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Wednesday, 20 November, 2024
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युवाओं को दिल का दौरा पड़ना कोई आश्चर्य की बात नहीं है, देखिए इनकी खाने की थाली में क्या है

दिल के दौरों और गैर-संचारी रोगों की रोकथाम के लिए व्यक्ति के हिसाब से भाोजन और पौष्टिकता संबंधी जागरूकता के साथ व्यापक राष्ट्रीय पौष्टिकता रणनीति की दरकार.

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वह 40 वर्ष की उम्र में दिल के दौरे से कैसे दुनिया से उठ जा सकता है? ‘वह कितना फिट था और रोज जिम जाता था.’ ‘उसे देखकर मुझे यकीन है कि वह अनाप-शनाप कुछ भी नहीं खाता था.’

2021 में मेरे सोशल मीडिया एकाउंट ऐसे मैसेज से भर उठा, जिसे लोकप्रिय एक्टर सिद्धार्थ शुक्ला और पुनीथ राजकुमार के अचानक दिल के दौरे की खबर के साथ टैग किया गया.

दिल की बीमारियों के बारे में यह गलतफहमी है कि यह बुढ़ापे का रोग है. वयस्क युवा दिल के दौरे से मृत्यु के जोखिम के बारे में फिक्रमंद नहीं होते. विरले ही कोई मेरा नौजवान ग्राहक दिल की संगीन हालत की चिंता जताता है. युवा ज्यादातर जल्दी वजन घटाने के प्रति तो चिंतित दिखते हैं और अमूमन ट्रेंडी, उलटा-पुलटा भोजन पसंद करते हैं, जिसमें पौष्टिक तत्वों की कमी होती है. ‘भोजन’ जरूरी न होकर जैसे-तैसे पेट भरने का पर्याय बन गया है.

जानकारी की कमी

मुझे इस बात से हैरानी होती है कि भारत में ज्यादातर लोग वयस्क युवाओं में बढ़ती दिल की बीमारी से अनजान है, जबकि इसकी दर काफी अधिर है और हर साल इसकी वजह से लाखों युवाओं की मौत हो रही है. यह लगातार बढ़ रहा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने खुलासा किया है कि गैर-संचारी रोगों से मृत्यु के मामले में दुनिया में भारत का स्थान पांचवा है और ज्यादातर मौतें युवा अवस्था की हैं. ग्लोबल बर्डेन ऑफ डिजीज के अध्ययन के मुताबिक, कार्डियोवस्कुलर रोगों से भारत में मृत्यु प्रति 1,00,000 लोगों में 272 है, जो दुनिया में 235 के औसत से काफी ऊंची है. 2017 में भारत में कार्डियोवस्कुलर रोगों से करीब 26.3 लाख लोगों की मौत हुई, जो देश में मौत की प्रमुख वजह भी है. लेकिन क्या भारत में ज्यादातर लोग इन आंकड़ों से वाकिफ हैं? गैर-संचारी रोगों में कमी लाने के इरादे से लाई गई पौष्टिकता नीतियों में लोगों को इन रोगों के बढऩे और मौत की वजह बनने के बारे में जागरूकता के कार्यक्रमों का अभाव है.


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ज्यादातर भारतीय बुनियादी पौष्टिकता की जानकारी से बेखबर

उम्र, लिंग, स्थानीयता, जेनेटिक्स, धूम्रपान की आदतें, भोजन, शरीरिक हलचल की कमी, कोलस्ट्राल स्तर, उच्च रक्त चाप, मधुमेह और अवसाद जैसी मिलीजुली वजहें कार्डियोवस्कुलर बीमारी का कारण हैं. इनमें कुछ वजहें तो हमारे काबू में नहीं हैं, मगर हम क्या खाते हैं, कितना व्यायाम करते हैं, हमारा मानसिक स्वास्थ्य कैसा है, जैसी वजहें तो हम जीवन-शैली में सुधार लाकर ठीक कर सकते हैं.

भारत में भोजन अनाज आधारित होता है, जिसमें ज्यादा कार्बोहाइड्रेट, कम प्रोटीन और दूसरे जरूरी पौष्टिक तत्वों का अभाव होता है. मैदा, सफेद चीनी, नमक और आलू जैसे ‘सफेद’ रंग वाले खाद्य पदार्थों की खपत हाल के वर्षों में कई गुना बढ़ गई है, जिससे भारत के लोगों के लिए टाइप 2 डायबिटिज, दिल के रोग, मोटापा, और हाइपरटेंशन जैसी बीमारियों की चपेट में आने का खतरा बना रहता है. दुनिया भर में पौष्टिकता संक्रमण के नाते भारत के युवा अब फटाफट नूडल्स, चिप्स, पिज्जा, बर्गर, फ्रायड चिकन, पेस्ट्री, केक, चॉकलेट जैसी चीजों की ओर आकर्षित हो गए हैं. ये जंक फूड दुनिया भर में सस्ते हैं, लेकिन जंक फूड खाने की ‘असली कीमत’ के बारे आम लोगों को जानकारी नहीं दी जाती है. इनके पैकेट पर पौष्अिकता संबंधी जानकारी या चेतावनियां नहीं दी जाती हैं. भारत में पैकेटबंद भोजन के पौष्टिकता स्तर का विकास अभी नहीं हुआ है.

