scorecardresearch
Tuesday, 5 November, 2024
होममत-विमतAMU में 'मुस्लिम' शब्द विश्वविद्यालय को राष्ट्र-विरोधी नहीं बनाता, ठीके वैसे ही जैसे BHU में 'हिंदू'

AMU में ‘मुस्लिम’ शब्द विश्वविद्यालय को राष्ट्र-विरोधी नहीं बनाता, ठीके वैसे ही जैसे BHU में ‘हिंदू’

एएमयू को अल्लाह मियां की यूनिवर्सिटी कहना पीएम नरेंद्र मोदी के अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को 'मिनी इंडिया' कहने वाली बात का विरोध करना है.

Text Size:

क्या अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी वास्तव में अल्लाह मियां की यूनिवर्सिटी है या ख्याति प्राप्त राष्ट्रीय यूनिवर्सिटी है? क्या मुगलों का उत्तराधिकारी है एएमयू? क्या एएमयू के अधिकारी ‘अनाचारी क्लब’ के सदस्य हैं? क्या विश्वविद्यालय कोर्ट को खत्म कर देना जरूरी है? दिप्रिंट के लेख ‘एएमयू कैन बी इंडियन नेशनल यूनिवर्सिटी, नॉट रीमेन अल्लाह मियां यूनिवर्सिटी इन अशराफ हैंड्स ‘ को पढ़ने के बाद मैं ये सवाल पूछ रहा हूं, जिसे इब्न खालदून भारती ने लिखा है.

भारत में शिक्षा एक मुक्तिदायी शक्ति रही है. हिंदू संतों द्वारा स्थापित शास्त्रीय भारतीय शिक्षा प्रणाली ने महान भारतीय सभ्यता का मार्ग प्रशस्त किया. भारत की प्राचीन शिक्षा प्रणाली की पहचान गुरुकुलों की पूर्ण स्वायत्तता थी. हमारी नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (2020) अच्छा प्रदर्शन करने वाले शिक्षण संस्थानों को अधिक स्वायत्तता देने की बात करती है. एक विश्वविद्यालय को अपने परिसर में पूरे विश्व के ज्ञान को बढ़ावा देना चाहिए. विश्वविद्यालय के लोकतांत्रिक शासन मॉडल में सरकार की चौकस निगाहों के तहत विश्वविद्यालय निकायों को स्वायत्तता की परिकल्पना की गई है.


यह भी पढ़ें: ई-टेंडर CM खट्टर का नया मंत्र है हरियाणा के सरपंचों ने इसे ‘गांव की संस्कृति’ पर हमला बताया है


एएमयू- एक राष्ट्रीय विश्वविद्यालय

एएमयू को राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद (एनएएसी) से ए+ रैंक मिला हुआ है. इसे हमेशा राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों द्वारा शीर्ष भारतीय विश्वविद्यालयों में स्थान दिया गया है और इसलिए लेखक द्वारा विश्वविद्यालय चलाने वाले लोगों के लिए “लोटस इटर्स” की उपमा देना गलत है. एएमयू को अल्लाह मियां विश्वविद्यालय कहना गलत नीयत से है और ये संविधान को नकारने से कम नहीं है. संघ सूची की प्रविष्टि संख्या 63 में एएमयू, बीएचयू (बनारस हिंदू विश्वविद्यालय) और डीयू (दिल्ली विश्वविद्यालय) का उल्लेख संसद के विशेष अधिकार क्षेत्र के तहत संस्थानों के रूप में किया गया है. वास्तव में, यदि कोई 62-65 की प्रविष्टियों को पढ़े, तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि संविधान सभा ने एएमयू को ‘राष्ट्रीय संस्थान’ माना था.

मान लीजिए कि एएमयू में ‘मुस्लिम’ शब्द से किसी को समस्या है, लेकिन मुस्लिम का मतलब यह नहीं है कि वह देशद्रोही है. मुसलमान भी काफी राष्ट्रीय हैं. अपने देश के लिए प्यार उनका आधा धर्म है. दिल्ली में सेंट स्टीफेंस कॉलेज और वेल्लोर में क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज जैसे सभी महान अल्पसंख्यक संस्थान वास्तव में राष्ट्रीय संस्थान हैं. बीएचयू भी भगवान का हिंदू विश्वविद्यालय नहीं है, यह भी एक राष्ट्रीय विश्वविद्यालय है, जिस पर पूरे देश को गर्व है. एएमयू और बीएचयू की उत्पत्ति ‘सांप्रदायी विश्वविद्यालयों’ (डिनोमीनेशनल यूनिवर्सिटीज) के रूप में हुई थी और इनका बड़ा ऐतिहासिक महत्व है. दोनों सामुदायिक पहल (कम्युनिटी इनीशिएटिव) के तहत शुरू हुए थे.

