आदित्यनाथ हर कसौटी पर खरा उतर रहे थे. वह प्रभावशाली नाथ परंपरा के संत थे, जिन्हें भड़काऊ भाषणों के लिए जाना जाता था. गोरखपुर और उसके आसपास सांप्रदायिक झड़पों के सिलसिले में अक्सर उनके द्वारा स्थापित हिंदू युवा वाहिनी की भूमिका सवालों के घेरे में आती थी.

वह एक गरम मिज़ाज हिंदुत्ववादी थे, जिसने कथित तौर पर एक वीडियो क्लिप (उनके 2007 के आज़मगढ़ भाषण से) में कहा था कि अगर एक हिंदू लड़की का धर्मांतरण होता है, तो ‘हम भी 100 मुस्लिम लड़कियों…’ और ‘अगर वे एक हिंदू को मारते हैं, तो हम भी 100….’ हालांकि आदित्यनाथ ने तब इसे कट-एंड-पेस्ट वाली शरारत करार दिया था.

अपने उत्तेजक भाषणों की बदौलत वह जल्दी ही भाजपा के राष्ट्रीय प्रचारकों की जमात में शामिल हो गए, जिन्हें देशभर में जनसभाओं को संबोधित करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी. मुख्यमंत्री बनने के बाद, उन्होंने कथित लव जिहाद के खिलाफ एंटी-रोमियो दस्ते का गठन किया, बूचड़खानों के खिलाफ कदम उठाए, पुलिस मुठभेड़ों का बचाव किया और सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कार्रवाई की.

वह निश्चय ही हिंदू हृदय सम्राट बनने की राह पर हैं, ऐसा नेता जिसे सोशल डिस्टैंसिंग लागू होने के बावजूद अयोध्या में मंदिर निर्माण स्थल से रामलला की प्रतिमा के स्थानांतरण के समारोह में शामिल होने से गुरेज नहीं.

एक ईमानदार, प्रतिबद्ध और व्यावहारिक प्रशासक की अपनी नवनिर्मित छवि- जिसका एकमात्र परिवार उत्तर प्रदेश के 23 करोड़ लोग हैं, जैसे मोदी के लिए पूरा देश है- को निरंतर सुदृढ़ करते जाने की योगी की क्षमता पर आप भरोसा कर सकते हैं. हिंदू हृदय सम्राट की मुख्यमंत्री की छवि को 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों से पहले भरपूर बढ़ावा मिलने की संभावना है जब अयोध्या में एक भव्य मंदिर का उद्घाटन किया जाएगा.

ट्विटर राजनीति से ही संतुष्ट खस्ताहाल विपक्ष के रहते 2022 में दूसरे कार्यकाल के लिए चुना जाना उनके लिए मुश्किल नहीं होगा. यदि ऐसा होता है, तो फिर मोदी जब भी रिटायर होने का फैसला करेंगे, देश के शीर्ष पद की लालसा रखने वाले भाजपा नेताओं में सबसे ऊंचा कद योगी का होगा.

(इल लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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1 टिप्पणी

  1. ऐसा लगता है कि योगी आदित्यनाथ मोदीजी से अधिक समर्पित और ईमानदार प्रधानमंत्री साबित होंगे।

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