तो, क्या हम युवाओं को स्वास्थ्य वर्धक भोजन न खाने के लिए दोषी मान सकते हैं? अपनी प्रैक्टिस से मैं बता सकती हूं कि भारत में 50 प्रतिशत युवा बुनियादी पौष्टिकता जानकारी से बेखबर हैं. इस वजह से सही मात्रा में प्रोटीन, फाइबर वाले खाद्य पदार्थ और हरी सब्जियां खाने की अहमियत को काफी हद तक अनदेखा कर दिया जाता है. इससे भी बढक़र यह कि स्वास्थ्य वर्धक भोजन सॉफ्ट ड्रिंक के चमकते विज्ञापनों, फास्ट फूड के बिलबोर्डों और सेलेब्रेटी प्रचार में खो गया है.

व्यक्ति के हिसाब से भोजन और पौष्टिकता नीतियां हैं खास

भोजन और कार्डियोवस्कुलर बीमारियों का जहां तक संबंध है, जानकारी के स्तर पर इसके बारे में बहुत बड़ा अंतर है. कार्डियोवस्कुलर बीमारियों और दूसरे गैर-संचारी रोगों से बचाव और प्रबंधन के खातिर भारतीय भोजन व्यवस्था और पौष्टिकता नीतियों में पौष्टिकता संबंधी प्रचार-प्रसार रणनीति में महत्वपूर्ण कायाकल्प जरूरी है. हालांकि नीतियों में बदलाव ही काफी नहीं होगा. लोगों को जीवन-शैली में सुधार और पौष्टिक भोजन के लाभ के बारे बाखबर करना अहम है.

नीतियों में सुधार और अमल के कारगर उपायों के अलावा व्यक्ति के हिसाब से पौष्टिक भोजन रोग ग्रस्तता और मृत्य से बचाव के लिए अहम है. सेहतमंद भोजन का एक मंत्र है: संपूर्ण भोजन लें, यथा संभव पैकेटबंद और प्रोसेस्ड भोजन लेने से बचें. अपनी थाली को विविध तरह के संपूर्ण खाद्य पदार्थ सजाएं, जैसे कच्चा प्रोटीन (चिकन, अंडे, मछली, पनीर, सोया बरी, तोफू, हरी मटर, फलियां), सब्जियां (हरी, पत्तेदार और रंग-बिरंगी), कम शक्कर वाले फल (अमरूद, बेर, नाशपाती वगैरह), दही और मोटे अनाज (ओट, जौ, गेंहू का आटा, मक्का, मडुआ). भूमध्यसागरीय शैली का भोजन उदर में कोई नुकसान किए बगैर पाचन प्रक्रिया संबंधी दोषों को रोकने में कारगर है.

भारतीय भोजन में जिसकी सबसे ज्यादा अनदेखी की जाती है, वह है प्रोटीन, विटामिन डी और ओमेगा 3 और ओमेगा 6 जैसे जरूरी फैटी एसिड की. शोधकर्ता जे. रंगनाथन और उनके साथियों के मुताबिक, औसत भारतीय प्रति दिन 47 ग्राम प्रोटीन लेता है, जो दुनिया में सबसे कम है. हाइपरटेंशन से बचने के लिए मेडिअेरियन ऐंड डायट्री एप्रोच में ज्यादा फल, सब्जियां, मोटे अनाज, कम वसा वाला दूध-दही, कच्चा प्रोटीन, नट और सीड खाने की सलाह दी जाती है, जिनसे उच्च रक्त चाप घटता है, उच्च कोलेस्ट्राल स्तर और कार्डियोवस्कुलर रोगों का जोखिम कम होता है.

कार्डियोवस्कुलर रोगों से मृत्यु के जोखिम को घटाने में विटामिन डी की भूमिका स्थापित है. 2021 में 6,329 वयस्कों के सर्वेक्षण का निष्कर्ष है कि उच्च सीरम विटामिन डी-3 स्तर से मौत का कारण बनने वाले कार्डियोवस्कुलर खतरे और सभी वजहों में काफी गिरावट आती है.

दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि विटामिन डी का ज्ञान भारतीयों में सीमित है. इससे भी बढक़र यह कि ढेर सारे सूरज की धूप के बावजूद 70 प्रतिशत भारतीयों में विटामिन डी की कमी पाई जाती है और सिर्फ भोजन से उसकी भरपाई नहीं हो सकती. भारत में विटामिन डी युक्त भोजन-सामग्रियों का उत्पादन शुरू हो गया है, मगर सवाल है कि हममें से कितने लोग वास्तव में इस बारे में जानते हैं? फिर, क्या ऐसी खाद्य सामग्रियां हम तक पहुंच पाती हैं?

भारत में बहुत सारा पौष्टिक भोज्य पदार्थों का उत्पादन होता है, जिनसे हमारे दिल समेत कुल सेहत दुरुस्त रह सकती है. हालांकि युवा भारतीयों में पौष्टिकता की जानकारी के अभाव को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता क्योंकि वही दिल के दौरे समेत मेटाबोलिक सिंड्रोम्स में बढ़ोतरी की वजह है. गैर-संचारी रोगों की रोकथाम के लिए व्यक्ति के हिसाब से भाोजन और पौष्टिकता संबंधी जागरूकता के साथ व्यापक राष्ट्रीय पौष्टिकता रणनीति के विकास की दरकार है.

(डॉ. सुभाश्री राय डॉक्टोरल स्कॉलर (केटोजेनिक डाइट), सर्टिफाइड डायबटिज एडुकेटर, और क्लीनिकल तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य पौष्टिकता विशेषज्ञ हैं. डनका ट्विटर @DrSubhasree . व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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