एएमयू को अल्लाह मियां की यूनिवर्सिटी कहना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा एएमयू को ‘मिनी इंडिया’ कहे जाने का विरोध करना है.

यह विश्वविद्यालय के मामलों में भारत सरकार द्वारा निभाई जाने वाली रचनात्मक और अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका को भी कमजोर करता है. भारत के राष्ट्रपति विश्वविद्यालय के सभी निर्णयों में पर्यवेक्षी भूमिका के साथ एएमयू के विजिटर हैं. राष्ट्रपति द्वारा नामित व्यक्ति सभी चयन समितियों का पदेन सदस्य होता है. राष्ट्रपति के कार्यकारी परिषद में तीन और कोर्ट में पांच नामांकित व्यक्ति होते हैं. एएमयू के कुलपति को “अमीर-उल मोमिनीन” कहना सरकार और राष्ट्रपति का अपमान है, जो कभी ऐसे व्यक्ति को नियुक्त नहीं करेगा जो खुद को मुसलमानों का खलीफा समझता हो. पूर्व कुलपति, डॉ. जाकिर हुसैन, तो भारत के राष्ट्रपति भी रह चुके हैं.

सभी स्टेकहोल्डर जैसे छात्र, शिक्षक, राष्ट्रपति द्वारा नामित लोग, गैर-शिक्षण कर्मचारी, संसद के सदस्य आदि कार्यकारी परिषद और कोर्ट के माध्यम से एएमयू वीसी की नियुक्ति में हिस्सा लेते हैं. लोकतांत्रिक तरीके से वे तीन नामों का चयन करते हैं. ईसी और कोर्ट द्वारा अनुशंसित नामों को अस्वीकार करने की पूर्ण शक्ति राष्ट्रपति के पास है. अन्य सभी विश्वविद्यालयों में, ईसी दो सदस्यों को नामांकित करता है, जिसका अर्थ है कि कुलपतियों की नियुक्ति में 66% नियंत्रण स्वयं विश्वविद्यालयों का होता है. ईसी और कोर्ट के बड़े निकायों की तुलना में खोज समितियों को प्रभावित करना बहुत आसान है. हाल के दिनों में सर्च कमेटियों के माध्यम से नियुक्त कई वीसी अक्षम और भ्रष्ट साबित हुए. उनमें से कुछ को सरकार को निलंबित करना पड़ा.

भारतीय संसद के पास मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए कुछ भी करने की शक्तियां हैं. संविधान में कुछ भी संसद को यह स्पष्ट करने से नहीं रोकता है कि 1920 के एएमयू अधिनियम में क्या उद्देश्य निहित था, जो कि एएमयू के पास “विशेष रूप से भारत के मुसलमानों की शैक्षिक और सांस्कृतिक उन्नति को बढ़ावा देने” की शक्ति है. 1981 में संसद द्वारा डाला गया यह प्रावधान, हालांकि सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है, परंतु मूल रूप से ये पीएम के नारे ‘सबका, साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ के अनुरूप है. इसी तरह, अनुच्छेद 30(2) अनुदान (ग्रांट) देने में सरकार को अल्पसंख्यक संस्थानों के साथ भेदभाव करने से रोकता है.


यह भी पढ़ें: खान मार्केट, जॉर्ज सोरोस गैंग, बुलडोजर राजनीति- TV की दुनिया के ये हैं कुछ पसंदीदा शब्द


