scorecardresearch
Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतकोरोना के कहर से लेकर कृषि कानूनों की वापसी तक, ऐसा रहा 2021 का सफर

कोरोना के कहर से लेकर कृषि कानूनों की वापसी तक, ऐसा रहा 2021 का सफर

आइये, कामना करें कि आने वाले वर्ष 2022 में, जब कोरोना का नया वैरिएंट दुनिया की रफ्तार रोकने को उद्यत है, हमारा देश सारे अंदेशों को परे झटककर नई बुलदियां छुए.

Text Size:

हैरां हूं दिल को रोऊं या पीटू जिगर को मैं!…जी हां, ज्यादातर वक्त हमारी सासें दुश्वार किये रखकर अस्ताचल की ओर जा रहे वर्ष 2021 को जब भी और जैसे भी याद किया जाये, मिर्जा गालिब की यह पंक्ति जरूर याद आयेगी.

यह वर्ष आया तो कोरोना की पहली लहर के दिये जख्म हरे थे. भले ही उसका त्रास कम हो गया था, दूसरी लहर के अंदेशे इतने घने थे कि इसके आने की खुशी महसूस होने से पहले ही बंदिशों की कैद में चली गई थी और अब, जब यह जा रहा है, 2022 की अगवानी की खुशी नये वैरिएंट ओमीक्रॉन के साये में गुम है.

ठीक है कि इस साल हमने अपनी अदम्य जिजीविषा से सुरसा जैसी दूसरी लहर को, मध्य फरवरी से शुरू हुए जिसके चार महीने पहली लहर के पूरे साल पर भारी थे, शिकस्त दी, लेकिन उसके हाथों भारी जनहानि के बीच अस्पतालों के अन्दर-बाहर जिन्दगी की मौत से छिड़ी जंग के बीच शवदाह गृहों व नदियों के तटों पर दिखे ‘आदमी को ही मयस्सर नहीं इंसां होना’ वाले हालात अभी भूल भी नहीं पाये हैं कि तीसरी लहर डराने लग गई है.

कृषि कानूनों की वापसी

पिछले साल से ही तीन नये कृषि कानूनों को लेकर राजधानी की सीमाओं पर धरना दे रहे किसानों को गत एक दिसम्बर को राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द द्वारा विवादित कानूनों की वापसी के लिए संसद द्वारा पारित विधेयक पर मुहर लगा देने और अन्य मांगों पर केन्द्र सरकार से लिखित आश्वासन मिल जाने के बाद खुश-खुश अपने घरों व खेतों को लौटते देखने की खुशी भी अल्पकालिक सिद्ध हुई है.

जैसे उनके आन्दोलन में सात सौ से ज्यादा किसानों की जानें जाने और देश को गत तीस नवम्बर तक हुआ साठ हजार करोड़ रुपयों से ज्यादा का नुकसान काफी न हो, कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने कह दिया है कि सरकार निराश नहीं है और वह पुनः उक्त कानूनों की दिशा में बढ़ेगी.

अब वे सफाई दे रहे हैं कि उनके कहने का आशय यह नहीं था कि उक्त कानून फिर से लाये जायेंगे, लेकिन उनकी दिशा में बढ़ने के एलान से पैदा हुई चौंक खत्म होने का नाम नहीं ले रही, जबकि आन्दोलन के दौरान खुद को अराजनीतिक कहने वाले कई किसान संगठन अब राजनीतिक रंग में रंगे दिख रहे हैं.


यह भी पढ़े: क्या पत्नी के साथ जबरन सेक्स अब अपराध की कैटेगरी में आ सकेगा


महंगाई की मार

इस साल की विडम्बनाओं का इतने पर ही अंत हो जाता तो भी गनीमत होती. लेकिन पूरे साल एक ओर सरकार अर्थव्यवस्था के मजबूत होने का दावा करती रही और दूसरी ओर महंगाई डायन के डंडे मध्य और निचले वर्गों की कमर तोड़ते रहे.

एक ओर सरकार अपनी लोकतांत्रिकता का बखान करती रही और दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय सूचकांक हमारी आजादी को आंशिक और लोकतंत्र को लंगड़ा करार देने लगे. इस दौरान गैर-बराबरी इस हद तक बढ़ गई कि विश्व असमानता रिपोर्ट-2022 के अनुसार देश की एक फीसदी आबादी के पास राष्ट्रीय आय का 22 फीसदी हिस्सा संकेन्द्रित हो गया, जबकि निचले तबके के 50 फीसदी लोगों के पास महज 13 फीसदी हिस्सा बचा.

