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Saturday, 20 April, 2024
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एनएसए अजीत डोभाल ने फिल्म ‘उरी’ नहीं देखी है, देखेंगे तो उन्हें बेहद खुशी होगी

आदित्य धर की ‘उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक’ मानो एनएसए अजीत डोभाल के सम्मान में बनाई गई है, जिसमें उनकी भूमिका परेश रावल ने निभाई है.

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राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के बारे में किंवदंती अच्छी तरह कायम है. पठानकोट हमले से ठीक से नहीं निपटने से असल ज़िंदगी में उनकी प्रतिष्ठा को हुए नुकसान की भलीभांति भरपाई कर दी है सर्जिकल स्ट्राइक पर आदित्य धर की रोमांचक फिल्म प्रस्तुति ‘उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक’ ने. राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और सामरिक नीति समूह के अध्यक्ष फिल्म में गोविंद भारद्वाज के रूप में हैं, और उनकी भूमिका में परेश रावल किसी सुपरमैन से कम नहीं हैं, हालांकि बुरी फिटिंग वाले सूट में.

फिल्मी डोभाल को एक सुपर जासूस दिखाया गया है जो किचन के रास्ते होटलों से बाहर निकलता है, मध्यरात्रि में ऑटोरिक्शा पर बैठकर रायसीना हिल पहुंचता है, पाकिस्तानी शासन में उच्चपदस्थ व्यक्ति (वो भी व्हिस्की गटकते और चिकनी-चुपड़ी बातें करते हुए) से संबंध विकसित करता है और काम लेने के बाद फेंक दिए जाने वाले फोनों का इस्तेमाल करता है. उसमें ड्रोन पर काम कर रहे प्रतिभावान इंटर्न की काबिलियत परखने की क्षमता है. युद्ध जिता सकने में सक्षम साबित हो सकने वाले ड्रोन को, मौजूदा सरकार के अतीत से प्रेम के अनुरूप, गरुड़ नाम दिया गया है. ऐसा सोच-समझकर किया गया होगा क्योंकि गरुड़ विष्णु की सवारी भी है और सांपों का जानी दुश्मन भी.

यह आसानी से समझ में आ जाता है कि इस फिल्म में सांप कौन हैं – अमेरिका की पूर्व विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन के संकेतों भरे प्रसिद्ध बयान पर गौर किए बिना कि जो अपने पिछवाड़े में सांप पालते हैं वो उनके द्वारा डंसे जाने के लिए अभिशप्त होते हैं. फिल्म में पाकिस्तानियों को धोखेबाज़, गोल्फ खेलने वाले, यखनी पुलाव खाने वाले, और अपच होने पर ईनो पीने वाले के रूप में दिखाया गया है. उनकी सनका है भारत को लगातार छोटे-छोटे हमलों से परेशान करना. पर फिल्म में लगातार बताया जाता है कि उनके सामने अब एक नया हिंदुस्तान है. ‘ये घर में घुसेगा भी, और मारेगा भी.’ या जैसा बहादुर फौजी विहान शेरगिल बने विक्की कौशल का संवाद है: ‘उन्हें कश्मीर चाहिए और हमें उनका सिर.’


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और इन सबके पीछे है गोविंद, वह व्यक्ति जिस पर कि प्रधानमंत्री का पूरा भरोसा है. सेना प्रमुख, रक्षा मंत्री रविंदर जी (नि:संदेह स्वस्थ रहे मनोहर पर्रिकर) और गोविंद – प्रधानमंत्री इन्हीं तीनों की सुनते हैं. सर्जिकल स्ट्राइक का विचार गोविंद का दिखाया गया है. उसके फोन घुमाने की देर है कि इसरो प्रमुख एक सैटेलाइट का मुंह पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर स्थित सात आतंकवादी शिविरों की ओर मोड़ देता है. वह इज़रायल के सहयोग से निर्मित खुफिया उपकरणों को परखने के लिए डीआरडीओ के एक केंद्र में पहुंचता है – जैसे जेम्स बॉन् एम के गैजेट्स को परखने जाया करता है. इस बात का भावनात्मक चित्रण है कैसे उसे वो ड्रोन आकर्षित करता है जिसे कि एक कश्मीरी पंडित लड़का विकसित कर रहा है. हमला कहां होना है उसकी सही भौगोलिक स्थिति गोविंद को ही पता है. और वही नए भारत के लिए आदर्श बने राष्ट्र इज़रायल की ख़ासियत को बेहतर बता सकता है. वह बताता है कि कैसे फलस्तीनी मुक्ति संगठन से संबद्ध आतंकवादी समूह ब्लैक सेप्टेंबर ने 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में इज़रायलियों को निशाना बनाया था, जिसके बाद इज़रायली खुफिया संस्था मोसाद ने ऑपरेशन रैथ ऑफ गॉड चलाकर अगले कुछ वर्षों में उस हमले के लिए ज़िम्मेवार हर व्यक्ति को चुन-चुनकर मार डाला. नए हिंदुस्तान को ऐसी ही ताक़त जुटानी होगी.