विश्वविद्यालयों में विविधता

प्रवेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण 2006 में शुरू हुआ था. इसलिए अभी ओबीसी छात्र न प्रोफेसर बने हैं और न ही प्रोफेसर बनकर अभी उनके पास 10 वर्षों का अनुभव है, जो कि कुलपति बनने के लिए आवश्यक है. हालांकि अनुच्छेद 15(5) ने इस संवैधानिक आरक्षण से अनुच्छेद 30 संस्थानों को छूट दी, भारत के अल्पसंख्यक संस्थानों को अपने परिसरों में दलित और ओबीसी छात्रों की संख्या बढ़ाने के लिए अतिरिक्त काम करना चाहिए. करीब 900 भारतीय विश्वविद्यालयों में दलित और ओबीसी कुलपतियों की संख्या 1 फीसदी भी नहीं है. इसके अलावा, कुलपति के पद के लिए कोई आरक्षण नहीं हो सकता है क्योंकि ये 100 प्रतिशत आरक्षण हो जाएगा. दिलचस्प बात यह है कि हाल के दिनों में एएमयू के दो वाइस-चांसलर ओबीसी थे और इसलिए एएमयू को अशराफों या अभिजात्य वर्ग का विश्वविद्यालय कहना तथ्यात्मक रूप से गलत है. कई प्रो-वाइस-चांसलर, डीन, हेड और प्रॉक्टर ओबीसी रहे हैं.


यह भी पढ़ें: ‘जमीन विवाद और पुरानी रंजिश’, बिहार के वैशाली में सैनिक के पिता की गिरफ्तारी क्या कहती है


‘अनाचारी क्लब’ के रूप में एएमयू प्रशासन

एएमयू निकायों को ‘अनाचारी क्लब’ कहना स्पष्ट रूप से वर्ग मानहानि का मामला है. “हर कोई किसी का है” का अर्थ आपस में यौन संबंध नहीं है. ईसी और कोर्ट में भारत के राष्ट्रपति के आठ नामित लोगों को अनाचार क्लब के सदस्य के रूप में कहना उनकी गरिमा का अपमान है. एएमयू की अकादमिक परिषद के अधिकांश सदस्य, किसी भी अन्य भारतीय विश्वविद्यालय की तरह, विभागाध्यक्ष होने के कारण पदेन सदस्य हैं. वास्तव में, अकादमिक परिषद में, लगभग 120 सदस्यों में से, कुलपति के नामित- दो प्रोवोस्ट, सचिव (विश्वविद्यालय खेल समिति) और प्रॉक्टर- केवल चार हैं जो वास्तव में अकादमिक परिषद के निर्णय लेने को प्रभावित नहीं कर सकते हैं. ईसी में, 28 सदस्यों में से, केवल प्रॉक्टर और वरिष्ठतम प्रोवोस्ट “कुलपति की मेहरबानी” से मनोनीत होते हैं. अन्य सभी सदस्य, अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालयों की तरह, पदेन (एक्स-ऑफिसो) सदस्य होते हैं.

अन्य विश्वविद्यालयों की तरह, एएमयू कोर्ट ईसी के छह सदस्यों का चुनाव करता है. 180 से अधिक सदस्यों में से सिर्फ छह सदस्यों को वीसी अपनी मेहरबानी से सदस्य बना सकता है.. एएमयू कोर्ट में 25 पूर्व छात्र, 10 दानकर्ता, 14 संसद सदस्य, राष्ट्रपति द्वारा नामित 5 लोग, विद्वान व्यवसायियों के 10 प्रतिनिधि, गैर-शिक्षण कर्मचारियों के 5 प्रतिनिधि और 15 छात्र हैं- जैसा कि अन्य विश्वविद्यालयों में भी होता है. चूंकि कई वक्फ संपत्तियां एमएओ कॉलेज/एएमयू को दी गई थीं, इसलिए वक्फ बोर्डों को सांकेतिक प्रतिनिधित्व दिया गया था. मुस्लिम शिक्षा सम्मेलन और मुस्लिम सांस्कृतिक संघों ने विश्वविद्यालय की नींव में एक प्रमुख भूमिका निभाई थी और इसलिए ऐतिहासिक कारणों से उनका भी थोड़ा प्रतिनिधित्व है.


यह भी पढ़ें: RSS शाखाओं का काउंटर, मोदी से अलग भारत का विचार: ‘इंसाफ’ के लिए क्या है कपिल सिब्बल का एजेंडा


प्रतिनिधि विश्वविद्यालय कोर्ट/सीनेट

जब दिल्ली विश्वविद्यालय, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू), मद्रास विश्वविद्यालय और कलकत्ता विश्वविद्यालय में कोर्ट/सिनेट समाप्त नहीं किया गया है तो एएमयू में कोर्ट को क्यों समाप्त किया जाना चाहिए? यह सच है कि एएमयू के कोर्ट, ईसी और एसी में अधिकांश सदस्य विश्वविद्यालय के कर्मचारी हैं. लेकिन अन्य सभी विश्वविद्यालयों के लिए सरकार की यही नीति है. विश्वविद्यालय के शासन का लोकतांत्रिक मॉडल यही है.