शीर्ष 10 फीसदी आबादी के पास कुल राष्ट्रीय आय का 57 फीसदी जमा हो गया, जबकि एक फीसदी आबादी के पास 22 फीसदी हिस्सा. वहीं, नीचे से 50 फीसदी आबादी की इसमें हिस्सेदारी मात्र 13 फीसदी रह गई. चीन की सीमा पर उसके अतिक्रमण के कारण पिछले साल पैदा हुआ तनाव इस साल सुलझने के नजदीक पहुंच कर भी नये सिरे से उलझ गया और चिन्ता का कारण बना रहा.

गत वर्ष इकतीस दिसम्बर को अपने गृहराज्य गुजरात के राजकोट में एम्स का शिलान्यास करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भरोसा दिलाया था कि 2020 की निराशा के बरक्स 2021 उम्मीदें लेकर आयेगा, क्योंकि हम कोरोना के खिलाफ कड़ाई और दवाई दोनों के कवच इस्तेमाल कर सकेंगे. उनकी बंधाई उम्मीद तब बड़ी होती दिखी थी, जब नये साल के पहले ही दिन कोरोना के टीके का इंतजार खत्म हो गया था और सीरम इंस्टीच्यूट के टीके को आपात इस्तेमाल की मंजूरी मिल गई थी.

लेकिन फरवरी के मध्य में कोरोना की दूसरी लहर की कड़ी परीक्षा के बीच सब कुछ इस तरह अव्यवस्थित हो गया कि ‘दुनिया के सबसे बड़े’ और ‘मु्फ्त’ टीकाकरण अभियान के ढिंढोरे के बीच अभी तब देश के सारे वयस्कों का टीकाकरण भी संभव नहीं हो पाया है. प्रधानमंत्री का कहना है कि आगामी तीन जनवरी से पन्द्रह से अठारह साल के किशोरों का टीकाकरण शुरू होगा, जबकि बच्चों को अभी भी टीकाकरण का इंतजार है.

टोक्यो ओलंपिक मे पदक 

अलबत्ता, दुःख दर्द की इन अनेक कथाओं के बीच 2021 ने देश को मुसकुराने के भी कई मौके उपलब्ध कराये. इनमें पहला बड़ा मौका था 23 जुलाई से आठ अगस्त तक टोक्यो में हुआ ओलंपिक, जिसमें पचास पदक जीतने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य भले ही धरा रह गया, खिलाड़ियों ने देश की झोली में एक स्वर्ण, दो रजत और चार कांस्य समेत सात पदक डालकर 2012 के लन्दन ओलम्पिक का पांच पदकों का रिकार्ड तोड़ डाला.

इनमें भाला फेंक प्रतियोगिता में एथलीट नीरज चोपड़ा को मिला स्वर्ण पदक 13 साल बाद देश को मिला पहला ओलंपिक स्वर्ण पदक था तो हॉकी टीम को मिला कांस्य पदक हॉकी में 41 वर्षों बाद हासिल हुआ पहला पदक. इसी तरह ट्रैक एवं फील्ड स्पर्धा में भी देश ने पहला पदक जीता.

अगली कड़ी में पैरालंपिक खेलों में ओलंपिक से भी ज्यादा खुशखबरियां उसके हाथ आईं, जिनमें उसने पांच स्वर्ण पदकों समेत कुल 19 पदक जीतकर अपना सर्वकालिक रिकॉर्ड तोड़ डाला. यह तब था, जब 1972 से अब तक सारे पैरालंपिक खेलों में कुल मिलाकर हमें 12 पदक ही मिले थे.


यह भी पढ़े: जय भीम से लेकर कर्णन तक- जाति विरोधी सिनेमा का साल रहा है 2021


मिस यूनिवर्स हरनाज संधू

चंडीगढ़ की 21 वर्षीय ऐक्टर-मॉडल हरनाज संधू ने गत 13 दिसम्बर को इजरायल में हुई मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता का ताज अपने नाम करके इक्कीसवीं सदी के इक्कीसवें साल को और इक्कीस बना दिया, तो भी देश मुसकराया. उन्होंने 80 देशों की प्रतियोगियों को पछाड़कर यह उपलब्धि हासिल की तो 21 साल बाद किसी भारतीय प्रतियोगी के सिर पर मिस यूनिवर्स का खिताब सजा.

आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले के तेनाली शहर में जन्मी सिरीशा बांदला इसी साल 11 जुलाई को अंतरिक्ष में जाने वाली भारतीय मूल की दूसरी महिला बनीं. उन्होंने अरबपति सर रिचर्ड ब्रैनसन की वर्जिन गेलेक्टिक उड़ान ’टै यूनिटी’ के दः सदस्यीय चालक दल में शामिल होकर अंतरिक्ष के किनारे तक उड़ान भरी.

इसी साल हम तेरह से चौदह हजार करोड़ की अनुमानित लागत वाली महत्वाकांक्षी सेंट्रल विष्टा परियोजना के तहत नाना आलोचनाओं के बीच नये संसद भवन के निर्माण का काम शुरू होने के साक्षी बने. तब, जब गत पांच जनवरी को सर्वोच्च न्यायालय ने उसके विरुद्ध की गई सारी आपत्तियों को निस्तारित करके उसको हरी झंडी दिखा दी.

न्यायालयों के महत्व के फैसले

देश के न्यायालयों ने इस साल कई दूरगामी महत्व के फैसलों से देश को खुश किया. 17 फरवरी को दिल्ली की एक अदालत ने व्यवस्था दी कि किसी यौन हमला पीड़ित महिला को हमले की शिकार होने के दशकों बाद भी शिकायत करने का हक है और किसी के प्रतिष्ठा के अधिकार को उसकी गरिमा के अधिकार की कीमत पर संरक्षित नहीं किया जा सकता.

25 फरवरी को सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि किसी महिला के मायके वालों को उसके परिवार से अलग नहीं माना जा सकता और वे भी उसकी सम्पत्ति का उत्तराधिकार पा सकते हैं. पांच मार्च को एक अन्य मामले में उसने व्यवस्था दी कि मां-बाप के तलाक की सजा उनके बच्चों को नहीं दी जा सकती. इसलिए पत्नी से तलाक के बावजूद पिता को अपनी संतान का ग्रेजुएशन तक का खर्च उठाना पड़ेगा और अठारह वर्ष की उम्र तक पैसे देते रहने से ही उसकी जिम्मेदारी पूरी नहीं मानी जायेगी.


यह भी पढ़े: पहचान पत्र को आधार से लिंक करना भारत के चुनावी लोकतंत्र के लिए खतरनाक साबित होगा


अमृत महोत्सव की शुरुआत

इस वर्ष ने आजादी के अमृत महोत्सव की धूमधाम भी देखी. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 15 अगस्त, 2022 को स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ के 75 सप्ताह पूर्व 12 मार्च को गुजरात के साबरमती आश्रम से इस महोत्सव का शुभारंभ किया तो देश भर में कार्यकमों की झड़ी लग गई. ज्ञातव्य है कि 1930 में 12 मार्च को ही राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने दांडी में ऐतिहासिक नमक सत्याग्रह की शुरुआत की थी. इसीलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनके साबरमती आश्रम से शुरू होकर दांडी तक जाने वाली फ्रीडम मार्च नामक पदयात्रा को हरी झंडी दिखाकर अमृत महोत्सव की शुरुआत की.

महोत्सव के तहत उन्होंने वोकल फार लोकल की अपील की तो ‘इंडिया ऐट सेवेंटीफाइव’ का प्रतीक चिह्न और वेबसाइट भी जारी की. दांडी यात्रा में महात्मा गांधी सहित 80 स्वतंत्रता सेनानियों ने भाग लिया था. इसी को ध्यान में रखकर फ्रीडम मार्च में भी 80 पदयात्रियों को शामिल किया गया. इससे पहले इसी साल 12 फरवरी को गोरखपुर में चौराचौरी शताब्दी महोत्सव का शुभारंभ हुआ, जिसके उपलक्ष्य में पांच रुपये का स्मारक डाक टिकट भी जारी किया गया.

बहरहाल, आइये, कामना करें कि आने वाले वर्ष 2022 में, जब कोरोना का नया वैरिएंट दुनिया की रफ्तार रोकने को उद्यत है, हमारा देश सारे अंदेशों को परे झटककर नई बुलदियां छुए.

(कृष्ण प्रताप सिंह फैज़ाबाद स्थित जनमोर्चा अखबार के संपादक और वरिष्ठ पत्रकार हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)


यह भी पढ़े: नरेंद्र मोदी हों या जॉनसन, सब युगचेतना से संचालित हो रहे हैं 


share & View comments