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होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई कर चुके 34-वर्षीय आदित्य धर कहते हैं कि गोविंद सर्जिकल स्ट्राइक में अहम भूमिका निभाने वाले तीन अधिकारियों का एकात्मक प्रतीक है, पर साथ ही वह स्वीकार करते हैं कि फिल्म की शूटिंग शुरू करने से पहले उन्होंने 73-वर्षीय डोभाल के साथ ढाई घंटे बिताए थे. वह कहते हैं, ‘देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के साथ उनकी रुचियों और मान्यताओं पर बातचीत करना एक कल्पनातीत अनुभव था.;’ धर खुद एक कश्मीरी पंडित हैं जिनके कुछ रिश्तेदारों को 1989 के बाद घाटी से पलायन करना पड़ा था. बचपन से ही सेना को लेकर उनमें उत्साह रहा है, और संभव होता तो सेना में शामिल होकर उन्हें अच्छा लगता.

असली डोभाल ने अभी तक यह फिल्म नहीं देखी है, पर अपने चित्रण को देखकर निश्चय ही उन्हें बहुत प्रसन्नता होगी. भारतीय सेना के सकारात्मक चित्रण से भी उन्हें कम खुशी नहीं मिलेगी, क्योंकि उनके पिता गुणानंद डोभाल सेना में मेजर रहे थे. डोभाल लगातार कहते रहे हैं कि भारत अपनी पूरी ताक़त नहीं दिखाता और इसे अपनी क्षमता का बढ़-चढ़कर इस्तेमाल करना होगा.

परेश रावल ने, जो अहमदाबाद पूर्व से भाजपा सांसद भी हैं, कहा कि उन्होंने विशेष सावधानी बरती कि उनका पात्र ज़्यादा बड़बोला या युद्धप्रिय राष्ट्रवादी नहीं दिखे. उन्होंने कहा, “भारत की सेना हमेशा से ताक़तवर रही है और 26/11 के बाद भी हमले में सक्षम थी. पर शायद वोट बैंक की राजनीति के कारण तत्कालीन सरकार ने ऐसा नहीं करने का फैसला किया. उरी हमले को लेकर मामला इसलिए अलग था कि नेताओं ने स्वीकृति दे रखी थी. फिर भी, मुझे गोविंद की एक सामान्य, हमेशा नेपथ्य में रहने वाले और मृदुभाषी व्यक्ति की भूमिका निभानी थी. ऐसा व्यक्ति जो परिस्थिति को भलीभांति समझने और मामले की तह तक जाने में सक्षम हो.”

उन्होंने कहा, ‘एक अभिनेता के रूप में, आपको विकल्प चुनने होते हैं. जैसे, जब मैंने ‘संजू’ में सुनील दत्त की भूमिका की, मुझे उस व्यक्ति के भाव को उभारना था जिसकी प्यारी बीवी मर रही है, जिसका बेटा लगातार परेशानियों से घिरा रहता है, जिसका राजनीतिक करियर संकट में है, जिसकी युवा बेटियां सुरक्षित नहीं हैं. कितना भी भारी मेकअप ओढ़ लें, ये भाव उससे नहीं आते.’

तो फिर, ‘उरी’ में उन्होंने अपनी भूमिका को एक राजनीतिज्ञ के तौर पर लिया था या एक अदाकार के रूप में? ‘सबसे पहले एक एक्टर के रूप में, ऐसा व्यक्ति जो गंभीर संकट की स्थिति में भी शांत रह सकता है.’ क्या वह अगला चुनाव लड़ेंगे? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, ‘मुझे नहीं लगता, पर फैसला पार्टी को करना है. राजनीतिज्ञ के रूप में मैंने बहुत कुछ सीखा है, ख़ास कर धीरज कैसे रखा जाता है.’