जेएनयू अधिनियम 1966 की धारा 11, जेएनयू कोर्ट को एएमयू कोर्ट की तरह शक्तियों के साथ विश्वविद्यालय की सर्वोच्च प्राधिकरण बनाती है. धारा 19(3) के तहत एएमयू वीसी की आपातकालीन शक्ति अन्य विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की आपातकालीन शक्तियों जैसी है. जेएनयू कोर्ट भी एक विशाल निकाय है जिसके लगभग सभी कार्यकारी परिषद सदस्य इसके सदस्य हैं. इसमें रेक्टर भी हैं, संसद के दस सदस्य, सभी डीन, सभी अध्यक्ष, सभी प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर, सहायक प्रोफेसर, उद्योग, वाणिज्य, श्रम और कृषि आदि के छह प्रतिनिधि शामिल है.

एएमयू की तरह, दिल्ली विश्वविद्यालय कोर्ट में सभी पूर्व कुलपति सदस्य के रूप में हैं, दस पूर्व छात्र, चिकित्सा, कानून, इंजीनियरिंग आदि जैसे व्यवसायों के दस लोगों को एएमयू कोर्ट की तरह ही चुना जाता है, उद्योग के छह प्रतिनिधि भी होते हैं. डीयू कोर्ट, एएमयू कोर्ट की तरह ही ईसी के चार सदस्यों का चुनाव करता है.

कलकत्ता विश्वविद्यालय सीनेट (कोर्ट) में 15 छात्र हैं, 5 गैर-शिक्षण कर्मचारी और 25 पूर्व छात्र हैं. जबकि एएमयू में सिर्फ 10 दानदाताओं के प्रतिनिधि हैं, मद्रास विश्वविद्यालय में जिन्होंने 20,000 रुपये का दान दिया है, वे विश्वविद्यालय सिनेट के सदस्य बन जाते हैं और एएमयू की तरह 25 पूर्व छात्र सदस्य हैं. मद्रास विश्वविद्यालय के सिंडिकेट (ईसी) में एएमयू की तरह सीनेट (कोर्ट) द्वारा चुने गए 6 सदस्य हैं.

एएमयू और बीएचयू अधिनियमों को वास्तव में 1951 में नए संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप बनाने के लिए संशोधित किया गया था. इस प्रकार, यह प्रावधान कि केवल एक हिंदू बीएचयू कोर्ट का सदस्य होगा और केवल एक मुस्लिम एएमयू कोर्ट का सदस्य होगा, हटा दिया गया था. अनिवार्य धार्मिक शिक्षा के प्रावधानों को भी दोनों अधिनियमों से हटा दिया गया. एएमयू के वीसी का चुनाव कोर्ट अपने सदस्यों में से करेगा, यह प्रावधान हटा दिया गया था. वीसी की फिर से नियुक्ति (रीअप्वाइंटमेंट) के लिए पात्र (एलिजिबल) होने के प्रावधान को भी हटा दिया गया था.

एएमयू का शासन मॉडल भारत के अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालयों के अनुरूप ही है. विश्वविद्यालय अपने परिसर को ज्ञान का केंद्र तभी बन सकता है जब जीवन के सभी क्षेत्रों के लोग इसका हिस्सा बने. यह बड़ी कोर्ट और सिनेट का तर्क है. सभी विश्वविद्यालयों में सुधार की जरूरत है. एएमयू को भी इस बात पर गौर करना चाहिए कि किस प्रकार के सुधार इसे आधुनिक, उदार, प्रगतिशील और समावेशी शिक्षा का अधिक कुशल वाहक बना सकते हैं.

(लेखक अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में कानून के प्रोफेसर और हैदराबाद स्थित नालसर यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ के पूर्व कुलपति हैं. उनका ट्विटर हैंडल है @ProfFMustafa. व्यक्त विचार निजी हैं)

(संपादन: कृष्ण मुरारी)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: अब जैन साध्वी बन ‘बुलबुले जैसे संसार’ में नंगे पांव चलती है सूरत के हीरा कारोबारी की नौ साल की बेटी


 

share & View comments