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धर ने भारतीय सेना के अच्छे चित्रण के लिए सबकुछ किया – वह सेना से सर्जिकल स्ट्राइक पर फिल्म की अनुमति मांगने वाले 13 फिल्मकारों में से एक थे, पर सिर्फ उन्होंने ही सेना के सूचना निदेशालय (एजीडीपीआई) को अपनी स्क्रिप्ट सौंपी. धर की सेना बच्चों को, भले ही उनके हाथ में बंदूकें हों, नहीं मारती; युद्धक्षेत्र में महिलाओं को लेकर यह समतामूलक है (फिल्म में कौशल अभिनीत शेरगिल अपने हेलिकॉप्टर को उड़ाने के लिए पायलट के रूप में एक महिला को चुनता है), और दुश्मनों के साथ वैसा ही व्यवहार करता है जैसा दुश्मन उसके साथ करते हैं – उनके पैर काटना, उनकी लाशों को उड़ाने के लिए बम लगाना, और सुराग उगलवाने के लिए आतंकवादियों को टॉर्चर करना. धर ने मारधाड़ के दृश्यों को सर्बिया में फिल्माया, जहां की भौगोलिक परिस्थिति कश्मीर जैसी ही है और जहां विशेष सुरक्षा बलों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले साज़ोसामान आसानी से उपलब्ध हैं.

पर राजनीतिक सत्ता प्रतिष्ठान के संकल्प से ज़्यादा, इस फिल्म में डोभाल का सम्मान है – ये म्यांमार में उनके अभियान की बात हो, या सात वर्ष पाकिस्तान में बिताने के कारण वहां की असल सत्ता को लेकर उनकी जानकारी की. नि:संदेह इसमें प्रधानमंत्री को हमले के लिए हरी झंडी देने वाले व्यक्ति के रूप में दिखाया गया है, पर सेना और हमारे काल्पनिक हीरो विहान शेरगिल के साथ, इसकी योजना बनाने वाला तो गोविंद ही है. इस फिल्म ने डोभाल के भारत का अब तक का सर्वाधिक ताक़तवर नौकरशाह होने पर बचे किसी भी संदेह को खत्म कर दिया है – और यह इसी हफ्ते रिलीज हुई अन्य फिल्म ‘द एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ में नौकरशाहों के चित्रण से उलट है. उसमें प्रधानमंत्री के पूर्व प्रधान सचिव पुलक चटर्जी को एक लचर राजनीतिक कठपुतली के रूप में और पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एम. के. नारायण को एक गप्पबाज़ के रूप में दिखाया गया है जिसका पसंदीदा पार्टी ट्रिक यह कहना है: “मेरे पास आपके बारे में एक फाईल है.”

विडंबना ही कहेंगे कि उरी हमला नहीं होता तो धर की पहली फिल्म ‘उरी’ नहीं होती. कई ना बन सकी फिल्मों से जुड़ने के बाद उन्होंने करण जौहर निर्मित और फवाह ख़ान एवं कैटरिना कैफ़ अभिनीत कॉमेडी एक्शन फिल्म ‘रात बाकी’ से अपना फिल्मी सफर शुरू किया होता. उरी हमले के बाद इस फिल्म की योजना पर विराम लग गया, क्योंकि करण जौहर की 2016 की फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ में फवाद ख़ान की मौज़ूदगी पर विवाद खड़ा हो गया, और जौहर को राष्ट्र से माफी मांगनी पड़ी. तब पाकिस्तानी कलाकारों पर प्रतिबंध की मांग ज़ोर पकड़ने लगी थी, और उसके बाद अभी तक फवाद ने किसी भी भारतीय फिल्म में काम नहीं किया है. हम समझते हैं जौहर सचमुच ऐसा मानते हैं जो कि 10 जनवरी को प्रधानमंत्री मोदी से मुलाक़ात के बाद उन्होंने ट्वीट किया: ‘साथ मिलकर हम एक परिवर्तनशील भारत के लिए सकारात्मक बदलावों को प्रेरित और प्रारंभ करना चाहेंगे.’

(लेखिका एक वरिष्ठ पत्रकार हैं.)

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